बार-बार झूठ क्यों बोलते हैं बाबा रामदेव

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कोरोना वायरस की दवाई के लिए दुनिया भर के डॉक्टर अभी रिसर्च कर रहे हैं। हार्वर्ड से लेकर ऑक्सफोर्ड तक को कोशिशों के बाद भी इसमें सफलता नहीं मिली है। लेकिन भारत में बाबा रामदेव और पतंजलि ने दावा कर दिया है कि उन्होंने कोरोना की दवा बना ली है। बाबा रामदेव ने 23 जून की दोपहर 1 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस बात का ऐलान किया कि पतंजलि कोरोना वायरस मरीजों को ठीक करने वाली ‘कोरोनिल’ दवा बनाने में कामयाब हो गई है। लेकिन रामदेव के दावे की हवा तुरंत तब निकल गई जब ‘कोरोनिल’ को लेकर आईसीएमआर (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) और आयुष मंत्रालय दोनों ने पल्ला झाड़ लिया। मंत्रालय ने कहा कि बाबा रामदेव ने इस बारे में जरूरी नियमोँ का पालन नहीं किया। यह सकते में डालने वाली बात इसलिए थी क्योंकि ICMR और आयुष मंत्रालय के जिम्मे किसी भी नई दवा को प्रमाणित करने का अधिकार होता है।

यानी कि बाबारामदेव और पतंजलि ने बिना सरकारी अनुमति और पुष्टि को ही दवा के नाम की घोषणा कर दी। और सिर्फ घोषणा ही नहीं कि बल्कि ‘कोरोनिल’ से सात दिन के अंदर 100 फीसदी रोगियों के रिकवरी का दावा भी किया। पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट की ओर से मंत्रालय को बताया गया कि ये क्लीनिकल ट्रायल जयपुर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च (नेम्स) में किया गया था।

हालांकि पतंजलि का यह दावा तब झूठा साबित हुआ जब राजस्थान सरकार ने बाबा रामदेव के कोरोना की दवा कोरोनिल खोजने के दावे को फ्रॉड करार दे दिया। खुद राजस्थान के स्वास्थ मंत्री रघु शर्मा ने पतंजलि के इस दावे पर सवाल उठा दिया। तो वहीं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च विश्वविद्यालय (नेम्स) में गुना कैंट को लेकर जाने वाले जयपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी बाबारामदेव के दावे को झूठा बताया।

पतंजलि के एक और झूठ का पर्दाफाश खुद आयुष मंत्रालय ने किया। मंत्रालय के मुताबिक आयुष मंत्रालय में पतंजलि की ओर से जो रिसर्च पेपर दाखिल किया गया है, उसके अनुसार कोरोनिल का क्लीनिकल टेस्ट 120 ऐसे मरीजों पर किया गया है, जिनमें कोरोना वायरस के लक्षण काफी कम थे।

पतंजलि के दावे पर क्या कहता है हमारा कानून

  • आयुष मंत्रालय के गजट नोटिफिकेशन के अनुसार पतंजलि को आईसीएमआर और राजस्थान सरकार से किसी भी कोरोना की आयुर्वेद दवा की ट्रायल के लिए परमिशन लेनी चाहिए थी, मगर बिना परमिशन के और बिना किसी मापदंड के ट्रायल का दावा किया गया है, जो कि गलत है।
  • डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी एक्ट 2005 के तहत अगर कोई व्यक्ति गलत दावा करता है तो इसे दंडनीय अपराध माना जाता है। जहां तक कोरोनिल दवाई को लेकर दावे की बात है तो वो संबंधित कानूनी प्रावधान का उल्लंघन है।
  • कानून दवा बनाने के लिए लाइसेंस देता है, दावा करने के लिए नहीं। 100% क्योर के दावे के बाद DMA कानून (डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी एक्ट 2005) को आपत्ति इसी दावे पर है। जिसमें एक साल से सात साल तक की सजा हो सकती है।
  • ये वैश्विक महामारी है लिहाजा विदेशों में भी मुकदमे दर्ज हो सकते हैं। वैसे ही जैसे अमेरिका में चीन के खिलाफ हुए हैं।
  • इस तरह का प्रचार करना कि इस दवाई से कोरोना का 100 प्रतिशत इलाज होता है, ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) कानून 1954 का उल्लंघन है.

इन तमाम खबरों के बीच बड़ा सवाल यह है कि आखिर कोई व्यक्ति या संस्थान तमाम सरकारी नियमों की अनदेखी कर कोरोना एक गंभीर बीमारी के बारे में इतना गैर जिम्मेदार कैसे हो सकता है? और सरकार इन तमाम लापरवाहियों पर आंखें कैसे मूंद रख सकती है। क्या दुनिया के किसी जिम्मेदार देश में एक महामारी से संबंधित दवा बनाने के खोखले दावे पर संबंधित व्यक्ति या संस्था पर कोई कार्रवाई नहीं होती? लेकिन अगर भारत में रामदेव और पतंजलि के इस गैरजिम्मेदाराना रवैये पर सरकार ने आंखे फेर रखी है तो बड़ा सवाल सरकार पर भी है। सवाल यह भी है कि बाबा रामदेव बार-बार झूठ क्यों बोलते हैं, और बार-बार बच कर कैसे निकल जाते हैं।

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