Monday, August 25, 2025
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कैसा चुनावी राष्टवाद और ये कैसी गोडसे भक्ति??

अब जब लगभग 2019 के आम चुनावों का शोरगुल थमने वाला है. 23 मई को मतगणना शुरू हो जाएगी. देश के करोड़ों मतदातावों के मन की बात ईवीएम के बटन के माध्यम से अपने सांसद को चुना होगा. हर चुनावों की भांति इस बार का चुनाव भी मतदाताओं के लिए अपनी उम्मीदों को कायम रखने और भविष्य में नई सरकार के प्रति सपनों को संजोए रखने का सिलसिला जारी रहा. किसी को रोजगार के सपने, किसी को बेहतर शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य के सपने, किसी को भूख मिटाने के सपने,किसी को भ्र्ष्टाचार से मुक्ति के सपने, और किसी को असमानता, भेदभाव, शोषण से मुक्ति के सपने देखे होंगे और किसी ने भयमुक्त, अपराधमुक्त, और किसी ने हिंसा और नफरत मुक्त भारत के सपने सँजोये होंगे.

मगर उस बात से हैरानी है कि सात चरणों में से 6 चरणों की वोटिंग हो चुकी है, मगर उपरोक्त सपनो के ऊपर राजनीतिक दलों का कोई फोकस रहा ही नहीं. गौरतलब ये भी है कि मीडिया, जो समाज का आँख और कान समझा जाता है इन जन सरोकारों को उठाने में कंजूसी कर गया जो लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं कहे जा सकते क्योंकि मीडिया या प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होता है. मीडिया (टीवी) और मोदी ने इन इस चुनाव को भारत बनाम विपक्ष बना दिया एक तरफ ऐसा दरसाने की कोशिश की गई कि मोदी ही असली राष्ट्रभक्त हैं और मोदी ही असली भारत है बाकी पार्टियां चाहे आजादी के आंदोलन की मुखिया कांग्रेस हो या अन्य लेफ्ट पार्टियां और गठबंधन सबको गोदी टीवी मीडिया और मोदी ने राष्ट्र भक्ति में फेल साबित करने की भरपूर कोशिश की. और भी हैरान करने वाली बातें इस आम चुनाव में भाजपा, और नरेंद्र मोदी ने की, ऐसा प्रतीत हो रहा था चुनाव भारत की राजनैतिक पार्टियों के मध्य हो रहा है या भारत और पाकिस्तान के मध्य? ऋग्वेद में सबसे अधिक बार सिंधु नदी का नाम आया है उसी प्रकार इस चुनाव में नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान का नाम सबसे अधिक बार लिया. न्यू इंडिया, डिजिटल इंडिया, बुलेट ट्रेन ,स्किल इंडिया, रोजगार, स्वच्छ भारत, स्मार्टसिटी, काला धन, अच्छे दिन, सब चुनावी राष्ट्रवाद की बाढ़ में बहा दिए गए सायद इनकी अब जरूरत ही नहीं देश को!

इस आम चुनाव में कुछ नया इतिहास भी बना और कुछ इतिहास के पन्नों को या तो भुला दिया गया या फाड़ दिया गया. राष्टपिता महात्मा गाँधी को बीजीपी की प्रज्ञा ठाकुर ने पुनः मार दिया. जब उन्होंने गोडसे को असली राष्ट्र भक्त कहा अगर राष्ट्र पिता का दर्जा प्राप्त फकीर को गोली मारने वाला व्यकि भाजपा की नजरों में असली राष्ट्र भक्त है तो इससे ज्यादा क्या प्रमाण चाहिए कि आरएसएस पोषित भाजपा कैसा राष्ट्रवाद लाना चाहती है? जब जातियों से, धर्म से, हिंदुत्व से, राम-हनुमान से नैया पार होती नहीं दिखी तो अंततः भारत माता को ही चुनाव में ला खड़ा कर दिया. गाय माता को दोहते-दोहते, श्री राम -श्री राम जपते-जपते दिल्ली दूर नजर आने लगी तो राष्टवाद को ही चुनावी नारों में सामिल कर आरएसएस ने आगे के लिए कुछ छोड़ा नहीं ऐसा प्रतीत होता है.जब देश में ट्रेनों का जाल बिछ चुका था तभी नरेंद्र मोदी ने बुलेट ट्रेन की बात कही.जब देश में कंप्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल फोन, ब्राडबैंड , ईमेल, फेक्स, सब पहले से मौजूद थे तब मोदी ने डिजिटल इंडिया की बात कही होगी. जब देश मे 15 अगस्त 1969 को इसरो अस्तित्व में आ चुका था और 19 अप्रैल 1975 को आर्यभट्ट उपग्रह अंतरिक्ष मे भेजा चुका था तब 2017 में मोदी अंतरिक्ष मे भारत ने ताकत दिखाई कहते है. जब 90 वर्ष पहले देश मे रेडियो प्रसारण हो चुका था तभी 2014 से नरेंद्र मोदी आकाशवाणी से मन की बात कह सके होंगे.

एक फ़्रेन्च कहावत है कि“Rome wasn’t built in a day.

हाँ कुछ बातों के लिए मोदी सरकार बधाई की पात्र भी है कि उसने देश मे कुछ पहले से चली आ रही योजनाओं का नाम बदलकर आगे बढ़ाया जिनमे निर्मल भारत को स्वच्छ भारत नाम देकर आगे बढ़ाया, 15 मार्च 1950 में गठित योजना आयोग को भंग कर नीति आयोग बना दिया.एफडीआई और जीएसटी को और कठोर बना कर आगे बढ़ाया, डीजल और पेट्रोल के दामों को पिछली सरकार जहाँ छोड़कर गयी थी उसको और आगे तक पहुँचाया.पीछे छूटा तो सिर्फ और सिर्फ विकास, रोजगार, सहिष्णुता, भाईचारा और जनतन्त्र में जनों की आवाज. हर्ष का विषय ये भी है कि हमारा देश 21वीं सदी में भूखा प्यासा रहकर भी देश भक्ति तथा राष्ट्रवाद के लिए वोट देने के लिए ही नहीं अपितु मर मिटने को भी तैयार है. ऐसे में 23 मई 2019 के बाद आने वाली नई सरकार के लिए कुछ ज्वलन्त मुद्दों पर चिंता करने की जरूरत नहीं होगी,

मसलन बेरोजगारी, भुखमरी, कुपोषण, भरष्टाचार, गरीबी, निरक्षरत आदि पर नीति बनाने की आवश्यक्ता ही महसूस नहीं होनी चाहिए क्योंकि भारत की संस्कृति” जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” की भावना से ओतप्रोत है. नव राष्टवाद के जनक न गांधी को मानते हैं, न नेहरू को और न ही डॉ0 आंबेडकर को और न ही भारतीय संविधान को. चुनावी और दिखावटी राष्टवाद से ही अगर युवाओं का जीवन, बेरोजगारों का जीवन, किसानों का जीवन, वंचित और पिछड़ों का जीवन, बीमारों ,भुखमरों, शोषितो, महिलाओं और आदिवासियों का जीवन सुखमय और खुशहाल हो जाता है तो मैं ऐसी सरकार को बार-बार देश के लिए दिल्ली में विराजमान होने की वकालत करुँगा.

आई0 पी0 ह्यूमन
स्वतन्त्र स्तम्भकार

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