कुछ लोग जो महामारी में मर न पाएँगे, बुद्ध बन जाएँगे… एक कोरोना संक्रमित पत्रकार की डायरी

घर पर था तो अपना दुःख सबसे बड़ा लग रहा था।

अस्पताल आने पर दुःख इतना दिख रहा कि मुझे अपनी बीमारी की परवाह ख़त्म हो गई।

दूर दूर से प्राण निकालने वाली खांसियों की चीत्कार दीवारों से टकराकर चली आ रही है। मन ही मन बीमार की शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ। बगल के बेड पर कृत्रिम आक्सीजन के सहारे लेटा बीस साल का नौजवान रह रह कर चिहुंक जा रहा। उसके पिता पंखा झलते हुए बेटा बेटा पुकार रहे।

हम दोनों नोएडा की अलग-अलग दिशाओं से आज ही यहाँ भर्ती हुए हैं। नौजवान बेहद निराश था। खाना पानी छोड़ रखा था। उसे लगातार मोटिवेट किया। अब वह सही है। जो कुछ मैं खा रहा, उसे भी खिलवा रहा। पानी यहाँ ऐसे वितरित किया जा रहा है जैसे सामूहिक भोज में बच्चे पानी पानी चिल्लाकर पूछते हैं। मोबाइल रख ख़ाली जग लेकर गेट की तरफ़ हम लोग दौड़ लगाए। आदेश हुआ नीचे रख कर पीछे हट जाओ। दोनों जग भर दिए गए।

कमरे में पंखा नहीं है। गर्मी उमस से बुरा हाल है। घर से मँगवाओ तो लग जाएगा। बीस आए थे, लग गए। डाक्टरनी अभी बोल के गई है। शुक्र मनायिए कि सरकारी बेड पर हूँ। दूसरों को तो ये भी मयस्सर नहीं। सोच कर तसल्ली देता हूँ। बुख़ार क्यों नहीं जा रहा, ये पता करने के लिए कल ब्लड टेस्ट होगा। हम भी यहाँ आकर निश्चिंत भाव से पड़ गया हूँ। जो होगा देखा जाएगा। जीवन मौत के बीच का झीना सा पर्दा यहाँ साक्षात दिखता है। डाक्टर और स्टाफ़ दर्शक दीर्घा में बैठे हैं। मरीज मनोरंजन दे रहा है।

किसी का चीत्कार किसी का मनोरंजन है। कोरोना का ट्वेंटी ट्वेंटी चल रहा है। हम कुछ समय के लिए थर्ड अंपायर बन गया हूँ। हलचल खूब है। कब किसकी क्या भूमिका हो जाए, कुछ नहीं पता। गहरी साँस लेकर मन को उन्मुक्त उदात्त बना छोड़ दिया हूँ। हर स्थिति के लिए तैयार! इस तैयारी से तनाव शेष नहीं रह जाता। फ़िलहाल ऑक्सीजन लगाने की स्थिति नहीं आई है।

ये तो तय है कि बहुत से लोग जो महामारी से बुरी तरह लड़कर जी जाएँगे, बुद्ध बन जाएँगे।


वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया वेबसाइट भड़ास4मीडिया के संस्थापक/संचालक यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से

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