झारखंड दौरे से पहले पीएम मोदी को सीएम हेमंत सोरेन ने घेरा

हेमंत सोरेननई दिल्ली। हरियाणा और जम्मू कश्मीर के बाद झारखंड में भी जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में भले ही तमाम दलों के केंद्र में अभी हरियाणा हो, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा और उसके नेता एवं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखकर झारखंड को उसका बकाया 1 लाख 36 हजार करोड़ रुपये मांगा है।

पीएम नरेंद्र मोदी 2 अक्टूबर को झारखंड के दौरे पर पहुंचेंगे। इसके ठीक पहले सीएम हेमंत सोरेन ने पीएम मोदी के सामने बड़ा मुद्दा उठा दिया है। पीएम मोदी के दौरे से पहले हेमंत सोरन ने केंद्र सरकार पर 1.36 लाख करोड़ के बकाया राशि होने का दावा किया है। इसको लेकर सोरेन ने एक्स पर एक पोस्ट लिखी है। इस पोस्ट में लिखा गया है कि ये पैसा केंद्रीय कोल कंपनियों के अधिकार में है। ये राशि नहीं प्राप्त होने पर झारखंड की तरक्की में रुकावट हो रही है। हेमंत सोरेन का कहना है कि बकाया राशि मिलने के बाद वे इस पैसे से झारखंड को विकास के नए पथ पर ले जा सकेंगे।

हेमंत सोरेन ने अपनी चिट्ठी में लिखा- “झारखंडियों का हक मांगों तो जेल डाल देते हैं, पर अपने हक के लिए हर कुर्बानी मंजूर है। हम भाजपा के सहयोगी राज्यों की तरह स्पेशल स्टेट्स नहीं मांग रहे, ना ही हम कुछ राज्यों की तरह केंद्रीय बजट का बड़ा हिस्सा मांग रहे हैं। हमें बस हमारा हक दे दीजिए, यही मांग है।”

हेमंत सोरेन ने आगे लिखा- “ऐसा विकास जो हमारे पर्यावरण, आदिवासी-मूलवासी एवं हर एक झारखंडी समुदायों के हितों की रक्षा करे। हम शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करेंगे, ताकि हमारे बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो सके। हम अपनी भाषा और संस्कृति का और बेहतर संरक्षण करेंगे, ताकि हमारी पहचान बनी रहे, साथ ही हम हमारे युवाओं को रोजगार के नए आयाम उपलब्ध कराएंगे। उसके आभाव में उन्हें उचित भत्ता देंगे।”

साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी के झारखंड दौरे से ठीक पहले हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। हेमंत सोरेन की यह चिट्ठी झारखंड के राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई है। देखना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी इसका क्या जवाब देते हैं।

झारखंड: फुल फार्म में कल्पना सोरेन, विकास कार्यों का किया शिलान्यास

झारखंड। झारखंड मुक्ति मोर्चा की गांडेय विधानसभा सीट से विधायक और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन लगातार सक्रिय हैं। जनता में पैठ बनाने के लिए वो विधानसभा उपचुनाव के दौरान किये गए वादों को पूरा करने में जुट गई है। कल्पना सोरेन ने 30 सितम्बर को बेंगाबाद महिला डिग्री कॉलेज व बेंगाबाद-लुप्पी मुख्य मार्ग का शिलान्यास किया। इसकी सूचना सोशल मीडिया पर देते हुए कल्पना सोरेन ने लिखा- “बेंगाबाद में महिला डिग्री कॉलेज का शिलान्यास हो गया है। समय कम था, वादे को पूरा करना कठिन। आज आप के भरोसे, मेरी मेहनत व प्रशासन के सहयोग से यह काम पूरा हुआ।”

 

कल्पना सोरेन ने शिलान्यास कार्यक्रम में विकास के अन्य काम भी गिनवाएं। उन्होंने कहा- जबसे वह गांडेय की विधायक बनी हैं। तभी से बेंगाबाद-लुप्पी मुख्य मार्ग सुर्खियों में रहा है। हमने 19.8 किलोमीटर लंबी इस महत्वपूर्ण सड़क की स्वीकृति दिलाई है। इसके निर्माण पर करीब 13 करोड़ रुपए लागत आएगी।

इस सड़क का निर्माण कार्य बेंगाबाद, घाघरा, गेनरो व लुप्पी सहित तीन भागों में बांट कर पूरा किया जाएगा। वहीं, महुवार में महिला डिग्री कॉलेज के भवन व चहारदीवारी निर्माण पर कुल करीब 42 करोड़ रुपए लागत आएगी. कॉलेज का परिसर लगभग 5 एकड़ में होगा। शिलान्यास कार्यक्रम में मंत्री बेबी देवी, हफीजुल हसन, राज्यसभा सांसद डॉ. सरफराज अहमद, गिरिडीह सदर के विधायक सुदिव्य कुमार सोनू सहित विभागीय अधिकारी व ग्रामीण मौजूद थे।

कल्पना सोरेन ने अन्य डिग्री कॉलेजों का जिक्र करते हुए कहा कि इसी प्रकार सिल्ली विधानसभा क्षेत्र में डिग्री कॉलेज के निर्माण के लिए राज्य सरकार ने 59.69 करोड़ की प्रशासनिक स्वीकृति दी है। गांडेय विधानसभा क्षेत्र के बेंगाबाद में महिला कॉलेज की स्थापना के लिए कुल 43.86 करोड़ स्वीकृत किए गए है। इसके अलावा जमशेदपुर को-ऑपरेटिव लॉ कॉलेज के विकास के लिए 31.36 करोड़ की राशि स्वीकृत की गयी है। इसका फैसला गत शुक्रवार को कैबिनेट की बैठक में लिया गया था।

स्कूल शिक्षकों को भी पेंशन

राज्य के गैर सरकारी सहायता प्राप्त (अल्पसंख्यक सहित) प्रारंभिक विद्यालयों के सेवानिवृत्त या मृत शिक्षकों के परिजनों को पेंशन मिलेगी। इसीप्रकार गैर सरकारी सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक एवं अन्य कर्मियों, व सरकारी विद्यालयों के सेवानिवृत्त या मृत शिक्षकों व अन्य कर्मियों के समान सातवां वेतनमान मिलेगा। उसी के अनुसार पेंशन भी दी जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अब IIT धनबाद में पढ़ सकेगा दलित छात्र अतुल कुमार

लखनऊ। उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर का गरीब छात्र अतुल कुमार अब IIT धनबाद में पढ़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 30 सितंबर को दाखिला देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा, ‘प्रतिभाशाली छात्रों को निराश नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे टैलेंट को जाने नहीं दे सकते।’ CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कोर्ट में मौजूद छात्र से कहा, ऑल द बेस्ट, अच्छा करिए।

दरअसल, अतुल को पैसों की तंगी की वजह से एडमिशन नहीं मिल पाया था। वह समय पर फीस के 17,500 रुपए नहीं जुटा पाया था। जब पैसों का इंतजाम हुआ, तो फीस जमा करने का समय निकल चुका था। इसलिए उसे दाखिला नहीं मिला। अतुल ने हार नहीं मानी। उसने पहले झारखंड हाईकोर्ट, फिर मद्रास हाईकोर्ट में अपील की। आखिरी में वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

कोर्ट ने फैसले में छात्र को हॉस्टल सहित सभी सुविधाएं देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि जो छात्र आईआईटी धनबाद में दाखिला ले चुके हैं, उनके दाखिले पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा, बल्कि छात्र को अतिरिक्त सीट पर एडमिशन दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अतुल ने कहा, ‘मेरी जिंदगी वापस पटरी पर लौट आई है।’ CJI ने बहुत अच्छा काम किया। उन्होंने कहा, ‘किसी की भी तरक्की आर्थिक कमी से रुकनी नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरा भविष्य अच्छा है और इस पर असर नहीं पड़ना चाहिए।’छात्र ने पहले एससी-एसटी आयोग में प्रार्थना पत्र दिया, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद छात्र पहले झारखंड हाईकोर्ट और फिर मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा। मद्रास हाईकोर्ट के बाद प्रकरण सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

राजेंद्र के दो बेटे पहले ही आईआईटी की पढ़ाई कर रहे हैं। एक बेटा मोहित कुमार हमीरपुर और दूसरा बेटा रोहित खड़गपुर आईआईटी से इंजीनियरिंग कर रहा है। तीसरे बेटे अतुल ने कानपुर में टेस्ट दिया था। वहीं चौथा बेटा अमित खतौली में पढ़ाई कर रहा है, जबकि माता राजेश देवी गृहिणी हैं।

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भीम आर्मी कार्यकर्ताओं को पीटाः जातिसूचक शब्द कहे और गालियां दीं, दिल्ली पुलिस पर गंभीर आरोप

चोटों का निशान दिल्ली पुलिसकर्मियों की बर्बरता खुद बता रही हैनई दिल्ली। भीम आर्मी कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के मधुविहार थाना पुलिस पर जातीय उत्पीड़न व पिटाई करने के गंभीर आरोप लगाए हैं। वहीं दिल्ली पुलिस आयुक्त से मामले में निष्पक्ष जांच कर आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की है।

आयुक्त को दिए शिकायती पत्र में बताया कि आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हिमांशु वाल्मीकि का 26 सितम्बर को जन्मदिन था। इस दौरान त्रिलोकपुरी व कल्याणपुरी विधानसभा के कार्यकर्ता उनको जन्मदिन की बधाई देने जा रहे थे। रात करीब 9 बजे साईं मंदिर के पास मधु विहार थाने के सिपाहियों ने भीम आर्मी कार्यकर्ता अमन पुत्र राजेंद्र निवासी कल्याणपुरी की बाइक रोक ली। वहीं गाड़ी के कागज मांगे। गाड़ी के कागज डीजी लॉक (मोबाइल पर) में दिखाने के बावजूद पुलिसकर्मी नहीं माने। पुलिसकर्मियों ने भीम आर्मी कार्यकर्ताओं की पिटाई की।

शराब के नशे में थे पुलिसकर्मी

त्रिलोकपुरी निवासी भीम आर्मी कार्यकर्ता अजय कुमार गौतम ने आरोप लगाया है कि अमन बिना हेलमेट के दोपहिया वाहन चला रहा था। साईं मंदिर के पास मधु विहार थाने के पुलिसकर्मी किशन यादव और प्रमोद ने अमन की बाइक रोकी और उनसे पूछताछ करने लगे। पुलिसकर्मियों को अपने साथी से उलझता देख कर विधानसभा अध्यक्ष त्रिलोकपुरी मनोज गौत, राम अभिलाष उतर कर पिकट पर पहुंचे तो देखा कि दोनों पुलिसकर्मी नशे में थे।

अमन ने पुलिसकर्मिकों को जरूरी डॉक्यूमेंट और अपनी आईडी भी दिखाई, लेकिन दोनो पुलिसकर्मियों ने डीजी लॉकर को मानने से इंकार कर दिया। अन्य कार्यकर्ताओं के परिचय देने के बावजूद दोनों पुलिसकर्मियों ने जातिसूचक शब्द कहे और गाली-गलौज करने लगे। वहीं कॉल कर के दूसरी पीसीआर की गाड़ी बुला लीं। विरोध करने पर पुलिसकर्मियों ने सड़क पर हीं लात घूंसे और लाठी से पिटाई की।

सिर फटा, चोटें आईं

मनोज गौतम ने आरोप लगाया है कि पिटाई से राम अभिलाष का सिर फट गया। अजय, अमन व अन्य को अंदरूनी चोट आई हैं। हमें थाने ले जाया गया, इसके बाद घायल कार्यकर्ताओं को अस्पताल भेजा गया, जहां सभी को प्राथमिक उपचार दिया गया, लेकिन हमारा मेडिकल नहीं कराया गया।

थानाधिकारी से पुलिसकर्मियों की शिकायत की गई। इस दौरान थानाधिकारी ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने की बात कही, लेकिन उनका मेडिकल नहीं कराया। रात ज्यादा होने का बहाना बताकर हम लोगों को अगले दिन 12 बजे दिन में थाने बुलाया। जब अगले दिन हम थाने गए तो थानाधिकारी ने यह कहकर हमें वापस भेज दिया कि मामले की फाइल डीसीपी ईस्ट ऑफिस भेज दी है। संबंधित कार्यालय में पता चला कि अधिकारी छुट्टी पर हैं।

थानाधिकारी से नहीं हुआ सम्पर्क

दलित दस्तक ने मामले में पुलिस का पक्ष जानने के लिए मधु विहार थानाधिकारी से सम्पर्क किया। थाने के लैंड लाइन नम्बर 01122720808 फोन करने के बावजूद समाचार लिखे जाने तक संबंधित अधिकारी से सम्पर्क नहीं हो सका।

प्राइड वॉक: अधिकारों के लिए सड़क पर उतरे ट्रांसजेंडर, बोले- हम भी समाज का हिस्सा

लखनऊ। अपने हक के लिए देशभर के लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल एंड ट्रांसजेंडर (LGBT) ने रविवार को प्राइड वॉक की। इस मौके पर उन्होंने नाचते-गाते जुलूस निकाला और अपने हक में जमकर नारेबाजी की। बारिश के बावजूद समलैंगिकों में जबरदस्त उत्साह नजर आया।

प्राइड मार्च लोहिया चौराहे से शुरू होकर 1090 चौराहे पर खत्म हुआ। ट्रांसजेंडर समुदाय को जागरूक करने के लिए मार्च निकाला गया। शिव ट्रांसजेंडर फाउंडेशन और ट्रांसजेंडर गौरव यात्रा समिति की तरफ से इसका आयोजन किया गया। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किन्नर समाज और आम जनमानस में सामंजस्य स्थापित करना है। मार्च में शामिल ट्रांसजेंडरों ने कहा कि हम भी इसी समाज का हिस्सा हैं। हमें गलत नजर से नहीं देखा जाना चाहिए।

 

प्राइड मार्च में लोगों को साफ-सफाई स्वच्छता रखने के लिए प्रेरित किया गया। इस दौरान सेलिब्रिटी एलेक्स मयबेलिना, एकता महेश्वरी, मास्क द रॉक बैंड के कबीर राजपूत, आदित्य अग्रहरी की तरफ से सांस्कृतिक प्रस्तुति दी गई। मार्च के जरिए ट्रांसजेंडर को लेकर समाज में व्याप्त भेदभाव को कम करने की मांग की गई।

आयोजक प्रियंका सिंह रघुवंशी ने कहा कि समाज के बीच में ट्रांसजेंडर समुदाय को जो तिरस्कार की भावना से देखा जाता है। लोग दूरी बनाते हैं, उसको कम करने, प्यार बांटने की जरूरत है। किन्नर कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष सोनम किन्नर राज्य सरकार की तरफ से शामिल हुई। किन्नर सोनम ने कहा- आज पूरा विश्व ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के त्योहार को मना रहा है और राजधानी लखनऊ में भी यह मनाया जा रहा है। आज के इस कार्यक्रम में ट्रांसजेंडर समुदाय की लोग शामिल हुए हैं और आज के दिन अमेरिका के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से भी बधाइयां आई हैं।

LGBTQ प्राइड परेड: 2 हजार से अधिक लोग और कलाकार परेड में होंगे शामिल

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लखनऊ। आदिशिव ट्रांसजेंडर फाउंडेशन की ओर से रविवार को प्राइड परेड का आयोजन किया जाएगा। परेड गोमती नगर के लोहिया पार्क के गेट नंबर 4 से शुरू होकर लखनऊ के 1090 चौराहे तक निकाली जाएगी। इसको लेकर तैयारियां तेजी से चल रही है।

 

योजनाओं का नहीं मिल रहा है लाभ

दलित दस्तक कोआदिशिव ट्रांसजेंडर फाउंडेशन की प्रियंका सिंह रघुवंशी ने बताया कि LGBTQ समुदाय को इस का इंतजार रहता है। प्राइड परेड में 2000 से अधिक ट्रांसजेंडर वर्ग के लोग शामिल होंगे। परेड में शामिल होने के लिए यूपी अलावा महाराष्ट्र और दिल्ली समेत कई राज्यों से लोग आ रहे है। ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए ये परेड काफी अहम है।

इस प्राइड परेड में समुदाय कि मूलभूत अवश्यक्ताओं,स्वास्थ्य सेवाओं,कौशल विकास और शिक्षा पर चर्चा होगी। परेड में विभिन्न कार्यक्रम होंगे, जिसमें किन्नर, समलैंगिक, महिला बाल उत्पीड़न पर चर्चा होगी। कार्यक्रम का उद्देश्य है कि किन्नरों के प्रति समाज में जागरूकता फैलाई जाए। LGBTQ समुदाय के अधिकारों के प्रति सरकार का ध्यान आकर्षित कराना।

मास्क- द रॉक बैंड देंगे प्रस्तुति

प्रियंका रघुवंशी ने बताया कि कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक शामिल होंगे। बड़ी संख्या में सियासी, सामाजिक लोग और कलाकार शामिल होंगे। एलेक्स मयबेलीनाँ, सुशांत दिग्विकार, एकता माहेश्वरी और मास्क द रॉक बैंड अपनी प्रस्तुति देंगे। यात्रा रविवार दोपहर 2:30 बजे लोहिया पार्क से शुरू होगी और 1090 पर आकर कार्यक्रम में बदल जाएगी।

सामाजिक स्वीकृति की लड़ाई

LGBTQ समुदाय से आने वाले लोगों को हमारा समाज अभी भी स्वीकार नहीं कर रहा है। लोगों के नजरिया को बदलने की जरूरत है। किसी सामान्य घर में पैदा होने वाला बच्चा अगर किन्नर होता है तो उसमें उसकी क्या गलती। माता-पिता को चाहिए कि बच्चा किन्नर हो या जैसा भी उसे स्वीकार करें।

करना पड़ता है संघर्ष

रघुवंशी ने बताया कि आज भी हम लोगों को अपने अधिकार हासिल करने के लिए जगह-जगह संघर्ष करना पड़ता है। कागजों में जल्दी हमारा नाम नहीं चढ़ता है। ताली फिल्म ने हमारे समाज के दर्द को बयान किया। मगर कुछ ऐसी भी फिल्में आई जिन्होंने किन्नर समाज की छवि को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया। आवश्यकता है कि LGBTQ समुदाय को लेकर फिल्मों की संख्या बढ़ाई जाए और उसमें सकारात्मक संदेश दिया जाए।

एक साल बाद मिला यूपी SC-ST आयोग को अध्यक्ष, देखिए उपाध्यक्ष से लेकर सदस्यों की पूरी लिस्ट

लखनऊः उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (एससी एसटी) आयोग का शुक्रवार को गठन कर दिया गया है। करीब एक साल बाद पूर्व विधायक बैजनाथ रावत को इसका पूर्णकालिका अध्यक्ष बनाया गया है। इससे पहले समाज कल्याण मंत्री स्वतंत्र प्रभार असीम अरुण के पास अध्यक्ष का अतिरिक्त कार्यभार था।

जानकारी के अनुसार, पूर्व विधायक बेचन राम और जीत सिंह खरवार को आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। बाराबंकी के बैजनाथ रावत अनुसूचित जाति से हैं। भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले रावत तीन बार विधायक, एक बार सांसद और यूपी सरकार में बिजली राज्य मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। उनकी नियुक्ति को अनुसूचित जाति को पार्टी से जोड़ने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है।

गोरखपुर के पूर्व विधायक बेचन राम और सोनभद्र के रहने वाले जीत सिंह खरवार को उपाध्यक्ष बनाने के अलावा अन्य 16 सदस्य भी नामित किए गए हैं। मेरठ के हरेंद्र जाटव और नरेंद्र सिंह खजूरी, बरेली के संजय सिंह और उमेश कठेरिया, कौशाम्बी के जितेंद्र कुमार, लखनऊ के रमेश कुमार तूफानी, सहारनपुर के महिपाल वाल्मीकि को सदस्य बनाया गया है। इसीप्रकार कानपुर के रमेश चंद्र, हमीरपुर के शिव नारायण सोनकर, औरेया की नीरज गौतम, आगरा के दिनेश भारत, आजमगढ़ के तीजाराम, मऊ के विनय राम, गोंडा की अनिता गौतम, भदोही के मिठाई लाल और अंबेडकर नगर की अनिता कमल को भी आयोग के सदस्य के तौर पर मनोनीत किया गया है।

बता दें कि यूपी में दस सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने वाले हैं। इसे देखते हुए सरकार का यह फैसला अहम माना जा रहा है। इससे पहले अभी हाल में ही महिला आयोग के नए अध्यक्ष और सदस्यों के नाम का ऐलान किया गया था।

उम्र बनी थी रोड़ा

प्रदेश सरकार ने 23 अगस्त को आयोग में अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष और 17 सदस्य नियुक्त किए थे। उनकी नियुक्ति के आदेश के बाद पता चला कि अध्यक्ष बैजनाथ रावत, उपाध्यक्ष बेचन राम, सदस्य नरेंद्र सिंह खजजूरी और अजय सिंह कोरी की आयु 65 वर्ष से अधिक है। ऐसे में उनकी नियुक्ति को लेकर संकट खड़ा हो गया था।

बदल दिए नियम

राज्य सरकार के कैबिनेट बाई सर्कुलेशन में अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग अधिनियम 1995 तथा संशोधित अधिनियम 2007 की धारा 5 की उपधारा (1) में संशोधन के प्रस्ताव को स्वीकृति मिल गई थी। इससे उत्तर प्रदेश राज्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जाति आयोग के नवनियुक्त अध्यक्ष बैजनाथ रावत, उपाध्यक्ष बेचन राम, सदस्य नरेंद्र सिंह खजूरी व अजय सिंह कोरी का रास्ता साफ हो गया। इससे पहले सिर्फ 65 वर्ष की उम्र तक का व्यक्ति ही आयोग का अध्यक्ष या अन्य पद पर सदस्य मनोनीत हो सकता था।

आरक्षण को बचाना है तो कांग्रेस व भाजपा को वोट नहीं देना है-मायावती

हरियाणा. फरीदाबाद के पृथला विधानसभा क्षेत्र के गांव बाघौला में शुक्रवार को मायावती की रैली आयोजित हुई। रैली में जनसभा को संबोधित करते हुए मायावती ने इनेलो-बसपा के समर्थन में जनता से वोट की अपील की। इसके साथ ही बसपा सुप्रीमो ने कांग्रेस और भाजपा पर जमकर निशाना साधा।

मजदूर और किसान का नहीं हुआ उत्थान

मायावती आज सुरेंद्र वशिष्ठ के समर्थन में फरीदाबाद के पृथला विधानसभा क्षेत्र में रैली करने पहुंंची। बता दें कि बसपा सुप्रीमो मायावती आज पहली बार फरीदाबाद के पृथला विधानसभा क्षेत्र में रैली कर रही हैं। फरीदाबाद रैली में मंच पर मायावती के साथ इनेलो महासचिव अभय चौटाला और आकाश आनंद भी मौजूद रहे।

मायावती ने भाजपा और कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए कहा कि हमारे देश को आजाद हुए वर्षों हो गए हैं। प्रदेश में तरह-तरह के पार्टियों की सरकार रही हैं। इसके बावजूद भी किसान, मजदूर गरीब, किसान का उत्थान नहीं हो सका। दलित आदिवासी, ओबीसी वर्ग के लोगों को बाबा साहब अंबेडकर के कड़े संघर्ष के बाद सरकारी नौकरी में आरक्षण मिला है। लेकिन विपक्ष आरक्षण खत्म करना चाहता है।

विपक्ष आरक्षण खत्म करना चाहता है

विपक्ष ने दलितों, आदिवासियों और पिछड़े लोगों को काफी नुकसान पहुंचाया है। मायावती ने रैली में जनता को संंबोधित करते हुए कहा कि इस बार हरियाणा में बसपा और इनेलो का गठबंधन प्रदेश में प्रभावी सरकार बनाएगा। मायावती ने जनता को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस और भाजपा आज आरक्षण खत्म करने में लगी हुई है। निशाना साधते हुए मायावती ने कहा कि विदेश जाकर राहुल गांधी आरक्षण खत्म करने की बात कहते हैं। जनता से अपील करते हुए मायावती ने हरियाणा के आगामी आगामी मुख्यमंत्री के तौर पर अभय सिंह चौैटाला के समर्थन में वोट की अपील की।

जातिवादः साहूकार ने दलित छात्र को समय पर नहीं दिये 17 हजार रुपए, टूटा IIT में पढ़ने का सपना!

मुजफ्फरनगर। यूपी के मुजफ्फरनगर निवासी दलित छात्र ने मुश्किल सवालों को हल कर आईआईटी का एग्जाम तो क्रैक कर लिया, लेकिन रुपए की तंगी का सवाल उससे हल नहीं हो पाया. उसे महज 17 हजार रुपयों की व्यवस्था करनी थी, लेकिन एडमिशन की अंतिम तारीख तक रकम नहीं जमा हो पाई, जिसके चलते वह आईआईटी धनबाद में एडमिशन नहीं ले पाया. उसे और परिवार को एडमिशन न होने का बहुत मलाल है. यूनिवर्सिटी से लेकर एससी/एसटी आयोग, झारखंड हाईकोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट तक तीन महीने चक्कर काटने के बाद भी जब कुछ हासिल नहीं हुआ तो छात्र ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जहां से उसे उम्मीद जगी है.

जानिए क्या था मामला

मुजफ्फरनगर की खतौली तहसील से महज 7 किमी दूर टिटोड़ा गांव निवासी दलित राजेंद्र के सबसे छोटे बेटे अतुल ने जेईई क्लियर किया. उसे आईआईटी धनबाद में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की सीट अलॉट हो गई. 19 जून से 24 जून 2024 के बीच फीस के महज 17,500 रुपये जमा कराए जाने थे. परिवार के पास इतनी सी रकम जमा नहीं हो सकी. साहूकार ने वादा तो कर दिया, लेकिन वक्त पर फोन उठाना भी बंद कर दिया. अतुल और उसके पिता ने 17 हजार 500 रुपये की रकम जुटाने के लिए दोस्तों और रिश्तेदारी में फोन घुमाना शुरू कर दिया. ये रकम जुटाने के लिए उन्हें ऐड़ी से चोटी तक के जोर लगाने पड़ गए.

समय से नहीं भर पाया एडमिशन फार्म

जैसे तैसे 17 हजार 500 रुपये की रकम जुटा ली. एडमिशन की लॉस्ट डेट शाम के करीब पौने पांच बजे अतुल ने ऑनलाइन प्रोसेस करना शुरू कर दिया. लेकिन पांच बजने में 4 मिनट बाकी थी, उसी दौरान अचानक वेबसाइट लॉगआउट हो गई. अतुल ने 4 बजकर 57 मिनट पर फिर से ट्राई किया और जल्दी-जल्दी डॉक्यूमेंट अपलोड किए, लेकिन जब बैंक पेमेंट की डिटेल भरने का नंबर आया, तब तक 5 बज चुके थे। 5 बजते ही फीस प्रोसेसिंग की पूरी प्रक्रिया पर विराम लग चुका था.

एडमिशन के लिए शुरू किया संघर्ष

इतना कुछ होने के बाद भी अतुल ने हिम्मत नहीं हारी और उसने यूनिवर्सिटी से फोन और ईमेल के जरिए संपर्क कर पूरा माजरा बताया, लेकिन उन्होंने सारा काम ऑनलाइन और कंप्यूर्टाज्ड होने की बात कहकर हाथ खड़े कर लिए. जिसके बाद अतुल का संघर्ष शुरू हो गया. चूंकि इस बार काउंसलिंग की जिम्मेदारी मद्रास यूनिवर्सिटी की थी तो अतुल ने एससी एसटी आयोग में धनबाद और मद्रास यूनिवर्सिटी को पार्टी बनाते हुए शिकायत की.

सुप्रीम कोर्ट में लगाई अर्जी

मामले में सुनवाई के दौरान मद्रास यूनिवर्सिटी के चेयरमैन तलब हुए, लेकिन उन्होंने भी सारा कार्य कंप्यूटराइड होने की बात कहते हुए मदद करने में असमर्थता जताकर पल्ला झाड़ लिया. उसके बाद अतुल ने पहले झारखंड हाईकोर्ट फिर वहां से भी राहत नहीं मिलने पर मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. पैसों की किल्लत और अन्य कोई सहयोग ना मिलने की वजह से अतुल का संघर्ष और भी कड़ा होता चला गया. इसके बाद अतुल ने मद्रास हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जाने की इच्छा जताई. अनुमति मिलने के बाद अतुल की तरफ से वकील ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई.

मिला मदद का भरोसा

24 सितंबर को इस मामले में सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए आईआईटी मद्रास को नोटिस जारी किया. साथ ही अतुल को हर संभव मदद किए जाने का भरोसा भी दिया.

साहूकार को थी जलन

अतुल के पिता राजेंद्र ने बताया कि उनके साथ धोखा हुआ है. साहूकार को इस बात की जलन है कि दलित के बच्चे इतने पढ़ लिखकर कामयाब कैसे हो सकते हैं. शायद इसी वजह से उसने वक्त पर पैसे नहीं दिए, ताकि अतुल की फीस जमा ना हो और वो एडमिशन से वंचित हो जाए. राजेंद्र कहते हैं कि वो अपने बेटे के सपनों को पूरा करने के लिए अपना घर तक बेचने को तैयार हैं.

दलित छात्र अभिषेक रवि और लोकेन्द्र की संदिग्ध मौत, परिवार ने लगाई इंसाफ की गुहार

एमबीबीएम छात्र लोकेन्द्रसिंह की मौत के मामले में ज्ञापन देने जाते परिजन व लोग।नई दिल्ली। राजस्थान के बाड़मेर निवासी एमबीबीएस छात्र लोकेन्द्र सिंह और झारखंड के इंजीनियरिंग छात्र अभिषेक रवि की संदिग्ध मौत उनके पीछे कई सवाल छोड़ गई है। दोनों के परिजन न्याय पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, लेकिन दोनों ही मामलों में मौत के सही कारणों को अब तक खुलासा नहीं हुआ है।

बताते चलें कि ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के खंडगिरी स्थित आईटीईआर कॉलेज में रांची के इंजीनियरिंग के 19 वर्षीय छात्र अभिषेक रवि की छात्रावास की छत से गिरने के बाद इलाज के दौरान मौत हो गई थी। इसीप्रकार कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस छात्र डॉ. लोकेंद्र कुमार सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में 10 जून 2024 को हॉस्टल  में मौत हो गई। तीन महीने बाद भी कर्नाटक पुलिस प्रशासन द्वारा घटना का खुलासा नहीं किया जा सका है। कुछ इसी तरीके के हालात अभिषेक रवि के मामले में भी हैं।

 

परिजन और मित्कर र रहे न्याय पाने के लिए संघर्ष

दलित दस्तक को लोकेन्द्र के पिता एडवोकेट अमित धनदे ने बताया कि बेटे की मौत को तीन माह गुजर गए हैं, लेकिन कर्नाटक पुलिस मामले का अभी तक खुलासा नहीं कर पाई। हम जानना चाहते है कि आखिर हमारे बेटे के साथ क्या हुआ। जो भी लोग मेरे बेटे की मौत के पीछे है। उनको सख्त सजा मिले। इसके लिए हमने महामहिम राष्ट्रपति, प्रधामंत्री व राज्यपाल व मुख्यमंत्री कर्नाटक के नाम जोधपुर संभागीय आयुक्त को ज्ञापन सौंपा है। वहीं मामले की गहन जांच कराने की मांग की है।

अभिषेक रवि को न्याय दिलाने के लिए रांची में छात्र लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। गत सोमवार को छात्रों ने शहर के आंबेडकर चौक से बिरसा चौक तक कैंडल मार्च निकाला। इस दौरान छात्रों ने राज्य पाल के नाम ज्ञापन भी सौंपा।

हेमंत सोरेन ने एक्स पर की पोस्ट

हेमंत सोरेन ने गत दिनों एक्स पर पोस्ट में कहा-मैं ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी से अनुरोध करता हूं कि ओडिशा के आईटीईआर कॉलेज में रांची के अभिषेक रवि की संदिग्ध मौत की उच्च स्तरीय जांच का आदेश दें और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। इधर, मामले में ओडिशा की राज्यपाल ने भी गहन जांच के आदेश दिए हैं।

दलित समाज का डिप्टी सीएम, सरकारी जमीनों पर भूमिहीनों को कब्जा, बसपा सुप्रीमों की घोषणा से गरमाई हरियाणा की राजनीति

  हरियाणा चुनाव में हर दल और गठबंधन जोर-आजमाइश कर रहा है। चाहे कांग्रेस हो, भाजपा या फिर, जजपा और बसपा-इनेलो गठबंधन… । हरियाणा में हर पार्टी और गठबंधन ने अपनी पूरी ताकत लगा रखी है। इस बीच हरियाणा के जींद में 25 सितंबर को बसपा-इनेलो गंठबंधन की बड़ी रैली हुई। इसमें पहली बार बसपा सुप्रीमो मायावती हरियाणा की चुनावी रैली में उतरीं। इस दौरान बहनजी ने गठबंधन की सरकार बनने पर सरकार कैसी होगी, इस बारे में भी साफ कर दिया। बहनजी ने साफ कर दिया कि गठबंधन की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री इंडियन नेशनल लोकदल के अभय चौटाला बनेंगे, जबकि बसपा की ओर से दलित समाज का डिप्टी सीएम होगा। एक अन्य डिप्टी सीएम पिछड़े या सवर्ण समाज से बनाया जाएगा। बहनजी ने अपने भाषण में मान्यवर कांशीराम को भी याद किया। उन्होंने कहा कि मान्यवर कांशीराम के दौर में हरियाणा की भूमिहीन जनता नारे लगाती थी कि जो जमीन सरकारी है, वह जमीन हमारी है।
  यह अब भी मुद्दा है, लेकिन यह तभी हो पाएगा जब प्रदेश में हमारी सरकार आएगी। बहनजी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में चार बार सत्ता में आने पर हमने बिना किसी किसान की एक इंज जमीन लिये भूमिहीन जरूरतमंदों को सरकारी जमीनों पर कब्जा दिया था। बहनजी की इस घोषणा के बाद हरियाणा की राजनीति गरमा गई है। जिस तरह गठबंधन के पक्ष में समर्थकों का जनसैलाब उमड़ा, उससे साफ है कि बसपा-इनेलो गठबंधन मजबूत स्थिति में है। दोनों दलों के बीच तीसरी बार गठबंधन हो रहा है। पहली बार गठबंधन 1996 में हुआ था। बता दें कि हरियाणा विधानसभा में 90 सीटे हैं। इसमें 53 सीटों पर इंडियन नेशनल लोकदल और 37 सीटों पर बसपा चुनाव मैदान में है। यह गठबंधन इस बार प्रदेश की राजनीति में कितनी मजबूत बन कर उभरेगा। यह आठ अक्तूबर को चुनावी नतीजे बताएंगे।

मायावती का योगी से सवाल- दुकानों पर नाम लिखवाने से क्या मिलावट खत्म होगी?

लखनऊ। बसपा अध्यक्ष मायावती ने योगी सरकार के दुकानों पर नेम प्लेट वाले फैसले पर आपत्ति जताई। X पर लिखा- यूपी सरकार द्वारा होटल, रेस्तरां, ढाबों के मालिक, मैनेजर का नाम-पता के साथ ही कैमरा लगाना अनिवार्य करने की घोषणा, कावंड़ यात्रा के दौरान की कार्रवाई की तरह ही फिर से काफी चर्चाओं में है। यह सब खाद्य सुरक्षा हेतु कम और जनता का ध्यान बांटने की चुनावी राजनीति है।

मायावती ने योगी सरकार से पूछा- वैसे तो खासकर खाद्य पदार्थों में मिलावट आदि को लेकर पहले से ही काफी सख्त कानून मौजूद हैं। फिर भी सरकारी लापरवाही/मिलीभगत से मिलावट का बाजार हर तरफ गर्म है। किन्तु अब दुकानों पर लोगों के नाम जबरदस्ती लिखवा देने आदि से क्या मिलावट का काला धंधा खत्म हो जाएगा?

मायावती ने तिरुपति मंदिर के प्रसाद का मुद्दा भी उठाया

बसपा सुप्रीमों ने कहा- वैसे भी तिरुपति मन्दिर में ’प्रसादम’ के लड्डू में चर्बी की मिलावट की खबरों ने देश भर में लोगों को काफी दुखी कर रखा है। इसको लेकर भी राजनीति जारी है। धर्म की आड़ में राजनीति के बाद अब लोगों की आस्था से ऐसे घृणित खिलवाड़ का असली दोषी कौन? यह चिन्तन जरूरी।

योगी ने दिए थे आदेश

उत्तर प्रदेश में सभी खाने-पीने की दुकान, ढाबे, होटल और रेस्टॉरेंट्स पर अब मालिक और मैनेजर का नाम लिखना अनिवार्य कर दिया गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खान-पान की वस्तुओं में मानव अपशिष्ट/गंदी चीजों की मिलावट करने वालों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। हाल ही में सामने आई विभिन्न घटनाओं के मद्देनजर यह आदेश जारी किया गया है।

मुख्यमंत्री योगी ने स्पष्ट किया कि जूस, दाल और रोटी जैसी खान-पान की वस्तुओं में मानव अपशिष्ट मिलाना वीभत्स, यह सब स्वीकार नहीं है। मुख्यमंत्री के निर्देश के अनुसार ऐसे ढाबों/रेस्टोरेंट आदि खान-पान के प्रतिष्ठानों की सघन जांच होगी। हर कर्मचारी का पुलिस वेरिफिकेशन किया जाएगा। खान-पान की चीज़ों की शुद्धता-पवित्रता सुनिश्चित करने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम में आवश्यक संशोधन के निर्देश। दिए। इसके पश्चात यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इसके जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उपरोक्त सवाल पूछा।

कांग्रेस और भाजपा आरक्षण काे खत्म करने में लगी हुई हैं: मायावती

जींद। “कांग्रेस और भाजपा आरक्षण को खत्म करने में लगी हुईं हैं। आरक्षण को बचाना है तो इन दोनों पार्टियों को वोट नहीं देना।” बसपा अध्यक्ष मायावती  ने यह बातें हरियाणा में कही। जींद के उचाना में बुधवार को पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल की 111वीं जयंती पर इनेलो ने रैली की। रैली में पूर्व सीएम मायावती और इनेलो सुप्रीमो व पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला पहुंचे।

इनेलो की इस रैली में भीड़ उमड़ी। जिससे जींद-पटियाला हाईवे पर लंबा जाम लगा। हरियाणा में इस बार बसपा और इनेलो का गठबंधन है। 90 सदस्यों वाली विधानसभा में इनेलो 53 और बसपा 37 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

हरियाणा में अभी भी कोटा सीटें खालीं

रैली में मायावती ने कहा कि हरियाणा में अभी भी कोटा सीटें खाली हैं। ये सरकारें कोटा पूरा क्यों नहीं करती, ताकि ये लोग इसे भूल जाएं और इनकी नौकरियों को सामान्य को दे सकें। इन वर्गों के मसीहा भीमराव अंबेडकर को भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया था। उन्हें ये सम्मान पहले ही दिया जाना चाहिए था, इसके लिए कांग्रेस कसूरवार है। इससे इनकी मानसिकता साफ झलकती है।

मायावती ने कहा कि हरियाणा में भी विरोधी पार्टियों की सरकारों में दलित, आदिवासियों, मुस्लिम, मजदूरों व किसानों का पूर्ण रूप से विकास व उत्थान नहीं हो सका। सरकारों की गलत नीतियों को और अजमाने की जरूरत नहीं है। आरक्षण काे कांग्रेस और भाजपा कमजोर करने व खत्म करने में लगी हुई हैं।

अभय चौटाला होंगे मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम मायावती ने कहा- सरकार बनने पर गठबंधन की ओर से अभय चौटाला को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। एक डिप्टी सीएम बीएसपी की ओर से, एक डिप्टी सीएम अन्य पिछड़े वर्ग समाज से बनाया जाएगा। ये डिप्टी सीएम कौन होंगे, इसका फैसला नतीजा आने के बाद लिया जाएगा।

किसानों को हमने कई सुविधाएं दीं

मायावती ने कहा कि किसानों को हमने कई सुविधाएं दीं। यूपी में हमने अपने समय में गन्ने का रेट इतना दिया कि आज तक किसी ने नहीं दिया। फसलों का उचित दाम सही समय पर हमने दिया। उत्तर प्रदेश में पहले भर्तियों में रिश्वत चलती थी, लेकिन मैने कहा कि रिश्वत नहीं चलेगी। इससे पश्चिमी यूपी में अन्य समाज के लोग भर्ती हुए, एससी, एसटी के लोग भर्ती हुए और बड़े पैमाने पर पश्चिमी यूपी से जाट भी भर्ती किए गए।

उत्तर प्रदेश में हमने बेहतरीन सरकार दी है। हरियाणा के पिछड़े वर्गों में ऐसे ही विकास चाहते हैं तो आप लोगों को भी उत्तर प्रदेश की तरह ही सरकार बनानी होगी। उन्होंने कहा कि केंद्र की गलत आर्थिक नीतियों के कारण बेरोजगारी व महंगाई काफी बढ़ रही है। इस मामले में हमारी पार्टी केंद्र व राज्य सरकारों से हर स्तर पर ऐसी नीति बनाने की मांग करती आ रही है, ताकि पिछड़े वर्ग का विकास हो सके। सत्ता में आ जाने के बाद ये पार्टियां गरीब की समस्याओं को दूर करने के लिए काम नहीं करती, जबकि धन्ना सेठों के लिए नीतियां बनाती हैं।

राष्ट्रीय शोक घोषित नहीं किया

कांशीराम के देहांत के बाद कांग्रेस सरकार ने एक दिन का भी राष्ट्रीय शोक घोषित नहीं किया था। महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण की बात कही गई है, उसमें एससी व एसटी में अलग से कोई भी आरक्षण नहीं दिया गया। जो नए कानून बने हैं, उस पर भी केंद्र व राज्य की सरकारें सही में अमल नहीं कर पा रही हैं। इससे एससी/एसटी का शोषण करने वालों का मनोबल बढ़ रहा है।

कांग्रेस व बीजेपी कंपनी को वोट नहीं देना

मायावती बोलीं- अपना आरक्षण बचाना है तो कांग्रेस व बीजेपी कंपनी को वोट नहीं देना है। जो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर बोलने के लिए तैयार नहीं हैं। आपको इस चुनाव में विरोधी पार्टियों को सत्ता में आने से रोकना है, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पक्ष में है। आपको वोट बीएसपी व इनेलो को ही देना है। ताकि सत्ता में आकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कुछ अंकुश लगाया जा सके। गठबंधन की सरकार बनती है तो इसे लागू नहीं होने देंगे।

अभय चौटाला बोले- सरकार बनने पर पेंशन बढ़ाएंगे

अभय चौटाला ने कहा कि 35 साल पहले चौधरी देवीलाल ने 100 रुपए पेंशन बढ़ाई थी, वे 100 रुपए आज के 10 हजार के बराबर है। इस रीत को ओमप्रकाश चौटाला ने बढ़ाया था। 

इस पेंशन को हम आगे बढ़ाने का काम करेंगे। 2 लाख से ज्यादा सरकारी पद खाली पड़े हैं। गांवों से लोग विदेश चले गए, हम हर गांव से पढ़े लिखे को नौकरी देने का काम करेंगे। जब तक युवक को नौकरी नहीं लग जाएगी, तब तक उसे 2100 रुपए का बेरोजगार भत्ता दिया जाएगा।

कर्नाटक कांग्रेस कार्यालय के बाहर प्रदर्शन कर रही महिला बोली-“गुंडे हड़पना चाहते है जमीन; दलित हूं, इसलिए कोई नहीं कर रहा मदद”

बेंगलुरु। कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु निवासी दलित महिला चेतना कुमारी पी पिछले 22 दिनों से उत्पीड़न और दुर्व्यहार के खिलाफ कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन कर रही हैं। चेतना का दावा है कि उसे और उसके बच्चों को सवर्ण गौड़ा समुदाय के लोगों द्वारा डराया-धमकाया जा रहा है। दलित दस्तक को चेतना ने बताया कि उनकी शहर के देवसंद्रा इलाके में रम्मया हॉस्पिटल के पास पुश्तैनी जमीन है। मेरे पिता ने इस जमीन को 60 साल पहले खरीदा था। अब यह पॉश कॉमर्शियल इलाका है और मेरी जमीन की कीमत करीब 20 करोड़ है। इस जमीन को गौड़ा समाज के कुछ लोग जबरन कब्जा करना चाहते है। इसको लेकर आरोपी उसके परिवार को लगातार परेशान कर रहे हैं।

चेतना का आरोप, उप मुख्यमंत्री के करीबी है आरोपी

चेतना का कहना है कि पुलिस, नौकरशाहों और राजनेताओं से मदद के लिए कई अपीलों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। आरोपियों की सिस्टम में गहरी पैठ के कारण उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। आरोपी आए दिन उसके साथ गुंडागर्दी करते है और धमकाते है। पुलिस भी उनसे मिली हुई है।
चेतना ने आरोप लगाया कि कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार उत्पीड़न में शामिल अपने समुदाय के सदस्यों को बचा रहे है। आरोपियों का बैंगलोर के कुख्यात डॉन कोथवाल रामचंद्र के साथ पुराना संबंध है। शिवकुमार भी उसी आपराधिक नेटवर्क से जुड़े थे। चेतना ने कहा- ” जमीन छोड़ने के लिए  लगातार धमकियां दी जा रही हैं। अगर मुझे या मेरे बच्चों को कुछ भी होता है, तो डी. के. शिवकुमार 100 प्रतिशत जिम्मेदार होंगे।”

पीछे नहीं हटूंगी, लडूंगी

चेतना ने पीछे हटने से इनकार किया हैं। धमकी के बावजूद अपनी जमीन नहीं छोड़ने की कसम खाई हैं। उन्होंने कहा- “मैं दलित हो सकती हूँ, लेकिन मैं मूर्ख नहीं हूँ। मुझे अपने अधिकार पता हैं और मैं चुप नहीं रहूँगी।”

केपीसीसी कार्यालय के बाहर बनाती है प्रेरक वीडियो

हर दिन, केपीसीसी कार्यालय के बाहर बैठकर चेतना कुमारी वीडियो रिकॉर्ड करती हैं, जिसमें वे सरकार से न्याय करने का आग्रह करती हैं। अपने समुदाय से सच्चाई की लड़ाई में उनका साथ देने की अपील करती हैं। चेतना ने यह भी कहा कि शिक्षित लोग उत्पीड़न के खिलाफ चुप क्यों रहते हैं? हमें पीटा जा सकता है।  यहाँ तक मार भी जा सकता है, लेकिन हमें आवाज उठानी चाहिए।

दलित ही अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हुए

चेतना ने दलित समुदाय से एकजुट होने, लड़ने और अपने अधिकारों का दावा करने की अपील की है।उन्होंने कहा- “वह दलित ही थे जो अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हुए। अब समय आ गया है कि हम जातीय उत्पीड़न के खिलाफ भी ऐसा ही करें। 5,000 साल पुरानी जातीय मानसिकता पर काबू पाना आसान नहीं होगा। हमारा दुश्मन जिद्दी है और उससे लड़ने के लिए हमें दोगुना जिद्दी होना होगा।”

UPSC अभ्यर्थी दीपक मीणा की मौत के मामले में नया मोड़, विकास दिव्यकीर्ती के कोचिंग की सफाई

नई दिल्ली। यूपीएससी और सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रहे आदिवासी छात्र दीपक मीणा की संदिग्ध मौत मामले में विकास दिव्यकीर्ति के दृष्टि आईएएस कोचिंग संस्थान ने लिखित सफाई जारी की है। दृष्टि ने इस मामले में संस्थान की किसी भी तरीके की जिम्मेदारी और भूमिका से इंकार किया है। दूसरी ओर, दिल्ली युनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर और आदिवासी समाज के डॉ. जितेन्द्र मीणा ने इस मामले में दृष्टि प्रबंधन की लापरवाही को लेकर निशाना साधा है।

 जानिए क्या था मामला

दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में एक सुनसान जगह पर झाडि़यों में यूपीएससी की मुख्य परीक्षा देने की तैयारी में जुटे दीपक मीणा का शव पेड़ से लटका मिला था। पुलिस को घटनास्थल से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है। बताया जा रहा है कि वह गत 11 सितंबर से गायब था। परिवारवालों ने 14 सितंबर को इस संबंध में मुखर्जी नगर थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। 10 दिन बाद 22 सितम्बर को दीपक का शव मिला था। इस मामले में परिजनों एवं दलित नेताओं व एक्टिविस्टों ने हत्या की आशंका जताते हुए दिल्ली पुलिस से मामले की जांच की मांग की है। छात्र दीपक मीणा की संदिग्ध मौत के मामले में यूपीएससी की तैयारी कर रहे छात्रों ने मंगलवार शाम को नेहरू विहार से मुखर्जी नगर के बत्रा सिनेमा तक कैण्डल मार्च निकाला।

इस संबंध में दिल्ली युनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर जितेन्द्र मीणा के दृष्णि कोचिंग की लापरवाही पर सवाल उठाने के बाद दृष्टि कोचिंग ने सफाई दी है। विकास दिव्यकीर्ति के संस्थान दृष्टि कोचिंग ने एक बयान जारी कर लिखा-
  • हम सिविल सेवा परीक्षा के अभ्यर्थी दीपक कुमार मीणा के असामयिक निधन पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये हम इस प्रसंग से जुड़े प्रमुख तख्य प्रकाशित करना चाहते हैं जो कि निलिखित हैं।
  • दीपक कुमार मीणा मुख्य परीक्षा 2024 की तैयारी के लिये 10 जुलाई 2024 से हमारे साथ जुड़े थे।
  • 10 सितंबर तक लाइब्रेरी में आकर पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंने तैयारी के लिये बहुत प्रभावशाली नोट्स बनाए थे। जुलाई और अगस्त में उन्होंने कई टेस्ट दिये थे। उन्हें प्रत्येक टेस्ट में अच्छे अंक मिले थे। पहला प्रयास होने के बावजूद उनकी तैयारी काफी अच्छी चाल रही थी। बहुत संभावना थी कि उनका चयन पहले ही प्रयास में हो जाएगा। उन्हें भी खुद पर इतना भरोसा था।
  • 11 सितंबर की सुबह वे अपने पीजी के साथियों के साथ लाइब्रेरी नहीं आए। दोस्तों ने पूछा तो उन्होंने कहा कि बाद में आएंगे, लेकिन उसके बाद से उनसे कोई संपर्क नहीं हुआ।
  • 13 सितंबर को दीपक के रूममेट ने हमारी टीम को बताया कि दीपक 1 तारीख से पीजी नहीं लौटे और फोन भी नहीं उठा रहे हैं। सूचना मिलते ही हमारी टीम कोऑर्डिनेटर ने दीपक के नंबर पर कई बार फोन किया, लेकिन फोन नहीं उठा। इसके तुरंत बाद हमारी टीम द्वारा दीपक के परिवार को सूचना दी गई। वे भी इस बात से परेशान थे कि दो दिनों से दीपक से संपर्क नहीं हो पा रहा है।
  • अगले दिन (14 सितंबर को दीपक के परिवार जन दिल्ली आए और उनके द्वारा पुलिस में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई गई। इस समय तक दीपक का फोन स्विच ऑफ हो चुका था।
  • 14 सितंबर में इस मामले की जाँच दिल्ली पुलिस के हाथ में है। 15 सितंबर को दीपक के परिवार की उपस्थिति में हमारी टीम ने पुलिस की लाइब्रेरी की सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराई। दीपक के मित्रों व परिचितों से भी पूछताछ की गई। आस-पास के कई अन्य स्थानों से अधिकारियों ने फुटेज एकत्रित की, पर सभी प्रवासों के बाद भी कोई ठोस सुराग नहीं मिला।
  • आखिरी उम्मीद यह थी कि 20 सितंबर की शुरू होने वाली मुख्य परीक्षा में शामिल होने के लिये दीपक अपने परीक्षा केंद्र पर पहुंचेगे। पुलिस की टीम और परिवार के सदस्य वहाँ मौजूद थे पर दीपक वहाँ नहीं पहुँचे। उसके बाद पुलिस टीम ने उनके फोन की आखिरी लोकेशन के आधार पर नजदीकी इलाकों में खोज की तो मुखर्जी नगर से सटे दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रावास के अंदर झाडि़यों में उनका शव मिला।
  • दीपक कुमार मीणा ने कभी भी किसी तरह के तनाव या दबाव की शिकायत अपने मेटर्स से नहीं की। उनके मेंटर्स और मित्रों की राय में दीपक अंतर्मुखी विद्यार्थी थे। किसी के साथ उनका विवाद वा झगड़ा होने की संभावना नहीं के बराबर थी।

दृष्टि की सफाई पर उठे सवाल

इस मामले में आवाज उठाने वाले एक्टिविस्ट व प्रोफेसर जितेंद्र मीणा ने दलित दस्तक से कहा कि, दृष्टि आईएएस प्रबंधन अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहता है। दृष्टि प्रबंधन ने ही छात्र दीपक मीणा को मेंटरशिप के लिए दिल्ली बुलाया था। यह संस्थान की जिम्मेदारी थी कि अगर छात्र क्लास व लाइब्रेरी में कई दिनों से नहीं आ रहा था तो इसकी जांच करता। समय रहते पुलिस को छात्र की गुमशुदगी की सूचना देता। पूरे मामले में संस्थान द्वारा ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। संस्थान की भूमिका की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार

इस मामले की जांच में जुटी पुलिस ने बताया कि जिस जगह पर दीपक शव मिला है, वह दीपक के इंस्टीट्यूट की लाइब्रेरी से कुछ ही दूरी पर है। पुलिस ने शनिवार को पोस्टमॉर्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया था। वहीं विसरा जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा गया है। अभी तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं आई है। रिपोर्ट आने के बाद मौत के सही कारणों का पता चल सकेगा।

पढ़ाई में होशियार था दीपक

मृतक छात्र के पिता चंदूलाल ने बताया कि दीपक ने यूपीएससी का ऑनलाइन कोर्स लेकर जयपुर में रहकर इसी साल प्री एग्जाम पास किया था। इंस्टीट्यूट ने मेंस की तैयारी के लिए दिल्ली बुलाया था। दीपक जुलाई महीने से दिल्ली स्थित मुखर्जी नगर में पीजी में रहकर कोचिंग में पढ़ाई कर रहा था।

पूना पैकट: दलितों से छिना पृथक निर्वाचन का अधिकार

भारतीय हिन्दू समाज में जाति को आधारशिला माना गया है. इस में श्रेणीबद्ध असमानता के ढांचे में अछूत सबसे निचले स्तर पर हैं, जिन्हें 1935 तक सरकारी तौर पर ‘डिप्रेस्ड क्लासेज’ कहा जाता था. गांधीजी ने उन्हें ‘हरिजन’ के नाम से पुरस्कृत किया था, जिसे अधिकतर अछूतों ने स्वीकार नहीं किया था. अब उन्होंने अपने लिए ‘दलित’ नाम स्वयं चुना है जो उनकी पददलित स्थिति का परिचायक है. वर्तमान में वे भारत की कुल आबादी का लगभग छठा भाग (16.20 %) तथा कुल हिन्दू आबादी का पांचवा भाग (20.13 %) हैं. अछूत सदियों से हिन्दू समाज में सभी प्रकार के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक व शैक्षिक अधिकारों से वंचित रहे हैं और काफी हद तक आज भी हैं. दलित कई प्रकार की वंचनाओं एवं निर्योग्यताओं को झेलते रहे हैं. उनका हिन्दू समाज एवं राजनीति में बराबरी का दर्जा पाने के संघर्ष का एक लम्बा इतिहास रहा है. जब श्री. ई. एस. मान्टेग्यु, सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर इंडिया, ने पार्लियामेंट में 1917 में यह महत्वपूर्ण घोषणा की कि ‘”अंग्रेजी सरकार का अंतिम लक्ष्य भारत को डोमिनियन स्टेट्स देना है तो दलितों ने बम्बई में दो मीटिंगें कर के अपना मांग पत्र वाइसराय तथा भारत भ्रमण पर भारत आये सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट फॉर इंडिया को दिया. परिणामस्वरूप निम्न जातियों को विभिन्न प्रान्तों में अपनी समस्यायों को 1919 के भारतीय संवैधानिक सुधारों के पूर्व भ्रमण कर रहे कमिशन को पेश करने का मौका मिला. तदोपरांत विभिन्न कमिशनों, कांफ्रेंसों एवं कौंसिलों का एक लम्बा एवं जटिल सिलसिला चला. सन 1918 में मान्टेग्यु चैमस्फोर्ड रिपोर्ट के बाद 1924 में मद्दीमान कमेटी रिपोर्ट आई जिसमें कौंसलों में डिप्रेस्ड क्लासेज के अति अल्प प्रतिनिधित्व और उसे बढ़ाने के उपायों के बारे में बात कही गयी. साईमन कमीशन (1928) ने स्वीकार किया कि डिप्रेस्ड क्लासेज को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए. सन 1930 से 1932 एक लन्दन में तीन गोलमेज़ कान्फ्रेंसें हुईं जिन में अन्य अल्पसंख्यकों के साथ साथ दलितों के भी भारत के भावी संविधान के निर्माण में अपना मत देने के अधिकार को मान्यता मिली. यह एक ऐतिहासिक एवं निर्णयकारी परिघटना थी. इन गोलमेज़ कांफ्रेंसों में डॉ. बी. आर. आंबेडकर तथा राव बहादुर आर. श्रीनिवासन द्वारा दलितों के प्रभावकारी प्रतिनिधित्व एवं ज़ोरदार प्रस्तुति के कारण 17 अगस्त, 1932 को ब्रिटिश सरकार द्वारा घोषित ‘प्रधानमंत्री अवार्ड’ में दलितों को पृथक निर्वाचन का स्वतन्त्र राजनीतिक अधिकार मिला. इस अवार्ड से दलितों को आरक्षित सीटों पर पृथक निर्वाचन द्वारा अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने का अधिकार मिला और साथ ही सामान्य जाति के निर्वाचन क्षेत्रों में सवर्णों को चुनने हेतु दो वोट का अधिकार भी प्राप्त हुआ. इस प्रकार भारत के इतिहास में अछूतों को पहली वार राजनीतिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हुआ जो उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकता था.
उक्त अवार्ड द्वारा दलितों को गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट,1919 में अल्प संख्यकों के रूप में मिली मान्यता के आधार पर अन्य अल्पसंख्यकों – मुसलमानों, सिक्खों, ऐंग्लो इंडियनज तथा कुछ अन्य के साथ साथ पृथक निर्वाचन के रूप में प्रांतीय विधायिकाएं एवं केन्द्रीय एसेम्बली हेतु अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने का अधिकार मिला तथा उन सभी के लिए सीटों की संख्य निश्चित की गयी. इसमें अछूतों के लिए 78 सीटें विशेष निर्वाचन क्षेत्रों के रूप में आरक्षित की गईं. गाँधी जी ने उक्त अवार्ड की घोषणा होने पर यरवदा (पूना) जेल में 18 अगस्त, 1932 को दलितों को मिले पृथक निर्वाचन के अधिकार के विरोध में 20 सितम्बर, 1932 से आमरण अनशन करने की घोषणा कर दी. गाँधी जी का मत था कि इससे अछूत हिन्दू समाज से अलग हो जायेंगे जिससे हिन्दू समाज व हिन्दू धर्म विघटित हो जायेगा. यह ज्ञातव्य है कि उन्होंने मुसलमानों, सिक्खों व ऐंग्लो- इंडियनज को मिले उसी अधिकार का कोई विरोध नहीं किया था. गाँधी जी ने इस अंदेशे को लेकर 18 अगस्त, 1932 को तत्कालीन ब्रिटिश प्रधान मंत्री, रेम्ज़े मैकडोनाल्ड को एक पत्र भेज कर दलितों को दिए गए पृथक निर्वाचन के अधिकार को समाप्त करके संयुक्त मताधिकार की व्यवस्था करने तथा हिन्दू समाज को विघटन से बचाने की अपील की. इसके उत्तर में ब्रिटिश प्रधान मंत्री ने अपने पत्र दिनांकित 8 सितम्बर, 1932 में अंकित किया.” ब्रिटिश सरकार की योजना के अंतर्गत दलित वर्ग हिन्दू समाज के अंग बने रहेंगे और वे हिन्दू निर्वाचन के लिए समान रूप से मतदान करेंगे, परन्तु ऐसी व्यवस्था प्रथम 20 वर्षों तक रहेगी तथा हिन्दू समाज का अंग रहते हुए उनके लिए सीमित संख्या में विशेष निर्वाचन क्षेत्र होंगे ताकि उनके अधिकारों और हितों की रक्षा हो सके. वर्तमान स्थिति में ऐसा करना नितांत आवश्यक हो गया है. जहाँ जहाँ विशेष निर्वाचन क्षेत्र होंगे वहां वहां सामान्य हिन्दुओं के निर्वाचन क्षेत्रों में दलित वर्गों को मत देने से वंचित नहीं किया जायेगा. इस प्रकार दलितों के लिए दो मतों का अधिकार होगा – एक विशेष निर्वाचन क्षेत्र के अपने सदस्य के लिए और दूसरा हिन्दू समाज के सामान्य सदस्य के लिए. हम ने जानबूझकर जिसे आप ने अछूतों के लिए साम्प्रदायिक निर्वाचन कहा है, उसके विपरीत फैसला दिया है. दलित वर्ग के मतदाता सामान्य अथवा हिन्दू निर्वाचन क्षेत्रों में सवर्ण उम्मीदवार को मत दे सकेंगे तथा सवर्ण हिन्दू मतदाता दलित वर्ग के उम्मीदवार वार को उसके निर्वाचन क्षेत्र में मतदान कर सकेंगे. इस प्रकार हिन्दू समाज की एकता को सुरक्षित रखा गया है.“ कुछ अन्य तर्क देने के बाद उन्होंने गाँधी जी से आमरण अनशन छोड़ने का आग्रह किया था. परन्तु गाँधी जी ने प्रत्युत्तर में आमरण अनशन को अपना पुनीत धर्म मानते हुए कहा कि दलित वर्गों को केवल दोहरे मतदान का अधिकार देने से उन्हें तथा हिन्दू समाज को छिन्न – भिन्न होने से नहीं रोका जा सकता. उन्होंने आगे कहा, ” मेरी समझ में दलित वर्ग के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था करना हिन्दू धर्म को बर्बाद करने का इंजेक्शन लगाना है. इस से दलित वर्गों का कोई लाभ नहीं होगा.” गांधीजी ने इसी प्रकार के तर्क दूसरी और तीसरी गोल मेज़ कांफ्रेंस में भी दिए थे जिसके प्रत्युत्तर में डॉ. आंबेडकर ने गाँधी जी के दलितों के भी अकेले प्रतिनिधि और उनके शुभ चिन्तक होने के दावे को नकारते हुए उनसे दलितों के राजनीतिक अधिकारों का विरोध न करने का अनुरोध किया था. उन्होंने यह भी कहा था कि फिलहाल दलित केवल स्वतन्त्र राजनीतिक अधिकारों की ही मांग कर रहे हैं न कि हिन्दुओं से अलग हो अलग देश बनाने की. परन्तु गाँधी जी का सवर्ण हिन्दुओं के हित को सुरक्षित रखने और अछूतों को हिन्दू समाज का गुलाम बनाये रखने का स्वार्थ था. यही कारण था कि उन्होंने सभी तथ्यों व तर्कों को नकारते हुए 20 सितम्बर, 1932 को अछूतों के पृथक निर्वाचन के अधिकार के विरुद्ध आमरण अनशन शुरू कर दिया. यह एक विकट स्थिति थी. एक तरफ गाँधी जी के पक्ष में एक विशाल शक्तिशाली हिन्दू समुदाय था, दूसरी तरफ डॉ. अंबेडकर और अछूत समाज. अंततः भारी दबाव एवं अछूतों के संभव नरसंहार के भय तथा गाँधी जी की जान बचाने के उद्देश्य से डॉ. आंबेडकर तथा उनके साथियों को दलितों के पृथक निर्वाचन के अधिकार की बलि देनी पड़ी और सवर्ण हिन्दुओं से 24 सितम्बर, 1932 को तथाकथित पूना पैक्ट करना पड़ा. इस प्रकार अछूतों को गाँधी जी की जिद्द के कारण अपनी राजनैतिक आज़ादी के अधिकार को खोना पड़ा. यद्यपि पूना पैक्ट के अनुसार दलितों के लिए ‘प्रधान मंत्री अवार्ड’ में सुरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा कर 78 से 151 हो गयी परन्तु संयुक्त निर्वाचन के कारण उनसे अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने का अधिकार छिन्न गया जिसका दुष्परिणाम आज तक दलित समाज झेल रहा है. पूना पैकट के प्रावधानों को गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट, 1935 में शामिल करके सन 1937 में प्रथम चुनाव संपन्न हुआ जिसमें गाँधी जी के दलित प्रतिनिधियों को कांग्रेस द्वारा कोई भी दखल न देने के दिए गए आश्वासन के बावजूद कांग्रेस ने 151 में से 78 सीटें हथिया लीं क्योंकि संयुक्त निर्वाचन प्रणाली में दलित पुनः सवर्ण वोटों पर निर्भर हो गए थे . गाँधी जी और कांग्रेस के इस छल से खिन्न होकर डॉ. आंबेडकर ने कहा था, ” पूना पैकट में दलितों के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है.” प्रधान मंत्री अवार्ड के माध्यम से अछूतों को  पृथक निर्वाचन के रूप में अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने और दोहरे वोट के अधिकार से सवर्ण हिन्दुओं की भी दलितों पर निर्भरता से दलितों का स्वंतत्र राजनीतिक अस्तित्व सुरक्षित रह सकता था. पूना पैक्ट करने की विवशता ने दलितों को फिर से सवर्ण हिन्दुओं का गुलाम बना दिया. इस व्यवस्था से आरक्षित सीटों पर जो सांसद या विधायक चुने जाते हैं. वे वास्तव में दलितों द्वारा न चुने जा कर विभिन्न राजनैतिक पार्टियों एवं सवर्णों द्वारा चुने जाते हैं, जिन्हें उन का गुलाम/ बंधुआ बन कर रहना पड़ता है. सभी राजनीतिक पार्टियाँ गुलाम मानसिकता वाले ऐसे प्रतिनिधियों पर कड़ा नियंत्रण रखती हैं और पार्टी लाइन से हट कर किसी भी दलित मुद्दे को उठाने या उस पर बोलने की इजाजत नहीं देतीं. यही कारण है कि लोकसभा तथा विधान सभायों में दलित प्रतिनिधियों कि स्थिति महाभारत के भीष्म पितामह जैसी रहती है जिस ने यह पूछने पर कि ” जब कौरवों के दरबार में द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था तो आप क्यों नहीं बोले?” इस पर उन का उत्तर था, ” मैंने कौरवों का नमक खाया है.” (भगवान दास) वास्तव में प्रधान मंत्री अवार्ड से दलितों को स्वतंत्र राजनीतिक अधिकार प्राप्त हुए थे जिससे वे अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने के लिए सक्षम हो गए थे और वे उनकी आवाज़ बन सकते थे. इस के साथ ही दोहरे वोट के अधिकार के कारण सामान्य निर्वाचन क्षेत्र में सवर्ण हिन्दू भी उन पर निर्भर रहते और दलितों को नाराज़ करने की हिम्मत नहीं करते. इस से हिन्दू समाज में एक नया समीकरण बन सकता था जो दलित मुक्ति का रास्ता प्रशस्त करता. परन्तु गाँधी जी ने हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म के विघटित होने की झूठी दुहाई दे कर तथा आमरण अनशन का अनैतिक हथकंडा अपना कर दलितों की राजनीतिक स्वतंत्रता का हनन कर लिया जिस कारण दलित सवर्णों के फिर से राजनीतिक गुलाम बन गए. वास्तव में गाँधी जी की चाल काफी हद तक राजनीतिक भी थी जो कि बाद में उनके एक अवसर पर सरदार पटेल को कही गयी इस बात से भी स्पष्ट है: “अछूतों के अलग मताधिकार के परिणामों से मैं भयभीत हो उठता हूँ. दूसरे वर्गों के लिए अलग निर्वाचन अधिकार के बावजूद भी मेरे पास उनसे सौदा करने की गुंजाइश रहेगी परन्तु मेरे पास अछूतों से सौदा करने का कोई साधन नहीं रहेगा. वे नहीं जानते कि पृथक निर्वाचन हिन्दुओं को इतना बाँट देगा कि उसका अंजाम खून खराबा होगा. अछूत गुंडे मुसलमान गुंडों से मिल जायेंगे और हिन्दुओं को मारेंगे. क्या अंग्रेजी सरकार को इस का कोई अंदाज़ा नहीं है? मैं ऐसा नहीं सोचता.” (महादेव देसाई, डायरी, पृष्ठ 301, प्रथम खंड). गाँधी जी के इस सत्य कथन से आप गाँधी जी द्वारा अछूतों को पूना पैक्ट करने के लिए बाध्य करने के असली उद्देश्य का अंदाज़ा लगा सकते हैं. दलितों की संयुक्त मताधिकार व्यवस्था के कारण सवर्ण हिन्दुओं पर निर्भरता के फलस्वरूप दलितों की कोई भी राजनैतिक पार्टी पनप नहीं पा रही है चाहे वह डॉ. आंबेडकर द्वारा स्थापित रिपब्लिकन पार्टी ही क्यों न हो. इसी कारण डॉ. आंबेडकर को भी दो वार चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा क्योंकि आरक्षित सीटों पर सवर्ण वोट ही निर्णायक होता है. इसी कारण सवर्ण पार्टियाँ ही अधिकतर आरक्षित सीटें जीतती हैं. पूना पैक्ट के इन्हीं दुष्परिणामों के कारण ही डॉ. आंबेडकर ने संविधान में राजनीतिक आरक्षण को केवल 10 वर्ष तक ही जारी रखने की बात कही थी. परन्तु विभिन्न राजनीतिक पार्टियाँ इसे दलितों के हित में नहीं बल्कि अपने स्वार्थ के लिए अब तक लगातार 10-10 वर्ष तक बढ़ाती चली आ रही हैं क्योंकि इस से उन्हें अपने मनपसंद और गुलाम दलित सांसद और विधायक चुनने की सुविधा रहती है. सवर्ण हिन्दू राजनीतिक पार्टियाँ दलित नेताओं को खरीद लेती हैं और दलित पार्टियाँ कमज़ोर हो कर टूट जाती हैं. यही कारण है की उत्तर भारत में तथाकथित दलितों की कही जाने वाली बहुजन समाज पार्टी भी ब्राह्मणों और बनियों के पीछे घूम रही है और ” हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है” जैसे नारों को स्वीकार करने के लिए बाध्य है. अब तो उसका रूपान्तरण  बहुजन से सर्वजन में हो गया है. इन परिस्थितियों के कारण दलितों का बहुत अहित हुआ है वे राजनीतिक तौर पर सवर्णों के गुलाम बन कर रह गए हैं. अतः इस सन्दर्भ में पूना पैक्ट के औचित्य की समीक्षा करना समीचीन होगा. क्या दलितों को पृथक निर्वाचन की मांग पुनः उठाने के बारे में सोचना चाहिए ? यद्यपि पूना पैक्ट की शर्तों में छुआ-छूत को समाप्त करने, सरकारी सेवाओं में आरक्षण देने तथा दलितों की शिक्षा के लिए बजट का प्रावधान करने की बात थी परन्तु आजादी के 75 वर्ष बाद भी उनके क्रियान्वयन की स्थिति दयनीय ही है. डॉ. आंबेडकर ने अपने इन अंदेशों को पूना पैक्ट के अनुमोदन हेतु बुलाई गयी 25 सितम्बर, 1932 को बम्बई में सवर्ण हिन्दुओं की बहुत बड़ी मीटिंग में व्यक्त करते हुए कहा था, “हमारी एक ही चिंता है. क्या हिन्दुओं की भावी पीढ़ियां इस समझौते का अनुपालन करेंगी? ” इस पर सभी सवर्ण हिन्दुओं ने एक स्वर में कहा था, ” हाँ, हम करेंगे.” डॉ. आंबेडकर ने यह भी कहा था, “हम देखते हैं कि दुर्भाग्यवश हिन्दू सम्प्रदाय एक संघटित समूह नहीं है बल्कि विभिन्न सम्प्रदायों की फेडरेशन है. मैं आशा और विश्वास करता हूँ कि आप अपनी तरफ से इस अभिलेख को पवित्र मानेंगे तथा एक सम्मानजनक भावना से काम करेंगे.” क्या आज सवर्ण हिन्दुओं को अपने पूर्वजों द्वारा दलितों के साथ किए  गए. इस समझौते को ईमानदारी से लागू करने के बारे में थोड़ा  बहुत आत्म चिंतन नहीं करना चाहिए. यदि वे इस समझौते को ईमानदारी से लागू करने में अपना अहित देखते हैं तो क्या उन्हें दलितों के पृथक निर्वाचन का राजनीतिक अधिकार लौटा नहीं देना चाहिए? अब क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों में अलग मताधिकार के बहाल होने की संभावना नहीं है, अतः दलितों को अपनी राजनीति को जाति की राजनीति से बाहर निकाल कर मुद्दों की राजनीति को अपनाना चाहिए। इसके साथ ही केवल जाति के आधार पर किसी को वोट देने की बजाए उस व्यक्ति के दलित वर्ग हित में किए गए कार्यों को सामने रख कर ही वोट देना चाहिए। दलितों को व्यक्ति पूजा से भी मुक्त होना होगा जिसके बारे में बाबासाहेब ने पूरी तरह से सचेत किया था। दलितों को राजनीतिक अलगाव की जगह लोकतान्त्रिक, धर्मननिरपेक्ष एवं प्रगतिशील ताकतों से साथ हाथ मिलाना चाहिए। उन्हें याद रखना चाहिए कि दलितों की मुक्ति में ही सब की मुक्ति है।
लेखक-एस. आर. दारापुरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट

बौद्ध दर्शन पर व्याख्यान: आर्य सत्य, अनात्मवाद, प्रतीत्यसमुत्पाद, और अष्टांगक पर चर्चा

लखनऊ। “द बेसिक कांसेप्ट ऑफ अर्ली बुद्धिस्ट फिलासफी एंड थ्री रोल्स इन वियतनामी कल्चर ट्रेडिशन” पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का नेतृत्व डॉ. रजनी श्रीवास्तव ने किया।

तान ने अपने व्याख्यान का शीर्षक “द बेसिक कांसेप्ट ऑफ अर्ली बुद्धिस्ट फिलासफी एंड थ्री रोल्स इन वियतनामी कल्चर ट्रेडिशन” रखा। उन्होंने बौद्ध दर्शन की मूलभूत अवधारणाओं जैसे चार आर्य सत्य, अनात्मवाद, प्रतीत्यसमुत्पाद, और अष्टांगक मार्ग पर गहन चर्चा की। उनका मुख्य फोकस यह था कि ये अवधारणाएँ किस प्रकार वियतनामी संस्कृति को प्रभावित करती हैं।

तान ने बताया कि बौद्ध दर्शन की ये अवधारणाएँ वियतनामी शैक्षिक, सांस्कृतिक, और पर्यावरणीय प्रथाओं में कैसे समाहित हैं। उन्होंने अपने देश की सांस्कृतिक विविधता को बताया कि किस प्रकार बौद्ध धर्म ने वियतनामी जीवन शैली को आकार दिया है।

प्रोफेसरों ने साझा किए विचार

संगोष्ठी में डॉ. रजनी श्रीवास्तव ने तान के व्याख्यान का सारांश प्रस्तुत किया और उसकी महत्ता को बताया । इसके अलावा विभाग के अन्य शिक्षक डॉ. राजेन्द्र वर्मा और डॉ. प्रशांत शुक्ला भी उपस्थित रहे, जिन्होंने इस ज्ञानवर्धक सेमिनार में अपनी विशेषज्ञता साझा की। इसके साथ ही उन्होंने वियतनाम की शैक्षिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय प्रथाओं की भी चर्चा की।

सेमिनार के कोऑर्डिनेटर विभाग की शोध छात्रा निशी कुमारी रही। सेमिनार के सफलता पूर्वक समापन में विभाग के अन्य शोध छात्रों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कुमारी शैलजा के बहाने दलित नेताओं पर बहनजी का बड़ा बयान

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने कांग्रेस व बीजेपी पर दलित नेताओं की उपेक्षा करने का आरोप लगाया है। दलित समाज की हरियाणा की कांग्रेस नेता कुमारी सैलजा का जिक्र करते हुए बहनजी ने उनको बाबासाहेब अम्बेडकर की दुहाई दी।

भाजपा और कांग्रेस पर निशाना साधते हुए बहनजी ने एक्स पर लिखा कि, कांग्रेस और जातिवादी पार्टियों बुरे समय में दलितों को याद करती हैं और जब अच्छे दिन आ जाते हैं तो उन पर ध्यान नहीं देती हैं।उल्लेखनीय है कि बसपा के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद बीजेपी से पहले कुमारी सैलजा को बसपा ज्वॉइन करने का ऑफर दे चुके हैं।

बसपा अध्यक्ष ने सोमवार को सोशल मीडिया एक्स पर कांग्रेस सहित अन्य सभी दलों पर निशाना साधा। उन्होंने कांग्रेस और राहुल गांधी को दलित और संविधान विरोधी बताया है।

एक्स पर बयान जारी कर बहनजी ने कहा कि देश में अभी तक के हुए राजनीतिक घटनाक्रमों से यह साबित होता है कि खासकर कांग्रेस व अन्य जातिवादी पार्टियों को अपने बुरे दिनों में तो कुछ समय के लिए दलितों को मुख्यमंत्री व संगठन आदि के प्रमुख स्थानों पर रखने की जरूर याद आती है। लेकिन ये पार्टियां, अपने अच्छे दिनों में फिर इनको अधिकांशतः दरकिनार ही कर देती हैं। इनके स्थान पर फिर उन पदों पर जातिवादी लोगों को ही रखा जाता है जैसा कि अभी हरियाणा प्रदेश में भी देखने के लिए मिल रहा है।

उन्होंने कहा कि ऐसे अपमानित हो रहे दलित नेताओं को अपने मसीहा बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर से प्रेरणा लेकर इन्हें खुद ही ऐसी पार्टियों से अलग हो जाना चाहिए। अपने समाज को फिर ऐसी पार्टियों से दूर रखने के लिए उन्हें आगे भी आना चाहिए। परमपूज्य बाबा साहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने देश के कमजोर वर्गों के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान की वजह से अपने केन्द्रीय कानून मन्त्री पद से इस्तीफा भी दे दिया था।

बहनजी ने कहा कि इसी से प्रेरित होकर मैंने भी जिला सहारनपुर के दलित उत्पीड़न के मामले में संसद में ना बोलने देने की स्थिति में मैंने इनके सम्मान व स्वाभिमान में अपने राज्यसभा सांसद पद से इस्तीफा भी दे दिया था। ऐसे में दलितों को बाबा साहेब के पद-चिन्हों पर चलने की ही सलाह है।

UPSC की तैयारी कर रहे आदिवासी छात्र की संदिग्ध मौत से हंगामा, बहुजनों ने की जांच की मांग

राजधानी दिल्ली के मुखर्जी नगर इलाके में यूपीएससी और सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रहे एक छात्र का शव झाड़ियों में पेड़ से लटका हुआ मिला। पुलिस को घटनास्थल से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है। पुलिस इसको आत्महत्या बता रही है, जबकि एससी-एसटी समाज के नेताओं और बुद्धिजीवियों ने हत्या की आशंका जताई है। मृतक छात्र की शिनाख्त राजस्थान के दौसा दीपक कुमार मीणा के रूप में हुई है। वह यूपीएससी का प्री एग्जाम पास करने के बाद दिल्ली में मेंस की तैयारी कर रहा था।

बताया जा रहा है कि वह गत 11 सितंबर से गायब था। परिवारवालों ने 14 सितंबर को इस संबंध में मुखर्जी नगर थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। परिजन, दलित नेता व एक्टिविस्ट ने हत्या की आशंका जताई है। वहीं दिल्ली पुलिस ने मामले की गहन व निष्पक्ष जांच की मांग की है।

गत शुक्रवार को पुलिस को जंगल में एक युवक के फांसी लगाए जाने की सूचना मिली थी, पुलिस तुरंत वहां पहुंची।

लाइब्रेरी से कुछ दूरी पर पेड़ से लटका मिला शव

इस मामले की जांच में जुटी पुलिस ने बताया कि जिस जगह पर दीपक शव मिला है, वह दीपक के इंस्टीट्यूट की लाइब्रेरी से कुछ ही दूरी पर है। पुलिस का कहना है कि शुरुआती जांच में खुदकुशी की बात सामने आई है। पुलिस ने शनिवार को पोस्टमॉर्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया है। हालांकि, पुलिस सभी पहलुओं से मामले की जांच कर रही है।

मृतक छात्र के पिता चंदूलाल ने बताया कि दीपक ने यूपीएससी का ऑनलाइन कोर्स लेकर जयपुर में रहकर इसी साल प्री एग्जाम पास किया था। इंस्टीट्यूट ने मेंस की तैयारी के लिए दिल्ली बुलाया था। दीपक जुलाई महीने से दिल्ली स्थित मुखर्जी नगर में पीजी में रहकर कोचिंग में पढ़ाई कर रहा था।

दलित नेताओं व एक्टिविस्ट ने की निष्पक्ष जांच की मांग

सांसद चंद्रशेखर आजाद ने एक्स पोस्ट में दीपक को आदरांजलि देते हुए दिल्ली पुलिस से मामले की गहन जांच की मांग की है। इसीप्रकार दलित-आदिवासी एक्टिविस्ट हंसराज मीना ने एक्स पोस्ट में लिखा- राजस्थान के दौसा जिले के 21 वर्षीय दीपक कुमार मीणा का शव 10 दिनों बाद संदिग्ध परिस्थितियों में झाडि़यों में मिला हैं। दीपक के परिवार को उनकी मौत पर संदेह है और वे इसे हत्या मान रहे हैं, क्योंकि दीपक का मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य ठीक था। हम प्रशासन से इस मामले की गहन जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करते हैं।

बुद्ध काल में जाति और जातिगत पेशा, एक पड़ताल

आज जिन जातियों को जो नाम हैं, क्या वह वह नाम उन्हें जाति व्यवस्था के जन्म के बाद ही मिला है, ऐसा नहीं है, इस बारे में एक जरूरी भ्रम जरूर दूर कर लेना चाहिए-संदर्भ बुद्ध को खीर खिलाने वाली सुजाता की जाति क्या थी?
कुछ एक दिनों पहले मैं बोध गया महाबोधि बिहार और बुद्ध को खीर खिलाने वाली सुजाता के गांव गया था। मैंने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा कि सुजाता ग्वालन थीं। इसके बाद तो तरह की प्रतिक्रियाएं आईं। एक तो यह की जब बुद्ध के समय में जाति व्यवस्था पैदा ही नहीं हुई थी, तो वह कहां से यादव हो गईं। दूसरा यह कि वह यादव ही थीं, आज के यादव लोग उन्हें अपनी जाति की नहीं मानते हैं। मैं सुजाता को यादव नहीं कहा था, ग्वालन कहा था।
यह सही है कि बुद्ध के समय में जाति व्यवस्था पैदा नहीं हुई थी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अलग-अलग पेशे करने वाले समूह नहीं पैदा हुए और उनका कोई नाम नहीं था। बुद्ध के समय में (करीब आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व) समय श्रम विभाजन एक हद तक उच्चत्तर अवस्था में था। एक काम करने वाले समूहों सामने आ गए थे, कुछ आ रहे थे। दस्तकारों, कारीगरों और अन्य कौशल विशेष से संपन्न समूह पैदा हो चुके थे या हो रहे थे। जैसे मिट्टी के बर्तना बनाने वाले, लोहे की चीजें बनाने वाले, धातुओं से आभूषण बनाने वाले, पशु-पालन और दूध-दही का कारोबार करने वाले, चमड़े का काम करने वाले, कपड़ा बनाने, सिलने वाले, लकड़ी की चीजें बनाने वाले, व्यापार-कारोबार करने वाले, ज्ञान-विज्ञान और दर्शन की दुनिया में काम करने वाले, गीत-संगीत और संस्कृति के अन्य विधाओं का पेशा करने वाले और यौद्धाओं आदि समूह पैदा हो गए थे। इसके अलावा श्रमिकों के समूह भी अस्तित्व में आ गए थे।
अलग-अलग काम करने वाले समूहों के नाम भी थे। चूंकि ज्ञान-विज्ञान और कौशल, दस्ताकारी और कारीगरी आदि दूसरी पीढ़ी को स्थानंतारण अनुभव संगत ज्ञान के आधार पर ही हो रहा था, इसलिए एक समूह को अपने परिवार की दूसरी पीढ़ी को सौंपना सहज था। मतलब माता-पिता अपने बेटे-बेटियों को आसानी से सौंप सकते थे। सारी बातों का लब्बोलुआब यह है कि जाति व्यवस्था के पैदा होने और उसे लौह सांचे में ढाल देने से पहले भी अलग-अलग पेशा करने वालों समूहों का अलग-अलग नाम था। जैसे लोहार तब भी था, बढ़ई तब भी था,मछुवारा (मल्लाह) तब भी थे, कुम्हार तब भी थे, सोनार तब भी थे, ग्वाला तब भी थे, कसाई तब भी थे यहां तक ब्राह्मण संज्ञा भी बुद्ध के काल में मिलती है। बहुत सारे पेशे और उनसे जुड़े बहुत सारे नाम।
उनमें से बहुत सारे नाम वैसे के वैसे, या कुछ बदले हुए रूप में या पूरी तरह बदले हुए रूप में आज भी मौजूद हैं। पेशेगत समूहों के नामों में दो तरह से परिवर्तन आया पहला भाषा के बदलने से परिवर्तन। जैसे पालि में वह नाम कुछ अलग तरह से उच्चारित होता है, तो प्राकृत में थोड़ा अलग, अपभ्रंश में अलग और संस्कृत के जन्म के बाद भी कुछ बदलाव। तमिल में कुछ अलग, इसके साथ हिंदी, बंगाली, उड़िया, पंजाबी, मराठी, तेलगू, कन्नड़, संथाल, गोंंडी आदि में अलग। लेकिन सबका संबंध पेशे से जुड़ा हुआ था। अभी हाल तक जातियों के नामों में परिवर्तन होता रहा है, अभी भी हो रहा है,जबकि मूल चीज वैसे-की-वैसे है। जैसे ग्वाला,अहीर,यादव, सिंह यादव की एक यात्रा है। धोबी-कन्नौजिया, अनेकों अनेक।
जाति व्यवस्था के जन्म और उसके लौह सांचे में ढल जाने के बाद निम्न तरह के बुनियादी परिवर्तन आए-
1- जाति व्यवस्था के जन्म और लौह सांचे में ढलने से पहले एक पेशे के लोग दूसरा पेशा अपना सकते थे, दूसरे पेश में जाने के बाद उनकी पहचान उस पेशे से जुड़ जाती। जैसे कुम्हार, लोहार का पेशा अपना सकता था, फिर उसे कुम्हार नहीं लोहार कहा जाता। इसी तरह धोबी, लोहार का पेशा अपना सकता था, उसे उसकी पहचान धोबी की नहीं,लोहार की होती। यहां तक कि ज्ञान-विज्ञान की दुनिया में काम करने वालों में लोहार, धोबी और बढ़ई का पेशा करने वाला शामिल हो सकता था। तब उसकी पहचान वही हो जाती। लेकिन वर्ण-जाति व्यवस्था के लौह सांचे में ढाल देने के बाद एक पेशे को छोड़कर दूसरे पेशे में जाना नामुमकिन बन गया या बना दिया गया। ऐसा करना दंड का भागी होना था। मतलब जन्म आधारित बना दिया।
2- बुद्ध के काल में किसी पेशे को हेय समझना, नीचा काम समझना अभी शुरू ही हुआ था, लेकिन उसका मुख्य आधार किसी पेशे से होने वाली आय और उससे वाला मान-सम्मान ही था। जैसे बुद्ध काल में भी ज्ञान-विज्ञान के पेशे में, धर्म-दर्शन के पेशे में या योद्धा के पेशे में लगे हुए लोगों का ज्यादा सम्मान था और चूंकि एक पेशे से दूसरे में जाने की संभावना थी, इस वजह से किसी समूह के व्यक्ति को हमेशा-हमेशा के लिए नीच और ऊंच नहीं ठहराया जा सकता था।
जाति व्यवस्था के लौह सांचे ने जातियों के ऊंच-नीच का श्रेणीक्रम पूरी तरह पक्का कर दिया। हालांकि उसका आधार पेशे से जुड़ा रहा। बुद्ध काल में दास प्रथा किसी न किसी रूप में थी, दासों को हेय और नीचा समझा जाता था।
3- जाति व्यवस्था के जन्म और उसके लौह सांचे ने एक जाति की लड़की-लड़के के दूसरी जाति के लड़के-लड़की से शादी को प्रतिबंधित कर दिया, उसे भी जातियों के लोह साचें में कस दिया।
निष्कर्ष रूप में यह कहना है कि यदि बुद्ध काल में किसी किसी समूह को मल्लाह-केवट कह रहे हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम कह रहे हैं कि उस समय जाति व्यवस्था पैदा हो गई थी। इसी तरह यदि किसी समूह को ग्वाला कहा जा रहा है, तो भी उसका मतलब जाति व्यवस्था उस समय थी, यह नहीं कहा जा रहा है। आज की तारीख में भी जो कुछ ऐसी जातियां हैं,उनके जो पेशे हैं, वे पेशे बुद्ध काल में पैदा हो चुके थे, उस पेशे को करने वाले समूह की पहचान उसके पेशे से होती थी। हां यहां यह भी स्पष्ट कर लेना जरूरी है कि अलग-अलग पेशा करने वाले समूह ही थी, उन्नत पूंजीवादी समाज की तरह अलग-अलग व्यक्ति नहीं। पेशे समूहगत ही थे।