जन धन योजना को लेकर मोदी सरकार ने खूब ढिंढ़ोरा पीटा था। भाजपा के शासन वाले राज्य सरकारों ने भी केंद्र की हां में हां मिलाते हुए मोदी सरकार का खूब गुणगान किया था। लगा था कि जन धन योजना में खुले बैंक खातों से गरीबों की किस्मत बदल जाएगी। लेकिन भाजपा शासित मध्यप्रदेश में जन-धन खातों को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, वो चौकाने वाले हैं।
हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में एक बैठक हुई थी, जिसमें प्रदेश की आर्थिक प्रगति से जुड़ी एक रिपोर्ट रखी गई। इसमें बताया गया कि 1.23 करोड़ आबादी वाले आर्थिक रूप से कमजोर 9 आदिवासी जिलों में बीते 10 साल में 68.3 लाख बैंक खाते खोले गए। हैरानी की बात यह है कि इनमें से 8 लाख खातों में आज भी एक रुपया जमा नहीं है। जबकि इन खातों को खोलने में तब करीब 8 करोड़ रु. खर्च आया था।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 1329 बैंक शाखाओं में मौजूद बाकी के 60 लाख खातों में अभी 1400 करोड़ रु. से कम जमा हैं। जबकि अकेले भोपाल की 561 बैंक ब्रांचों में 1,05,184 करोड़ रु. जमा हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक बैकों से आदिवासियों की दूरी की वजह यह है कि उन्हें पैसा निकालने और जमा करने के लिए मीलों का सफर करना पड़ता है। जिसकी वजह से इन्होंने बैंक से अपनी दूरी बना ली है। क्योंकि प्राइवेट बैंक हो या निजी बैंक सब मध्यप्रदेश के 4 बड़े शहरों में ही शाखाएं खोलने और एटीएम लगाने पर जोर दे रहे हैं।
मसलन, अलीराजपुर जिले की आबादी 7.29 लाख है। इस जिले में 4.29 लाख जन-धन खाते हैं, लेकिन पूरे जिले में सिर्फ 42 बैंक शाखाएं और 29 एटीएम हैं। यानी प्रति लाख आबादी पर महज 5 शाखाएं और 4 एटीएम हैं। जिस कारण आदिवासियों को बैंक पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ऐसे में मध्यप्रदेश सहित तमाम क्षेत्रों में जन-धन योजना बेमानी हो गई है और यह महज मोदी सरकार का विज्ञापन भर बन कर रह गया है।

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