जालियाँवाला बाग जैसा था भागलपुर कांड

वैसे तो पूरे भारत देश में ही सामंतों का शासन है, मगर विहार (बिहार) राज्य इसमें दो कदम आगे है. पूरे देश में भूमिहीन परिवारों की संख्या सबसे ज्यादा विहार में है. विहार राज्य में भूमिहीनों को जमीन देने के चार कार्यक्रम चलाये गये हैं. एक, बासगीत जमीन का परचा देना इसका मतलब जिस जमीन पर भूमिहीन परिवार झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं, उस जमीन का मालिकाना हक गरीबों को देना. भूमिहीन परिवार कहीं सरकारी जमीन पर तो कहीं किसी भूधारी की जमीन पर वर्षों से झोपड़ी बना कर रह रहे हैं. बासगीत जमीन के मालिकाना हक का परचा बेशुमार भूमिहीनों को आजतक नहीं मिला है. दूसरा कार्यक्रम है सरकारी जमीन का परचा. जिस जमीन पर वर्षों से भूमिहीन परिवार दखल कब्जा कर अपने जीने के लिए थोड़ा बहुत अन्न उपजा लिया करते हैं, उन्हें इस श्रेणी में रखा जाता है. इसी क्रम में तीसरे कार्यक्रम विहार भूहदबन्दी अधिनियम  कानून के तहत अतिरिक्त घोषित जमीन जिसका वितरण बाजाप्ता ढोल पीटकर कैम्प लगाकर सूबे के मुख्यमन्त्री, राजस्व मंत्री, कमीश्नर, कलेक्टर किया करते हैं. और चौथा कार्यक्रम है भूदान कानून के तहत अर्जित और विधिवत वितरित की गयी जमीन.
विहार राज्य के भागलपुर जिला में भूमिहीनों के बीच उपरोक्त चारों तरह के भूमि वितरण और उसपर दखल कब्जा को लेकर भीषण समस्या है. भागलपुर के भूमिहीन वर्षों से बासगीत और परती सरकारी भूमि का परचा देने तथा भूहदबन्दी कानून, भूदान कानून के तहत अतिरिक्त घोषित भूमि का परचा  भूमिहीनों को देने के लिए कलक्टर के यहां आवेदन देकर उनके दफ्तर से लेकर कैम्प कोर्ट तक लगातार दौङ लगा रहे थे. जिला कलेक्टर भागलपुर अतिरिक्त भूमि का भूमिहीनों के बीच सरकारी जमीन को वितरण करने तथा पहले से वितरित जमीन पर दखल कब्जा देने का झूठा भरोसा देते रहे. निराश होकर भूमिहीनों ने दिसम्बर 2016 के प्रथम सप्ताह में भागलपुर कलेक्टरी में सरकारी जमीन का परचा देने तथा पहले से बांटी गयी जमीन पर दखल कब्जा देने के लिए धरना दे दिया.
विहार में सरकारी जमीन का हस्र यह है कि बड़े-बड़े भू-धारी सरकारी जमीन पर जबरदस्ती कब्जा किये हुए हैं. और अनुमण्डल के एस.डी.ओ सहित जिला के एडिशनल कलक्टर और कलक्टर तक इस सरकारी जमीन पर से बड़े भू-धारियों को बेदखल कर जरूरतमंद भूमिहीनों के बीच जमीन का वितरण करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. कारण सभी बड़े भू-धारी किसी न किसी राजनीतिक दल के अगुआ या पिछुआ बने हुए रहते हैं. राजनीतिक दल चाहे वे सत्ताधारी पक्ष हो या विपक्ष हो सरकारी जमीन वितरण के सबसे बाधक तत्व बने हुए हैं. हां यही लोग मंचों पर राजनीतिज्ञ बेशर्मी से सरकारी जमीनों का भूमिहीनों के बीच वितरण करने और दखल कब्जा देने का भाषण गला फाड़-फाड़ कर करते रहते हैं.
दिसम्बर 2016 के पहले सप्ताह में मौसम इतना सर्द हो गया कि पारा 12 डिग्री सेल्सियस पर आ गया था. भागलपुर कलेक्टरी में सरकारी जमीन का परचा देने, भूहदबन्दी और भूदान कानून के तहत वितरित जमीन पर दखल कब्जा देने के लिए जीर्ण-शीर्ण कपड़ों में धरणा-प्रदर्शन कर रहे गरीबों की फरियाद सुनने कोई मनहूस पदाधिकारी तक नहीं आया, कलक्टर के खुद आकर उनसे मिलने और उन्हें भरोसा देना तो दूर की बात है. आलम यह है कि विहार में बिना भारी दान दक्षिणा दिये किसी शख्स की एस.पी. या कलक्टर के पद पर पोस्टिंग नहीं होती है. ऐसे धरना प्रदर्शन के मामले में एस.पी.,कलेक्टर सूबे के आका से कार्रवाई का सिग्नल मांगते हैं. भागलपुर के प्रदर्शनकारियों के विरूद्ध नकारात्मक सिग्नल मिलते ही भागलपुर के कलक्टर और एस.डी.ओ. ने  8 दिसम्बर 2016 को बर्बर लाठीचार्ज करवाकर दर्जनों औरतों, वृद्धों और बच्चों को लहू लूहान करवा दिया. सरकारी महकमों के द्वारा सर्द भरे दिन में लाठी चार्ज करके लहू लुहान करवाना जालियाँवाला बाग को दुहरा गया.

भागलपुर जिला सामंतों का गढ़ है. सबके सब सामंत बड़े भू-धारी हैं. इन भू-धारियों की अतिरिक्त भूमि को राजस्व अधिकारियों ने जान पर जोखिम डालकर अतिरिक्त घोषित करके भूमिहीनों के बीच वितरित कर दिया है. जिन गरीबों को भूहदबन्दी कानून के तहत पर्चा मिला है, वे वितरित जमीन पर दखल कब्जा नहीं कर पाये. इसके कई कारण रहे. पहला पर्चाधारियों को जमीन पर विधिवत दखल कब्जा अंचल अधिकारियों ने दिलाया ही नहीं. दूसरा भूहदबन्दी कानून के तहत जमीन सरकारी रेकर्ड में अतिरिक्त घोषित तो हुई, मगर दबंग भूधारियों ने उस जमीन पर से अपना कब्जा छोड़ा ही नहीं. तीसरा भूधारियों ने भूहदबन्दी कानून के तहत अपनी अतिरिक्त घोषित जमीन के आदेश के विरूद्ध उच्च न्यायालय में मनगढंत दावा दिखलाकर रिट दायर कर दिया. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भूहदबन्दी कानून के तहत अतिरिक्त घोषित जमीन के वितरण के सबसे बाधक तत्व होते रहे हैं. वे ऐसे हर रिट में आँख मून्दकर स्टे देकर अपना न्यायिक टैलेन्ट दिखला देते हैं. सरकार सामंतों की और न्यायालय भी सामंतों की. गरीब भूमिहीनों के जिम्में सिर्फ उद्दंड पुलिस की बेगिनती की लाठियां. भूदान आन्दोलन तो साफ तौर पर ठग आन्दोलन साबित हुआ. बड़े भूधारियों ने भूदान आन्दोलन में अपनी जमीन दान देने का नाटक भर किया. तब की बेशर्म कांग्रेस सरकार ने भूदान में भूधारियों से जमीन का दान लिया कागज में, उन जमीनों की सम्पुष्टि भी किया कागज में और उन जमीनों का वितरण भी गरीबों के बीच कर दिया सिर्फ कागज में. कहा जाय तो भूदान आन्दोल शत प्रतिशत बेशर्मों का सरकारी आन्दोलन साबित हुआ.
8 दिसम्बर को भागलपुर कलेक्टरी में यही हुआ.  सरकार द्वारा वितरित भूमि पर दखल कब्जा मांगने के लिए सरकार ने गरीबों के सर और शरीर पर लाठियां बरसा दी. भूखे-प्यासे गरीबों पर लाठियां. औरतों, वृद्धों, बच्चों पर लाठियां. हक मांगने पर लाठियां, हिस्सा मांगने पर लाठियां. बेशर्म सरकार, बेदर्द कार्रवाई. घोषणाओं में लगातार सुशासन का ढोल पीटने वाली इस सामंती सरकार को हक मांगते गरीबों पर लाठियां बरसाते जरा भी शर्म नहीं आई. अगर विहार सरकार के आका के दिल में जरा भी दर्द हो और मन में ईमान हो तो भागलपुर के कलक्टर को तत्काल सस्पेन्ड करके उसके विरूद्ध आरोप तय कर उसे दण्डित करने की कार्रवाई करे. चुनाव के वक्त यही बेशर्म सरकार उन गरीबों के दरवाजे पर चुनाव के समय  वोट मागने जायगी. जैसे हक मांगने पर सरकारी पुलिस ने उनपर लाठियां बरसायी है, वैसे ही ये लोग इस सरकार के दल के लोगों के सर पर वोट मांगते समय जूते बरसाएं तब जाकर उनके दुख और अपमान का हिसाब चुकता होगा. तब हिसाब बराबर होगा.

– लेखक अम्बेडकर मिशन पत्रिका के संपादक हैं।

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