Tuesday, June 17, 2025
Homeओपीनियनकोटा में कोरोना और लॉकडाउन की ऐसी तैसी

कोटा में कोरोना और लॉकडाउन की ऐसी तैसी

अपने टी. वी. स्क्रीन पर नजर डालिए, कोटा में हजारों छात्र बस पकड़े के लिए उमड़ पड़े हैं, न कोई सोशल डिस्टेंसिंग, न को कर्फ्यू न धारा 144. कर्नाटक के कलबुर्गी में सिद्ध लिंगेश्वर मंदिर में हजारों की भीड़ आप देख चुके हैं। उनके लिए कोई नियम नहीं। हां मामला अगर मुसलमानोंसे जुड़ा होता है या मेहनतकश गरीबों से तो बड़ा मुद्दा बन चुका होता।

पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के लिए कोई नियम नहीं। कार्पोरेट घरानों, फिल्मी सितारों, खेल सितारों, नौकरशाहों और अन्य लोगों के बेटे-बेटियों को कैसे देश लाया गया। यह सब धीरे-धीरे सामने आ रहा है, इसमें से कुछ को तो बिना जांच के सीधे उनके घर भेज दिया गया है। मध्य प्रदेश की स्वास्थ्य सचिव के बेटे और उनकी मां ने तो मध्य प्रदेश के पूरे स्वास्थ्य महकमें के बड़े अधिकारियों को कोरोना के चपेट में ला दिया।

अमीरो के लिए किए गए विशेष इंजताम पर मध्यवर्ग उंगली उठा रहा था और उसे भी खुश करने की कोशिश हो रही है, उसका एक प्रमाण कोटा से 30 हजार भावी डाक्टर-इंजीनियरों को लाने की तैयारी है, जिसमें 8 हजार उत्तर प्रदेश के हैं। इसके उलट आप ने देखा होगा कि एक प्रवासी मजदूर रो-रोकर कह रहा था कि मेरे पिता जी की मौत हो गई है, मां अकेली है, मुझे जाने दीजिए। पुलिस उस पर लाठियां भांज रही थी। एक बूढ़ा प्रवासी मजदूर राशन लेने गया, उसे बुरी तरह पीटा गया।

मुंबई में किस तरह घर जाने के लिए बेताब प्रवासी मजदूरों की पिटाई हुई। ऐसे अनेकों रूला देने वाले दृश्य हैं। सारे नियम, सारे डंडे, सारी गालियां, सारे अपमान, सारे अभाव और सारे दुख मेहनतकश लोगों के लिए।

मेहनकशों की स्थिति देखकर बार-बार मार्क्स के कम्युनिस्ट घोषणा-पत्र का यह कथन याद आ रहा है, मेहनतकशों तुम्हारे खून-पसीने से ही दुनिया का सारा वैभव रचा गया है, ये सारी अट्टालिकाएं तुमने खड़ी की हैं, तुम्हारे की खून-पसीने को निचोड़ कर ये बड़े-बड़े पूंजीपति बने हैं, तुम्हारे की खून-पसीने की कमाई से अमीरजादे विलासिता और अय्याशी करते हैं और उसी का टुकड़ा मध्यमवर्ग पाता है, इसके बदले में अमीरजादों की चाटुकारिता करता और उनकी ओर ही देखता है।

सारी सरकारें इन्हीं अमीरों-पूंजीपतियों की मैनेंजिंग कमेटी की तरह काम करती हैं, जो काम तो उच्च मध्यवर्ग के लिए करती है, कुछ मध्यवर्ग को भी दे देती हैं और बार-बार नाम लेती हैं, मेहनतकश गरीबों का, क्योंकि उनका वोट हासिल करना है और सबसे बड़ी जरूरत उनके श्रम को निचोड़ने की है, क्योंकि मजदूरों का श्रम निचोड़े बिना वैभव और विलासिता की उनकी दुनिया एक दिन भी नहीं टिक सकती। मोदी जी के 6 वर्षों का सारा कार्यकाल यह बताता है कि उनके सिर्फ और सिर्फ दो एजेंडे हैं। पहला कार्पोरेट की जेब भरना और उच्च मध्यवर्ग की खुशहाली अय्याशी एव विलासिता को बनाए रखना और मध्यवर्ग को कुछ टुकड़े फेंक देना और मेहनतकश मजदूरों को देने के नाम हिंदुत्व की चाशनी और मुसलमानों से घृणा करना सीखाना।

मोदी का दूसरा काम है। हिंदू राष्ट्र के नाम पर उच्च जातीय द्विज मर्दों का बहुजनों और महिलाओं पर वर्चस्व कायम रखना। भारत का उच्च मध्यवर्ग, मध्यवर्ग और कार्परेट-पूंजीपतियों का बहुलांश- उच्च जातियों से बना हुआ है। यह ब्राह्मणवाद-पूजीवाद का गठजोड़ हैं, मेहनतकशों का शोषण और उनके प्रति घृणा जिसका बुनियादी लक्षण है।

  • लेखक डॉ. सिद्धार्थ वरिष्ठ पत्रकार हैं।

लोकप्रिय

अन्य खबरें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Skip to content