राजनीति में हैं तो दाग अच्छे हैं

हिंदू शास्त्रों के अनुसार भागीरथ ने कठोर तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर उतारा था ताकि उनके साठ हजार पूर्वजों का तारण हो सके. गंगा जीवनदायिनी के साथ साथ मोक्ष दायिनी, मुक्ति दायिनी भी है. आज भी गंगा के प्रति लोगों की आस्था उतनी ही बनी है जितनी भागीरथ की थी. अस्थियों की राख विसर्जन आज भी आस्था की रीढ़ बनी है. गंगा में नहाने से पाप धुले या नहीं, मुक्ति मिले, या नहीं यह रहस्य है मगर भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व  चुनाव में कई दागियों, अपराधियों और गुनाहगारों  के सारे गुनाह धुल जाते हैं. कल तक जिनके ऊपर अपराधों के गंभीर मामले होते हैं जेल की सलाखों में होते हैं राजनीतिक पार्टियां उनको हाथों-हाथ पार्टी से टिकट  देकर उनके सारे गुनाहों पर पर्दा डाल देते हैं. ऐसा लगता है कि देश में योग्य और सभ्य,बुद्धिजीवी, ईमानदार, निरपराधी लोगों का अकाल पड़ गया है. बयान कड़वा और आपत्तिजनक देकर नेता बड़ी सफाई से पार्टी का बचाव करती हैं. निंदा होने पर निजी बयान कहा जाता है और पार्टी से कोई संबंध नहीं है ऐसा कहा जाता है.

 मगर जब ऐसे आरोपित और गुनाहगार और गुनाहगार नेताओं के बयान तो निजी होते हैं पर वह पार्टियों के मोहरे होते हैं. चुनाव आयोग भी इस इस पर कठोर कदम उठाने चाहिए जब पार्टी अपराधी को अपना टिकट देती है तब वह पार्टी का होता है मगर जुबान फिसलने, मर्यादा तोड़ने पर व्यक्तिगत कैसे हो जाता है?व्यक्तिगत गलती के लिए उसे पार्टी से बाहर कर देना चाहिए. राजनीति विज्ञान में लोकतंत्र की परिभाषा इस प्रकार व्यक्त की गई है “जनता का शासन जनता द्वारा जनता के लिए ” लेकिन आज के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस प्रकार की परिभाषा का विलोम होता हुआ नजर आ रहा है यूं कहा जाए कि- “जनता द्वारा पार्टी का शासन पार्टी के लिए” ही काम करता दिखाई दे रहा है जनता द्वारा सरकारें चुनी तो जा रही हैं मगर जनता का शासन जनता के लिए नहीं हो रहा है .ऐसा लोकतंत्र किस काम का? जहां व्यक्तियों की आवाजों को अनसुना कर दिया जाता है. जितनी तीव्र गति से भारतीय राजनीति में परिवर्तन हुआ है उसका स्वरूप बदल गया है उतनी तीव्र गति से राजनीति के तीव्र गति से राजनीति के लिए खाद का काम करने वाले वोटरों की जिंदगी में या उनकी हालातों में, स्थिति में परिवर्तन देखने में शायद ही आया हो. आजादी के चंद दशकों बाद ही भारतीय राजनीति प्रदूषित होने लगी थी और उस प्रदूषण का मुख्य कारण था राजनीति में अपराधियों का बढ़ता हुआ ग्राफ.

इस चिंता को  देखते हुए तथा लोकतंत्र के पवित्र मंदिर संसद में सदाचारी और ईमानदार लोगों की पहुंच हो तथा दागी प्रत्याशी हो तथा दागी प्रत्याशी संसद और राज्य विधानसभाओं में नहीं पहुंच सके नहीं पहुंच सके 25सितंबर 2018 को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण पर फैसला देते हुए कहा कि संसद कानून बनाने की जिम्मेदारी ले. मगर खुद कानून बनाने वाले कानून की अवहेलना करें, उसको कुचल डाले तो फिर लोकतंत्र की जड़ें मजबूत कहां होंगी? यथा धीरे-धीरे खोखली होती जाएंगे होती जाएंगे 2004 में अपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों की संख्या 128 थी जो वर्ष 2009 में 162 और 2014 में यह संख्या 184 हो गई.

 चुनाव विश्लेषण संस्था एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2019 के आम चुनाव में सत्रहवीं लोकसभा के लिए चुने गए 542 सांसदों में से 233 अर्थात 43 प्रतिशत सांसद दागी छवि के हैं. एडीआर रिपोर्ट के अनुसार 159 यानी29% सांसदों के विरुद्ध हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर आरोप लंबित हैं सत्रहवीं  लोकसभा में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने आपराधिक मुकदमों में फंसे गुनाहगारों को पार्टी से टिकट देने में कोई कमी नहीं की है. रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा के 303 सांसदों में 116 सांसद दागी हैं जिनके नामों के विश्लेषण में पाया गया कि शाध्वी प्रज्ञा सहित 116 सांसदों के विरुद्ध आपराधिक केस चल रहे हैं. इसी कड़ी में कांग्रेस के सांसद कुरियाकोस  पर 204 मुकदमे दर्ज हैं. 52 सांसदों में से 29 कांग्रेसी सांसद आपराधिक मामलों में घिरे हैं, बसपा के10 में से 5, जेडीयू के 16 में से 13, तृणमूल कांग्रेस के 22 में से नौ, और माकपा के तीन में से दो सांसदों के विरुद्ध विभिन्न आपराधिक गतिविधियों में केस चल रहे हैं.

इतना ही नहीं बाहुबली के साथ-साथ 88% सांसद धन बलि भी हैं. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम  1951 की  धारा8 दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकती है. इस नियम की धारा 8 (1)और (2) के अंतर्गत प्रावधान है कि यदि कोई संसद या विधानसभा सदस्य हत्या’ बलात्कार, अस्पृश्यता, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन, धर्म भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता पैदा पैदा करना, भारतीय संविधान का अपमान करना,प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात या निर्यात करना, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना जैसे अपराधों में लिप्त हो तो उसे इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा एवं 6 वर्ष की अवधि के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. संविधान के अनुच्छेद 102 (1) के अनुसार संसद इस मामले पर कानून बनाने के लिए बाध्य है. लेकिन कोई भी सरकारें अभी तक इस पर कानून लाने के लिए साहस नहीं कर पाई हैं आखिर क्यों? तीन तलाक के लिए सरकार ने ताबड़तोड़ कोशिशें की लगातार दो कार्यकाल में इसके लिए कानूनी लड़ाई भी लड़ी मगर राजनीति में दागी और फसादी लोगों के लिए अभी तक किसी भी प्रकार का न कोई कानून बनाने की ओर पहल की और  नहीं उनको पार्टी में आने से रोका गया है.

देश को दहलाने वाली घटना जो उन्नाव में घटित हुई है उसके पीछे भी इसी प्रवृति के लोगों की छया दृष्टिगोचर होती है. कुलदीप सेंगर जो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का यूपी से विधायक है  लगभग 2 साल के बाद उसको पार्टी से तब निकाला गया जब देश की मीडिया और जन समुदाय का बहुत ज्यादा दबाव बन गया था आखिर ऐसा लगता है की राजनीति वह गंगा के समान हो गयी है  जहां कितना भी बागी ,दागी,पापी और दुष्कर्मी इंसान क्यों न हो वह संसद और विधानसभा में पहुंच जाता है तो उसके सारे दाग मिट जाते हैं इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि “राजनीति में है तो दाग अच्छे हैं” लेकिन इन दागों को धोने के लिए न तो कोई ऐसा डिटर्जेंट ही सरकार खोज पाई है और ना ही कोई ऐसा गंगा का पवित्र जल इन पर डालने की कोशिश की है जो संविधान की धाराओं से निकलता हुआ सीधे ऐसे अपराधियों को जेल की सलाखों तक पहुंचाए.

आई. पी.  ह्यूमन

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