ये कैसा राष्ट्रवाद और कैसा चौकीदार?

सरकार हो तो ऐसी? जो कहा वो नहीं किया मगर वो काम कर गयी जिसके कारण भाजपा को आरएसएस की मुखौटा वाली पार्टी कहा जाता है वोट के लिए सबका साथ और सबका विकास का नारा दिया. मगर पांच वर्षों में सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में क्या क्रांति आयी महसूस किया जा सकता है. पांच वर्षों के शासन में सबसे ज्यादा सुख और चैन से कोई जिया तो अमीर और पूंजीपति वर्ग. बैंक खाली कर कुछ अमीर देश की सम्पत्ति को लूट ले गए. और देश के गरीब किसान और बेरोजगार आत्महत्या करने को मजबूर हुए. बेरोजगारी दर आजादी के बाद सबसे शिखर स्तर पर रही. भुखमरी में भी आंकड़े सन्तोष जनक नहीं कहे जा सकते हैं.

वास्तव में देश का विकास हुआ है. चाय वाला पांच साल में चौकीदार बन गया इससे अच्छे दिन और क्या आ सकते हैं. इस चुनाव में जितनी बम्पर भर्तियां चौकीदार की हुई हैं अगर इतनी भर्तियां वास्तव में चौकीदारों की भी देश मे हुई होती तो बेरोजगारी के आंकड़े कुछ कम हो सकते थे. ये है मेरे सपनों का भारत जहां नेता तो सब कुछ बन जा रहे हैं मगर जरूरत मन्द अपनी हालातों से निरन्तर जूझ रहा है. आज चौकीदारों की लिस्ट बहुत लंबी होती जा रही है. मगर चौकीदार की नौकरी मागने वाले सड़कों पर लाठी खाते नजर आते हैं. क्या यही न्यू इंडिया है? सिर्फ चाय वाला और चौकीदार ही 21वीं सदी के भारत का सपना है? इससे आगे बढ़ना नहीं है. ये विडम्बना और देश के करोडों बेरोजगार गरीबों के आखों में धूल झोंकने जैसा नही है? इस चुनाव में गालियों और अमर्यादित भाषा ने अपनी चरम सीमा को छुवा है. राजनीति की गाली सबको सहन करने की आदत सी डाल दी है नेताओं ने. क्या सभी चौकीदार चोर हैं? इस देश और समाज की सबसे बड़ी कुसभ्यता कही जाएगी कि गाली के मुहावरे की तुलना उन्ही से की गई है जो समाज शास्त्र और धर्मशास्त्रों में सबसे निचले पायदान पर रखे गए है. यथा “ढोल, गंवार, शुद्र, पशु नारी सब ताड़न के अधिकारी”आदि – आदि किसी को नीच कहकर गाली दी जाती है. ये नीच जाति गाली में सुमार है और यही वोटों की बोट को भी पार लगाती है.

एक जमाना वो भी था जब गर्व से कहो हम हिन्दू का नारा गूंजा करता था. कितना गर्व महसूस हुआ ये देखने वाली बात है. अब गर्व से कहो सब चौकीदार है!चुनाव की महिमा भी अजीब है जनता नारो और घोषणाओं,भाषणों की डोपिंग का शिकार हो जाती है. और ये चौकीदार तब जागते हैं जब संसद पर हमला हो जाता है ,चोरी हो जाती है. ये चौकीदार तब जागते हैं जब सैनिक शहीद हो जाते हैं. ये चौकीदार रात भर सोये रहते हैं जब चौकिदार को चौकन्ना होना होता है. ये विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावी प्रचार का टॉम एंड जरी वाला ही खेल कहा जाए तो बुरा न होगा.

हादसों पर हादसे कभी इमारत गिर जाती है निर्माणाधीन,कभी पुल,कभी फ्लाईओवर गिर जाते हैं और लोग मौत के मुँह में समा जाते हैं. और सबसे बड़ी बहस होती है दलित,गाय ,मुसलमान,जाति, मन्दिर और मस्जिद पर. बेरोजगारी और भ्र्ष्टाचार कभी बड़ी बहस का मुद्दा ही नहीं बना. अच्छे दिन आएंगे ये पिछलीबार का नारा था. लेकिन अच्छे दिन लाने वाले खुद ही चाय से चौकीदार तक ही पहुँच पाए हैं तो अब बड़ी उम्मीद भी करना नासमझी के सिवा कुछ भी नहीं होगी. फुटओवर भी मौत का, फ्लाईओवर भी मौत ये अप्रत्यक्ष आतंकवाद नहीं तो और क्या है?जो देश की सैलरी से ही देश के लोगों के लिए मौत की पुल, मौत की इमारत, मौत की ओवरब्रिज बनाते हैं? इसके लिए कौन जिम्मेदार है?पाकिस्तान या हिंदुस्तान? बार्डर में सैनिक सुरक्षित नहीं और महानगरों में जनता सुरक्षित नहीँ, महिलाएं न मन्दिर में न ही किसी आश्रम में न ही सरकारी संरक्षण गृहों में. ये कैसा राष्ट्रवाद अपने देश के लोगों के कातिल अपने ही देश के ये किसके इसारे पर होता है पाकिस्तान के या भारत की राज्य सरकारों के इसारे पर? कश्मीर में आतंक से मारे गए लोगों के लिए तो पाकिस्तान जिम्मेदार होता है. जितने लोग और सैनिक कश्मीर में आतंकवाद का शिकार होते हैं. उससे ज्यादा मौतें हमारी निर्माण एजंसियों की लापरवाही, घूसखोरी, भुखमरी, कुपोषण, मिलावट, और माबलिनचिंग से होती है. ये किस चौकी के चौकीदार हैं जहाँ जहरीली शराब गली – मोहल्लों में गंगाजल की तरह बांटी जा रही है और सैकड़ों लोग इस जहरीली शराब से मर रहे हैं. और न चौकी को पता है न चौकीदार को. जहर से मारने वाले राष्ट्रवादी नहीं आतंकवादियों से ज्यादा दुश्मन हैं. बात चली थी सामाजिक, आर्थिक परिवर्तनों एवं विकास की गति के बारे में, डिजिटल इंडिया बनाने की, स्मार्ट सिटी बनाने की, बुलेट ट्रेन चलाने की,देश को गुजरात मॉडल बनाने की,काल धन वापस लेकर देश की जनता को बांटने की,हर हाथ को काम देने की,भारत को 2025 तक विश्व गुरु बनाने की, नोट बन्दी से अच्छे दिन लाने की आतंकवाद की कमर तोड़ने की . और एक बेहतर सपना ये भी था कि हवाई चप्पल पहनने वाला व्यक्ति भी हवाई जहाज की यात्रा कर सकेगा ये सब याद कर फिल्मी गाने के बोल याद आते हैं”क्या हुवा तेरा वादा वो——-,”

ये कैसा राष्ट्रवाद जहाँ न्याय पाने में समानता नहीं, स्वास्थ्य उपचार में समानता नहीं, शिक्षा में समानता नहीं. ये कैसा राष्ट्रवाद किसी के पास सर छुपाने को छत नहीं और किसी के छत पर जहाज उतरते हैं,1978 के अल्माटा घोषणा पत्र में वर्ष 2000 तक” सभी के लिए स्वास्थ्य “का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. मगर ये कितना साकार हो पाया है उन माताओं बहिनो से पूछना चाहिए जो फर्स और सड़कों पर प्रसव पीड़ा से तड़प कर मर जाती हैं. संविधान की कार्य प्रणाली की समीक्षा करने के लिए सन 2000 में भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश एम0एन0 वेंकटचलैया की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया था. आयोग ने कुल 249 सिफारिशें की हैं जिनमें 58 सिफारिशें संविधान के संशोधन से सम्बन्धित,86 विधायिका तथा 105 सिफारिशें कार्यपालिका से संबंधित हैं. कुक प्रमुख सिफारिशें जिन पर बड़ी बहस होनी चाहिए थी 1-न्यायालय अधिकरण तक पहुँचने एवं त्वरित न्याय पाने का अधिकार सबको मिलना चाहिए. 2-समान न्याय एवं निःशुल्क विविध सहायता पाने का अधिकार. ३-प्रत्येक पाँच वर्ष में एक स्वतंत्र राष्ट्रीय शिक्षा आयोग गठित किया जाए. 4-सामाजिक सौहार्द एवं सामाजिक दृढ़ता के लिए एक अंतर-आस्था आयोग का गठन होना चाहिए. 5-उच्च एवं उच्चतम न्यायालय की खंडपीठों में अनुसूचित जाति,जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की जानी चाहिये. 6-सामाजिक नीतियाँ ऐसी होनी चाहिए जो अनुसूचित जाति,एवं पिछड़े वर्गों का भला कर सके. 7-5 वर्ष में एक बार रोजगार के व्यापक अवसरों की खोज करने वाले एक आयोग का गठन हो आदि कई अहम सिफारिशें हैं ज8न पर अमल करने की जरूरत थी मगर रोजगार खोज नहीं पाए तो हनुमान की जाति ही खोज डाली,न्यू इंडिया नहीं बना तो नए नामकरण कर दिए मुद्दे हजारों और जिन पर सकारात्मक राजनीति से समाधान खोजा जा सकता था चोर और सिपाही या चौकीदार के खेल में सब भुला दिया गया है. वोट के लिए राम के बाद अब राष्ट्र को भी शामिल कर दिया है . एक विचारक ने कहा है”भूखा पेट कोई देशभक्त नहीं हो सकता” जनता मालिक नहीं भ्रमित हो रही है मादित हो रही है और राजनीतिक डोपिंग का शिकार हो रही है. ये राजनीतिक डोपिंग बन्द होनी चाहिए.

आई0पी0 ह्यूमन

स्वतन्त्र स्तम्भकार

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