जब ब्राह्मण युवक ने फोन कर कहा, आपने दलित दरोगा कि ब्राह्मणों से मारपीट की खबर क्यों नहीं चलाई

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गाज़ीपुर जिले के ग्राम नूरपुर स्थित हाल्ट थाने की घटना परेशान करने वाली है। यहां आरोप है कि थाने के एक दारोगा ने जो कि दलित समाज का है, ब्राह्मण समाज के लोगों पर बर्बरता की है। जो तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं, वह किसी भी सभ्य इंसान को परेशान कर सकते हैं। दारोगा के इस मार-पीट का जमकर विरोध होना चाहिए।

कल मेरे पास इस संबंध में एक अपरिचित ब्राह्मण समाज के युवक का फोन भी आया। गुस्से में उसने कहा भी कि अब मैं इस पर खबर क्यों नहीं बना रहा? उसका आरोप था कि मैं सिर्फ दलित उत्पीड़न की खबरें ही बनाता हूं। हालांकि उसका यह आरोप ठीक नहीं था, क्योंकि सरकारी आंकड़े कहते हैं कि हर 18 मिनट में किसी न किसी रूप में दलित उत्पीड़न होता है, यानी एक घंटे में तकरीबन 3 घटनाएं। यानी कि 24 घंटे में तकरीबन 72 घटनाएं। और मैं हर दिन दलित उत्पीड़न की 72 घटनाओं की रिपोर्टिंग नहीं करता, कर भी नहीं सकता। क्योंकि कईयों के पास उत्पीड़न का साक्ष्य नहीं होता, कईयों की FIR यही पुलिस महकमा नहीं लिखता। थाने में बैठे कथित ऊंची जाति के तमाम अधिकारी दलितों को गाली-गलौच कर थाने से भगा देते हैं। और बिना साक्ष्य के मैं खबर बनाने से बचता हूं। मेरे पास यह भी खबरें आती है कि कई लोगों के घरों की लड़कियों का अपहरण हुआ है और पुलिस मामले को दर्ज नहीं कर रही है, दर्ज कर भी लिया है तो आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं कर रही है। ज्यादा क्या कहूं आप भी इसी देश में रहते हैं, जानते ही होंगे।

तो ब्राह्मण युवक के फोन पर आते हैं। दलित पत्रकारिता से जुड़ने के बाद बीते आठ सालों में मुझे किसी ब्राह्मण या किसी भी ऊंची जाति या फिर मजबूत ओबीसी जाति के भी किसी व्यक्ति ने आज तक फोन कर के यह नहीं कहा कि फलां गांव या शहर में मेरे समाज के लोगों ने दलितों पर बहुत अत्याचार किया है, आप खबर बनाइए, या फिर फलां सवर्ण पुलिस अधिकारी दलितों की रिपोर्ट नहीं लिख रहा है, आप खबर बनाइए। आरोप लगाने वालों को खुद से यह भी पूछना चाहिए कि दलित/आदिवासी उत्पीड़न की तमाम बड़ी खबरें दबा जाने या फिर दलित/आदिवासी समाज के हितों से जुड़ी तमाम खबरें नहीं चलाने को लेकर उन्होंने अब तक कितने समाचार समूहों को फोन किया, या ई-मेल लिखा है। महाराष्ट्र के खैरलांजी से लेकर हरियाणा के मिर्चपुर या फिर गुजरात के ऊना जैसी घटनाओं में पुलिस और भारतीय मीडिया की अनदेखी के कारण पीड़ितों को इंसान न मिलने से वो कितने चिंतित हुए थे?

लेकिन मेरे पास गुस्से में यह फोन जरूर आता है कि आप दलितों द्वारा सवर्ण उत्पीड़न की खबरें नहीं चलातें। हालांकि इस तरह कि घटनाएं सालों में एकाध ही आती है। जिनको पता हो कि दलित आदतन सवर्णों पर अत्याचार करता है तो थेथरई से पहले मुझे साल में दस ऐसी घटनाओं के खबरों का लिंक साझा जरूर करे।

खैर, गाजीपुर की घटना पर आते हैं। दलित समाज के दारोगा ने जो भी किया, वह निंदनिय है। उसकी जांच होनी चाहिए, दोषी पाए जाने पर उसपर कार्रवाई होनी चाहिए। क्योंकि हमें ऐसा समाज बिल्कुल नहीं चाहिए जहां एक इंसान दूसरे इंसान पर अत्याचार करे। मुझे ऐसा समाज बिल्कुल नहीं चाहिए कि एक समुदाय विशेष के हाथ में कोई भी मांस हो, उसे गाय का मांस बताकर पीटकर अधमरा कर दिया जाए। मुझे ऐसा देश और समाज बिल्कुल नहीं चाहिए जहां गरीबों और कमजोरों को न्याय न मिले, चाहे वह किसी धर्म और जाति से ताल्लुक रखता हो। मुझे ऐसा देश और समाज बिल्कुल नहीं चाहिए, जहां कोई भी व्यक्ति किसी भी निर्दोष पर अत्याचार कर बच जाए।

मैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मांग करता हूं कि जिस पुलिस अधिकारी पर यह आरोप हो कि उसने किसी भी निर्दोष व्यक्ति पर जुल्म किया है, या जाति के आधार पर किसी व्यक्ति से भेदभाव किया है, उसको तुरंत नौकरी से बर्खास्त किया जाए। मैं ऐसी तमाम घटनाओं की निंदा करता हूं।

हालांकि इस खबर के संदर्भ में बाद में साफ हो गया कि दलित पुलिस अधिकारी को ब्राह्मण समाज के कुछ लोगों द्वारा फसाने की कोशिश हो रही थी। देखे लिंक 

लेकिन सवाल फिर वही है कि आखिर दलितों के साथ अत्याचार पर सवर्णों के मुंह में दही क्यों जम जाता है। उन्हें तब दर्द क्यों नहीं होता??

 

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