कलम शायर की… मिर्ज़ा ग़ालिब  

कौन पूछता है पिंजरें में बंद परिंदो को “ग़ालिब” …. याद वही आते हैं जो उड़ जाते हैं. ये 19वीं सदी में पैदा हुए मिर्ज़ा ग़ालिब का एक कलाम है.

रोज़ाना गूगल अपने डूडल के ज़रिये महान हस्तियों को सम्मानित करता है और इस बार उसने हिंदुस्तान के सबसे मशहूर उर्दू-फारसी जुबां के शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के 220वें जन्मदिन पर उन्हें डूडल के ज़रिये श्रद्धांजलि दी. मिर्ज़ा ग़ालिब का पूरा नाम मिर्जा असद-उल्लाह बेग खान था. उनका जन्म 27 दिसंबर 1797 में अंग्रेजी हुकूमत के वक़्त हुआ था. मिर्ज़ा ग़ालिब, उनीसवीं सदी के एक ऐसे शायर थे जिनके तआरुफ़ के बिना शायरी की हर महफ़िल अधूरी है. आज की सदी के शायर भी इनकी कस्मे लेतें हैं लेकिन इसकी मनाही  ग़ालिब पहले ही कर गए थे. इस पर वो कह गए थे के “तूने क़सम मैकशी की खाई है ग़ालिब, तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है”.  ग़ालिब एक ऐसे शायर थे जिनकी शायरी पढ़ कर पत्थर दिल भी पिघल जाएँ और बेज़ुबान भी वाह-वाह करने लगें. इनकी शान में अगर क़सीदे पढ़े जाएँ तो ज़िन्दगी भी कम पड़ जाए.

मिर्जा गालिब की कविताओं और शायरियों को लोग अपने-अपने तरीके से गाते हैं और बॉलीवुड भी इसमें पीछे नहीं है. मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरियां केवल भारतीय युवाओं को ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लोगों को प्ररेरित करती हैं.  आज भी उनकी हवेली पुरानी दिल्ली में है जहाँ उन्होंने अपना आखरी वक़्त बिताया था. मिर्जा गालिब का इंतकाल  15, फरवरी 1869 में हुआ था और उनका मकबरा दिल्ली के निजामुद्दीन के चौसठ खंभा के पास स्थित है.

गन्धर्व गुलाटी,

 

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