Friday, May 2, 2025
Homeओपीनियनदेश को एक बार दक्षिण की ओर देखना होगा

देश को एक बार दक्षिण की ओर देखना होगा

 चुनावी नतीजे आये तो सर्वाधिक ध्यान बंगाल ने खींचा। यह स्वाभाविक भी था। बड़ी लड़ाई थी। उसके महत्व को मैं भी मंज़ूर करता हूं। पर विचार की दृष्टि से देखें तो ये दो तस्वीरें भी कुछ कम महत्वपूर्ण नही हैं। ये तमिलनाडु और केरल के विजयी नेताओं की तस्वीरें हैं। मत भूलिये कि बीते कई सालों से केंद्र के सत्ताधारी ही रिमोट से तमिलनाडु को चला रहे थे, और केरल ने भी कुछ कम चमत्कार नही किया। यह अच्छे काम, जन-कल्याणकारी शासन और व्यापक सामाजिक सोच की जन-स्वीकृति है।
 मुझे समझ में नहीं आता, उत्तर और मध्य भारत के लोग कब तक इस गुमान में रहेंगे कि देश उन्हीं की मर्जी से चलता है और चलता रहेगा! चाहे, वे देश भर में जितना कूड़ा-करकट फैलाते रहें! सोचिये, इस गुमान और बहुसंख्यकवाद के नशे में चूर हिंदी-भाषी क्षेत्र के फैसलों ने देश को आज कहां पहुंचा दिया? उनकी चुनी सरकारों का किसानों की बेहद जेनुइन मांग और प्रतिरोध को लेकर क्या रवैया रहा? क्या इस महामारी में भी इस क्षेत्र के राजनीतिक-गुनाह आपको नज़र नही आ रहे हैं?
ऐसे में क्या लोगों को अब दक्षिण की तरफ़ नहीं झाँकना चाहिए? दक्षिण के पास सोच, समझ, और संस्कृति का बड़ा मानवीय दायरा है, जो हमेशा दिखता रहा है और वह आज इस महामारी में भी दिखाई दे रहा है। दक्षिण की धारा उत्तर और मध्य भारत को जाति-वर्ण और कारपोरेट-हिंदुत्व की जकड़ से मुक्त कराने में ज़्यादा समर्थ है। संकीर्णताओं से मुक्ति के संघर्ष की उसके पास समृद्ध विरासत भी है। जानता हूं, हिंदी-भाषी क्षेत्र का सबसे प्रभावी चिंतन इतनी आसानी से खत्म नहीं होने वाला। मेरी इस छोटी सी टिप्पणी से तो हरगिज़ नहीं, पर अंतिम सांस तक यह सच कहना और लिखना जारी रखना चाहता हूं कि कारपोरेट-हिंदुत्व और मनुवाद के ज़हरीले चंगुल से मुक्ति के लिए नया विचार चाहिए। मुझे विश्वास है, एक दिन लोग जागेंगे! शायद जगाने वालों की कमी है लोगों की नहीं!

लोकप्रिय

अन्य खबरें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Skip to content