26 मार्च को मराठा आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक बड़ा फैसला आया है। इसी महीने में कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक बेंच ने राज्यों से पूछा था कि क्या 50% आरक्षण की सीमा बढ़ाई जा सकती है? यह प्रश्न राज्यों की विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओ में एवं विभागों में रोजगार के अवसरों में जाति आधारित आरक्षण के विषय में पूछा गया था। कई राज्यों ने इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि वह राज्यों में आरक्षण की सीमा 50% से बढ़ाना चाहते हैं। इन राज्यों के साथ केंद्र सरकार ने भी कहा कि मराठा रिजर्वेशन का प्रतिशत बढ़ाया जाना संविधान के अनुकूल ही है।
गौरतलब है कि 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में जाति आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय कर दी थी। अब राज्यों और केंद्र के सामने सवाल यह है कि क्या उस आदेश को संशोधित करने की आवश्यकता है? हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले मामले पर टिप्पणी करते हुए यह भी कहा था कि या आरक्षण कितने सालों तक जारी रखा जा सकता है, और क्या इस तरह आरक्षण जारी रखने से संविधान में वर्णित समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं होता?
इस मामले में ताज़ा स्थिति यह है कि केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारे आरक्षण की सीमा 50% से अधिक बढ़ाने के पक्ष में आ गयी हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए गए इन प्रश्नों के कारण यह मामला बहुत महत्वपूर्ण बन गया है। अब सीधे सीधे सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण की संवैधानिकता से जुड़े सैद्धांतिक प्रश्न को सुलझाने पर बहुत कुछ निर्भर हो गया है। अब इस मामले में भविष्य में जो भी फैसला आएगा वह निर्णायक रूप से भारत के दलितों पिछड़ों के भविष्य को तय करेगा।
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