नई दिल्ली। भीमा कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में वामपंथी रुझानों वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की देश भर से हुई गिरफ़्तारियों के बाद एक अहम सवाल खड़ा हुआ है. सवाल ये है कि इसी मामले में प्रमुख अभियुक्त संभाजी भिडे के ख़िलाफ़ अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई है.
1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के अगले ही दिन अनीता सावले नाम की महिला ने इस सिलसिले में पिंपरी पुलिस स्टेशन में शिक़ायत दर्ज कराई थी. इस शिक़ायत में संभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे को अभियुक्त बनाया गया था. शिक़ायत दर्ज किए जाने के साढ़े तीन महीने बाद 14 मार्च को मिलिंद एकबोटे को गिरफ़्तार किया गया. हालांकि अगले महीने ही अप्रैल में उसे ज़मानत पर रिहा कर दिया गया. लेकिन संभाजी भिडे को इस मामले में अब तक गिरफ़्तार नहीं किया गया है.
पुलिस की अनदेखी के बाद शिकायतकर्ता अनीता ने बॉम्बे हाईकोर्ट में संभाजी भिड़े की गिरफ़्तारी के लिए याचिका भी डाली थी. याचिका जून में दायर की गई थी, लेकिन उस पर सुनवाई अब तक शुरू नहीं हुई है.
हालांकि संभाजी भिडे को लेकर भाजपा सरकार किस तरह रक्षात्मक है, इसका सबूत इससे मिलता है कि भिडे को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने मार्च, 2018 में महाराष्ट्र विधानसभा में बयान दिया था कि भीमा कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में संभाजी भिडे के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला है.
इस मुद्दे को लेकर बीबीसी में प्रकाशित खबर में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज पीबी सावंत ने कहा है कि, “यह पुलिस के ऊपर निर्भर करता है कि किसी को गिरफ़्तार किया जाए या नहीं.
जस्टिस सावंत का कहना है कि हिंदुत्व के समर्थक चाहे जैसे भी आपराधिक काम करें उन्हें इस सरकार के रहते कोई सज़ा नहीं मिलेगी,उन्हें सरकार से सुरक्षा मिली है. सावंत संभाजी भिड़े और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दोस्ती की ओर भी इशारा करते हैं.
इस मामले में सरकार द्वारा पक्षपात करने की बात को इस बात से भी बल मिल रहा है कि भीमा-कोरेगांव हिंसा के बाद संभाजी भिडे पर मामला दर्ज होने के बाद फरवरी में पीएम मोदी ने एक वीडियो ट्वीट किया था, जिसमें दोनों एक मंच साझा करते नजर आए थे. जाहिर है कि देश का प्रधानमंत्री खुद जिस व्यक्ति के साथ वीडियो साझा कर रहा हो, उसे गिरफ्तार करने की हिम्मत आखिर कौन पुलिस अधिकारी करेगा.
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