विगत चार वर्षों से देश में ऐतिहासिक परिवर्तन देखने को मिला है. केन्द्र में ऐतिहासिक बहुमत की सरकार बनी है. ऐतिहासिक पार्टी अर्थात् कांग्रेस मुक्त भारत लगभग बन चुका है. लोकतंत्र में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा हमेशा रही है और होती ही रहेगी. विपक्षी पार्टी को हराना हर दल या पार्टी का मुख्य लक्ष्य होता है. दलगत राजनीति तब खत्म हो जाती है जब कोई पार्टी बहुमत प्राप्त कर सत्ता में काबिज हो जाती है और वह देश की सरकार होती है किसी मजहब या जाति की नहीं. मगर संविधान के दायरे में रहकर शासन चलाना वास्तविक लोकतंत्र की पहचान होती है.वर्तमान सरकार भी एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के द्धारा चुनी गयी सरकार है, मगर वर्तमान माहौल को गहराई से देखा जाये या समझा जाये तो परोक्ष रुप से राजतंत्रात्मक शासन के गुण प्रकट होते हैं.
सबसे पहला काम योजना आयोग को खत्म कर नीति आयोग बनाया गया. सरकार की नीतियां संसद में क्या बन रही हैं पता नहीं मगर जबसे सरकार बनी है सड़को पर दमन का सिलसिला जारी है. एटी रोमिया स्वकायड यूपी में योगी सरकार द्धारा बनाया गया कुछ दिनों तक भाई बहनों का भी बाहर निकलना मुश्किल हो गया. मगर जब कठुआ और उन्नाव रेप कांड होता है सरकार भी खमोश और एंटी रोमियो पुलिस दस्ता भी लुप्त. भारत दुनियां का सबसे बडा़ लोकतंत्र वाला देश है और लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका तथा प्रेस (मीडिया).
सबसे पहला अटैक मीडिया पर होता है क्योंकि मीडिया लोकतंत्र की आँख और कान होते हैं. पत्रकारों की सुरक्षा पर निगरानी रखने वाली प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संस्था “सीपेजी द्धारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में भ्रष्टाचार कवर करने वाले पत्रकार की जान को सबसे ज्यादा खतरा है. सोशल मीडिया की एक पड़ताल के मुताबिक वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अब तक कुल 20 से ज्यादा पत्रकारों की हत्या हो चुकी है. और 200 से ज्यादा हमले पत्रकारों पर हुए हैं. हिंदूवादी राजनीति पर मुखर नजर रखने वाली पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर गहरी चोट थी. इतना ही नहीं देश का सबसे बडा़ सनसनीखेज बौद्धिक घोटाला व्यापम घोटाले की कवरेज करने गए आजतक के विशेष संवाददाता अक्षय सिंह की संदिग्ध हालत में मौत हो गयी जिसका खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है.
जून 2015 में मध्य प्रदेश में बालाघट जिले में अपहृत पत्रकार संदीप कोठारी को जिंदा जला दिया गया. साल 2015 में ही उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जगेन्द्र सिंह को जिंदा जला दिया गया. पत्रकारों की हत्या लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है. एनडीटीवी पर बैन भी कट्टरता की ओर संकेत देता है. ऐसा नहीं कि इस तानाशही का शिकार सभी वर्ग है. जो सदियों से शोषित और वंचित है, जातिवाद के प्रसव पीड़ा से पीड़ित हैं, सामाजिक घृणा के शिकार हैं वही समाज और वर्ग विशेष आज पुनः अपने अस्तित्व और अपने संवैधानिक अधिकार के लिए चिंतित नजर आ रहा है.
जिस तरह अंबेडकर प्रेम दर्शाकर अंबेडकर विचारधारा को दबाने तथा अंबेडकरवादियों को कुचलने का षड्यंत्र चल रहा है कुछ घटनाओं से इसकी पुष्टि हो जायेगी. 17 जनवरी 2016 पीएचडी स्कॉलर रोहित वेमुला को आत्महत्या करने को मजबूर होना पडा़. गुजरात के ऊँना में 11 जुलाई 2016 को दलित युवकों की सड़क पर बेरहम पिटाई, हरियाणा में दलित परिवार को जिंदा जलाया जाना, भीमा-कोरेगाँव की घटना तथा सबसे ज्यादा चर्चित यूपी का सहारनपुर कांड जहाँ आजतक दहशत के साये में वहाँ के दलित रह रहे हैं. सबसे बडी़ विडंबना ये है कि सवर्ण समूह के दमन का विरोध करने वाले चन्द्रशेखर रावण पर उल्टा रासूका लगाई गयी है और वो अभी तक जेल में बंद हैं.
न्यायपालिका पर भी सरकार की तानाशाही का संकेत तब दिखने लगे जब आजादी के 71 साल बाद देश के न्यायाधीश कोर्ट से बाहर जनता के दरबार में न्याय मांगने आ गये. एससीएसटी एक्ट में बदलाव कहीं न कहीं सरकार की मंसा के अनुरुप ही हुआ माना जा सकता है. विश्वविद्यालयों में एसएसएसटी के शिक्षको के भर्ती का रास्ता लगभग बंद कर दिया है. मेडिकल में पीजी कोर्स में आरक्षण खत्म कर दिया है. और कल ही एक और तानशाही फरमान जारी हुआ है कि बिना किसी परीक्षा के और बिना आरक्षण के 10 महत्वपूर्ण विभागों में संयुक्त सचिव के पदों पर नियुक्ति की जायेगी. चुनाव प्रणाली पर भी सवाल उठने लगे हैं. ईवीएम की विश्वसनीयता पर भी इस शासन में प्रश्न चिन्ह लगना लोकतंत्र के लिए कहीं न कहीं खतरे की घंटी है.
ऐसा लगता है सिकंदर महान की तरह मोदी जी को भी भारत के राज्यों को जीतने का शौक हो गया है. राज्यों की विजय के लिए जिन्ना से लेकर शाहजहाँ, तैमूर से लेकर टीपू सुल्तान, मुहम्मदगोरी से लेकर इस्लाम, ताजमहल से लेकर अल्लाउद्दीन खिलजी तथा पद्मावती से लेकर औरंगजेब को बहुत याद किया गया. मगर देश के हालातों के बारे में, जेठ की धूप की तरह परेशान करती महँगाई के बारे में, स्वास्थ्य और शिक्षा के बारे में, रोजगार के बारे में, खाली हो रहे बैकों के बारे में, भ्रष्टाचार के बारे में, दलितों की वास्तविक स्थिति के बारे में कोई चर्चा नहीं कोई चिंता नहीं. यहाँ तक कि एक सिर के बदले दस पाकिस्तानी सिर लाने के वादे के बदले सैकड़ों जवान हर महीने शहीद हो रहे हैं.
मोदी जी का भारत की सत्ता तथा राज्यों पर विजय प्राप्त करने का सपना सम्राट अशोक की कलिंग पर चढा़ई करने जैसा प्रतीत होता है. अशोक का कलिंग को परास्त करने का लक्ष्य था उसने ये हाँसिल कर तो लिया मगर वो जीत कर भी हार गये. इस विजय से महान सम्राट अशोक का हृदय भी परिवर्तित हो गया. जीतने की अंधी धुन में जन-धन की अपार क्षति और बिलखती जनता के दर्द को वो महसूस नहीं कर सके. जब उसने देखा कि लाखों लोगों की जानें गयी हैं. खून की नदियाँ बह रही हैं, लोग भूख और प्यास से तड़प रहे हैं, विलख रहे हैं, मर रहे हैं. चारों दिशाओं में हाहाकार और अफरातफरी है. बच्चे, बूढें, महिलायें तड़प-तड़पकर मर रही हैं. मवेशियाँ भटक रही हैं. इतना व्याकुल दृष्य देखकर अशोक जीतकर भी हार गया और इस हार ने अशोक को बुद्धतत्व का मार्ग दिखा दिया और कलिंग विजय के बाद बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया. कुछ ऐसे ही हालात इस वक्त मोदी जी के सामने भी हैं. वो राज्यों केा निरंतर जीत तो रहे हैं, मगर इस जीत में कहीं न कहीं जनता हार रही है. राज्यों को फतह करने की होड़ में हम करोड़ों नौजवानों की आशाओं पर पानी फेर गये जिनको सुनहरे सपनें दिखाकर 2014 के चुनावों में भरपूर प्रचार कराया था.
देश के अन्नदाता किसानों की आत्महत्यायें नहीं रोक सके.महँगाई के पहिए को नहीं रोक सके. महिलाओं की इज्जत नहीं बचा सके. वोट बैंक बने देश के दलित/पिछडें/अल्पसंख्यक अपने भविष्य के प्रति डरे और सहमें नजर आ रहे हैं. संविधान बचाओ की गूँज, भारत छोडो़ आंदोलन की याद ताजा कर रहा है. देश के बैंक कैशलैस होने लगे हैं. भ्रष्टाचार, भ्रष्टापाँच की ओर अग्रसर है. ऐसी विषम परिस्थिति देश की इस वक्त है अब देखना ये है कि 2019 तक सम्राट अशोक की तरह मोदी जी का ह्दय परिवर्तन होता है या देश की जनता का.
लेखकः आईपी हृयूमन
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बहुत ही सटीक और तथ्यात्मक विश्लेषण