बाबासाहेब आंबेडकर के इस योगदान पर हमारी नजर क्यों नहीं जाती?

भारत-रत्न बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर जी की आज 130वीं जयंती है। उनके जीवन और कामकाज को देख कर हैरानी होती है। बचपन में ही मैंने एक बार बाबासाहेब की जीवनी पढ़ी तो उनको पढ़ता गया और इस बात को थोड़ा देर से समझ पाया कि जिस व्यक्ति के पास न तो मजबूत संगठन था, न संसाधन थे उसकी काया का विस्तार पूरी दुनिया में कैसे होता चला गया है। बाबा साहेब से जुड़ी तमाम जगहों की यात्राएं मैंने की हैं। बौद्धों के सभी प्रमुख स्थलों पर भी गया हूं। लेकिन मुझे नागपुर में उनकी यादों को जिस तरह सहेजा गया है, उसने बहुत प्रभावित किया।

वे विधिवेत्ता, असाधारण अर्थशास्त्री, पत्रकार और लेखक और समाज सुधारक होने के साथ ऐसे आंदोलनकारी थे जिन्होने हजारों सालों से कमजोरों के हकों पर कुंडली मार कर बैठे लोगों को खुली चुनौती दी। वे जानवरों को तो बेहतर समझते थे लेकिन अपने जैसे मनुष्य को नहीं। बाबा साहेब का साहित्य पढ़ने पर बगावत पैदा होती है। वे कौन लोग थे जिनके सरोवर जानवरों के लिए खुले थे लेकिन मनुष्य के लिए नहीं। वे कौन लोग थे जिन्होंने प्राकृतिक संपदाओं को हड़प लिया और एक बड़ी आबादी को किनारे कर दिया। मेरे हिसाब से इस समाज को जगा कर अपने पांवों पर खड़े होने की जो ताकत बाबा साहेब ने दी वह आजाद भारत की एक ऐसी बड़ी घटना है, जिन पर शायद हमारी निगाह कम जाती है।

बाबा साहेब ने संविधान बनाते समय समता या समानता के पक्ष में संविधान सभा में जो माहौल बनाया वह एक बड़ी बात थी। वे कहते थे कि शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो। वे शिक्षा को सबसे अधिक महत्व देते थे। वे खुद इतने शिक्षित न होते तो शायद इतना कुछ कर न पाते। उन लोगों का विचार अपनी इसी ताकत से न बदल पाते जो उनका तब तक विरोध करते रहे जब तक उनको बाबा साहेब के विचार की ताकत का अंदाजा नहीं हुआ। लेकिन संविधान सभा के अपने आखिरी वक्तव्य में बाबा साहेब ने जो बातें कहीं थी, जो चेतावनी दी थी वे आज भी प्रासंगिक हैं।
“मैं महसूस करता हूँ कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग जिन्हें संविधान को चलाने का काम सौंपा जाएगा, खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, यदि उसे चलाने वाले अच्छे लोग हुए तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा।”

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