उनाकांड के पीड़ित दलित परिवार धरने पर बैठे हैं। उन्हें इंसाफ नहीं मिला है। वह सरकार से विभिन्न मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनाकांड के कई आरोपी भी जेल से छूट गए हैं। लेकिन जिग्नेश भाई बिहार में “मां की कसम” खाकर कन्हैया कुमार के लिए वोट मांग रहे हैं। उनसे पूछिए कि ऐसे हालात में क्या उनको उना नहीं होना चाहिए। अच्छा छोड़िए जिग्नेश भाई उना कांड की पीड़ित परिवार से आपका छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है। लेकिन उस नौजवान के लिए तो आंदोलन कीजिये जो 3 साल से जेल में बंद है।
अमरेली का नौजवान दलित कार्यकर्ता कांति भाई बाला 3 साल से जेल में बंद है। उना कांड के विरोध में कांतिबाला ने आंदोलन चलाया था। जिस पर सरकार ने हजारों लोगों पर केस दर्ज करवाया था। कांतिबाला तो अपने विधायक जिग्नेश मेवानी का इंतजार है कि वह कभी उसकी रिहाई के लिए आवाज़ उठाएंगे। उसकी रिहाई के लिए कोई आंदोलन चलाएंगे। चलिए आंदोलन ना सही विधानसभा में सरकार से प्रश्न ही पूछ लेंगे। लेकिन जिग्नेश भाई को तो जगतनेता बनने का भूत सवार है। इंडिया के कोने-कोने में जाकर भाषणबाजी कर रहे हैं।
एक बात और बता रहा हूं जिग्नेश जिस बनासकांठा जिले की बडगाम सीट से विधायक हैं, वह बनासकांठा छुआछूत और अस्पृश्यता का शिकार है। लेकिन जिग्नेश भाई क्या कोई आंदोलन चला रहे हैं? क्या उनकी आवाज़ उठा रहे हैं। अभी दबंगों ने एक दलित परिवार की जमीन पर कब्जा कर लिया है, लेकिन जिग्नेश मेवानी को बेगूसराय में कन्हैया से दोस्ती निभानी हैं, बाकी जिस समाज से निकलकर आए हैं, उस समाज को ही भूल गए।
जिग्नेश ने कहा था, “हमने सरकार को आवंटित ज़मीन के अधिकार दलितों और ओबीसी को लौटाने के लिए 6 दिसंबर तक की मोहलत दी है. इसके बाद हम जबरन कब्जा ले लेंगे।” क्या जिग्नेश ने कभी किसी दलित-पिछड़े को कब्जा दिलवाया? क्या कोई आंदोलन किया?
गुजरात के एक दलित कार्यकर्ता ने मुझे कहा कि भैया जिग्नेश बिहार गया है, उसे वहीं रख लो। आधार कार्ड और राशन कार्ड बनवाकर एक घर भी दिलवा देना। गुजरात को ऐसे लोगों की जरूरत नहीं है। दलित कार्यकर्ता ने बताया कि जिग्नेश ने दलितों के आंदोलन की क्रैडिबिलिटी को खत्म कर दिया है। दलित कार्यकर्ता बताते हैं कि जिग्नेश ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए दलित आंदोलन का ऐसा नुकसान किया है कि लोग सभी आंदोलनकारियों को ठग समझने लगे हैं। जिग्नेश की राजनीति आंदोलनों को कुचलने लगी है।
- निसार सिद्दीकी (लेखक पत्रकार हैं)

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।