
ब्राह्मण समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुरेश मिश्रा ने अपने वकील के जरिए भेजे गए नोटिस में योगी आदित्यनाथ से इस मामले में माफी मांगने को कहा है और तीन दिन में ऐसा नहीं करने पर कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है. अब सुरेश मिश्रा जी को यह जान लेना चाहिए कि योगी जी के खिलाफ केस डालना भी इतना आसान नहीं, जितना आसान ये लोग समझ रहे हैं. किसी भी सरकार के मुखिया के खिलाफ केस दायर करने के लिए राज्यपाल अथवा राष्ट्रपति की अनुमति की आवश्यकता होती है….जो नितांत असंभव है. उल्लेखनीय है कि आजकल ही नहीं हमेशा से, सरकार चाहे किसी भी राजनीतिक दल की रही हो, राज्यपाल अथवा राष्ट्रपति की अनुमति मिलना आसान इसलिए नहीं होता क्योंकि राज्यपाल और राष्ट्रपति दोनों पदों पर केन्द्रीय सरकार के द्वारा अपने ही दल के राजनीतिक लोग चुने जाते हैं. जबकि ये लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है. विधान तो ये है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति जैसे पदों पर राजनितिक लोग न होकर गैर राजनीतिक बुद्धीजीवी वर्ग के लोग होने चाहिएं जिनकी सोच लोकतांत्रिक और आजाद होनी चाहिए किंतु आज तक भी ऐसा नहीं हुआ है. कहना गलत न होगा कि देश में लोकतंत्र की व्यवस्था राजनीतिक दलों की रखैल होकर रह गई है…और कुछ नहीं. सारी की सारी राजनीतिक पार्टियाँ एक दूसरे को देशद्रोही ठहराने का प्रयत्न करती हैं जबकि पक्ष और विपक्ष दोनों का राजनीतिक चरित्र लगभग एक जैसा ही होता है. आजकल तो सत्ता पक्ष द्वारा राष्ट्रप्रेमी और राष्ट्रद्रोही होने तक के प्रमाण पत्र बांटे जाने लगे हैं. जो सरकार का पक्षधर वो राष्ट्रवादी और जो सरकार से सवाल करे वो राष्ट्रद्रोही. खैर! सुरेश मिश्रा जी की हनुमान के प्रति इस तरफदारी में भी दलितों को अपने खैमें में खींचकर भाजपा में कोई न कोई बेहतर जगह तलाशने की कोशिश माना जा सकता है.
पुन: उल्लिखित है कि भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों के समर्थन में राजस्थान में ताबड़तोड़ जनसभाएं कर रहे योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को मालाखेड़ा अलवर में कहा था कि ‘बजरंग बली’ ऐसे लोकदेवता हैं जो स्वयं वनवासी हैं, गिरवासी हैं दलित हैं वंचित हैं…. यहाँ सवाल ये उठता है कि योगी आदित्य के दिमाग में केवल हनुमान् की जाति का ध्यान ही क्यों आया, हनुमान की सेना में तो अनेक बानर शामिल थे. योगी आदित्य नाथ उनकी जाति के बारे में उल्लेख करने में क्यों चूक गए? …शायद इसलिए कि तथाकथित भगवान राम उनके सेनापति थे…और हनुमान केवल एक सेवक की भूमिका निभा रहे थे. यदि अन्य सेना की जाति पर चर्चा की गई होती तो फिर सेनापति राम की जाति पर सवाल उठाना उनकी मजबूरी हो गई होती… कि नहीं? जबकि भाजपा की पैत्रिक संस्था सारे चुनाव भगवान राम और उनका मन्दिर बनाने के नाम पर लड़ रही है फिर भगवान हनुमान कहाँ से और किस लिए राजनीतिक क्षेत्र में लाकर खड़े कर दिए गए? रामायण के और भी इतने कितने ही पात्र हैं जिनकी जाति पर योगी जी ने कोई सवाल नहीं किया, केवल हनुमान जी पर ही किया….. आखिर क्यों? …. शायद इसका कारण यह है कि हनुमान और उनके सहयोगियों को बानर माना जाता रहा है और अब क्योंकि योगी जी का मानना है कि भारतीय समाज का दलित वर्ग हनुमान को अपना भगवान मानता है. इसलिए योगी जी ने दलितों को भाजपा के हक में करके केवल और केवल राजनीतिक रोटिया सेकने के लिए के लिए ये दाव खेला होगा. जाहिर है बाकी देवताओं को सब ब्राह्मण ही बताते हैं किंतु आज वो सब जातियां भाजपा से किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई हैं, जाहिर है उनकी जातियां गिनाने से इन्हें को कोई अतिरिक्त लाभ नहीं होने वाला है .
उल्लेखनीय है कि योगी जी की इस टिप्पणी से नाराज ब्राह्मण समाज ने नोटिस में कहा है कि हनुमान भगवान हैं. उन्हें वंचित और लोकदेवता बताना न केवल उनका बल्कि लाखों हनुमान भक्तों का अपमान है. कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी ने भी योगी के इस बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा, ‘भाजपा अभी तक इंसान को बांटने का काम कर रही थी, लेकिन अब यह भगवान को भी जाति में बांट रहे हैं.’ उनके कहने का साफ साफ मतलब है कि भाजपा ने कभी भी देश और समाज को जोड़ने का काम नहीं किया.
यह कहना अतिश्योक्ति न होगा किदेश की राजनीति में इन दिनों जो चल रहा है, उसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे. जो राजनेता और संगठन अब तक इंसानों की जाति पर राजनीति कर रहे थे, वे अब भगवान की जाति को भी राजनीति में लपेट रहे हैं. इससे पहले एक सवाल है कि क्या आप भगवान राम के परम भक्त हनुमान जी किसी जाति के बारे में कुछ जानते थे…. योगी जी के इस बयान के बाद अनेक राजनीतिक दलों के नेता और सामाजिक/धार्मिक संगठन के सदस्य भी हनुमान जी की जाति खोज लाए. ….आलम ये हो गया है कि कोई हनुमान को दलित, तो कोई आदिवासी, तो कोई ब्राह्मन मान रहा है….. यहाँ तक कि कोई उन्हे आर्य मानने का तर्क तक दे रहा है. ऐसे में योगी के सामने इन सबका कोई उत्तर नहीं है.
योगी के इस बयान से राजस्थान के दलितों को ही नहीं अन्य राज्यों के दलितों को भी अत्याधिक हैरान किया हैं… सुना है कि ब्राह्मण सभा के एक राष्ट्रीय अध्यक्ष सुरेश मिश्रा ने भी कानूनी नोटिस भेज कर योगी से अपने बयान पर माफी मांगने को कहा है…. इस तरह योगी का बयान एक राजनीतिक मुद्दा बन सा गया है. … यहाँ कहना न होगा कि योगी के बयान पर सबसे ज्यादा आपत्ति भारत के द्लित समाज को हुई है. अफसोस तो ये है पी एम मोदी की इस ओर पूर्ण चुप्पी साध्रक योगी जे के बयान का समर्थन ही किया है.
मेरी नजर में दलितों की यही सबसे बड़ी नाकामयाबी है कि वो गैर-दलितों के इस प्रकार के बयानों के दूरगामी उद्देशयों का मतलब/ हकीकत को समझे बिना ही अपना खूंटा गाड़ने लगते हैं जबकि ऐसे बयान केवल और केवल दलितों को असली मुद्दों से भटकाने की कोशिश होती है. ऐसे बयानों से दलितों का कुछ भला नहीं होने बाला, बल्कि उन्हें अपने मूल मक्सद से भटकाने का प्रयास होता है. प्रयास होता है कि दलितों को भावनात्मक विषयों में उलझाकार उन्हें रोजी-रोटी, रोजगार जैसे मुद्दों, सरकारी नौकरियों में आरक्षण की बरकारारी, एस. सी./एस. टी. एक्ट की बात करने के मौंको से दूर ही रखा जाय. और सच ये है कि दलितों के कुछ छ्दम नेता जो इन वर्चस्वशाली राजनीततिक दलों के चमचे योगी के जैसे बयानों को तूल देने के लिए धरने/ मिथ्या आन्दोलनों पर उतारू होकर दलित समाज को भ्रमित करने का काम करके दो रोटी की बासी रोटी का जुगाड़ करते है किंतु ऐसी हरकतों से समूचे समाज का निहायत ही नुकसान है. मुझे तो दुख ये भी है कि हनुमान जी चाहे जिस भी जाति के थे, दलित अथवा बहुजन समाज को इससे क्या फर्क पडता है. अब हनुमान दलित थे अथवा नहीं, इसका आज के दलितों पर क्या प्रभाव पड़ता है, पता नहीं? फिर दलितों ने इस मुद्दे पर किसलिए चिल्लपौं लगा रखी है. किंतु योगी जैसे एक मुख्य मंत्री के द्वारा छोड़े गए सुगूफे को दलितों द्वारा गहरे से लेना सीधे- सीधे बाबा साहेव अम्बेडकर के विचारों से असहमति रखना है. जाहिर है कि ऐसे बयानों का केवल और आम दलित शिकार नहीं है अपितु वो दलित भी है जो राजनीतिक दलों के दलाल बने हुए हैं. कहने को आज के दलित अपने आप को अम्बेडकरवादी कहते हैं किंतु अम्बेडकरवाद को समझना शायद उनके बूते से परे रहा है. दरअसल अम्बेडकरवा बाबा साहेब अम्बेडकर की विचारधारा और दर्शन है. स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, बौद्ध धम्म, विज्ञानवाद, मानवतावाद, सत्य, अहिंसा आदि के विषय आम्बेडकरवाद के सिद्धान्त हैं. छुआछूत को नष्ट करना, दलितों में सामाजिक सुधार, भारत में बौद्ध धम्म का प्रचार एवं प्रचार, भारतीय संविधान में निहीत अधिकारों तथा मौलिक हकों की रक्षा करना, एक नैतिक तथा जातिमुक्त समाज की रचना और भारत देश प्रगति….यह प्रमुख उद्देश शामिल हैं. आम्बेडकरवाद सामाजिक, राजनितीक तथा धार्मिक विचारधारा है.
आज (05.12.2018) की ही खबर है कि कुछ दलित कनाट प्लेस के हनुमान मन्दिर पर कब्जा करने के लिए गए तो कुछ लोग मुज्जफरनगर के हनुमान मन्दिर पर कब्जा करके अपने अधिकारों का दिखावा करने से पीछे नहीं थे. किंतु दुख की बात ये है कि इस प्रकार की कोशिश किसी अम्बेडकरवादी संगठन के बुलावे पर नहीं अपितु वर्चस्वशाली राजनीतिक दलों के बेनर तले काम कर रहे कुछ लोगों का उपक्रम थी. हैरत तो तब हुई कि जब भीम आर्मी के चन्द्रशेखर ने हनुमान मन्दिरों पर कब्जा करने की कवायद करने को बढ़ावा दिया. मैं आर्मी चीफ से ये पूछना चाहता हूँ कि क्या उनका ये आन्दोलन बाबा साहेब की बाईस प्रतिज्ञाओं का उलंघन नहीं तो और क्या है? सच तो ये है कि मुझे यह ही समझ में नहीं आ रहा कि हनुमान को दलित कहे जाने पर दलितों को ही आपत्ति क्यों है? इन घटनाओं से मुझे तो यही लगता है कि योगी जी अपने मकसद में सफल हो गए हैं. क्योंकि दलित समाज के तथाकथित बोद्ध बाबा साहेब द्वारा दिलाई गई बाइस प्रतिज्ञायों को दरकिनार करके हनुमान मन्दिरों के दरवाजे पर भजन-कीर्तन करने में जुट गए हैं. ऐसे लोग बाबा साहेब के इन बोलों को भी भूल गए कि दलितों अर्थात गरीबों और निरीहों की उन्नति का मार्ग मन्दिरों से नहीं स्कूलों और पुस्तकालयों से होकर निकलता है.
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