यूपी में आखिरी चरण के लिए मतदान बाकी है। दलित शोध छात्र रोहित वेमुला के बाद कोल्हापुर में प्रखर अम्बेडकरी विचारक किरवले की हत्या हो गयी। इससे ज्यादा खतरनाक बात यह है कि उज्जैन में आरएसएस ने गुजरात में हजारों मुसलमानों के कत्लेआम का इकबालिया बयान जारी करते हुए केरल के मुख्यमंत्री के सर पर एक करोड़ के इनाम का ऐलान कर दिया है।
कलबुर्गी, पानेसर, दाभोलकर के बाद रोहित वेमुला की हत्या और नजीब की गुमशुदगी के साथ किरवले की हत्या को जोड़कर देखें तो साफ तौर पर आरएसएस ने गुजरात नरसंहार दोहराने का अल्टीमेटम जारी कर दिया है और बहुजनों को भी चेतावनी दे दी है कि अब हिंदूराष्ट्र में अम्बेडकर विमर्श के लिए कोई जगह नहीं है।
जाहिर है कि केंद्र या राज्य में सत्ता हासिल करने या विशुध राजनीति या राजकाज से गांधी के हत्यारे कतई खुश नहीं हैं। वे राम राज्य से कम कुछ नहीं चाहते। रोहित के बाद किरवले की हत्या मनुस्मृति लागू करने के लिए भारतीय जनता के खिलाफ संघ परिवार की खुली युद्ध घोषणा है। चंद्रावत ने जिस तरह आम सभा में गुजरात में हजारों मुसलमानों को मौत के घाट उतारने का ऐलान किया है, यह गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के महिमामंडन का असल एजंडा है।
चुनाव जीतने वाली स्थिर सरकार जिसे इशारे पर चल रही हो, वह अचानक इतना ज्यादा आक्रामक तेवर में आ जाये तो समझिये बहुत घनघोर संकट है। जिस तरह विद्यार्थी परिषद ने दिल्ली में उधम मचाया और उसके बाद कोलकाता में भी वह सड़क पर बवाल खड़ा करने के मूड में है, जिस तरह केरल के मुख्यमंत्री के सर पर इनाम एक करोड़ का ऐलान करते हुए आरएसएस के सिपाहसालार ने अमेरिका और भारतीय न्याय प्रणाली की क्लीन चिट को हाशिये पर रखकर सीना ठोंककर कह दिया कि संघ ने गुजरात में हजारों मुसलमानों को कब्रिस्तान में भेज दिया।
इस ऐलान के बाद केरल के पलक्कड़ में तीन वाम कार्यकर्ताओं पर हमले भी हो गये। संघ परिवार इस इकबालिया बयान से पल्ला झाड़ने के लिए चंद्रावत को उनकी जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया है, लेकिन अभी तक मध्यप्रदेश सरकार ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। इसी के मध्य कोल्हापुर से खबर आयी है कि कामरेड गोविन्द पानसरे के बाद अज्ञात हत्यारों ने आज सुबह कोल्हापुर विवि में मराठी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ कृष्णा किरवले की उन्हीं के घर में घुस कर हत्या कर दी। डॉ किरवले अपने प्रखर अम्बेडकरवादी विचारों के लिए जाने जाते थे।
खबरों के मुताबिक इस नृशंस हत्या का पैटर्न वही है जो हत्यारों ने क्रमशः डॉ नरेंद्र दाभोलकर, कॉ गोविन्द पानसरे और प्रो एम एम कलबुर्गी की हत्या के समय अपनाया था। गौरतलब है कि इन तीनों प्रकरणों में हत्यारे अभी तक पकडे नही गये हैं और समाज के प्रगतिशील बौद्धिक नेतृत्व को हत्या जैसे हिंसक तरीकों से खामोश किये जाने की कोशिशें एक लंबे अरसे से जारी है।
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