बुद्ध को मानने वाले देश में एक अनुभव

अपने देश पर गर्व करते हों तो गर्व करने के लिए और अपने देश पर गर्व करवाने के लिए अपने कर्तव्य को भी मानो और उसे निभाओ. आपके देश का नाम पूरी दुनियाँ जाने और कहे कि उस देश के नागरिक अतिथि की मदद करते हैं और अपने देश की शान ऊँची रखते हैं. ऐसे करने में हर नागरिक की भूमिका होती है. एक अनुभव आपके साथ साँझा कर रही हूँ. जापान का ये ओसाका शहर है जिसकी दूरी फ़्लाइट से एक घंटा पैंतीस मिनट्स में तय होती है टोक्यो से. यहाँ के लोग अपनी भाषा जापानी में ही बात करते है. आम लोगों में यहाँ इंग्लिश का चलन न के बराबर है. जैसे ही मैं एर्पॉर्ट से बाहर आयी तो मैंने किसी को मेरे होटेल का पता पूछा कि कैसे पहुँचा जाये.
उन्होंने बताया की ट्रेन या बस लीजिए. ट्रेन के तीन स्टॉप थे और बस का एक तो मैंने Texi लेने के बारे में पूछा तो उसने बताया की Texi इक्स्पेन्सिव है यहाँ. सुनते हुए मेरा ध्यान अपने समान और बताये हुए रास्ते से बस और मेट्रो बदलना चिंता का विषय था फिर भी मुझे लगा कि देखा जाएगा जो होगा. आज तो पूछते हुए ही पहुँचते है. मैंने उनसे पूछा कि बस कहाँ मिलेगी. वह स्वयं मुझे बस स्टॉप तक छोड़ने आया. ऐसी मेहमान नवाजी देखकर मन बाग़ बाग़ हो गया. भारत और जापान के बारे में भी बात की. फिर एक बात कहाँ छुटती. वो थी सेल्फ़ी लेना. झट ली. पहली तस्वीर में Katsutaka जी के साथ.
बस में बैठे तो पता चला कि ये बस होटेल तक नहीं जाएगी. ड्राइवर ने अपने फ़ोन से ऐड्रेस खोजा और बताया कि ये बस ओसाका स्टेशन तक जाएगी फिर वहाँ से दूसर रूट लेना होगा. उन्होंने मुझे रास्ते तक छोड़ा और फिर मुझे तय करना था कि कौन सा ऑप्शन लूँ. रास्ते की जानकारी तो थी नहीं तो मैंने फिर पूछ लिया. जिनसे पूछा वे ग्रूप में थे तीन लड़कियाँ और एक लड़का. उन लोग ने केवल Texi का रास्ता बताया बल्कि 10 minutes की वॉकिंग के साथ मुझे Texi स्टैंड तक लाये. फिर Texi वाले को समझकर मुझे Texi में बैठाया. इतना अपनापन एक अजनबी के साथ मैंने ज़िंदगी में पहली बार देखा.
इतने देशों की यात्रा के अनुभव के साथ इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि ये शायद बुद्ध की देशना हैं. मैं अपने तय स्थान पर पहुँची तो Texi वाले ने न केवल मेरा सामान उतारा बल्कि बुकिंग तक वही खड़ा रहा. और सबसे ज़्यादा कमाल की बात जिसके लिए इस पोस्ट को लिख रही हूँ कि उन्हें मुझसे पैसे लेने से मना कर दिया. मैंने इसकी कल्पना भी नहीं की थी कि एक व्यक्ति अपने पेशे में भी इतना humble और नैतिक हो सकता है. मैंने पूछा तो उनका एक ही जवाब था कि उसने ये सर्विस की है. अवाक हूँ कि आज भी ऐसे व्यक्ति मिलते हैं. और भी विस्तार से लिखूँगी. अभी के लिए इतना ही
 डॉ. कौशल पंवार के फेसबुक वॉल से 

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