मध्यप्रदेश की 47 सीटों पर भाजपा का गणित बिगाड़ने निकले आदिवासी युवा

2022
आदिवास अधिकार यात्रा के दौरान जायस प्रमुख डॉ. हीरा अलावा

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति में अपना हिस्सा हासिल करने के लिए आदिवासी युवाओं ने मुहिम शुरू कर दी है. आदिवासी समाज के बीच तेजी से उभरते जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन यानि ‘जयस’ ने अपने समाज के लोगों को जागरूक करने के लिए आदिवासी अधिकार यात्रा शुरू कर दिया है. इस यात्रा के जरिए जयस 21 फीसदी आदिवासी आबादी को साधने की तैयारी में है.

हालांकि इससे पहले सीएम शिवराज सिंह चौहान जन आशीर्वाद यात्रा लेकर निकले हैं तो कांग्रेस जनजागरण अभियान चला रही है लेकिन आदिवासी युवाओं की इस यात्रा ने कांग्रेस और भाजपा दोनों की नींद उड़ा दी है. प्रदेश भर के आदिवासी समाज को संबोधित करने वाली आदिवासी अधिकार यात्रा 29 जुलाई को रतलाम से शुरू हो चुकी है, जो मालवा और निमाड़ की आदिवासी सीटों से होती हुई महाकौशल पहुंचेगी. इस दौरान यात्रा आदिवासी प्रभाव वाली सभी 47 सीटों या आसपास से गुजरेगी. यह संगठन पिछले लंबे समय से 5वीं अनुसूची के मसले पर आदिवासियों को जोड़ने में लगा है. झाबुआ, अलिराजपुर, धार, बड़वानी, खरगौन व खंड़वा के आदिवासी अंचलो में संगठन की गहरी पैठ है.

इस संगठन की कमान आदिवासी हकों की खातिर एम्स की नौकरी छोड़ देने वाले 35 साल के डॉ. हीरा अलावा के हाथ में है. यह संगठन प्रदेश में आरक्षित सभी 47 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने या फिर दूसरों को समर्थन देने को तैयार है. संगठन की नजर उन 50 सीटों पर भी है, जहां आदिवासी समाज का 20 फीसदी से ज्यादा वोट है.

इस यात्रा के जरिए जयस की मांग यूं है-

 5वीं अनुसूचि के सभी प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाए.
 वन अधिकार कानून 2006 के सभी प्रावधानों को धरातल पर लागू किया जाए.
 जंगल में रहने वाले आदिवासियों को स्थायी पट्टा दिया जाए.
 ट्राइबल सब प्लान के पैसे अनुसूचित क्षेत्रों की समस्याओं को दूर करने में खर्च हों

वर्तमान में आदिवासी क्षेत्र की 47 सीटों में 32 पर बीजेपी और 15 पर कांग्रेस का कब्जा है. जयस को अपने समर्थकों को वहां से अपने खेमे में लाने की चुनौती होगी. लेकिन इस संगठन के दावे को इसलिए हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि पिछले साल अक्टूबर में हुए छात्र संघ के चुनावों में धार जिले के छात्र परिषद में उसके नौ अध्यक्ष और 162 सदस्य जीतकर आए थे. अगर जयस और उसके नेता आदिवासी समाज को अपनी बात समझाने में सफल रहे तो मध्यप्रदेश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.

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