अब लखीमपुर खीरी पर विलाप, उपाय कब ढूंढेंगा दलित समाज |

कभी त्रिपाठी और मिश्रा, कभी ठाकुर और राजपूताना, कभी जाट, कभी गुर्जर, कभी यादव, कभी गुप्ता। इस बार जुनैद, आरिफ, हफीज, करीमुद्दीन और सोहैल। सामने वालों के नाम बदलते रहते हैं, लेकिन पीड़ित पक्ष आज भी वही है- दलित समाज की बेटी।

भारत के ग्रामीण इलाकों से बच्चियों के साथ हैवानियत की जितनी भी खबरें आती हैं, उसमें 90 फीसदी से ज्यादा पीड़ित दलित समाज की बेटी होती है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से फिर एक खबर आई है। दलित समाज की दो सगी बहनों के साथ जो हैवानियत हुई, उसकी चर्चा देश भर में है। प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है। राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में दक्षिण में हैं, लेकिन उन्होंने घटना की निंदा की है। बसपा प्रमुख बहन मायावती ने घटना को लेकर रोष जताया है, बाकी सबने भी बोला है।

घटना के बाद यूपी पुलिस ने मुख्य आरोपी जुनैद को पुलिस मुठभेड़ में लगी गोली, जबकि अन्य आरोपियों सोहैल, आरिफ़, हफ़ीज़, करीमुद्दीन और छोटे को गिरफ्तार कर लिया गया है। इस बार आरोपियों के नाम की वजह से सियासत भी गर्म है और कार्रवाई भी तेजी से हुई। राजनीतिक दल उसको किस तरह से देख रहे हैं, यह भी देखिये।

बहुजन समाज पार्टी के सांसद और मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कुंवर दानिश अली का कहना है कि-

हाथरस की घटना और बिलक़ीस बानो के बलात्कारियों की समय पूर्व रिहाई से देश में, ख़ास तौर से भाजपा शासित राज्यों में अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और लखीमपुर खीरी की दलित बहनों से बलात्कार और उनकी निश्रृंस हत्या इसी का परिणाम है।

राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में दक्षिण में हैं। राजस्थान में हुई इंद्र मेघवाल के मुद्दे पर चुप्पी साधने वाले राहुल गांधी को इस घटना के बहाने भाजपा पर निशाना साधने का मौका मिल गया है। उनका कहना है-

लखीमपुर में दिन-दहाड़े, दो नाबालिग दलित बहनों के अपहरण के बाद उनकी हत्या, बेहद विचलित करने वाली घटना है। बलात्कारियों को रिहा करवाने और उनका सम्मान करने वालों से महिला सुरक्षा की उम्मीद की भी नहीं जा सकती। हमें अपनी बहनों-बच्चियों के लिए देश में एक सुरक्षित माहौल बनाना ही होगा।

बसपा प्रमुख मायावती ने योगी सरकार को आड़े हाथों लिया है। इस हैवानियत पर प्रतिक्रिया देते हुए बहनजी ने कहा है कि यूपी में अपराधी बेखौफ हैं क्योंकि सरकार की प्राथमिकताएं गलत है। यह घटना यूपी में कानून-व्यवस्था व महिला सुरक्षा आदि के मामले में सरकार के दावों की जबर्दस्त पोल खोलती है। हाथरस सहित ऐसे जघन्य अपराधों के मामलों में ज्यादातर लीपापोती होने से ही अपराधी बेखौफ हैं। यूपी सरकार अपनी नीति, कार्यप्रणाली व प्राथमिकताओं में आवश्यक सुधार करे।

आम तौर पर भाजपा शासित राज्यों में होने वाले दलित उत्पीड़न पर चुप्पी साध लेने वाला राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग भी आरोपियों के नाम देखकर जाग गया है। आयोग के चेयरमैन विजय सांपला ने घटना का स्वतः संज्ञान लेते हुए यूपी पुलिस और प्रदेश के डीजीपी को नोटिस जारी कर विस्तृत जानकारी मांगी है।

दरअसल घटना यूं है कि दो दलित बहनों को घर के बाहर से बाइक सवाल युवक अगवा कर ले गए थे। कुछ देर बाद उन दोनों की लाश पेड़ पर लटकी हुई मिली।

यानी हर कोई मौका ढूंढ रहा है, लेकिन ऐसी घटनाओं के रोकने के तरीकों पर कोई बात नहीं कर रहा। न सरकार, न नेता, न पुलिस। तो क्या यह नहीं समझा जाए कि ऐसी घटनाएं समाज के जागने पर ही रुक पाएंगी। सवाल है कि दलित समाज के युवा आखिर ऐसा क्या करें कि उनके समाज की बहन-बेटियों से हैवानियत करने वाले अंजाम की सोच कर कांप जाएं। क्या जातिवाद के खिलाफ क्रांति ही इसे रोकने का उपाय नहीं है? सोचिएगा जरूर…….

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