भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में डॉ. आंबेडकर की क्या राय थी

आजादी से 1 वर्ष पहले 1946 में डॉ. आंबेडकर ने लिखा कि “ हिंदुओं और मुसलामनों की लालसा स्वाधीनता की आकांक्षा नहीं हैं. यह सत्ता संघर्ष है,जिसे स्वतंत्रता बताया जा रहा है.. कांग्रेस मध्यवर्गीय हिंदुओं की संस्था है, जिसकों हिदू पूंजीपतियों की समर्थन प्राप्त है, जिसका लक्ष्य भारतीयों की स्वतंत्रता नहीं, बल्कि ब्रिटेन के नियंत्रण से मुक्त होना और सत्ता प्राप्त कर लेना है, जो इस समय अंग्रेजों की मुट्ठी में हैं.” ( डॉ, आंबेडकर, संपूर्ण वाग्यमय, खंड-17, पृ.3 ).

मुसलमान मध्यवर्गीय हिंदुओं के वर्चस्व से मुक्ति के लिए अलग पाकिस्तान की मांग कर रहे थे. हिदुओं की नेतृत्व गांधी और मुसलमानों का नेतृत्व जिन्ना कर रहे है. दोनों अपने-अपने समाज के मध्यमवर्गीय हिंदुओं और मुसलानों के अगुवा थे, जिन्हें हिंदू और मुस्लिम धनिक वर्ग का समर्थना प्राप्त था. इसी के चलते डॉ. आंबेडकर गांधी और जिन्ना दोनों को घृणा की हद तक नापसंद करते थे. उन्होंने दोनों के बारे में लिखा- “ गांधी और जिन्ना के संदर्भ में आंबेडकर ने कहा है कि “ मैं श्री गांधी और श्री जिन्ना से घृणा करता हूं- वैसे मैं घृणा नहीं करता, वरन मैं उन्हें नापसंद करता हूं-तो इसलिए कि मैं भारत को अधिक प्यार करता हूं.” आंबेडकर एक स्वतंत्रता, समता, बंधुता आधारित लोकतांत्रिक भारत के निर्माण के मार्ग की दोनों को बाधा मानते थे. गांधी और जिन्ना को नापसंद करने का कारण बताते हुए उन्होंने लिखा है कि “ यदि गांधी, ‘महात्मा’ पुकारे जाते हैं, तो श्री जिन्ना को ‘कायदे- आजम’ कहा जाता है. यदि गांधी कांग्रेस के सर्वेसर्वा हैं तो श्री जिन्ना को मुस्लिम लीग होना ही चाहिए….जिन्ना इस बात पर बल देते हैं कि गांधी यह स्वीकार करें कि वह एक हिंदू नेता हैं. गांधी इस बात पर बल देते हैं कि जिन्ना यह स्वीकार करें कि वह मुस्लिम नेताओं में एक हैं.” इतना ही नहीं आंबेडकर इन दोनों नेताओं को राजनीतिक दिवालियापन का शिकार भी मानते हैं. उन्होंने इनके बारे में लिखा, “ऐसी राजनीतिक दिवालियापन की स्थिति कभी देखने को नहीं मिली, जैसी इन दो भारतीय नेताओं में पाई गई.” आंबेडकर इन दोनों व्यक्तियों को चरम अहंकारी और स्वकेंद्रित मानते हैं. उन्होंने लिखा, “ मैं तो केवल यही बता सकता हूं कि मेरी निगाह में उनकी हैसियत क्या है? पहली बात मेरे दिमाग में जो आती है, वह यह कि उन जैसै दो महान अंहमवादी व्यक्तियों को खोज निकालना बड़ा कठिन है, जो उनसे प्रतिस्पर्धा कर सकें, उनके लिए ( गांधी और जिन्ना ) व्यक्तिगत उत्कर्ष ही सबकुछ है, और देश का हित कुर्सी पर बैठकर एक दूसरे का विरोध करना मात्र है. उन्होेंने भारतीय राजनीति को आपसी कलह का विषय बना दिया है.”

( यह सब कुछ आंबेडकर ने ‘रानाडे, गांधी और जिन्ना’ शाीर्षक अपने भाषण में कहा है. यह भाषण 1943 का है )

फुले की तरह आंबेडकर भी देख रहे थे कि आजादी की लड़ाई का सारा उद्देश्य सवर्ण वर्चस्व की स्थापना है. उनका कहना था कि देश की गुलामी और शूद्रों-अतिशूद्रों की हजारों वर्षों की गुलामी का मामला एक साथ हल होना चाहिए.

लेकिन व्यापक बहुजन समाज का दुर्भाग्य यह है कि भारत और पाकिस्तान आजाद नहीं मिली, बल्कि भारत की सत्ता उच्च जातीय और उच्च वर्गीय हिंदुओं के हाथ में गई और पाकिस्तान की सत्ता उच्च जातीय और उच्च वर्गीय मुसलानों के हाथ में गई. जैसा डॉ. आंबेडकर ने भविष्यवाणी की थी.

रामू सिद्धार्थ

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