दलितों ने मंदिर में पूजा की तो ‘भगवान’ को ले गए मनुवादी

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संकेतिक चित्रहम लाख एक भारत, श्रेष्ठ भारत कह लें, जाति का जहर न तो भारत को एक होने दे रहा है और न ही श्रेष्ठ बनने देगा। घटना कर्नाटक की है। यहां मंदिर में दलित समाज के लोग घुस गए तो मनुवादी इतने भड़क गए कि भगवान को ही मंदिर से निकाल कर ले गए। घटना 11 नवंबर की है।

प्रदेश की राजधानी बंगलुरु से महज 100 किलोमीटर दूर मंड्या जिला है। यहां के हनाकेरे गांव में कालभैरवेश्वर स्वामी नाम का एक ऐतिहासिक मंदिर है। उत्सव मूर्ति नाम से यहां एक बड़ा कार्यक्रम होता है। गांव के दलित भी इस दौरान इसमें शामिल होना चाहते थे, लेकिन मनुवादी इसकी इजाजत नहीं देते थे। महीने भर तक दलितों और सवर्णों में इस बात को लेकर रस्सा-कस्सी चली। दलित इस कार्यक्रम में और मंदिर में जाने के लिए अड़ गए। सवर्णों के विरोध के बावजूद पूर्व विधायक एम. श्रीनिवास और अधिकारियों ने दलितों को मंदिर में प्रवेश कराया। और पुलिस की सुरक्षा में दलितों ने पहली बार कालभैरवेश्वर स्वामी मंदिर में न सिर्फ प्रवेश किया, बल्कि पूजा अर्चना भी की।

मंदिर में दलितों के प्रवेश पर सवर्ण मनुवादी भड़क गए। पहले उन्होंने मंदिर में लगे नाम पट्टिका को वहां से उखाड़ लिया और फिर भगवान की मूर्ति को मंदिर से बाहर निकाल ले गए। उनका कहना था कि जब दलितों की पूजा के लिए श्री चिक्कम्मा और श्री मंचम्मा देवी का मंदिर बनवाया गया है तो अब दलित श्री कालभैरवेश्वर स्वामी मंदिर में प्रवेश करके हमारी परंपरा कैसे तोड़ सकते हैं। बता दें कि इस गांव में दलितों के लिए दो मंदिर बनाए गए हैं। दलितों को सिर्फ वहीं जाने की इजाजत है।

जातिवाद और सवर्णों द्वारा खुद को श्रेष्ठ समझने का आलम यह है कि उन्होंने साफ कर दिया है कि जब एक बार दलितों को मंदिर में प्रवेश दे दिया गया है तो अब सवर्ण उस मंदिर में प्रवेश नहीं करेंगे। सोचिए, जातीय अहम कितना बड़ा है। जिस देश में आए दिन दलित उत्पीड़न के दर्जनों मामले रोज हो रहे हों, हो सकता है कि वहां अगड़ी जातियों के लिए ऐसे मामले या ऐसी खबरें आम हो, लेकिन जिस दलित समाज पर यह बीतती है, हर रोज वो किस दर्द से गुजरते हैं, यह वही जानते हैं। और ऐसी घटनाओं पर न तो एक भारत-श्रेष्ठ भारत का नारा देने वाले देश के प्रधानमंत्री कोई बड़ा कदम उठाते हैं, न ही सुप्रीम कोर्ट।

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