अब ‘खतने’ के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं ने उठाई आवाज, PM को लिखा खुला खत

 

नई दिल्ली। तीन तलाक पर आए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद मुस्लिम महिलाओं को 1400 साल पुरानी पंरपरा के नाम पर हो रहे शोषण से मुक्ति मिली है. लेकिन अभी भी इस्लाम में कई ऐसी प्रथाएं हैं जिनकी वजह से औरत को दर्द और तकलीफ झेलनी पड़ती है. इनमें हलाला और महिलाओं के खतने जैसी प्रथाएं प्रमुख हैं.

दुनिया भर के कई समुदाय इस कुप्रथा को सदियों से करते आ रहे हैं. लेकिन अब इस कुप्रथा को रोकने के लिए कुछ महिलाओं से मोर्चा खोल दिया है और इसके खिलाफ एक जुट होकर लड़ रही हैं. तीन तलाक पर आए फैसले के बाद बोहरा समुदाय की मासूमा रानाल्वी ने देश के प्रधानमंत्री मोदी के नाम एक खुला ख़त लिखकर इस खतने को रोकने की मांग की है.

मासूमा रानाल्वी ने अपने खत में लिखा स्वतंत्रता दिवस पर आपने मुस्लिम महिलाओं के दुखों और कष्टों पर बात की थी. ट्रिपल तलाक को आपने Anti-Women कहा था, सुनकर बहुत अच्छा लगा था. हम औरतों को तब तक पूरी आजादी नहीं मिल सकती जब तक हमारा बलात्कार होता रहेगा, हमें संस्कृति, परंपरा और धर्म के नाम पर प्रताड़ित किया जाता रहेगा. हमारा संविधान सभी को समान अधिकार देने की बात करता है, पर असल में जब भी किसी बच्ची को गर्भ में मारा जाता है, जब भी किसी बहु को दहेज के नाम पर जलाया जाता है, जब भी किसी बच्ची की जबरन शादी करवा दी जाती है, जब भी किसी लड़की के साथ छेड़खानी होती है या उसके साथ बलात्कार किया जाता है, हर बार इस समानता के अधिकार का हनन किया जाता है.

ट्रिपल तलाक अन्याय है, पर इस देश की औरतों की सिर्फ यही एक समस्या नहीं है. मैं आपको Female Genital Mutilation (FGM) या खतना प्रथा के बारे में बताना चाहती हूं, मैं इस खत के द्वारा आपका ध्यान इस भयानक प्रथा की तरफ खींचना चाहती हूं. बोहरा समुदाय में सालों से ‘खतना प्रथा’ या ‘खफ्ज प्रथा’ का पालन किया जा रहा है. महिलाओं का खतना एक ऐसी कुप्रथा है, जिससे न सिर्फ महिलाएं अपना मानसिक संतुलन खो देती हैं, बल्कि उनके शरीर को बेहद नुकसान भी पहुंचता है. जो लड़कियां बच भी जाती हैं, इस कुप्रथा से जुड़ी दर्दनाक यादें ताउम्र उनके साथ रहती है. बोहरा, शिया मुस्लिम हैं, जिनकी संख्या लगभग 2 मिलियन है और ये महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बसे हैं. मैं बताती हूं कि मेरे समुदाय में आज भी छोटी बच्चियों के साथ क्या होता है.

जैसे ही कोई बच्ची 7 साल की हो जाती है, उसकी मां या दादी उसे एक दाई या लोकल डॉक्टर के पास ले जाती हैं. बच्ची को ये भी नहीं बताया जाता कि उसे कहां ले जाया जा रहा है या उसके साथ क्या होने वाला है. दाई या आया या वो डॉक्टर उसके Clitoris को काट देते हैं. इस प्रथा का दर्द ताउम्र के लिए उस बच्ची के साथ रह जाता है. इस प्रथा का एकमात्र उद्देश्य है, बच्ची या महिला के Sexual Desires को दबाना.

मासूमा ने बताया कि ‘FGM महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकार का हनन है. महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव का ये सबसे बड़ा उदाहरण है. बच्चों के साथ ये अक्सर होता है और ये उनके अधिकारों का भी हनन है. इस प्रथा से व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है.’

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