मैंने बाबासाहेब के मूवमेंट को समझा और कूद पड़ा- कांशीराम

मैंने गौर करना शुरू किया कि बाबा साहेब का मूवमेन्ट क्या था। 1920-22 से लेकर 1956 तक के मूवमेन्ट का मैंने अध्ययन करना शुरू किया। मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि बाबा साहेब अम्बेडकर का मूवमेन्ट वही था, जो 1892 से लेकर 1922 तक छत्रपति शाहू जी महाराज का मूवमेन्ट था। छत्रपति शाहू जी महाराज ने जो मूवमेन्ट चलाई, ब्राह्मणवाद/मनुवाद का विरोध किया, ब्राह्मणवाद से लोहा लिया, वही बाबा साहेब अम्बेडकर ने किया। छत्रपति शाहू जी महाराज ने भी वही किया जो 1848 से लेकर 1891 तक महात्मा फुले ने किया। अपने-अपने समय में जो महात्मा फुले ने किया, शाहू जी महाराज ने किया और वही अपने समय में बाबा साहेब अम्बेडकर ने किया।

महाराष्ट्र के ये तीन महापुरूषों की मूवमेन्ट 1848 से शुरू हुई और 1956 तक 108 साल लंबा अटूट संघर्ष हुआ, जिसमें कभी कोई तोड़-फोड़ नहीं हुई। ये जो 108 साल का लम्बा अटूट संघर्ष हुआ, उसके बारे में मैं महाराष्ट्र के बारे में सोच रहा था कि उसका रिजल्ट क्या निकला। सबसे बड़ा रिजल्ट (परिणाम) निकला कि जो महात्मा फुले ने अपना कुआँ अछूत लोगों के लिए 1866 में खोला था, जिसकी शुरूआत 1866 में महात्मा फुले ने की थी। वह 20वीं सदी के अन्त होने से पहले गंगाराम काम्बले का होटल खोलकर छत्रपति शाहू जी महाराज ने छुआछूत का अंत करने की कोशिश की थी। उसके बाद वही छुआछूत का अंत करने के लिए 1956 तक बाबा साहेब अम्बेडकर ने कोशिश की। ये सब कोशिश एक ही है। ये मूवमेन्ट एक ही है।

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