दो दलितों की हत्या कर डॉन बना था विकास दुबे

587

गकोेपकानपुर के इनामी आतंकी विकास दुबे को मार गिराये जाने के बाद भाजपा निशाने पर है। जिस फिल्मी अंदाज में विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ है, उस पर सवाल उठने लगे हैं। पुलिस चाहे जितनी सफाई दे, जो भी कहानी सुनाए, साफ पता चल रहा है कि विकास दुबे को मारने का पुलिस का पहले से ही प्लान था। और इसी वजह से इस पर तमाम सवाल भी उठ रहे हैं।

लेकिन सवाल यह भी है कि आखिर पुलिस विकास दुबे को अदालत में क्यों नहीं पेश करना चाहती थी। राहुल गांधी ने ट्विट में इसी सवाल को शायरी के जरिए कह दिया है। राहुल गांधी ने तंज किया है, “हजारों जवाबों से अच्छी है खामोशी उसकी, न जाने कितने सवालों की आबरू रख ली।”

तो अखिलेश यादव ने भी विकास दुबे के पिछले हफ्ते का कॉल डिटेल रिकार्ड सामने लाने की मांग की है। इस मामले पर अखिलेश काफी मुखर हैं। वह लगातार भाजपा को घेर रहे हैं। दिग्विजय सिंह ने भी सवाल उठाया है कि आखिर किसके भरोसे विकास दुबे मध्यप्रदेश में आया था।

विकास दुबे ने अपराध की दुनिया में कदम दलितों का उत्पीड़न कर के रखा था। सबसे पहले उसने एक दलित व्यक्ति से मारपीट की थी। फिर वह 1992 में दो दलितों की हत्या कर चर्चा में आया था। तब उसे सवर्ण समाज के बीच काफी लोकप्रियता मिली थी। तब सवर्ण समाज को लगा था कि विकास दुबे ने दलितों को उनकी औकात दिखा दी है। सो वह रातो-रात अपने समाज के भीतर लोकप्रिय हो गया। फिर क्या था, उसकी लोकप्रियता सत्ता में बैठे लोगों तक भी पहुंची। क्योंकि सत्ता चलाने वालों को हर पांचवे साल लोगों के बीच आना होता है। बस फिर क्या था, विकास दुबे की लोकप्रियता को सत्ता में बैठे लोग भुनाना चाहते थे और विकास दुबे सत्ता का संरक्षण चाहता था। दोनों को मनचाही मुराद मिल गई। अब तक सब ठीक भी चल रहा था, लेकिन विकास दुबे का हौसला इतना बढ़ा की उसने पुलिसकर्मियों को ही निशाना बना डाला। उसने पुलिसकर्मियों को जिस तरह मार डाला, उससे हंगामा मच गया। हालांकि वह पहले भी एक नेता की हत्या कर चुका था, लेकिन तब सब कुछ ‘मैनेज’ हो गया और विकास दुबे का कुछ बहुत बुरा नहीं हो सका।

दरअसल पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद जिस तरह इस मामले में पुलिसकर्मियों द्वारा ही मुखबिरी की बात सामने आई थी, उससे साफ था कि खाकी के बीच विकास दुबे की पहुंच अच्छी खासी थी। और ऐसा तभी होता है जब किसी अपराधी के सर पर खादी यानी नेताओं का हाथ हो।

लेकिन अब तक बचते आ रहे विकास दुबे ने एक साथ दो गलतियां कर दी। एक तो पुलिसकर्मियों को मार डाला, तो दूसरा उसने जिन पुलिसकर्मियों को मारा, उसमें उसके स्वजातिय थे। ऐसे में अचानक से सत्ता से लेकर समाज तक में बैठे विकास दुबे के संरक्षकों का माथा ठनक गया। क्योंकि विकास दुबे खतरनाक बन चुका था। वह देश भर के निशाने पर आ गया था। अदालती ट्रायल में कई राज खुलने के आसार थे। क्योंकि विकास दुबे अपने राजनीतिक आकाओं से बचाने की गुहार लगाता और ऐसा नहीं करने पर वह राज से पर्दा उठाने की धमकी देता। यानी कुल मिलाकर विकास दुबे का रहना कईयों के लिए खतरनाक था। सवाल यह है कि क्या विकास दुबे का एनकाउंटर करवा कर सत्ता में बैठे उसके संरक्षकों ने इस कड़ी को ही खत्म कर दिया है?

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.