उत्तर प्रदेश में चुनाव का दौर चल रहा है ऐसे में सभी राजनीतिक पर्टियों ने वोट बटोरने के लिए अपना राजनीतिक एजेंडा सेट कर लिया है। वहीं कांग्रेस की महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा भी पीछे नहीं है। उत्तर प्रदेश की सियासत में सबसे पीछे चल रही कांग्रेस को संभालने का जिम्मा लेने वाली प्रियंका गांधी ने वोट की खातिर महिलाओं और युवा लड़कियों को निशाने पर लिया है।
“लड़की हुं लड़ सकती हूं” के नारे के साथ प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में उतर गई हैं। लड़कियों को अपने पाले में करने के लिए प्रियंका गांधी ने 28 दिसंबर को लखनऊ के इकाना स्टेडियम में एक मैराथन रेस आयोजित किया।इसमें बड़ी संख्या में लड़कियां शामिल हुईं। प्रियंका गांधी इस मैराथन में जीतने वाली लड़कियों को इनाम के तौर पर स्कूटी, टैबलेट और स्मार्ट वॉच बांट रही हैं। उनकी इस पहल से साफ लग रहा है कि उन्होंने चुनाव जीतने के लिए अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए महिलाओं को चुना है।
क्योंकि भाजपा के निशाने पर जहाँ हिंदू वोट हैं, बसपा का की नजर दलितों-पिछड़ों के साथ ब्राह्मण वोटरों पर है तो यादवों और मुस्लिम समाज पर सपा अपना दावा ठोक रही है। ऐसे में बिखरती हुई कांग्रेस के लिए भी ये जरूरी था कि वो एक ताकतवर एजेंडे के साथ अपना अस्तित्व बनाए रखे। ऐसे में जिस तरह से इस मैराथन के लिए स्टेडियम पर लड़कियों की भीड़ देखी गई उससे लगता है कि कांग्रेस अपने एजेंडे पर आगे बढ़ने में सफल होती दिख रही है। और प्रियंका का ये स्लोगन “लड़की हूं लड़ सकती हूं” उनकी पार्टी को वापस लड़ाई में लाता दिख रहा है।
क्योंकि जहां बात महिलाओं की आती है वहां हर जाति या धर्म की महिलाएं चाहे वो हिंदू या मुस्लिन, सवर्ण हों या दलित सभी शामिल होती हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में महिलाओं की संख्या की बात करें तो 2011 के सेंसस के मुताबिक 1000 पुरुषों पर 908 महिलाएं हैं और इलैक्शन कमिशन के मुताबिक इनमें से 59.43 प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले 63.26 प्रतिशत महिलाओं ने 2017 विधान सभा चुनाव में वोट किया था। यानी एक बहुत ही बड़े तबके पर कांग्रस का फोकस है। जो तख्ता पलट करने के लिए काफी है। अब देखना ये है कि कांग्रेस को अपने इस नए एजेंडे से 2022 में हो रहे यूपी के विधान सभा चुनाव में कितना फायदा होगा।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।