दलित और आदिवासी समाज के लिए केंद्र की मोदी सरकार भले ही कितने भी दिखावे कर ले, हकीकत यह है कि भाजपा की सरकार दलितों और आदिवासियों को कमजोर और लाचार ही बनाए रखना चाहती है। हाल ही में आई एक खबर इस पर मुहर भी लगाती है। दरअसल केंद्र की मोदी सरकार की अनदेखी की वजह से दलित समाज के उन साठ लाख बच्चों का भविष्य अधर में अटक गया है, जो सरकारी स्कॉलरशिप के भरोसे अपनी 10वीं और 12वीं की पढ़ाई पूरी करते थे। देश के दर्जन भर से ज्यादा राज्यों के उन तकरीबन 60 लाख बच्चों को मिलने वाली सेंट्रल स्कॉलरशिप बंद होने की कगार पर है, जो राज्य सरकारों को 2017 फार्मूला के अंतर्गत दिया जाता था।
पिछले लगभग एक साल से मंजूरी की राह जोह रहे इस मुद्दे को हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने रखा गया है, जिस पर चर्चा होने की खबर है। सरकारी योजना के तहत 10वीं और 12वीं में पढ़ने वाले अनुसूचित जाति के स्कूली छात्रों को शत् प्रतिशत छात्रवृति मिलती है, जबकि अनुसूचित जनजाति के छात्रों को 75 प्रतिशत केंद्रीय वित्तपोषित छात्रवृति मिलती है।
हालांकि उच्च स्कूली शिक्षा हासिल करने वाले 60 लाख अनुसूचित जाति के विद्यार्थी केंद्र के टालमटोल वाले रवैये के कारण फंड की कमी का सामना कर रहे हैं। इसके कारण तमाम राज्य या तो इस छात्रवृति योजना को धीरे-धीरे बंद कर रहे हैं या फिर बीते कुछ सालों से बहुत सीमित मात्रा में चला रहे हैं। पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम के तहत अनुसूचित जाति के छात्रों को साल में 18 हजार रुपये की मदद मिलती है, जिससे उन्हें अपनी 11वीं-12वीं की शिक्षा पूरी करने में काफी मदद मिलती है।
पंजाब, हरियाणा, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार, वेस्ट बंगाल और उत्तराखंड उन राज्यों में से है, जो लगातार सोशल जस्टिस एंड इंपावरमेंट मिनिस्ट्री के सामने इस मुद्दे को उठाते रहे हैं। वहीं वित्त मंत्रालय से यह मांग की जा रही है कि वह 60-40 के अनुपात के तहत केंद्र और राज्य के फंडिंग पैटर्न को वापस लागू करे, जिससे स्कॉलरशिप के तहत विद्यार्थियों को हॉस्टल, मेनटेनेंस फी और ट्यूशन फी बिल आदि का भुगतान किया जा सके। वहीं दूसरी ओर इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भाजपा पर निशाना साधा है। राहुल गांधी ने इस रिपोर्ट को आधार बनाते हुए ट्विट किया कि भाजपा और आरएसएस नहीं चाहते कि दलितों और आदिवासियों तक शिक्षा पहुंचे।
हालांकि सच्चाई यह है कि पांच दशक से ज्यादा समय तक देश की सत्ता पर काबिज रहने के दौरान कांग्रेस ने भी दलित-आदिवासी समाज के उत्थान के लिए कुछ खास नहीं किया। तो सबका साथ-सबका विकास का दावा करने वाली भाजपा सरकार भी लगातार दलित और आदिवासी समाज के हितों की अनदेखी करती रही। यह रिपोर्ट भी इसका सबूत है। दरअसल हकीकत यह है कि देश की सत्ता पर हमेशा से ऊंची जातियों का कब्जा रहा है, आजादी के सात दशक बाद भी वंचित जातियों की जो स्थिति है, वह साफ बताती है कि ये जातियां कभी भी नहीं चाहती कि दलित और आदिवासी समाज आगे बढ़े। खास तौर पर बात जब शिक्षा की हो तो वंचितों की राह में खूब रोड़े अटकाए जाते हैं। क्योंकि शिक्षा कमजोर जातियों की मुक्ति की राह खोलती है, और मजबूत जातियां नहीं चाहती कि हाशिये पर पड़ा समाज मुक्त हो। देखना यह है कि इस मामले के तूल पकड़ने के बाद केंद्र की भाजपा सरकार क्या वंचित समाज के विद्यार्थियों के हित में फैसले लेती है, या फिर से इसे आगे के लिए टाल देगी।
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।