राजनीतिक दबाव कहें या महाराष्ट्र के भीतर बाबासाहेब को लेकर सजगता, बाबासाहेब का विचार सबके सामने आ गया। मगर पेरियार के विचारों को मनुवादियों ने भरसक दबाने की कोशिश की और कमोबेश सफल भी हुई। लेकिन पेरियार के विचार अब लोगों को आसानी से उपलब्ध हो सकेंगे। तामिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के स्टालिन की सरकार ने पेरियार के विचारों को दुनिया भर में पहुंचाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। पेरियार की रचनाओं का हिंदी और मराठी समेत 21 भारतीय भाषाओं में अनुवाद होगा। इसे डिजिटल रूप में भी जन-जन तक पहुँचाया जाएगा। तमिलनाडु सरकार ने इसके लिए पहले साल में 5 करोड़ रुपये का बजट रखा है।
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने इसकी जानकारी दी है। साथ ही लिखा है-
पेरियार हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में बड़े पैमाने पर आ रहे हैं। प्राइवेट पब्लिशर पेरियार को छिटपुट पहले भी छाप रहे थे। अब तमिलनाडु सरकार लगेगी। पहले साल के लिए ₹5 करोड़ का बजट होगा।
हिंदी क्षेत्र में सावरकर-गोलवलकर बनाम आंबेडकर-पेरियार!
स्वागत कीजिए इस वैचारिक द्वंद्व का।
दिलीप मंडल के इस ट्विट पर बहुजन समाज में खासा उत्साह है।
एक व्यक्ति ने लिखा- जय पेरियार! इतिहास याद रखेगा जब उत्तर भारत के नेता ब्राह्मण क्रांति पर उतारू होकर फरसा अभियान चला रहे थे, तब स्टालिन जी ने अकेले मनुवाद/ब्रह्मणवाद से मोर्चा ले रखा था।
एक अन्य व्यक्ति ने ट्विट किया है-
एक तरफ गुजरात के बच्चे गीता पढ़े और दूसरी तरफ बच्चे पेरियार को पढ़ें, क्या लगता है कौन से राज्य के बच्चे ज्यादा अच्छे नागरिक बन सकेंगे?
दरअसल भारत में मनुवादियों और गैर बराबरी को बढ़ावा देने वाले समाज को दो बहुजन नायकों से हमेशा सबसे ज्यादा दिकक्त रही है। एक हैं डॉ. आंबेडकर जबकि दूसरे हैं पेरियार। इन दोनों नायकों ने अपने तर्कों और तथ्यों के जरिए मनुवाद की जिस तरह धज्जियां उड़ाई, उतनी शायद और किसी बहुजन नायक ने नहीं किया। डॉ. आंबेडकर का तो पूरा साहित्य ही भारतीय हिन्दू समाज के भीतर के बजबजाते सडांध की परते उघाड़ता है। तो पेरियार ने सच्ची रामायण लिखकर हिन्दूवादी पाखंड की धज्जियां उड़ा दी थी। ललई सिंह यादव के जरिए यह किताब अनुवाद होकर हिन्दी में छपी। पेरियार ने अपनी इस किताब में जिस तरह रामायण के तमाम पात्रों की व्याख्या की उससे मनुवादी बौखला गए थे। इस कारण खासकर हिन्दी पट्टी में पेरियार के विचारों को रोकने के षड्यंत्र किये गए। लेकिन अब तामिलनाडु सरकार के इस फैसले से निश्चित तौर पर पेरियार के विचारों को देश भर में फैलाने में मदद मिलेगी जो एक नई बहस और विचार जन्म देगा।

दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।
