आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए लगा दी जिदंगी

चाईबासा। कुछ लोग समाज में अनोखी अलख जगाने के लिए ही पैदा होते हैं. भूदेव भक्त पर यह बात सटीक बैठती है. करीब बीस वर्ष पहले जेएनयू दिल्ली में पढ़ाई करते समय उनका सपना सिविल सेवा में शामिल होना था, लेकिन उन्होंने अपने आसपास कुछ ऐसा देखा कि अपनी जिंदगी की धारा ही बदल ली. झारखंड के पूर्वी सिंहभूमी जिले के जादूगोड़ा निवासी भूदेव भक्त बेहद साधारण परिवार में जन्मे हैं. पढ़ाई के दौरान समाजशास्त्र की कक्षाओं ने उनके जीवन का लक्ष्य ही बदल दिया. दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाली महिलाओं पर एक प्रोजेक्ट पूरा करते-करते उन्होंने अपने भविष्य का लक्ष्य तय कर लिया. रसोई में धुएं से जूझती महिलाओं की स्थिति को देख वह विचलित हो गए. अब वह 11 साल से नक्सली इलाके में धुआं रहित चूल्हे से आदिवासी महिलाओं की सेहत को सहेजने में जुटे हैं.

केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना जिस बुनियादी उद्देश्य के साथ महिलाओं के लिए चलाई जा रही है, लगभग उसी के लिए भूदेव ने काफी पहले अपना अभियान छेड़ दिया था. अंतर इतना है कि केंद्र सरकार उज्ज्वला के तहत गरीब परिवारों को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन उपलब्ध करा रही है और भूदेव लकड़ी जलाकर ही खाना बनाने की क्षेत्रीय मजबूरियों में घिरीं महिलाओं को एक विशेष चूल्हे के जरिये धुएं से आजादी दिलाने में कामयाब हुए हैं. नक्सल प्रभावित वन क्षेत्रों में फिलहाल उज्ज्वला योजना पूरी तरह धरातल पर नहीं उतर सकी है. जिन्हें गैस सिलेंडर मिला भी है, वे भी लकड़ी की आसान उपलब्धता के कारण उसे ही प्राथमिकता देते हैं.

भूदेव ने 2006 से 2016 तक करीब 500 महिलाओं को रोजगार के लिए प्रशिक्षित कर उनसे धुआं-रहित चूल्हे का निर्माण कराया. इसके बाद बेहद व्यवस्थित तरीके से शिक्षित बेरोजगार महिला समिति नामक संगठन का गठन कर इन चूल्हों को तीन जिलों के सात ब्लॉक में रहने वाली 2500 महिलाओं तक पहुंचा दिया. पश्चिमी सिंहभूमी में 300 महिलाओं को वह धुआं-रहित चूल्हा बनाने का स्थायी रोजगार मुहैया करा चुके हैं. इस चूल्हे की निर्माण लागत हजार रुपये के करीब है. भूदेव ने स्वरोजगार से जुड़ीं इन महिलाओं को हस्तकला का प्रशिक्षिण भी दिला दिया है. नतीजा यह है कि महिलाएं बांस से घरेलू सामग्री बनाने में भी माहिर हो गईं.

इस चूल्हे में खाना बनाने के दौरान लकड़ी जलने पर भी निकलने वाला धुआं महिलाओं के श्वांस तंत्र तक नहीं पहुंचता है. सीमेंट के इस चूल्हे में पाइप लगाए जाते हैं, जिससे धुआं आसपास नहीं फैलकर ऊपर की ओर निकल जाता है. इस धुआं-रहित चूल्हा बनाने के लिए क्रेशर डस्ट या पत्थर चूर्ण, छड़ की जाली, ईंट, सीमेंट, मिट्टी की बनीं पांच चिमनी और एक लकड़ी के फ्रेम की जरूरत पड़ती है.

जानकारी देते हुए भूदेव भक्त बताते हैं मुझे खुशी है कि इस पहल को आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ धुंआ रहित चुल्हों की शौगात भी मिल गयी.

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