हिन्दुत्व का तालिबानी संस्करण

सुबह-सुबह whatsaap पर वीडियो मिला. मेरे अजीज साथी ने भेजा था. वीडियो में हिंदुत्व का तालिबानी संस्करण था. त्रिपुरा में सत्ता पर कब्जे के बाद पहली कार्यवाही शहीद भगत सिंह और उसके साथियों के आदर्श रहे, मेहनतकशों के महान नेता व शिक्षक कामरेड लेनिन के स्टेचू को दक्षिण त्रिपुरा में जीत के नशे में चूर हिंदुत्ववादी तालिबानियों ने तोड़ कर की है.

इन धार्मिक आंतकवादियो के असली दुश्मन तो भगत सिंह और उसकी विचारधारा वाम ही है. क्योंकि वाम विचारधारा मेहनतकश का समर्थन करती है, लुटेरो के खिलाफ आवाज उठाती है. वही ये हिन्दू तालिबानी मेहनतकश को लूटने वाले मालिको के पक्ष में होते है. आजादी के आंदोलन में भी ये अंग्रेजो की मुखबिरी करते थे और क्रांतिकारियों के खिलाफ गवाही देते थे. एक चर्चित घटना है कि “शहीदे-ऐ-आजम भगत सिंह और उसके साथियों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के राष्ट्रवादी नेता लाला लाजपतराय ने कहा कि वो आगे से उनके घर न आये और न उनसे बहस करें. भगत सिंह और उनके साथियों के जाने के बाद जब लाला जी से वहाँ मौजूद लोगों ने इसका कारण पूछा तो, लाला जी ने बताया कि भगत सिंह मुझे लेनिन बनाना चाहता है.” यानि लाला जी का रुझान हिंदुत्व की राजनीति की तरफ बढ़ रहा था, लेकिन भगत सिंह और उसके साथी उसको मेहनतकश आवाम की लड़ाई का हिस्सा बनाना चाहते थे.

24 जनवरी, 1930 को लेनिन-दिवस के अवसर पर लाहौर षड्यन्त्र केस के विचाराधीन क़ैदी अपनी गरदनों में लाल रूमाल बाँधकर अदालत में आये. वे काकोरी-गीत गा रहे थे. मजिस्ट्रेट के आने पर उन्होंने ‘समाजवादी क्रान्ति – ज़िन्दाबाद’ और ‘साम्राज्यवाद – मुर्दाबाद’ के नारे लगाये. फिर भगतसिंह ने निम्नलिखित तार तीसरी इण्टरनेशनल,
मास्को के अध्यक्ष के नाम प्रेषित करने के लिए मजिस्ट्रेट को दिया – “लेनिन-दिवस के अवसर पर हम सोवियत रूस में हो रहे महान अनुभव और साथी लेनिन की सफलता को आगे बढ़ाने के लिए अपनी दिली मुबारक़बाद भेजते हैं. हम अपने को विश्व-क्रान्तिकारी आन्दोलन से जोड़ना चाहते हैं. मज़दूर-राज की जीत हो. सरमायादारी का नाश हो.

साम्राज्यवाद – मुर्दाबाद!!”
विचाराधीन क़ैदी,
24 जनवरी, 1930 लाहौर षड्यन्त्र केस
(ट्रिब्यून, लाहौर 26 जनवरी, 1930 में प्रकाशित)”

23 मार्च 1931 लाहौर जेल की काल कोठरी में जेलर आवाज लगाता है. भगत फांसी का समय हो गया है. चलना पड़ेगा. अंदर से 23 साल का नौजवान जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और मेहनतकश आवाम की मुक्ति व साम्रज्यवाद विरोध का चमकता सितारा है. अंदर से आवाज देता है रुको-“एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है.”

किस क्रांतिकारी से मिल रहा था भगत सिंह, ये क्रांतिकारी थे कामरेड लेनिन. भगत सिंह उस समय कामरेड लेनिन की बुक पढ़ रहे थे. भारत ही नही पूरे विश्व के स्वतंत्रता आंदोलनों और मेहनतकश आवाम की मुक्ति के लिए कामरेड लेनिन ने क्रांतिकारियों की मदद की, साम्रज्यवाद के खिलाफ कामरेड लेनिन ने नेतृत्व किया. साम्रज्यवाद के खिलाफ लड़ रहे क्रांतिकारियों को विश्व की पहली मेहनतकश आवाम की सत्ता रूस ने शरण दीव उन सभी को वैचारिक तौर पर शिक्षित किया. शहीद चंद्रशेखर आजाद भी रूस जाने की योजना बना रहे थे लेकिन वो जाने से पहले ही लड़ते हुए शहीद हो गए.

आखिर ऐसे महान इंसान के स्टेचू को तोड़ने के क्या कारण है? पूरे विश्व में 2 विचार हैं. एक विचार का प्रतिनिधित्व मेहनतकश आवाम करती है जिसमें मेहनत करके खाने वाला इंसान, पीड़ित दलित-आदिवासी-मुस्लिम-महिला, मजदूर-किसानव शोषित और दबा-कुचला इंसा है तो वहीं दूसरे विचार का प्रतिनिधित्व मेहनतकश को लूटने वाला, मानव का शोषण करके अपना पेट भरने वाला, जल-जंगल-जमीन को लूटने वाला, प्राकृतिक संसाधनों का अपने फायदे के लिए दोहन करने वाला, साम्राज्यवादी, फासीवादी, धार्मिक, जातीय, साम्प्रदायिक इंसानइस विचार की अगुवाई करता है.

ये एक युद्ध है मेहनतकश और लुटेरे के बीच
इस युद्ध में कामरेड लेनिन पहले वाले विचार की अगुवाही के नेता व शिक्षक हैं. तो स्टेचू गिराने वाले, मालिकों के विचार की तरफ से लड़ रहे हैं. इससे पहले भी धार्मिक आंतकवादियों का निशाना प्रगतिशील, बुद्विजीवी, क्रांतिकारी, उनके स्टेचू, उनकी लिखी बुक्स रही है. अफगानिस्तान में बुद्ध के स्टेचुओं को तोड़ना, हिटलर द्वारा किताबों को जलाना, महात्मा गांधी से लेकर का. पनसारे, दभोलकर, कलबुर्गी, गौरी लंकेश, रोहित वेमुला, अखलाक, की हत्या, दलितों, आदिवासियों, मुस्लिमों, महिलाओं पर हमले, नजीब का अपरहण, JNU पर हमला धार्मिक आंतकवादियों द्वारा की गई कार्यवाहियां इसी युद्ध का हिस्सा है.

डॉ. आम्बेडकर की मूर्तियों को भारत के तालिबानियों द्वारा तोड़ना और अब कामरेड लेनिन के स्टेचू को तोड़ना भी इसी युद्ध का हिस्सा है. क्या कभी आपने इन आंतकवादियों द्वारा नेहरू, इंदिरा, सरदार पटेल, राजीव गांधी किसी दूसरी विरोधी पार्टी के नेता का बूत तोड़ते देखा है. नहीं देखा होगा, क्योंकि वो इनके पक्ष की राजनीति की ही नुमाइंदगी करते रहे हैं. इनको जड़ से उखाड़ने की, इनकी लूट बन्द करवाने की राजनीति भारत में भगत सिंह के विचार की राजनीति है. इसलिए ही त्रिपुरा में जीत होते ही इन तालिबानियों के हमले का निशाना भगत सिंह के आदर्श कामरेड लेनिन हुए. आज अगर इन लुटेरों को हराना है तो देश की कम्युनिस्ट पार्टियों को संसोधनवादी व संसदीय लाईन को छोड़ कर, मेहनतकश आवाम, दलित-आदिवासी- मुस्लिम-मजदूर-किसान और महिला की लड़ाई मजबूती से लड़ते हुए इन सबको मेहनतकश की इस लड़ाई के झंडे के नीचे एकजुट कर इन धार्मिक आंतकवादियों को क्रांतिकारी जवाब देना होगा.

  • लेखक- उदय चे
    ये लेखक के अपने निजी विचार हैं.

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