पानी का मटका छूने पर दलित को पीटा, किडनैप कर फिरौती के डेढ़ लाख भी वसूले

झुंझुनू, राजस्थान। दलित समाज के एक व्यक्ति के पानी का मटका छूने पर उसकी बेहरमी से पिटाई की गई। और जब पिटाई से भी मन नहीं भरा तो उसे अगवा कर छोड़ने के लिए डेढ़ लाख रुपये मांगे गए। मामला राजस्थान के झूंझुनू जिले की है। यहां के पचेरी कलां थाना क्षेत्र में 18 जनवरी को घटी।

ट्रैक्टर चालक चिमनलाल मेघवाल एक ईंट भट्ठा पर ईंट लेने गया था। उस दौरान प्यास लगने पर चिमनलाल घड़े से पानी पीने लगा। यह देखकर ईंट भट्ठा मालिक विनोद यादव भड़क उठा और जातिवादी गाली देते हुए उसे लात मार दी। इसके बाद विनोद और दो अन्य लोग उसे कार से हरियाणा के रेवाड़ी ले गए, जहां उसकी जमकर पिटाई की गई। जब घर वालों को पता लगा और उन्होंने चिमनलाल मेघवाल को छोड़ने की गुहार लगाई तो विनोद यादव और उसके साथियों ने चिमनलाल को छोड़ने के लिए परिवार से डेढ़ लाख रुपये मांगे। जब पीड़ित के भाई ने पैसे दिए, तब उसे छोड़ा गया। कैद से छूटने के बाद पीड़ित और परिवार ने रविवार 19 जनवरी को मामला दर्ज कराया। पुलिस ने मामला दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी है।

बता दें कि यहां ईट भट्ठा मालिक यादव समाज यानी पिछड़े समाज से है। यानी साफ है कि दलित समाज सिर्फ सवर्णों के अत्याचार का शिकार ही नहीं है, बल्कि पिछड़े समाज के कई तबके दलित उत्पीड़न के मामले में ज्यादा उग्र दिखाई देते हैं। अगर चिमनलाल मेघवाल दलित जाति का न होता तो क्या उसे पानी का मटका छूने के लिए इतना प्रताड़ित किया जाता ? जवाब है बिल्कुल नहीं। अगर चिमनलाल ‘मेघवाल’ न होकर ऊंची या पिछड़ी जाति का होता और उसे प्यास लगती और मटका छू जाता तो भी क्या ईंट भट्ठा चालक विनोद यादव उसके साथ इतनी क्रूरता करता? जवाब है बिल्कुल नहीं। इसलिए हम कहते हैं… कास्ट मैटर्स

संविधान सुरक्षा सम्मेलन में पटना पहुंचे राहुल गांधी, भाजपा-आरएसएस पर किया जोरदार हमला

देश भर में एक के बाद एक सम्मेलन कर रहे राहुल गांधी संविधान सुरक्षा सम्मेलन के तहत शनिवार 18 जनवरी को पटना में पहुंचें। इस दौरान उन्होंने बिहार को क्रांतिकारी धरती बताया। राहुल गांधी ने कहा कि बिहार एक क्रांतिकारी प्रदेश है। देश में जब भी बदलाव आता है, बिहार से आता है। अगला चुनाव बिहार में है और ये विचारधारा की लड़ाई है। आप सभी कांग्रेस के बब्बर शेर हो, RSS-BJP की विचारधारा को हमें हराना है। इंडिया गठबंधन BJP-RSS को हराएगा। राहुल गांधी के पूरे भाषण का वीडियो आप यहां देख सकते हैं-

दलित सरपंच को मंदिर में जाने से रोका, भाजपा नेता पर आरोप

महिला दलित सरपंच से बात करते मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारीमध्य प्रदेश। आरएसएस दलित और आदिवासी समाज के बच्चों को महाकुंभ ले जाने की कवायद में जुटी है। इसी बीच मध्य प्रदेश के देवास जिले में एक दलित महिला सरपंच को मंदिर जाने से रोकने का मामला सामने आया है। जिले के हाथलोई पंचायत की एक दलित महिला सरपंच ने आरोप लगाया है कि भाजपा के नेताओं ने उन्हें मंदिर जाने से रोका। घटना की सूचना मिलते ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने महिला को मंदिर ले जाकर दर्शन करवाया। पटवारी ने इसका एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है।

दलित सरपंच रामदीन का आरोप है कि उन्हें कहा जाता है कि तुम हिन्दू नहीं हो इसलिए मंदिर में मत आओ। इस मामले में जिस तरह भाजपा नेताओं का नाम सामने आ रहा है, वह भी कई सवाल उठाता है। जिस तरह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री लगातार महाकुंभ को लेकर सक्रिय हैं और देश-दुनिया में इसको लेकर प्रचार कर रहे हैं। जबकि भाजपा की ही दूसरे राज्यों के सरकारों में पार्टी के नेता ही दलितों को मंदिरों में जाने से रोक रहे हैं। यह भाजपा नेताओं का दोहरा चेहरा नहीं तो फिर क्या है?

दलित-आदिवासी समुदाय के हजारों छात्रों को महाकुंभ में ले जाएगा आरएसएस

दलित और आदिवासी समाज के हिन्दु धर्म में बनाए रखना हिन्दू धर्म को बढ़ाने में लगे संगठनों के सामने एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। ऐसे में प्रयागराज मे चल रहे महाकुंभ से दलितों को जोड़ने के लिए आरएसएस ने कदम उठाए हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस) आठ हजार दलित, आदिवासी छात्रों को कुंभ दर्शन कराएगा। यह काम संघ की शिक्षा शाखा, विद्या भारती करेगी। यहां 10 वर्ष से अधिक उम्र के छात्रों को उनके माता-पिता के साथ कुंभ मेले का दौरा कराया जाएगा। विद्या भारती के अनुसार, इस यात्रा का उद्देश्य इन बच्चों को हिंदू परंपराओं, भारतीय संस्कृति और महाकुंभ के आध्यात्मिक महत्व से परिचित कराना है, ताकि वे धर्मांतरण के प्रयासों से प्रभावित न हों।

मीडिया रिपोर्टस में प्रकाशित खबरों के मुताबिक अवध क्षेत्र के सेवा भारती स्कूलों के प्रशिक्षक रामजी सिंह ने बताया कि इन छात्रों को संतों के आश्रम, अखाड़ों और संगम घाट पर ले जाया जाएगा। उन्होंने कहा, “इस यात्रा से बच्चे भारतीय परंपराओं और महाकुंभ के आध्यात्मिक पहलुओं को समझ सकेंगे। यह उन्हें धर्मांतरण के दुष्प्रभावों से बचाने में मदद करेगा। विद्या भारती का संस्कार केंद्र, मुख्य रूप से गरीब और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षा प्रदान करता हैं। वह इस कार्यक्रम के केंद्र में हैं। इन केंद्रों में बच्चों को न केवल नियमित स्कूली शिक्षा दी जाती है, बल्कि उन्हें भारत माता की पूजा, राष्ट्रभक्ति के गीत, और बड़ों का सम्मान करना भी सिखाया जाता है। महाकुंभ यात्रा में अवध क्षेत्र के 14 जिलों से करीब 2100 छात्र 16 से 18 जनवरी के बीच शामिल होंगे।

खास बात यह है कि कुंभ यात्रा के दौरान छात्रों को माता-पिता के साथ लेकर जाया जाएगा। उनके माता-पिता के ठहरने के लिए मेला क्षेत्र के सेक्टर 9 में एक विशेष शिविर स्थापित किया गया है। यात्रा के बाद, छात्रों के अनुभवों को साझा करने के लिए एक सत्र का आयोजन भी होगा। इसके बाद, गोरखपुर, काशी, और कानपुर क्षेत्रों से छात्रों के समूह क्रमशः 24 से 26 जनवरी और अन्य दिनों में यात्रा करेंगे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छात्रों के लिए भी इसी तरह की योजना पर काम हो रहा है।

दरअसल जाति के आधार पर दलितों पर हर दिन होने वाले हमले और बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर की विचारधारा के प्रसार के कारण दलित और आदिवासी समाज के लोग लगातार हिन्दू धर्म से विमुख हो रहे हैं। लगातार जातीय हिंसा को झेल रहे इस समाज को हिन्दू धर्म के तमाम लोग और संगठन अपनी संख्या बढ़ाने के लिए हिन्दू धर्म का हिस्सा तो मानते हैं, लेकिन उन पर होने वाले जातीय अत्याचार के खिलाफ आवाज नहीं उठाते हैं। ऐसे में आर.एस.एस जैसे संगठन लगातार उन्हें हिन्दू धर्म के जोड़ने की कवायद करते रहते हैं।

यहां सवाल यह भी है कि जितनी गर्मजोशी से इन्हें महाकुंभ में ले जाने का प्लॉन बनाया जा रहा है, आरएसएस और उस जैसी संस्थाएं जातिवाद के खिलाफ लड़ाई क्यों नहीं लड़ती? P

जन्मदिन पर बसपा सुप्रीमो मायावती का ऐलान- बसपा का समय फिर से आएगा

बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन मायावती का 15 जनवरी को जन्मदिन होता है। बसपा कार्यकर्ता इस दिन को जनकल्याणकारी दिवस के रूप में मना रहे हैं। इस दौरान बहनजी ने लखनऊ में हर साल की तरह मीडिया को संबोधित किया। अपने संबोधन में बहनजी ने जहां बहुजन महापुरुषों को नमन किया तो वहीं वर्तमान राजनीति पर भी खुल कर बोलीं। उन्होंने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों को आगाह करते हुए कहा कि कुछ वर्षों से बी.एस.पी के दलित वोट बैंक को कमजोर करने व उसे तोड़ने के लिए कांग्रेस, भाजपा और समाजवादी पार्टी अनेक हथकंडे अपना रही हैं। इससे सावधान रहना होगा।

दलित समाज के चुनावी सोच पर दुख जताते हुए बहनजी ने कहा कि बसपा सरकार में हमने गरीब और बेरोजगार लोगों से लुभावने वादे करने की बजाय उन्हें रोजी-रोटी का साधन उपलब्ध कराया। लेकिन दुख इस बात का है कि चुनाव के दौरान भोली-भाली जनता अपनी पार्टी के इन सब कार्यों को भुलाकर विरोधी पार्टियों की गारंटी व लुभावने वायदों के बहकावे में आ जाती है। जबकि इनकी कथनी और करनी में अंतर है। इससे दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरी में आरक्षण का भी पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है।

हालांकि बहनजी ने साफ कर दिया कि बसपा इन सब से उबरेगी और एक बार फिर बसपा का समय जरूर आएगा।

बहनजी ने इस दौरान बीते एक वर्ष के संघर्ष पर हर साल की तरह पुस्तक, मेरे संघर्षमय जीवन एवं बी.एस.पी मूवमेन्ट का सफरनामा का विमोचन किया। बता दें कि बसपा सुप्रीमों बहनजी 15 जनवरी को अपना 69वां जन्मदिन मना रही हैं, जिसको लेकर देश भर के बसपा कार्यकर्ताओं में उत्साह है। बहनजी ने भी अपने तेवरों से उन लोगों को करारा जवाब दे दिया है, जो यह मानते हैं कि बसपा का समय अब खत्म हो गया है। बसपा सुप्रीमों का यह कहना की बसपा का समय फिर से आएगा से बसपा समर्थक उत्साह में है।

मध्य प्रदेशः दलितों का प्रसाद खाया तो सवर्ण परिवारों का ही कर दिया सामाजिक बहिष्कार

जातिवाद समाज के भीतर कितनी गहराई से बैठा है, यह मध्यप्रदेश में घटी एक घटना से पता चलता है। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के एक गांव में 20 परिवारों को एक दलित व्यक्ति से प्रसाद लेने के कारण सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है। परिवार का आरोप है कि यह फरमान गांव के सरपंच संतोष तिवारी ने जारी किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, यह घटना छतरपुर जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर अटरार गांव की है।

गांव के जगत अहिरवार ने मनोकामना पूरी होने पर 20 अगस्त, 2024 को तलैया हनुमान मंदिर में विशेष भोग ‘मगज लड्डू’ चढ़ाया था। प्रसाद मंदिर के पुजारी रामकिशोर अग्निहोत्री ने चढ़ाया और वहां मौजूद लोगों को बांटा। यह प्रसाद विभिन्न जातियों के ग्रामीणों को दिया गया। इसमें ब्राह्मण सहित अन्य कथित ऊंची जातियों के लोग भी शामिल थे। गांव में यह बात फैलने पर कि ‘ऊंची जातियों’ के लोगों ने एक दलित व्यक्ति का प्रसाद लिया है, तो सरपंच ने इन परिवारों के सामाजिक बहिष्कार का आदेश दे दिया। प्रभावित परिवारों का कहना है कि उन्हें तब से सामाजिक आयोजनों, जैसे शादियों और अन्य समारोहों से बाहर कर दिया गया है।

अब गांव के कई लोग उन्हें ‘लड्डू वाले’ कहकर चिढ़ाते हैं। उन्होंने जिला अधिकारियों से संपर्क किया और एसपी के पास शिकायत दर्ज कराई। स्थानीय अधिकारियों द्वारा हाल में सुलह कराने की कोशिशों के बावजूद स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। स्थानीय एसपी का कहन है कि ‘हमें दोनों पक्षों से शिकायतें मिली हैं। मामले की जांच की जा रही है और वरिष्ठ अधिकारियों को तैनात किया गया है।’

इस घटना से साफ है कि अगर समाज के कुछ लोग ऊंच-नीच और जाति प्रथा जैसी बातों से आगे निकलकर दलितों के साथ एकता बनाने की वकालत करते हैं तो जातिवादी उनके खिलाफ भी खड़े हो जाते हैं।

तिलका मांझी के शहादत दिवस की कहानी

बिहार के भागलपुर स्थित इसी चौराहे पर तिलका मांझी को फांसी दी गई थी

जनवरी की 13 तारीख भारत के इतिहास में एक क्रांतिकारी वीर सपूत के शहादत दिवस के रूप में दर्ज है। साल 2025 में भारत और भागलपुर- संथाल परगना क्षेत्र  के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी, महान् क्रान्तिकारी किसान नेता एवं महान मूलनिवासी बहुजन नायक, अमर शहीद तिलकामांझी का 240वां शहादत दिवस है। इस पुनीत अवसर पर हम अपने 35 वर्षीय अमर युवा शहीद के प्रति भारत के सभी नागरिकों एवं विशेष कर मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि और शत-शत नमन अर्पित करते हैं।

 यह सर्वविदित है कि तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी 1750 ई. में मूलनिवासी संथाल जनजाति में राजमहल के एक गांव में हुआ था। उनके पिता सुन्दर मांझी एवं माता सोमी थे। उन्होंने मात्र 29 वर्ष की आयु में 1779 में अंग्रेज ईस्ट इंडिया कम्पनी की 10 वर्षीय कृषि ठेकेदारी की आर्थिक लूट की व्यवस्था लागू करने, फूट डालो- राज करो की नीतियों, आदिवासियों एवं किसानों का किए जा रहे सूदखोरी-महाजनी शोषण और पहाड़िया एवं संथाल जनजातियों के विद्रोहों- आन्दोलनों को कुचलने की दमनकारी नीतियों और कार्यों के खिलाफ मूलनिवासी किसानों को संगठित कर हुल विद्रोह का बिगुल बजा दिया था। उनके द्वारा शाल पेड़ के छाल में गांठ बांध कर सभी संथाल एवं पहाड़िया के गांवों में भेजा गया था और विद्रोह करने का निमंत्रण दिया गया था। उनके नेतृत्व में आदिवासियों और किसानों में एकता बनीं और संघर्षों का दौर शुरू हुआ था। 1779 ई. से 1784 ई. तक रुक-रुक कर जगह-जगह राजमहल से लेकर खड़गपुर- मुंगेर तक अंग्रेजों की सेना के साथ गुरिल्ला युद्ध का कुशल नेतृत्व तिलका मांझी ने किया था।

बिहार के भागलपुर स्थित इसी चौराहे पर तिलका मांझी को फांसी दी गई थी   1779 ई. में ही भागलपुर के प्रथम कलक्टर क्लीबलैंड नियुक्त हुए थे। उनके द्वारा जनजातियों में फूट डालने की नीति के तहत पैसे, अनाज और कपड़े बांटने के कार्य किए जा रहे थे। पहाड़िया जनजाति के लोगों की 1300 सैनिकों की भर्ती 1781ई में की गई थी। उस सैनिक बल का सेनापति जबरा या जोराह (Jowrah) नामक कुख्यात पहाड़िया लूटेरे को बनाया गया था, जो जीवन भर अंग्रेज़ों के वफादार सेनापति बना रहा। ये सैनिक बल तिलका मांझी के जनजाति एवं किसान विद्रोह को कुचलने और दमन करने के लिए लगातार लड़ाई कर रहे थे। तीतापानी के समीप 1782 और 1783 में हुए दो युद्धों में अंग्रेजी सेना की बुरी तरह हार हुईं।

 उस पराजय के बाद कलक्टर आगस्ट्स क्लीवलैंड के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना के साथ 30 नवम्बर 1783 को पुनः उसी स्थान पर तिलका मांझी के साथ भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में क्लीवलैंड विषाक्त तीर और गुलेल के पत्थर से बुरी तरह घायल हो गया और उसे भागलपुर लाया गया। उसने अपना प्रभार अपने सहायक कलेक्टर चार्ल्स कॉकरेल को सौंप दिया और वे अपनी इलाज के लिए इंग्लैंड वापस लौट गया। किन्तु रास्ते में ही समुद्री जहाज पर 13 जनवरी, 1784 ई. को उसकी मौत हो गई।

उसके बाद सी कैपमैन भागलपुर के कलक्टर नियुक्त हुए, जिन्होंने तिलका मांझी की सेना और जनजाति समाज के विरुद्ध भागलपुर राजमहल के पूरे क्षेत्र में पुलिस आतंक का राज बना दिया। दर्जनों गांवों में आग लगा दी गई। सैकड़ों निर्दोष आदिवासी मौत के घाट उतार दिए गए और पागलों की तरह अंग्रेजी सेना तिलकामांझी की तलाश करने लगीं। तिलका मांझी राजमहल क्षेत्र से निकल कर भागलपुर क्षेत्र में आ गये और अब छापा मारकर युद्ध करने लगे। सुल्तानगंज के समीप  के जंगल में 13 जनवरी, 1785 ई में हुए युद्ध में तिलका मांझी घायल हो गए और उन्हें पकड़ कर भागलपुर लाया गया। यहां कानून और न्याय के तथाकथित सभ्य अंग्रेजी अफसरों ने घोड़े के पैरों में लम्बी रस्सी से बांध कर सड़कों पर घसीटते हुए अधमरा कर तिलका मांझी चौंक पर स्थित बरगद पेड़ पर टांग दिया और मौत की सज़ा दी।

अंग्रेजों ने उन्हें आतंकवादी और राजद्रोही माना, किन्तु भागलपुर-राजमहल क्षेत्र सहित बिहार के लोगों ने उन्हें अपना महान नेता, महान् क्रान्तिकारी योद्धा और शहीद मानकर श्रद्धांजलि अर्पित की। उनके सम्मान में शहादत स्थान का नाम तिलका मांझी चौंक रखा गया। उनके नाम पर तिलका मांझी हाट लगाया गया और जहां से वे पकड़े गए थे उस स्थान पर तिलकपुर गांव (सुल्तानगंज प्रखंड) बसा हुआ है।

उसके लगभग 195 वर्षों के बाद तिलका मांझी चौक पर उनकी मूर्ति 1980 ई. में लगाई गई। फिर उसके बाद भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम तिलका मांझी विश्वविद्यालय रखा गया। उसके बाद 14 अप्रैल, 2002 ई. में तिलका मांझी  विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन के सामने उनकी मूर्ति लगाई गई। किन्तु यह काफी दुखद है कि बिहार और भारत के कुछ इतिहासकारों ने उन्हें ऐतिहासिक पुरुष नहीं मानते हुए इतिहास के पन्नों में ही जगह देने से इंकार कर दिया। भागलपुर में भी एक तीसमार खां इतिहासकार इस पर विवाद पैदा करते रहते हैं। संभवतः इतिहास दृष्टि के अभाव में या जातिगत विद्वेष के कारण वे ऐसा करते हैं।

फातिमा शेख पर बहस के बीच इतिहासकार विक्रम हरिजन ने दिलीप मंडल को किया बेनकाब

9 जनवरी को माता सावित्री बाई फुले की सहयोगी और पहली महिला मुस्लिम शिक्षिका फातिमा शेख की जयंती हुई थी। इस दौरान जब देश भर के लोग उन्हें श्रद्धांजली दे रहे थे, पूर्व अंबेडकरवादी और वर्तमान में भाजपा की मोदी सरकार में मीडिया एडवाइजर के पद पर काम कर रहे दिलीप मंडल ने फातिमा शेख को मिथक बता दिया। उन्होंने दावा किया कि फातिमा शेख जैसा कोई कैरेक्टर नहीं है, और उसे उन्होंने सोशल मीडिया पर क्रिएट किया। इसके बाद तमाम लोगों ने दिलीप मंडल पर फातिमा शेख के अपमान और बहुजन इतिहास पर गलतबयानी करने को लेकर हमला बोला। इसी कड़ी में दलित दस्तक के संपादक अशोक दास ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर विक्रम हरिजन ने तमाम तथ्यों के जरिये दिलीप मंडल को झूठा साबित कर दिया। देखिए वह चर्चा-
 

दिल्ली में बनेगा डॉ. आंबेडकर का स्मारक?

Baba Saheb Ambedkarहाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की मृत्यु के बाद उनके स्मारक की मांग उठाई जाने लगी। कांग्रेस पार्टी का कहना था कि केंद्र सरकार को पूर्व प्रधानमंत्री का स्मारक बनाने के लिए जमीन आवंटित करनी चाहिए। इस बीच केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति  डॉ. प्रणब मुखर्जी के स्मारक के लिए जगह का आवंटन कर दिया। केंद्र सरकार ने जानकारी दी है कि पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे प्रणब मुखर्जी की याद में राजघाट के पास ही राष्ट्रीय स्मृति स्थल में स्मारक बनेगा।

इस बहस के बीच बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर की याद में दिल्ली में स्मारक बनाने की मांग भी उठने लगी है। अंबेडकरवादी समाज का कहना है कि बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर को वह सम्मान नहीं दिया गया था जो मिलना चाहिए। डॉ. आंबेडकर के परिनिर्वाण के बाद अंबेडकरवादी चाहते थे कि उनकी याद में दिल्ली में राजघाट या आस-पास बाबासाहेब का स्मारक बने। लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बाबासाहेब के पार्थिव शरीर को आनन-फानन में विशेष विमान से मुंबई भिजवा दिया। मुंबई में भी डॉ. आंबेडकर के अनुयायी शिवाजी पार्क में बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर का अंतिम संस्कार और स्मारक चाहते थे, लेकिन तब भी प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ने इसके लिए अनुमति नहीं दी। तब बाबासाहेब के मित्र ने दादर में समुद्र किनारे अपनी निजी जमीन बाबासाहेब के स्मारक के लिए दान दी, जिसमें आज डॉ. आंबेडकर का स्मारक है।

ऐसे में एक बार फिर से यह बहस चल पड़ी है कि क्या नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार बाबासाहेब को दिल्ली में स्मारक बनाकर सम्मान देगी। इस मुद्दे पर “दलित दस्तक” के संपादक अशोक दास ने दलित एक्टिविस्ट डॉ. सतीश प्रकाश से चर्चा की। आप भी देखिए-

 

अमेरिका में अमित शाह के खिलाफ सड़क पर उतरे अंबेडकरवादी

अमेरिका के डलास स्थित टेक्सास में अमित शाह के खिलाफ प्रदर्शन करते अंबेडकरवादी

डलास, अमेरिका। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ भारत के बाद अब अमेरिका के अंबेडकरवादियों में भी गुस्सा भड़क गया है। पिछले दिनों न्यूयार्क में अंबेडकरवादियों के विरोध प्रदर्शन के बाद अब अमेरिका के डलास स्थित टेक्सास में 4 जनवरी को अंबेडकरवादियों ने अमित शाह पर जमकर हमला बोला। यहां के सिटी हाल में सौ से ज्यादा अंबेडकरवादी एक साथ जुटे और अमित शाह के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।

साफ है कि संसद में संविधान पर चर्चा के दौरान जिस तरह से अमित शाह ने बाबासाहेब को लेकर टिप्पणी की, उससे सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में रहने वाले अंबेडकरवादियों ने मोर्चा खोल दिया है। और किसी भी हाल में अमित शाह को माफ करने के मूड में नहीं हैं।

खास बात यह रही कि इस विरोध प्रदर्शन में दलित समाज के अलावा अल्पसंख्यक समाज के लोगों ने भी हिस्सा लिया। उन्होंने साफ कर दिया कि बिना बाबासाहेब आंबेडकर के भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। इस दौरान अंबेडकरवादियों ने यह साफ कर दिया कि जब तक अमित शाह माफी नहीं मांगते, यह विरोध प्रदर्शन रुकने वाला नहीं है।

कर्नाटक में ‘जय भीम’ गाना बजाने पर दलितों से मारपीट

प्रतीकात्मक फोटो

राजनीतिक फायदे के लिए तमाम दल और नेता भले ही बाबासाहेब के नाम की दुहाई दें, जमीन पर समाज के जातिवादी तबके में बाबासाहेब आंबेडकर को लेकर कितनी नफरत है, यह कर्नाटक में देखने को मिला। कर्नाटक के तुमकुरु जिले में दलित समाज के दो युवकों के साथ महज इसलिए मार-पीट की गई क्योंकि वो ‘जय भीम’ गाना बजा रहे थे। जातिवादियों ने इस दौरान दलितों को जातिवादी गालियां भी दी। पुलिस ने इस मामले में एक रेलवे अधिकारी चंद्रशेखर के अलावा नरसिंह राजू के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। घटना चार जनवरी की है।

खबरों के मुताबिक सिरिवारा गांव के निवासी दीपू (19) और नरसिंह मूर्ति (32) शाम को अपने टाटा ऐस वाहन में जा रहे थे। इस दौरान उन्होंने अपनी गाड़ी में ‘जय भीम’ गाना बजा रखा था। तभी वहां से मोटरसाइकिल पर सवार आरोपियों ने वाहन को रोका और पीड़ितों से उनकी जाति पूछी और ‘जय भीम’ गाने को बजाने के लिए उनके साथ मारपीट शुरु कर दी।

पुलिस निरीक्षक सुनील कुमार के मुताबिक आरोपी घटना के बाद मोटरसाइकल से भाग निकले। पुलिस अधिकरी ने बताया कि दोनों पीड़ितों का सरकारी अस्पताल में इलाज चल रहा है। हमने एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम और बीएनएस की धारा 109 (हत्या की कोशिश) के तहत मामला दर्ज किया है। हालांकि खबर लिखने तक हमारी जानकारी के मुताबिक आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी।

ओडिशा में आदिवासी विद्यार्थियों को पढ़ाई के लिए 5000 रुपये देगी सरकार

घर के बाहर पढ़ती आदिवासी बच्ची, चित्र साभारः यूनिसेफ

आदिवासी समाज के युवाओं की पढ़ाई बीच में ही रुक जाना एक बड़ी समस्या रही है। पढ़ाई के पढ़ते खर्चे को परिवार झेल नहीं पाता और नतीजा यह होता है कि ज्यादातर छात्रों की पढ़ाई अधूरी रह जाती है। ओडिशा सरकार ने इसको देखते हुए एक बड़ा कदम उठाया है। ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने 5 जनवरी को सलाना आदिवासी मेले का उद्धाटन करते हुए इस दिशा में बड़ी घोषणा की है। उन्होंने इस दौरान शहीद माधो सिंह हाथ खर्चा योजना की शुरुआत की। इस योजना के तहत सरकार राज्य भर के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में नौवीं और 11वीं कक्षा में पढ़ने वाले प्रत्येक आदिवासी छात्र-छात्राओं को पांच हजार रुपये की सहायता देगी। योजना की शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री ने 1.6 लाख आदिवासी छात्रों को 80 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी। मुख्यमंत्री माझी ने ऐलान किया कि राज्य सरकार हर साल लगभग दो लाख आदिवासी छात्रों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करेगी।

बता दें कि ओडिशा की कुल जनसंख्या का लगभग एक चौथाई (23%) अनुसूचित जनजाति / आदिवासी समुदाय है। यह भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 8% है। आजादी के बाद आदिवासियों की स्थिति सुधारने के लिए तमाम समितियां बनाई गईं। इसमें मुख्य रुप से 1959 में रेणुका रॉय और 1960 में वेरियर एल्विन समिति रही हैं। इसने आदिवासियों के बीच शिक्षा के विकास के साथ-साथ उनके संपूर्ण विकास के लिए कई सिफारिशें दी। लेकिन इन तमाम समितियों की योजनाएं धरी रह गई। यूनिसेफ की वेबसाइट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक ओडिशा के आदिवासी समुदाय में बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल जाना छोड़ देते हैं और लगभग 50 % लड़कियों की कम उम्र में शादी हो जाती है।

अब देखना होगा कि ओडिशा सरकार के इस फैसले को जमीन पर कितना उतारा जाता है। और इससे आदिवासियों के बीच शिक्षा का स्तर कितना सुधरता है। जहां तक शहीद माधो सिंह हाथ खर्च योजना की बात है तो इसका लाभ पाने के लिए ऑनलाइन आवेदन शुरु हैं। www.scholarship.odisha.gov.in पर जाकर इसके लिए आवेदन कर सकते हैं।

अनुप्रिया पटेल के पति और यूपी सरकार में मंत्री आशीष पटेल पर आरक्षण के खिलाफ काम करने का आरोप

पिछड़ों की राजनीति कर केंद्र की सत्ता में लंबे समय से मंत्री पद पर बैठी अनुप्रिया पटेल के पति आशीष पटेल पर पिछड़ों का ही हक मारने का गंभीर आरोप लगा है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में टेक्निकल एजुकेशन मंत्री  आशीष पटेल पर लगे इन आरोपों ने प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। दरअसल उत्तर प्रदेश के टेक्निकल एजुकेशन डिपार्टमेंट में विभागाध्यक्ष के 177 पदों पर हुई पदोन्नति हुई थी। आशीष पटेल पर इसी में अनियमितता का आरोप लगा है। समाजवादी पार्टी की विधायक और अपना दल (कमेरावादी) की नेता पल्लवी पटेल ने इस मामले में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से मुलाकात की थी। तो रविवार 5 जनवरी को उन्होंने आशीष पटेल के पूर्व ओएसडी राजकुमार पटेल के साथ प्रेस कांफ्रेंस की। इसमें पूर्व ओएसडी ने मीडिया के सामने आरोप लगाया कि उन्होंने अनियमितताओं के बारे में आशीष पटेल को शुरू में ही चेताया था, लेकिन उनकी बातों की अनदेखी की गई। पूर्व ओएसडी के बयान के बाद आशीष पटेल बुरी तरह से घिर गए हैं।

पल्लवी पटेल ने इस मामले को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के समक्ष उठाते हुए 9 दिसंबर 2024 को जारी हुए डीपीसी शासनादेश को तत्काल निरस्त करने और विशेष जांच टीम (SIT) गठित कर दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की है। सपा विधायक पल्लवी पटेल ने आरोप लगाया है कि प्राविधिक शिक्षा विभाग में विभागाध्यक्ष के 45 पदों को असंवैधानिक तरीके से भरा गया। सामान्य प्रक्रिया के तहत इन पदों पर उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) के माध्यम से सीधी भर्ती होनी चाहिए थी। लेकिन इन पदों को विभागीय पदोन्नति के माध्यम से भर दिया, जो नियमानुसार गलत है। पल्लवी पटेल ने दावा किया कि यह पूरी प्रक्रिया आरक्षण नीति और विभागीय नियमों के खिलाफ है। दिलचस्प यह है कि पल्लवी पटेल जिस आशीष पटेल पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही हैं, वह उनकी बहन अनुप्रिया पटेल के पति हैं। अनुप्रिया पटेल अपना दल (एस) की अध्यक्ष हैं। साथ ही केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं। दोनों बहनों में छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है।

इन आरोपों से बैकफुट पर आए मंत्री आशीष पटेल ने इसे राजनीतिक साजिश बताया है। उनका कहना है कि ऐसा आरोप लगाकर उनकी छवि को खराब करने का प्रयास किया जा रहा है। खुद को पाक-साफ साबित करने के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके द्वारा लिए गए सभी फैसलों की सीबीआई जांच कराने की मांग कर डाली है।

दूसरी ओर इस मामले को लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी आशीष पटेल पर मंत्री पद का दुरुपयोग किये जाने का आरोप लगाया है। अखिलेश यादव का कहना है कि “आरक्षण नीति का मजाक उड़ाया जा रहा है। यह सरकार दलितों और पिछड़ों के अधिकारों का हनन कर रही है।”

मंत्री आशीष पटेल पर लगे ये आरोप उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी हलचल पैदा कर सकते हैं। एक बड़ा सवाल यह भी है कि जो अनुप्रिया पटेल पिछड़ों की राजनीति कर मंत्री पद तक पहुंची हैं, क्या उनके ही पति पिछड़ों का हक मार रहे हैं। जहां तक आशीष पटेल का सवाल है तो एक तरफ उन पर पिछड़ों का हक मारने का आरोप लग रहे है तो वहीं वह योगी सरकार के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं।

आशीष पटेल सीएम योगी के दो करीबी अफसरों पर लगातार हमलावर हैं। इसमें सूचना निदेशक शिशिर सिंह और STF चीफ अमिताभ यश शामिल हैं। शिशिर सिंह वो अधिकारी हैं, जो योगी सरकार की उपलब्धियों को आम जनता तक पहुंचा रहे हैं। इससे सीएम योगी की प्रसिद्धि लगातार बढ़ रही है। अब सवाल ये है कि ‘गठबंधन कोटे’ से मंत्री आशीष पटेल इन्हीं दो पर सवाल क्यों उठा रहे हैं, और किसके इशारे पर उठा रहे है।

लखनऊ के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि जिस तरह मोदी के बाद कौन? के सवाल के बीच, योगी आदित्यनाथ और अमित शाह आमने-सामने खड़े हैं, और योगी अमित शाह से आगे दिख रहे हैं, वैसे में कहीं आशीष पटेल दिल्ली के इशारे पर तो यह नहीं कर रहे हैं? इस बीच सीएम योगी आदित्यनाथ ने आशीष पटेल को बुलाकर कड़ी नसीहत भी दे डाली है। चर्चा है कि आशीष पटेल पर जल्दी ही सीएम योगी कड़ा एक्शन ले सकते हैं।

युनिवर्सिटी में जातिवाद के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

17 जनवरी 2016 को रोहित वेमुला की आत्महत्या, जिसे सांस्थानिक हत्या कहा गया और 22 मई 2019 को पायल तडवी की आत्महत्या ने बड़े शिक्षण संस्थानों में दलित और आदिवासी छात्रों के साथ जातिवाद पर बड़ी बहस शुरू हो गई। रोहित वेमुला और पायल तड़वी की आत्म हत्या सुर्खियों में रहा था। उनकी माताओं ने उच्च शिक्षण संस्थान में जातिगत भेदभाव की शिकायत करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। इसको लेकर अब सुप्रीम कोर्ट ने 3 जनवरी 2025 को यूजीसी से जवाब मांगा है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जवल भुइयां की पीठ ने इस बारे में अहम निर्देश दिये हैं। साथ ही कहा है कि वह देश भर के शैक्षणिक संस्थानों में जातिवाद से निपटने के लिए एक प्रभावी तंत्र तैयार करेगा।

विश्वविद्यालयों में एससी-एसटी युवाओं के साथ होने वाले जातिवाद पर सुप्रीम कोर्ट में बहस करते हुए वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि- 2004 से अब तक आईआईटी और अन्य संस्थानों में 50 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की थी। इनमें ज्यादातर एससी-एसटी छात्र हैं। युनिवर्सिटी में जातिवाद के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, डॉ. विक्रम हरिजन ने दलित दस्तक के संपादक अशोक दास से बातचीत में इसको लेकर तमाम सवाल उठाएं हैं।

बदल गए जेल के नियम, अब जाति के आधार पर नहीं होगा कामों का बंटवारा

जेलों में जाति के आधार पर एससी-एसटी के साथ भेदभाव पर सरकार की ओर से बड़ा अपडेट आया है। पत्रकार सुकन्या शांता की खोजी रिपोर्ट और जनहित याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन अक्तूबर 2024 को इसको रोकने के लिए फैसला सुनाया था। इसके बाद अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जेलों में कैदियों के साथ जातिवाद रोकने के लिए जेल नियमावली में संशोधन किया है।

नए संशोधन के अनुसार जेल अधिकारियों को सख्ती से यह सुनिश्चित करना होगा कि कैदियों के साथ उनकी जाति के आधार पर कोई भेदभाव न हो। गृह मंत्रालय की ओर से प्रमुख सचिवों को जारी पत्र में कहा गया है- “यह सख्ती से सुनिश्चित किया जाएगा कि जेलों में किसी भी ड्यूटी या काम के आवंटन में कैदियों के साथ उनकी जाति के आधार पर कोई भेदभाव न हो।”

नए नियमों के मुताबिक अब आदर्श कारागार एवं सुधार सेवा अधिनियम, 2023 के विविध में भी बदलाव किये गए हैं। इसमें धारा 55 (ए) के रूप में नया शीर्षक जोड़ते हुए ‘कारागार एवं सुधार संस्थानों में जाति आधारित भेदभाव का निषेध’ किया गया है। गृह मंत्रालय के आदेश में हाथ से मैला उठाने को लेकर भी चर्चा की गई है। कहा गया है कि जेल के अंदर हाथ से मैला उठाने या सीवर या सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई की अनुमति नहीं दी जाएगी।

दरअसल पुराने कानून और नियमावली में एससी-एसटी की कुछ जातियों को आदतन अपराधी के रूप में दर्ज किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर भी आपत्ति दर्ज कराई थी। बता दें कि तकरीबन एक दर्जन राज्यों की जेल नियमावलियों में जाति-आधारित भेदभावपूर्ण प्रावधान थे, जिसमें जाति के आधार पर कैदियों को अलग बैरकों में रखने का नियम था। सुप्रीम कोर्ट ने उन नियमों को असंवैधानिक करार दिया था। साथ ही जाति के आधार पर कामों के बंटवारों को भी गैर कानूनी घोषित किया था। हालांकि नियमों में तमाम बदलाव के बावजूद हकीकत में यह नियम कितने बदलते हैं, यह आने वाला समय बताएगा।