(ऐसा नहीं है कि किसी व्यक्ति को भगवान बनाने का यह पहला मामला है. जैसी मेरी जानकारी है, फिल्मी कलाकार रजनीकांत, अमिताभ बच्चन, क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर आदि के मंदिर पहले से ही बने हुए हैं. भाजपा के वर्तमान शासनकाल में नाथूराम गोडसे का मन्दिर बनाने की बात भी जोरों पर है… शायद कहीं बना भी दिया गया हो. इनके पीछे के तर्कशास्त्रा को भी अपने-अपने तरीके से ईजाद किया जा चुका है, जैसा कि सिंधिया के विषय तर्क दिया जा रहा है कि वसुंधरा का अर्थ धरती माता होता है. यही नहीं वोहरा सिंधिया को मंदिर के माध्यम से मां कल्याणी के रूप में भी स्थापित करने जा रहे हैं…. और मोदी जी को भगवान बनाने की बारी है.)
13.10.2018 : एन डी टी वी के हवाले से खबर आई है कि महाराष्ट्र के भाजपा प्रवक्ता अवधूत वाध ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भगवान विष्णु का ‘ग्यारहवां अवतार’ बताया है. जिसका विपक्ष ने मजाक उड़ाया और कांग्रेस ने देवताओं का ‘अपमान’ करार दिया. प्रदेश भाजपा प्रवक्ता अवधूत वाघ ने ट्वीट किया, ‘सम्मानीय प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी भगवान विष्णु का ग्यारहवां अवतार हैं. ’ एक मराठी चैनल के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, ‘देश का सौभाग्य है कि हमें मोदी में भगवान जैसा नेता मिला है.’ उल्लेखनीय कि आज तक आर एस एस और भाजपा भगवान बुद्ध को विष्णु का दसवां अवतार बताते रहे हैं. अब सवाल ये उठता है कि विष्णु के कितने अवतार होंगे? क्या यह आर एस एस और भाजपा की नजरों मे उनके देवी-देवताओं का अपमान नहीं है? क्या यह भाजपा की खोती जा रही राजनीतिक जमीन को हासिल करने की कवायद नहीं है?
वैसे तो भाजपा प्रवक्ता अवधूत वाघ की इस टिप्पणी को ज्यादा तवज्जों देने की बात नहीं है किंतु भाजपा की संस्कृति के निम्नस्तर की झलक है, इसलिए इस टिप्पणी पर दिमाग देने की जरूरत तो है. अवधूत वाध की इस टिप्पणी पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विधायक जितेंद्र आव्हाड ने तो यहाँ तक कहा, ‘वाघ वीजेटीआई से अभियांत्रिकी स्नातक हैं. अब इस बात की जांच करने की जरुरत है कि उनका (डिग्री) सर्टिफिकेट असली है या नहीं. ऐसी उनसे आशा नहीं थी.’ वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलोजी इंस्टीट्यूट (वीजेटीआई) एिशया में सबसे पुराने अभियांत्रिकी महाविद्यालयों में एक है. यह वीरमाता जीजाबाई टेक्नोलोजी इंस्टीट्यूट के शिक्षा स्तर पर भी यह एक दाग है. बताते चलें कि वीरमाता जिजाबाई तकनीकी संस्थान (वीजेटीआई) मुंबई में एक इंजीनियरिंग कॉलेज है. 1887 में स्थापित, यह एशिया के सबसे पुराने इंजीनियरिंग कॉलेजों में से एक है. इसे 26 जनवरी, 1 997 को अपना वर्तमान नाम अपनाए जाने तक विक्टोरिया जुबली तकनीकी संस्थान के रूप में जाना जाता था.
एक मराठी चैनल के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, ‘देश का सौभाग्य है कि हमें मोदी में भगवान जैसा नेता मिला है.’ …अब कोई वाध से पूछे कि अब तक बनाए गए देवी देवता और भगवानों की बल पर देश का कितना भला हुआ है अथवा सुरक्षित रहा है, तो शायद वो आसमान की ओर मुंह करके खड़े हो जाएंगे.
राजनीतिक बुद्धिजीवियों के इस वर्तमान प्रकरण में, मुझे बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा बुद्धिजीवियों के विषय में लिखी गई कुछेक पंक्तियां याद आ रही हैं. बाबा साहेब कहते हैं कि प्रत्येक देश में बुद्धिजीवी वर्ग सर्वाधिक प्रभावशाली वर्ग रहा है. वह भले ही शासक वर्ग न रहा हो. बुद्धिजीवी वर्ग वह है, जो दूरदर्शी होता है, सलाह दे सकता है और नेतृत्व प्रदान कर सकता है….बुद्धिजीवी वर्ग धोखेबाजों का गिरोह या संकीर्ण गुट के वकीलों का निकाय भी हो सकता है, जहां से उसे सहायता मिलती है. अब आप स्वयं सोचिए कि आज की भारतीय राजनीति में क्या हो रहा है? आप जैसे नेताओं को जैसे बुद्धिजीवियों कौन से श्रेणी में रखना चाहेंगे? क्या ध्रर्म व संस्कृति के ठेकेदारों को इस दिशा में ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है? कहने की जरूरत नहीं कि स्वार्थी तत्वों व अवसरवादियों ने सदैव धर्म का दुरुपयोग किया है. भगवा आतंकवाद भी धर्म के दुरुपयोग का एक बेहद घिनौना रूप है.
देवी-देवता और भगवान कैसे बनाए जाते हैं यह जानने के लिए मैं कुछ पुराने उदाहरण देना चाहता हूँ. सबसे पहले राजस्थान के हेमंत वोहरा का ही किस्सा ले लीजिए. उन्होंने अवसरवाद व संकीर्ण सोच के चलते राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को पहले तो पोस्टर के माध्यम से देवी बनाने का अभियान चलाया. संभवतः इसके उत्साही परिणाम निकलने बावजूद ही उसने वसुंधरा राजे का मंदिर बनाने की योजना को अंजाम दे डाला. इसके लिए स्थान, आर्किटेक्ट, पत्थर की किस्म, मूर्ति का आकार, शेर की सवारी व उद्घाटन आदि को अंतिम रूप भी प्रदान कर दिया गया है. ऐसा नहीं है कि किसी व्यक्ति को भगवान बनाने का यह पहला मामला है. जैसी मेरी जानकारी है, फिल्मी कलाकार रजनीकांत, अमिताभ बच्चन, क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर आदि के मंदिर पहले से ही बने हुए हैं. भाजपा के वर्तमान शासनकाल में नाथूराम गोडसे का मन्दिर बनाने की बात भी जोरों पर है… शायद कहीं बना भी दिया गया हो. इनके पीछे के तर्कशास्त्रा को भी अपने-अपने तरीके से ईजाद किया जा चुका है, जैसा कि सिंधिया के विषय तर्क दिया जा रहा है कि वसुंधरा का अर्थ धरती माता होता है. यही नहीं वोहरा सिंधिया को मंदिर के माध्यम से मां कल्याणी के रूप में भी स्थापित करने जा रहे हैं…. और मोदी जी को भगवान बनाने की बारी है.
यह अवसरवादी कवायद हमें सोचने पर विवश करती है – क्या किसी व्यक्ति का नाम ही वह कसौटी है, जिसके आधार पर देवी-देवता व भगवान बनाए जाते हैं. क्या यह देवी-देवता व भगवान बनाने की प्रक्रिया इस हकीकत को पुख्ता नहीं करती है कि अन्य देवी-देवता व भगवान भी संभवतः इसी प्रकार बनाए गए होंगे.
आकलन करें तो देवी-देवताओं और भगवानों संख्या 86 करोड़ से भी ऊपर पहुंच गई होगी. यदि यह हकीकत है तो निस्संदेह किसी भी धर्म के लिए यह बेहद खौफनाक है. यकीनन भगवान बनाने वाले व बनने वाले दोनों महान हो सकते हैं क्योंकि भगवान को बनाना और बनना दोनों ही बहुत बड़ी बात हैं. दूसरे, इनके रहमोकरम पर ही तो आजकल भारत में अमनचैन/अशांति निर्भर है. अच्छा है, ये जिसे चाहें देवी-देवता व भगवान बना दें, लेकिन जिनके कारण ये भगवान बनने और बनाने वाले आजादी की सांस ले सके हैं, उनका अपमान करने का अधिकार तो किसी को नहीं होना चाहिए. लेकिन ऐसा हो रहा है. दिल्ली से निकलने वाले अखबार ‘अमर उजाला’ दिनांक 11-7-2008 में देश के शहीदों को आतंकवादी शब्द से नवाजे जाने से दिल छलनी हो जाता है. राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय शिक्षा संस्थान की 12वीं कक्षा की इतिहास की पुस्तक में एक ही पाठ में 9 जगह पर शहीद भगतसिंह को आतंकवादी का दर्जा दिया गया. इस प्रकरण से संस्थान के अधिकारी तो पल्ला झाड़ ही रहे हैं,
लेकिन राजनेता भी मौन धारण किए हुए हैं. जिन योद्धाओं के बलिदान पर भारत को राजनीतिक स्वतंत्राता मिली, उन्हीं का इस तरह अपमान किया जाना, क्या राष्ट्र का अपमान नहीं है? भगवान बनने व बनाने वालों को थोड़ी चिंता इसकी भी होनी चाहिए.
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