भारत बंद के बाद किस खेमे में है देश का ओबीसी

नई दिल्ली। 06 सितम्बर को भारत बंद के दौरान बाहुबली नेता पप्पू यादव की फफक कर रोती हुई तस्वीर काफी कुछ कहती है. पप्पू यादव बिहार में कोई छोटा नाम नहीं है. एक वक्त में बिहार के कुछ खास क्षेत्रों में पप्पू यादव की धमक थी. पहचाने तो वो पूरे प्रदेश में थे. हम पप्पू यादव की कोई वकालत नहीं कर रहे, लेकिन बाहुबली पप्पू यादव का सामना जब जातिवादी ताकतों से हुआ तो उन्होंने पप्पू यादव को भी नहीं बख्शा. सोचा जा सकता है कि उन लोगों के साथ इन जातिवादियों का क्या व्यवहार होता होगा, जिन्हें संबोधित करने तक से इस सरकार ने पाबंदी लगा रखी है.

मुजफ्फरपुर में पप्पू यादव जहां बंद समर्थक जातिवादियों का निशाना बनें तो बेगूसराय से खगड़िया वाले रास्ते में जातिवादियों ने श्याम रजक को भी नहीं बख्शा. पप्पू यादव ने मार-पीट की बात कही है तो श्याम रजक की गाड़ी उपद्रवियों के निशाने पर आ गई, जिससे उन्हें काफी चोट आई.

इस पूरे मसले पर बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने सही बयान दिया है. चौधरी का कहना है कि अगर बहुजन समाज के लोग सड़क पर उतर आएं तो आंदोलन करने वाले सारे लोग भाग खड़े होंगे. उन्होंने भारत बंद करने वालों को धन्यवाद दिया, जिनके कारण बहुजन एकत्रित होने लगे हैं. लेकिन इस पूरे मामले में दलित समाज का ध्यान ओबीसी समाज की ओर है. ओबीसी समाज को अपनी स्थिति साफ करनी चाहिए कि वह किस खेमें के साथ है. बहुजन सच में एक साथ हैं या फिर वंचित तबके को अपनी लड़ाई अकेले लड़नी होगी?

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