पाली, प्राकृत सहित पांच को मिला शास्त्रीय भाषा का दर्जा

नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हाल में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में पांच और भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की मंजूरी हुई है। इनमें मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाएं शामिल हैं। इसके साथ ही अब 11 शास्त्रीय भाषाएं हो जाएंगी।

पाली व प्राकृत को शास़्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से गौतम बुद्ध के उपदेशों व बौद्ध साहित्य को सहेजने में मदद मिलेगी। ‘दलित दस्तक’ को लखनऊ स्थित केन्द्रीय संस्कृति विश्वविद्यालय के शोध छात्र भीमराव अम्बेडकर ने बताया कि गौतम बुद्ध के उपदेश व अधिकांश बौद्ध साहित्य का सृजन पाली व प्राकृत भाषा में किया गया है। इन दोनों भाषाओं पर शोधकार्य बढ़ने से बौद्ध साहित्य को समझने व उसका दूसरी भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने में आसानी होगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक पोस्ट में लिखा, “पाली और प्राकृत भारत की संस्कृति के मूल हैं। ये आध्यात्मिकता, ज्ञान और दर्शन की भाषाएं हैं। वे अपनी साहित्यिक परंपराओं के लिए भी जानी जाती हैं। शास्त्रीय भाषाओं के रूप में उनकी मान्यता भारतीय विचार, संस्कृति और इतिहास पर उनके कालातीत प्रभाव का सम्मान करती हैं। मुझे विश्वास है कि उन्हें शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता देने के कैबिनेट के फैसले के बाद, अधिक लोग उनके बारे में जानने के लिए प्रेरित होंगे।”

इससे पहले ही तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी जा चुकी है। दरअसल, भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को “शास्त्रीय भाषाओं” के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का फैसला किया था, जिसके तहत तमिल को शास्‍त्रीय भाषा घोषित किया गया था। सरकार ने शास्त्रीय भाषा के तहत दर्जा देने के लिए कुछ नियम निर्धारित किए थे। इसमें ग्रंथों की उच्च प्राचीनता या एक हजार वर्षों से अधिक का इतिहास देखा जाएगा।

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने साहित्य अकादमी के तहत नवंबर 2004 में शास्त्रीय भाषा के दर्जे के लिए प्रस्तावित भाषाओं की जांच करने के लिए एक भाषा विशेषज्ञ समिति का भी गठन किया था। नवंबर 2005 में इसके नियमों में कुछ और संशोधन किया और इसके बाद संस्कृत को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया।

शास्त्रीय भाषा के मापदंड

  • प्रारंभिक लेखन और ऐतिहासिक विवरणों की प्राचीनता 1,500 से 2,000 BC की है।
  • प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का संग्रह जिसे पीढ़ियों द्वारा मूल्यवान विरासत माने जाते है।
  • किसी अन्य भाषा समुदाय से उधार न ली गई एक मौलिक साहित्यिक परंपरा की उपस्थिति।
  • शास्त्रीय भाषा और साहित्य, आधुनिक भाषा से भिन्न होने के कारण, शास्त्रीय भाषा तथा उसके बाद के रूपों अथवा शाखाओं के बीच एक विसंगति से भी उत्पन्न हो सकती है।

“पुलिस आरोपियों का एनकाउंटर कर भी देती है तो क्या इंसाफ मिल जाएगा?” अमेठी की घटना पर आकाश आनंद का यूपी पुलिस पर तंज

उत्तर प्रदेश के अमेठी में दलित समाज के शिक्षक की परिवार सहित हत्या के मामेल में यूपी पुलिस घिर गई है। इस घटना से यूपी पुलिस के काम करने के तरीके और दलितों के मामले में उपेक्षा का गंभीर आरोप लग रहा है। बसपा के नेशनल को-आर्डिनेटर आकाश आनंद ने इस मामले में यूपी पुलिस पर जबरदस्त तंज किया है।

सोशल मीडिया एक्स पर इस मामले में बसपा सुप्रीमों सुश्री मायावती के पोस्ट को रिपोस्ट करते हुए अपनी पोस्ट में आकाश आनंद ने लिखा- यूपी में पुलिस अत्यंत सक्रिय है। इतनी सक्रिय है कि अमेठी में एक शिक्षक, उनकी पत्नी उनके दो बच्चों की घर में घुसकर हत्या कर दी गई। जानकारी में आया है कि मूलतः रायबरेली के रहने वाले शिक्षक सुनील की पत्नी ने पिछले महीने रायबरेली में sc/st act में मुकदमा दर्ज कराया था। अत्यंत सक्रिय पुलिस की जांच वहां भी जारी है। अत्यंत सक्रिय पुलिस आरोपियों का एनकाउंटर कर भी देती है तो सुनील और उनके परिवार को कौन सा इंसाफ मिल जाएगा? ये कैसी कानून व्यवस्था है जहां सरेआम घर में घुसकर हत्याएं की जा रही हैं। यूपी में कानून का राज खत्म हो चुका है। बुलडोजर और एनकाउंटर राज से ना जनता सुरक्षित है ना अपराधियों में कानून का खौफ है। भाजपा की डबल इंजिन की सरकार कानून का राज स्थापित करने में फेल हो चुकी है। केवल बुलडोजर और एनकाउंटर की हवा हवाई नीति से नहीं बल्कि कानून द्वारा ही कानून का राज स्थापित हो सकता है जैसा की आदरणीय बहन जी ने अपनी चार बार की सरकारों में उत्तर प्रदेश में किया था।

यूपी के अमेठी में दलित परिवार का सामूहिक हत्याकांड, पुलिस पर उठे गंभीर सवाल

उत्तर प्रदेश के अमेठी में दलित समाज के व्यक्ति की परिवार सहित गोली मार कर हत्याअमेठी। उत्तर प्रदेश के अमेठी में दलित समाज के व्यक्ति की परिवार सहित गोली मार कर हत्या दी गई है। मरने वाले में युवक, उसकी पत्नी और दो बेटियां हैं। एक ही परिवार के चार लोगों की निर्मम हत्या से पूरे प्रदेश में खलबली मच गई है। इस मामले में यूपी पुलिस पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। खबर है कि सुनील की पत्नी पूनम भारती ने 18 अगस्त को रायबरेली में छेड़खानी और जान से मारने की धमकी को लेकर पुलिस में शिकायत की थी, लेकिन पुलिस ने इसको गंभीरता से नहीं लिया।

घटना सामने आने के बाद बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती सहित चंद्रशेखर आजाद, अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने यूपी सरकार को जमकर घेरा है। मारे गए परिवार के मुखिया सुनील कुमार एक सरकारी शिक्षक थे। सुनील के साथ पत्नी पूनम भारती और उनकी दो मासूम बेटियों दृष्टि (5) और मिकी (2) को भी हैवानों ने नहीं बख्शा।

बसपा प्रमुख मायावती ने घटना को अति-दुखद व चिन्ताजनक बताते हुए यूपी सरकार को घेरा है। बहनजी ने कहा कि सरकार दोषियों व वहां के पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए। तो दूसरी ओर आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने भी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को घेरते हुए कहा कि अमेठी की घटना बताती है कि उत्तर प्रदेश में कानून का राज नहीं, बल्कि जंगलराज है। यह घटना उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की असली तस्वीर है, कि सच क्या है और प्रचार क्या है। सच यह है कि उत्तर प्रदेश में दलितों के जीवन की कोई गारंटी नही है, कल किसका नंबर होगा पता नहीं, और प्रचार यह है कि कानून व्यवस्था बहुत अच्छी है।

नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि अगर पुलिस-प्रशासन द्वारा पूनम भारती की डेढ़ महीना पहले खुद के साथ छेड़खानी और जान से मारने की धमकी की, शिकायत पर कार्यवाही की होती तो आज चार जान नहीं जाती। चंद्रशेखर आजाद ने सीएम योगी से मामले को गंभीरता से लेते हुए 48 घंटे में सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर सख्त कार्यवाही करने और असंवेदनशील पुलिसकर्मियों पर भी सख्त कार्यवाही करने की मांग की है। ऐसा नहीं होने पर अमेठी पहुंचकर पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिये अमेठी जिलाधिकारी कार्यालय पर धरने पर बैठने की धमकी दी है।

इस मामले में जिस तरह की खबरें आ रही है, उसमें सीधे तौर पर यूपी पुलिस की नाकामी और काम को लेकर लापरवाही नजर आ रही है। साफ है कि यूपी के अमेठी में दलित परिवार के चार लोगों की घर में घुसकर हत्या की खबर पुलिस महकमे पर धब्बा है। जब घर की महिला ने 18 अगस्त को छेड़खानी और जान से मारने की धमकी की शिकायत की थी, तो पुलिस ने मामले को गंभीरता से क्यों नहीं लिया? क्या यह परिवार दलित समाज का था इसलिए? ऐसे कई सवाल है, जिसका जवाब पुलिस महकमे को देना होगा।

जेल में जातिवाद के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

आप समाज के बीच रह रहे हों या फिर जेल में। जाति आपका पीछा नहीं छोड़ती। अगर कोई नाई होगा तो जेल में उसे बाल और दाढ़ी बनाने का काम मिलेगा, ब्राह्मण क़ैदी खाना बनाते हैं और वाल्मीकि समाज के क़ैदी सफ़ाई करते हैं। इसी तरह के भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। तीन अक्तूबर 2024 को मुख्य न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने जेलों में जाति आधारित भेदभाव खत्म करने के लिए कड़े निर्देश जारी किये। कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 में मिले समानता के खिलाफ बताया।

जेलों के अंदर जाति के आधार पर काम के बंटवारे से नाराज सु्प्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि- “हमारा मानना है कि कोई भी समूह मैला ढोने वाले वर्ग के रूप में या नीचा समझे जाने वाला काम करने या न करने के लिए पैदा नहीं होता है। कौन खाना बना सकता है और कौन नहीं, यह छुआछूत के पहलू हैं, जिनकी अनुमति नहीं दी जा सकती…. सफाईकर्मियों को चांडाल जाति से चुना जाना पूरी तरह से मौलिक समानता के विपरीत है और संस्थागत भेदभाव का एक पहलू है।”

तमाम राज्यों के जेल मैनुअल में इस तरह की व्यवस्था को गलत बताते हुए पीठ ने कहा- “ऐसे सभी प्रावधान असंवैधानिक माने जाते हैं। सभी राज्यों को निर्देश दिया जाता है कि वे फैसले के अनुसार जेल नियमावली में बदलाव करें…”

क्या है मामला बता दें कि मानवाधिकार क़ानून और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों पर लिखने वाली पत्रकार सुकन्या ने जेल में जातिगत भेदभाव पर 2020 में रिसर्च रिपोर्ट तैयार की थी। इसके बाद उन्होंने दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सहित मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत 17 राज्यों से जेल के अंदर जातिगत भेदभाव और जेलों में कैदियों को जाति के आधार पर काम दिए जाने पर जवाब मांगा था।

दरअसल जेलों में दलित समाज के कैदियों को सफाई जैसे काम जबकि अगड़ी जातियों को खाना बनाने जैसे काम दिये जाते रहे हैं। इसके अलावा कैदियों को भी कई बार जाति के आधार पर अलग-अलग रखा जाता है। तुर्रा यह कि ये सब कई राज्यों के जेल मैन्युअल में भी लिखा था। जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है। हालांकि देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद जेलों के भीतर क्या बदलाव आता है।

हरियाणा में भाजपा को बड़ा झटका, अशोक तंवर कांग्रेस में शामिल

राहुल गांधी की महेन्द्रगढ़ रैली में कांग्रेस में वापसी करते अशोक तंवर

हरियाणा चुनाव प्रचार के आखिरी दिन भाजपा को बड़ा झटका लगा है। एक नाटकीय घटनाक्रम में भाजपा के दलित चेहरे अशोक तंवर ने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर सबको चौंका दिया। दोपहर एक बजे तक भाजपा के लिए चुनाव प्रचार करने वाले अशोक तंवर अचानक घंटे भर बाद ही राहुल गांधी की महेन्द्रगढ़ रैली में पहुंच गए, जहां उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर लिया।

अशोक तंवर भाजपा के चुनाव कैंपेंन कमेटी के अहम सदस्य और स्टार प्रचारक भी थे। ऐसे में अशोक तंवर का चुनाव से दो दिन पहले भाजपा को छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन करना, भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। अशोक तंवर ने भूपेन्द्र हुड्डा से मतभेद के बाद का 2019 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दिया था। कांग्रेस छोड़ने के बाद उन्होंने अपनी पार्टी और संगठन बनाने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सके। साल 2022 में वह आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। लेकिन वहां से भी जल्दी ही उनका मन भर गया। ऐसे में अशोक तंवर इसी साल 20 जनवरी में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की उपस्थिति में भाजपा में शामिल हो गए थे।

 

अशोक तंवर ने अपनी राजनीति कांग्रेस के साथ ही शुरू की थी। साल 2009 में वह सिरसा लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। लेकिन 2014 में वह चुनाव हार गए। 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अशोक तंवर को सिरसा से अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन कांग्रेस की दिग्गज नेता कुमारी सैलजा ने उन्हें 2.5 लाख से ज्यादा वोटों से करारी शिकस्त दे दिया। ऐसे में अशोक तंवर का राजनैतिक करियर दांव पर था और उन्हें कांग्रेस में वापसी ही बेहतर विकल्प लगा। बता दें कि अशोक तंवर हरियाणा के दिग्गज नेता हैं। हरियाणा की हिसार व सिरसा सीट पर उनका दखल माना जाता है। ऐसे में यहां की सीटों पर कांग्रेस पार्टी को फायदा हो सकता है और भाजपा को बड़ा झटका लग सकता है।

विकास की दौड़ में पीछे छूटता छत्तीसगढ़ का आदिवासी बहुल गांव

 बद्री प्रसाद कहते हैं कि जिला मुख्यालय से दूर दराज़ होने के कारण यह गांव विकास के दौड़ में बहुत पीछे छूट जाता है। विकास की सबसे प्रमुख कड़ी सड़क होती है। वह कहते हैं कि केवल केराचक्का गांव ही नहीं बल्कि राज्य के महासमुंद, सारगंढ-बिलाईगढ़ और बलोदा बाजार के कई गांव ऐसे हैं जहां आज भी पक्की सड़कें नहीं होने के कारण ये गांव विकास में बहुत पीछे रह गए हैं। छत्तीसगढ़ के सारगंढ-बिलाईगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर केराचक्का गांव है। गारडीह ग्राम पंचायत से महज़ दो किमी दूर स्थित इस गांव में 95 प्रतिशत आदिवासी समुदाय निवास करता है। जिसमें खैरवार और बरिहा समुदायों की बहुलता है। यहां लगभग 80 परिवार रहते हैं। बावजूद इसके यह गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित नज़र आता है। गांव तक पहुंचने के लिए एक टूटी-फूटी कच्ची सड़क है।

बारिश के दिनों में कीचड़ से लबालब होने के कारण इस सड़क से होकर गुजरना लगभग नामुमकिन हो जाता है। इस दौरान न केवल गांव में आवागमन ठप्प हो जाता है, बल्कि बच्चों की शिक्षा भी प्रभावित होती है। ख़राब सड़क के कारण वर्षा के दिनों में बच्चों का स्कूल जाना-आना रुक जाता है।

गांव के शासकीय प्राथमिक शाला के प्रधान पाठक सुनित लाल चौहान बताते हैं कि इस स्कूल में 23 बच्चों का नामांकन है। लेकिन वर्षा के दिनों में इक्का-दुक्का बच्चे ही पढ़ने आते हैं। गांव का रास्ता इतना खराब है कि बच्चों को स्कूल आने जाने में बहुत परेशानी होती है। बरसात के दिनों में जब यहां की सड़क आम आदमी के चलने लायक नहीं होती है तो बच्चों से इससे गुज़र कर स्कूल आने की आशा कैसे की जा सकती है?

उनके अनुसार इसका सबसे नकारात्मक प्रभाव लड़कियों की शिक्षा पर पड़ता है। अधिकतर अभिभावक वर्षा के दिनों में उन्हें स्कूल नहीं भेजते हैं। लेकिन रुकिये, सिर्फ यही एक परेशानी नहीं है। स्कूल के बगल में रहने वाले 35 वर्षीय गोकुल बताते हैं कि इस स्कूल में एक ही शिक्षक की नियुक्ति है। जिनके पास पढ़ाने से अधिक ऑफिस के कागज़ी काम को पूरा करने की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी भी होती है। जिसके कारण वह पूरा समय बच्चों को दे नहीं पाते हैं।

केराचक्का गांव में ही ग्राम पंचायत गारडीह भवन स्थापित है।केराचक्का गांव में ही ग्राम पंचायत गारडीह भवन स्थापित है। स्थानीय निवासी बद्री प्रसाद कहते हैं कि पंचायत चुनाव में यह गांव महिला आरक्षित सीट रही। जिस पर गारडीह गांव की श्यामबाई चौहान को निर्विरोध चुना गया था। लेकिन जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पाती। ग्राम पंचायत में भी महीने में एक बार राशन डीलर आता है उस दिन गांव वालों को राशन मिलता है। ग्राम पंचायत की बैठक भी काफी कम होती है। जिसके कारण गांव की कई समस्याएं समय पर पूरी नहीं हो पाती हैं। अधिकतर समय ग्राम पंचायत बंद होने के कारण लोगों के बहुत से काम समय पर पूरे नहीं हो पाते हैं। जिससे गांव वालों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

बद्री प्रसाद कहते हैं कि जिला मुख्यालय से दूर दराज़ होने के कारण यह गांव विकास के दौड़ में बहुत पीछे छूट जाता है।विकास की सबसे प्रमुख कड़ी सड़क होती है। वह कहते हैं कि केवल केराचक्का गांव ही नहीं बल्कि राज्य के महासमुंद, सारगंढ-बिलाईगढ़ और बलोदा बाजार के कई गांव ऐसे हैं, जहां आज भी पक्की सड़कें नहीं होने के कारण ये गांव विकास में बहुत पीछे रह गए हैं।

स्थानीय समाजसेवी रामेश्वर प्रसाद कुर्रे कहते हैं कि पथरीली भूमि होने के कारण यहां खेती का विकल्प बहुत सीमित है। लोगों के पास ज़मीन के छोटे टुकड़े हैं। जिस पर इतनी फसल नहीं उगती कि उससे होने वाले अनाज से पूरे साल उनके परिवार का पेट भर सके। इसलिए जब खेती का समय नहीं होता है तो यहां का अधिकतर परिवार रोज़गार के अन्य विकल्प तलाश करने के लिए पलायन कर जाता है। इसका सबसे नकारात्मक प्रभाव महिलाओं और किशोरियों के स्वास्थ्य पर देखने को मिलता है।

 कुर्रे बताते हैं कि इस गांव का ऐसा कोई घर नहीं होगा जहां महिलाएं या किशोरियां कुपोषण की शिकार न हों। घर की कमज़ोर आर्थिक स्थिति से सबसे पहले महिलाएं और किशोरियां प्रभावित होती हैं। उन्हें उचित पौष्टिक आहार उपलब्ध नहीं हो पाता है। हालांकि आंगनबाड़ी केंद्र से गर्भवती महिलाओं और बच्चों को पौष्टिक आहार के रूप में अनाज तो मिल जाता है। लेकिन अन्य महिलाओं को यह उपलब्ध नहीं हो पाता है।

इस संबंध में केराचक्का गांव की सरपंच श्यामबाई चौहान से बात करने का प्रयास किया गया तो पता चला कि पंचायत संबंधी सारे काम उनके पति चन्दराम चौहान करते हैं। चन्दराम चौहान बताते है कि पंचायत में विकास के लिए पैसा ही नहीं आता है। जिसके कारण केराचक्का का विकास बहुत कम हुआ है। ज्यादातर परिवारों के पास खेती नहीं होने से वह मजदूरी करते हैं। गांव से ज्यादातर परिवार ईट-भट्टों पर काम करने अलग-अलग राज्यों में जाते हैं। मनरेगा के संबंध में चन्दराम कहते हैं कि अभी यहां पर दो महीनों से ज्यादा समय से मनरेगा का काम बंद है, जबकि इसी महीने में मज़दूर वापस गांव लौटते हैं।

पिछले महीने केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2024-25 से 2028-29 तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत गांव में सड़कों के विकास के लिए करीब 70 हजार करोड़ रुपए को मंजूरी दी है। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार ने भी 2024-25 के अपने बजट में गांव में सड़कों के सुधार के लिए सत्रह हजार 529 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।

यह पिछले वित्त वर्ष से सात हजार करोड़ रुपए अधिक है। इससे राज्य के सभी गांवों की सड़कों की हालत को सुधारने पर जोर देने की बात कही जा रही है। गांव में सड़कों की हालत सुधरने से इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर होने की उम्मीद की जा सकती है। जिससे रोजगार के अवसर खुलने और पलायन को रोकने में मदद मिल सकती है। लेकिन यह तभी होगा जब योजनाएं कागजों से आगे जमीन पर उतरे। इस गांव को अब तक तो निराशा ही मिली है।


लेखक छोटू सिंह रावत, राजस्थान के अजमेर शहर में रहते हैं।

Eklavya India Foundation’s Founder, Raju Kendre Wins the Prestigious ‘International Alum of the Year’ Award

Nagpur. Raju Kendre, Founder and CEO of Eklavya India Foundation, adds another milestone to his impressive record, receiving the esteemed ‘International Alum of the Year’ award at #PIEoneers24. This honor acknowledges his outstanding achievements as an international alumnus of SOAS University of London.

As an alumnus of the SOAS, London – UK Higher Education system and a recipient of a prestigious Chevening scholarship, that year was truly remarkable in both my personal and organizational journey. Since then, our organization ‘Eklavya India Foundation’ has made great strides, and receiving this award is yet another meaningful recognition of our work. However, there is still much to be done in democratizing higher education and creating leadership opportunities for the most marginalized communities. This award will inspire and motivate us to continue making a difference for underserved communities in India.” – Raju Kendre

Since 2017, Eklavya India Foundation has implemented a strategy focusing on awareness, exposure, mentoring, and coaching, using relatable role models. They have held over 700 workshops, reaching a quarter million first-generation college students. Their residential program has helped over 1,700 students gain admission to over 80 national and international universities and secure fellowships.

Eklavya’s 400+ alumni are now in meaningful careers, inspiring their communities. Through the Eklavya Global Scholar Program, around 30 mentees were awarded fully funded scholarships to pursue Master’s and PhD programs at prestigious global universities, including LSE, Columbia, Harvard, and Cambridge.

These scholarships include renowned awards such as Chevening, Commonwealth Masters, Erasmus Mundus, National Overseas Scholarship (NOS), and many more. In the past 7 years, the organization has dedicated one million hours to mentorship and career guidance. Our students have received scholarships totaling over 5 million USD from government programs, trusts, and prestigious global institutions.

The PIEoneers Awards celebrate innovation and excellence in global education, recognizing individuals who have made significant contributions to the field. The PIE is a trusted voice in international education, connecting professionals, institutions, and businesses through daily news, analysis, and intelligence. Their global coverage spans higher education, online learning, K-12, and study abroad.

The PIE’s events, including The PIE Live conferences and The PIEoneer Awards, foster community, knowledge sharing, and innovation. The 2024 ceremony took place on September 13 at London’s iconic Guildhall, bringing together 530 influential attendees, including thought leaders, decision-makers, and innovators. A distinguished judging panel ensured a diverse and impartial selection of winners.

शांति स्वरुप बौद्ध: साहित्य, संस्कृति और संघर्ष की शिखर शख्सियत

इतिहास की अपनी एक निश्चित दिशा और गति होती है, जिसमें सामान्यतः व्यक्ति विशेष का स्थान गौण होता है। लेकिन कुछ व्यक्तित्व अपनी असाधारण मेहनत, लगन, बौद्धिक प्रखरता, बलिदान और संघर्ष के माध्यम से इतिहास निर्माण की इस सतत प्रक्रिया में विशिष्ट योगदान देते हैं।

ये महान व्यक्तित्व समाज की दिशा और दशा को नया आकार प्रदान करते हुए अपने युग पर अमिट छाप छोड़ते हैं। इन्हें हम सामाजिक क्रांतिकारी कहते हैं, जो लोक-कल्याण के लिए मानवीयता का प्रसार करते हैं, और इतिहास उन्हें अपने आदर्श के रूप में स्वीकार करता है। ऐसे लोग नैतिकता और सच्चाई की राह पर अडिग रहते हुए महानता की पराकाष्ठा तक पहुंचते हैं। उनकी महानता उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर समाज को चलने के लिए प्रेरित करती है।

इन पथप्रदर्शक महान विभूतियों में माननीय शांति स्वरुप बौद्ध जी का नाम अग्रणी है, जिन्होंने सामाजिक परिवर्तन के आंदोलन में अद्वितीय योगदान दिया। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1949 को दिल्ली के एक प्रबुद्ध अंबेडकरवादी परिवार में हुआ था। उनके परिवार ने प्रारंभ से ही डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचारों का अनुसरण किया। शांति स्वरुप जी ने 1975 में सम्यक प्रकाशन की स्थापना कर हिंदी भाषी प्रदेशों में बहुजन साहित्य, इतिहास, कला और संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया। उनके प्रयासों से हजारों किताबें प्रकाशित की गईं, और बहुजन समाज की सांस्कृतिक धरोहर को घर-घर   पहुंचाया गया।

सम्यक प्रकाशन के माध्यम से शांति स्वरुप बौद्ध जी ने न केवल साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया, बल्कि बहुजन समाज के विचारकों, लेखकों, और कलाकारों को भी अपनी पहचान बनाने का अवसर दिया। सम्यक प्रकाशन के तले प्रकाशित लगभग दो हजार किताबें बहुजन समाज की धरोहर बन चुकी हैं। उनके द्वारा डिज़ाइन किए गए पोस्टर, कैलेंडर, और सांस्कृतिक प्रतीक आज भी जागरूक परिवारों के जीवन का हिस्सा हैं।

शांति स्वरुप बौद्ध जी की असामयिक मृत्यु 6 जून 2020 को, बहुजन समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। समाज ने सोशल मीडिया पर अपने श्रद्धांजलि संदेशों के माध्यम से उनकी कृतज्ञता प्रकट की। यह श्रद्धांजलि समाज के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसमें हजारों लोगों ने अपनी प्रोफाइल तस्वीरें उन्हें समर्पित कीं।

शांति स्वरुप जी एक अद्वितीय बुद्धिजीवी, उच्च कोटि के चित्रकार, और ओजस्वी वक्ता थे। उन्होंने हजारों लेखकों को लिखने के लिए प्रेरित किया और बहुजन आंदोलन के लिए साहित्य का विशाल खजाना तैयार किया। दिल्ली में आयोजित होने वाले बौद्ध सांस्कृतिक सम्मेलन का श्रेय भी उन्हें जाता है, जिसने बहुजन समाज को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने का काम किया। इन सम्मेलनों में हर बार भाग लेना समाज के लोगों के लिए गौरव की बात होती थी।

उनका एक और महत्वपूर्ण योगदान “रन फॉर आंबेडकर” रहा, जिसमें देश भर से हजारों युवा भाग लेकर अंबेडकरवादी विचारधारा का समर्थन करते थे। इस आयोजन की विशिष्ट छटा नीले और पंचशील झंडों के साथ सफेद टी-शर्ट पहने जोशीले युवाओं की होती थी। यह आयोजन हमारे समाज की समृद्ध विरासत और गौरवशाली संस्कृति को प्रतिबिंबित  करता था।

शांति स्वरुप बौद्ध जी के साथ बिताए हर पल ज्ञानवर्धक थे। मैंने उन्हें पहली बार आंबेडकर भवन दिल्ली में लगभग 15-16 साल पहले सुना था, जहाँ वे “श्री” शब्द के उपयोग पर एक बहुत ही सारगर्भित व्याख्यान दे रहे थे। आज भी उनके शब्द हूबहू याद हैं, जब उन्होंने कहा, “पागल कहिए, दीवाना कहिए, या गधा कहिए, लेकिन श्री कभी न कहिए।” उनके शब्दों का चयन और उनका महत्व मुझे हमेशा प्रभावित करता था।

विशेष रूप से, समता बुद्ध विहार (जो उनके निवास स्थान पश्चिम विहार में स्थित था) में हुई हमारी तमाम मुलाकातें मेरी स्मृतियों में अमिट हैं। इन मुलाकातों में अक्सर भंते चंदिमा जी भी मौजूद रहते थे। हर बार उनसे मिलने पर, ऐसा लगता था जैसे ज्ञान के असीम सागर में डूब रहे हों – किसी भी विषय पर उनसे बात करना शुरू करिए और वे आपको ज्ञान के अनमोल मोती सौंपते चले जाते थे। उनकी बातचीत की गहराई और विषयों की समझ अद्वितीय थी। उन्होंने शब्दों के महत्व को गहराई से समझा और उनका उपयोग अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ किया।

शांति स्वरुप बौद्ध जी के सानिध्य में मैंने कई बार दयाल सिंह कॉलेज का भी जिक्र सुना, जहाँ वे पढ़े थे और जहाँ मैं पढ़ाता हूँ। वे अकसर वहाँ के संस्थापक सरदार दयाल सिंह मजीठिया के चित्र, जिसे उन्होंने स्वयं बनाया था, का जिक्र किया करते थे। उनका स्नेह मेरे ऊपर हमेशा बना रहा, और मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। उनके साथ बिताए समय से मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूँ। उनकी यादें, उनके विचार और उनका ज्ञान मेरे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं।

आज 2 अक्टूबर को उनके जन्मदिन के अवसर पर, देश भर में हजारों लोग उन्हें अपने-अपने तरीके से याद कर रहे हैं। यह देखकर गर्व होता है कि कैसे कोई व्यक्ति अपने चारित्रिक गुणों और समाज के प्रति असीम समर्पण से एक संस्था बन जाता है। वे गर्व के साथ बताते थे कि स्वयं बाबा साहब डॉ. आंबेडकर ने उनका नाम शांति स्वरुप बौद्ध रखा था। उन्होंने इस नाम को पूरी तरह सार्थक किया और अपने जीवन को भारत के प्रबुद्ध निर्माण के लिए समर्पित कर दिया।

मुझे गर्व है कि मैंने उनके साथ कुछ समय बिताया और उनके प्रयासों से प्रेरित होकर अपने जीवन को सामाजिक सेवा और समता के उद्देश्यों के प्रति समर्पित कर पाया। उनके बिना बहुजन समाज के आंदोलन में एक शून्य पैदा हुआ है, लेकिन उनका जीवन और कार्य इस आंदोलन को मील का पत्थर साबित करते रहेंगे।

आज 2 अक्टूबरउनके जन्मदिन पर, हम सभी साथी उन्हें कृतज्ञतापूर्ण नमन करते हैं और उनके बहुआयामी प्रयासों की प्रशंसा करते हैं।

झारखंड दौरे से पहले पीएम मोदी को सीएम हेमंत सोरेन ने घेरा

हेमंत सोरेननई दिल्ली। हरियाणा और जम्मू कश्मीर के बाद झारखंड में भी जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में भले ही तमाम दलों के केंद्र में अभी हरियाणा हो, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा और उसके नेता एवं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखकर झारखंड को उसका बकाया 1 लाख 36 हजार करोड़ रुपये मांगा है।

पीएम नरेंद्र मोदी 2 अक्टूबर को झारखंड के दौरे पर पहुंचेंगे। इसके ठीक पहले सीएम हेमंत सोरेन ने पीएम मोदी के सामने बड़ा मुद्दा उठा दिया है। पीएम मोदी के दौरे से पहले हेमंत सोरन ने केंद्र सरकार पर 1.36 लाख करोड़ के बकाया राशि होने का दावा किया है। इसको लेकर सोरेन ने एक्स पर एक पोस्ट लिखी है। इस पोस्ट में लिखा गया है कि ये पैसा केंद्रीय कोल कंपनियों के अधिकार में है। ये राशि नहीं प्राप्त होने पर झारखंड की तरक्की में रुकावट हो रही है। हेमंत सोरेन का कहना है कि बकाया राशि मिलने के बाद वे इस पैसे से झारखंड को विकास के नए पथ पर ले जा सकेंगे।

हेमंत सोरेन ने अपनी चिट्ठी में लिखा- “झारखंडियों का हक मांगों तो जेल डाल देते हैं, पर अपने हक के लिए हर कुर्बानी मंजूर है। हम भाजपा के सहयोगी राज्यों की तरह स्पेशल स्टेट्स नहीं मांग रहे, ना ही हम कुछ राज्यों की तरह केंद्रीय बजट का बड़ा हिस्सा मांग रहे हैं। हमें बस हमारा हक दे दीजिए, यही मांग है।”

हेमंत सोरेन ने आगे लिखा- “ऐसा विकास जो हमारे पर्यावरण, आदिवासी-मूलवासी एवं हर एक झारखंडी समुदायों के हितों की रक्षा करे। हम शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करेंगे, ताकि हमारे बच्चों का भविष्य उज्ज्वल हो सके। हम अपनी भाषा और संस्कृति का और बेहतर संरक्षण करेंगे, ताकि हमारी पहचान बनी रहे, साथ ही हम हमारे युवाओं को रोजगार के नए आयाम उपलब्ध कराएंगे। उसके आभाव में उन्हें उचित भत्ता देंगे।”

साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी के झारखंड दौरे से ठीक पहले हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। हेमंत सोरेन की यह चिट्ठी झारखंड के राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई है। देखना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी इसका क्या जवाब देते हैं।

झारखंड: फुल फार्म में कल्पना सोरेन, विकास कार्यों का किया शिलान्यास

झारखंड। झारखंड मुक्ति मोर्चा की गांडेय विधानसभा सीट से विधायक और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन लगातार सक्रिय हैं। जनता में पैठ बनाने के लिए वो विधानसभा उपचुनाव के दौरान किये गए वादों को पूरा करने में जुट गई है। कल्पना सोरेन ने 30 सितम्बर को बेंगाबाद महिला डिग्री कॉलेज व बेंगाबाद-लुप्पी मुख्य मार्ग का शिलान्यास किया। इसकी सूचना सोशल मीडिया पर देते हुए कल्पना सोरेन ने लिखा- “बेंगाबाद में महिला डिग्री कॉलेज का शिलान्यास हो गया है। समय कम था, वादे को पूरा करना कठिन। आज आप के भरोसे, मेरी मेहनत व प्रशासन के सहयोग से यह काम पूरा हुआ।”

 

कल्पना सोरेन ने शिलान्यास कार्यक्रम में विकास के अन्य काम भी गिनवाएं। उन्होंने कहा- जबसे वह गांडेय की विधायक बनी हैं। तभी से बेंगाबाद-लुप्पी मुख्य मार्ग सुर्खियों में रहा है। हमने 19.8 किलोमीटर लंबी इस महत्वपूर्ण सड़क की स्वीकृति दिलाई है। इसके निर्माण पर करीब 13 करोड़ रुपए लागत आएगी।

इस सड़क का निर्माण कार्य बेंगाबाद, घाघरा, गेनरो व लुप्पी सहित तीन भागों में बांट कर पूरा किया जाएगा। वहीं, महुवार में महिला डिग्री कॉलेज के भवन व चहारदीवारी निर्माण पर कुल करीब 42 करोड़ रुपए लागत आएगी. कॉलेज का परिसर लगभग 5 एकड़ में होगा। शिलान्यास कार्यक्रम में मंत्री बेबी देवी, हफीजुल हसन, राज्यसभा सांसद डॉ. सरफराज अहमद, गिरिडीह सदर के विधायक सुदिव्य कुमार सोनू सहित विभागीय अधिकारी व ग्रामीण मौजूद थे।

कल्पना सोरेन ने अन्य डिग्री कॉलेजों का जिक्र करते हुए कहा कि इसी प्रकार सिल्ली विधानसभा क्षेत्र में डिग्री कॉलेज के निर्माण के लिए राज्य सरकार ने 59.69 करोड़ की प्रशासनिक स्वीकृति दी है। गांडेय विधानसभा क्षेत्र के बेंगाबाद में महिला कॉलेज की स्थापना के लिए कुल 43.86 करोड़ स्वीकृत किए गए है। इसके अलावा जमशेदपुर को-ऑपरेटिव लॉ कॉलेज के विकास के लिए 31.36 करोड़ की राशि स्वीकृत की गयी है। इसका फैसला गत शुक्रवार को कैबिनेट की बैठक में लिया गया था।

स्कूल शिक्षकों को भी पेंशन

राज्य के गैर सरकारी सहायता प्राप्त (अल्पसंख्यक सहित) प्रारंभिक विद्यालयों के सेवानिवृत्त या मृत शिक्षकों के परिजनों को पेंशन मिलेगी। इसीप्रकार गैर सरकारी सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक एवं अन्य कर्मियों, व सरकारी विद्यालयों के सेवानिवृत्त या मृत शिक्षकों व अन्य कर्मियों के समान सातवां वेतनमान मिलेगा। उसी के अनुसार पेंशन भी दी जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अब IIT धनबाद में पढ़ सकेगा दलित छात्र अतुल कुमार

लखनऊ। उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर का गरीब छात्र अतुल कुमार अब IIT धनबाद में पढ़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 30 सितंबर को दाखिला देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा, ‘प्रतिभाशाली छात्रों को निराश नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे टैलेंट को जाने नहीं दे सकते।’ CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कोर्ट में मौजूद छात्र से कहा, ऑल द बेस्ट, अच्छा करिए।

दरअसल, अतुल को पैसों की तंगी की वजह से एडमिशन नहीं मिल पाया था। वह समय पर फीस के 17,500 रुपए नहीं जुटा पाया था। जब पैसों का इंतजाम हुआ, तो फीस जमा करने का समय निकल चुका था। इसलिए उसे दाखिला नहीं मिला। अतुल ने हार नहीं मानी। उसने पहले झारखंड हाईकोर्ट, फिर मद्रास हाईकोर्ट में अपील की। आखिरी में वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

कोर्ट ने फैसले में छात्र को हॉस्टल सहित सभी सुविधाएं देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि जो छात्र आईआईटी धनबाद में दाखिला ले चुके हैं, उनके दाखिले पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा, बल्कि छात्र को अतिरिक्त सीट पर एडमिशन दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अतुल ने कहा, ‘मेरी जिंदगी वापस पटरी पर लौट आई है।’ CJI ने बहुत अच्छा काम किया। उन्होंने कहा, ‘किसी की भी तरक्की आर्थिक कमी से रुकनी नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरा भविष्य अच्छा है और इस पर असर नहीं पड़ना चाहिए।’छात्र ने पहले एससी-एसटी आयोग में प्रार्थना पत्र दिया, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद छात्र पहले झारखंड हाईकोर्ट और फिर मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा। मद्रास हाईकोर्ट के बाद प्रकरण सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

राजेंद्र के दो बेटे पहले ही आईआईटी की पढ़ाई कर रहे हैं। एक बेटा मोहित कुमार हमीरपुर और दूसरा बेटा रोहित खड़गपुर आईआईटी से इंजीनियरिंग कर रहा है। तीसरे बेटे अतुल ने कानपुर में टेस्ट दिया था। वहीं चौथा बेटा अमित खतौली में पढ़ाई कर रहा है, जबकि माता राजेश देवी गृहिणी हैं।

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भीम आर्मी कार्यकर्ताओं को पीटाः जातिसूचक शब्द कहे और गालियां दीं, दिल्ली पुलिस पर गंभीर आरोप

चोटों का निशान दिल्ली पुलिसकर्मियों की बर्बरता खुद बता रही हैनई दिल्ली। भीम आर्मी कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के मधुविहार थाना पुलिस पर जातीय उत्पीड़न व पिटाई करने के गंभीर आरोप लगाए हैं। वहीं दिल्ली पुलिस आयुक्त से मामले में निष्पक्ष जांच कर आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की है।

आयुक्त को दिए शिकायती पत्र में बताया कि आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हिमांशु वाल्मीकि का 26 सितम्बर को जन्मदिन था। इस दौरान त्रिलोकपुरी व कल्याणपुरी विधानसभा के कार्यकर्ता उनको जन्मदिन की बधाई देने जा रहे थे। रात करीब 9 बजे साईं मंदिर के पास मधु विहार थाने के सिपाहियों ने भीम आर्मी कार्यकर्ता अमन पुत्र राजेंद्र निवासी कल्याणपुरी की बाइक रोक ली। वहीं गाड़ी के कागज मांगे। गाड़ी के कागज डीजी लॉक (मोबाइल पर) में दिखाने के बावजूद पुलिसकर्मी नहीं माने। पुलिसकर्मियों ने भीम आर्मी कार्यकर्ताओं की पिटाई की।

शराब के नशे में थे पुलिसकर्मी

त्रिलोकपुरी निवासी भीम आर्मी कार्यकर्ता अजय कुमार गौतम ने आरोप लगाया है कि अमन बिना हेलमेट के दोपहिया वाहन चला रहा था। साईं मंदिर के पास मधु विहार थाने के पुलिसकर्मी किशन यादव और प्रमोद ने अमन की बाइक रोकी और उनसे पूछताछ करने लगे। पुलिसकर्मियों को अपने साथी से उलझता देख कर विधानसभा अध्यक्ष त्रिलोकपुरी मनोज गौत, राम अभिलाष उतर कर पिकट पर पहुंचे तो देखा कि दोनों पुलिसकर्मी नशे में थे।

अमन ने पुलिसकर्मिकों को जरूरी डॉक्यूमेंट और अपनी आईडी भी दिखाई, लेकिन दोनो पुलिसकर्मियों ने डीजी लॉकर को मानने से इंकार कर दिया। अन्य कार्यकर्ताओं के परिचय देने के बावजूद दोनों पुलिसकर्मियों ने जातिसूचक शब्द कहे और गाली-गलौज करने लगे। वहीं कॉल कर के दूसरी पीसीआर की गाड़ी बुला लीं। विरोध करने पर पुलिसकर्मियों ने सड़क पर हीं लात घूंसे और लाठी से पिटाई की।

सिर फटा, चोटें आईं

मनोज गौतम ने आरोप लगाया है कि पिटाई से राम अभिलाष का सिर फट गया। अजय, अमन व अन्य को अंदरूनी चोट आई हैं। हमें थाने ले जाया गया, इसके बाद घायल कार्यकर्ताओं को अस्पताल भेजा गया, जहां सभी को प्राथमिक उपचार दिया गया, लेकिन हमारा मेडिकल नहीं कराया गया।

थानाधिकारी से पुलिसकर्मियों की शिकायत की गई। इस दौरान थानाधिकारी ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने की बात कही, लेकिन उनका मेडिकल नहीं कराया। रात ज्यादा होने का बहाना बताकर हम लोगों को अगले दिन 12 बजे दिन में थाने बुलाया। जब अगले दिन हम थाने गए तो थानाधिकारी ने यह कहकर हमें वापस भेज दिया कि मामले की फाइल डीसीपी ईस्ट ऑफिस भेज दी है। संबंधित कार्यालय में पता चला कि अधिकारी छुट्टी पर हैं।

थानाधिकारी से नहीं हुआ सम्पर्क

दलित दस्तक ने मामले में पुलिस का पक्ष जानने के लिए मधु विहार थानाधिकारी से सम्पर्क किया। थाने के लैंड लाइन नम्बर 01122720808 फोन करने के बावजूद समाचार लिखे जाने तक संबंधित अधिकारी से सम्पर्क नहीं हो सका।

प्राइड वॉक: अधिकारों के लिए सड़क पर उतरे ट्रांसजेंडर, बोले- हम भी समाज का हिस्सा

लखनऊ। अपने हक के लिए देशभर के लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल एंड ट्रांसजेंडर (LGBT) ने रविवार को प्राइड वॉक की। इस मौके पर उन्होंने नाचते-गाते जुलूस निकाला और अपने हक में जमकर नारेबाजी की। बारिश के बावजूद समलैंगिकों में जबरदस्त उत्साह नजर आया।

प्राइड मार्च लोहिया चौराहे से शुरू होकर 1090 चौराहे पर खत्म हुआ। ट्रांसजेंडर समुदाय को जागरूक करने के लिए मार्च निकाला गया। शिव ट्रांसजेंडर फाउंडेशन और ट्रांसजेंडर गौरव यात्रा समिति की तरफ से इसका आयोजन किया गया। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किन्नर समाज और आम जनमानस में सामंजस्य स्थापित करना है। मार्च में शामिल ट्रांसजेंडरों ने कहा कि हम भी इसी समाज का हिस्सा हैं। हमें गलत नजर से नहीं देखा जाना चाहिए।

 

प्राइड मार्च में लोगों को साफ-सफाई स्वच्छता रखने के लिए प्रेरित किया गया। इस दौरान सेलिब्रिटी एलेक्स मयबेलिना, एकता महेश्वरी, मास्क द रॉक बैंड के कबीर राजपूत, आदित्य अग्रहरी की तरफ से सांस्कृतिक प्रस्तुति दी गई। मार्च के जरिए ट्रांसजेंडर को लेकर समाज में व्याप्त भेदभाव को कम करने की मांग की गई।

आयोजक प्रियंका सिंह रघुवंशी ने कहा कि समाज के बीच में ट्रांसजेंडर समुदाय को जो तिरस्कार की भावना से देखा जाता है। लोग दूरी बनाते हैं, उसको कम करने, प्यार बांटने की जरूरत है। किन्नर कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष सोनम किन्नर राज्य सरकार की तरफ से शामिल हुई। किन्नर सोनम ने कहा- आज पूरा विश्व ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के त्योहार को मना रहा है और राजधानी लखनऊ में भी यह मनाया जा रहा है। आज के इस कार्यक्रम में ट्रांसजेंडर समुदाय की लोग शामिल हुए हैं और आज के दिन अमेरिका के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से भी बधाइयां आई हैं।

LGBTQ प्राइड परेड: 2 हजार से अधिक लोग और कलाकार परेड में होंगे शामिल

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लखनऊ। आदिशिव ट्रांसजेंडर फाउंडेशन की ओर से रविवार को प्राइड परेड का आयोजन किया जाएगा। परेड गोमती नगर के लोहिया पार्क के गेट नंबर 4 से शुरू होकर लखनऊ के 1090 चौराहे तक निकाली जाएगी। इसको लेकर तैयारियां तेजी से चल रही है।

 

योजनाओं का नहीं मिल रहा है लाभ

दलित दस्तक कोआदिशिव ट्रांसजेंडर फाउंडेशन की प्रियंका सिंह रघुवंशी ने बताया कि LGBTQ समुदाय को इस का इंतजार रहता है। प्राइड परेड में 2000 से अधिक ट्रांसजेंडर वर्ग के लोग शामिल होंगे। परेड में शामिल होने के लिए यूपी अलावा महाराष्ट्र और दिल्ली समेत कई राज्यों से लोग आ रहे है। ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए ये परेड काफी अहम है।

इस प्राइड परेड में समुदाय कि मूलभूत अवश्यक्ताओं,स्वास्थ्य सेवाओं,कौशल विकास और शिक्षा पर चर्चा होगी। परेड में विभिन्न कार्यक्रम होंगे, जिसमें किन्नर, समलैंगिक, महिला बाल उत्पीड़न पर चर्चा होगी। कार्यक्रम का उद्देश्य है कि किन्नरों के प्रति समाज में जागरूकता फैलाई जाए। LGBTQ समुदाय के अधिकारों के प्रति सरकार का ध्यान आकर्षित कराना।

मास्क- द रॉक बैंड देंगे प्रस्तुति

प्रियंका रघुवंशी ने बताया कि कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक शामिल होंगे। बड़ी संख्या में सियासी, सामाजिक लोग और कलाकार शामिल होंगे। एलेक्स मयबेलीनाँ, सुशांत दिग्विकार, एकता माहेश्वरी और मास्क द रॉक बैंड अपनी प्रस्तुति देंगे। यात्रा रविवार दोपहर 2:30 बजे लोहिया पार्क से शुरू होगी और 1090 पर आकर कार्यक्रम में बदल जाएगी।

सामाजिक स्वीकृति की लड़ाई

LGBTQ समुदाय से आने वाले लोगों को हमारा समाज अभी भी स्वीकार नहीं कर रहा है। लोगों के नजरिया को बदलने की जरूरत है। किसी सामान्य घर में पैदा होने वाला बच्चा अगर किन्नर होता है तो उसमें उसकी क्या गलती। माता-पिता को चाहिए कि बच्चा किन्नर हो या जैसा भी उसे स्वीकार करें।

करना पड़ता है संघर्ष

रघुवंशी ने बताया कि आज भी हम लोगों को अपने अधिकार हासिल करने के लिए जगह-जगह संघर्ष करना पड़ता है। कागजों में जल्दी हमारा नाम नहीं चढ़ता है। ताली फिल्म ने हमारे समाज के दर्द को बयान किया। मगर कुछ ऐसी भी फिल्में आई जिन्होंने किन्नर समाज की छवि को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया। आवश्यकता है कि LGBTQ समुदाय को लेकर फिल्मों की संख्या बढ़ाई जाए और उसमें सकारात्मक संदेश दिया जाए।

एक साल बाद मिला यूपी SC-ST आयोग को अध्यक्ष, देखिए उपाध्यक्ष से लेकर सदस्यों की पूरी लिस्ट

लखनऊः उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (एससी एसटी) आयोग का शुक्रवार को गठन कर दिया गया है। करीब एक साल बाद पूर्व विधायक बैजनाथ रावत को इसका पूर्णकालिका अध्यक्ष बनाया गया है। इससे पहले समाज कल्याण मंत्री स्वतंत्र प्रभार असीम अरुण के पास अध्यक्ष का अतिरिक्त कार्यभार था।

जानकारी के अनुसार, पूर्व विधायक बेचन राम और जीत सिंह खरवार को आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। बाराबंकी के बैजनाथ रावत अनुसूचित जाति से हैं। भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले रावत तीन बार विधायक, एक बार सांसद और यूपी सरकार में बिजली राज्य मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। उनकी नियुक्ति को अनुसूचित जाति को पार्टी से जोड़ने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है।

गोरखपुर के पूर्व विधायक बेचन राम और सोनभद्र के रहने वाले जीत सिंह खरवार को उपाध्यक्ष बनाने के अलावा अन्य 16 सदस्य भी नामित किए गए हैं। मेरठ के हरेंद्र जाटव और नरेंद्र सिंह खजूरी, बरेली के संजय सिंह और उमेश कठेरिया, कौशाम्बी के जितेंद्र कुमार, लखनऊ के रमेश कुमार तूफानी, सहारनपुर के महिपाल वाल्मीकि को सदस्य बनाया गया है। इसीप्रकार कानपुर के रमेश चंद्र, हमीरपुर के शिव नारायण सोनकर, औरेया की नीरज गौतम, आगरा के दिनेश भारत, आजमगढ़ के तीजाराम, मऊ के विनय राम, गोंडा की अनिता गौतम, भदोही के मिठाई लाल और अंबेडकर नगर की अनिता कमल को भी आयोग के सदस्य के तौर पर मनोनीत किया गया है।

बता दें कि यूपी में दस सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने वाले हैं। इसे देखते हुए सरकार का यह फैसला अहम माना जा रहा है। इससे पहले अभी हाल में ही महिला आयोग के नए अध्यक्ष और सदस्यों के नाम का ऐलान किया गया था।

उम्र बनी थी रोड़ा

प्रदेश सरकार ने 23 अगस्त को आयोग में अध्यक्ष, दो उपाध्यक्ष और 17 सदस्य नियुक्त किए थे। उनकी नियुक्ति के आदेश के बाद पता चला कि अध्यक्ष बैजनाथ रावत, उपाध्यक्ष बेचन राम, सदस्य नरेंद्र सिंह खजजूरी और अजय सिंह कोरी की आयु 65 वर्ष से अधिक है। ऐसे में उनकी नियुक्ति को लेकर संकट खड़ा हो गया था।

बदल दिए नियम

राज्य सरकार के कैबिनेट बाई सर्कुलेशन में अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग अधिनियम 1995 तथा संशोधित अधिनियम 2007 की धारा 5 की उपधारा (1) में संशोधन के प्रस्ताव को स्वीकृति मिल गई थी। इससे उत्तर प्रदेश राज्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जाति आयोग के नवनियुक्त अध्यक्ष बैजनाथ रावत, उपाध्यक्ष बेचन राम, सदस्य नरेंद्र सिंह खजूरी व अजय सिंह कोरी का रास्ता साफ हो गया। इससे पहले सिर्फ 65 वर्ष की उम्र तक का व्यक्ति ही आयोग का अध्यक्ष या अन्य पद पर सदस्य मनोनीत हो सकता था।

आरक्षण को बचाना है तो कांग्रेस व भाजपा को वोट नहीं देना है-मायावती

हरियाणा. फरीदाबाद के पृथला विधानसभा क्षेत्र के गांव बाघौला में शुक्रवार को मायावती की रैली आयोजित हुई। रैली में जनसभा को संबोधित करते हुए मायावती ने इनेलो-बसपा के समर्थन में जनता से वोट की अपील की। इसके साथ ही बसपा सुप्रीमो ने कांग्रेस और भाजपा पर जमकर निशाना साधा।

मजदूर और किसान का नहीं हुआ उत्थान

मायावती आज सुरेंद्र वशिष्ठ के समर्थन में फरीदाबाद के पृथला विधानसभा क्षेत्र में रैली करने पहुंंची। बता दें कि बसपा सुप्रीमो मायावती आज पहली बार फरीदाबाद के पृथला विधानसभा क्षेत्र में रैली कर रही हैं। फरीदाबाद रैली में मंच पर मायावती के साथ इनेलो महासचिव अभय चौटाला और आकाश आनंद भी मौजूद रहे।

मायावती ने भाजपा और कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए कहा कि हमारे देश को आजाद हुए वर्षों हो गए हैं। प्रदेश में तरह-तरह के पार्टियों की सरकार रही हैं। इसके बावजूद भी किसान, मजदूर गरीब, किसान का उत्थान नहीं हो सका। दलित आदिवासी, ओबीसी वर्ग के लोगों को बाबा साहब अंबेडकर के कड़े संघर्ष के बाद सरकारी नौकरी में आरक्षण मिला है। लेकिन विपक्ष आरक्षण खत्म करना चाहता है।

विपक्ष आरक्षण खत्म करना चाहता है

विपक्ष ने दलितों, आदिवासियों और पिछड़े लोगों को काफी नुकसान पहुंचाया है। मायावती ने रैली में जनता को संंबोधित करते हुए कहा कि इस बार हरियाणा में बसपा और इनेलो का गठबंधन प्रदेश में प्रभावी सरकार बनाएगा। मायावती ने जनता को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस और भाजपा आज आरक्षण खत्म करने में लगी हुई है। निशाना साधते हुए मायावती ने कहा कि विदेश जाकर राहुल गांधी आरक्षण खत्म करने की बात कहते हैं। जनता से अपील करते हुए मायावती ने हरियाणा के आगामी आगामी मुख्यमंत्री के तौर पर अभय सिंह चौैटाला के समर्थन में वोट की अपील की।

जातिवादः साहूकार ने दलित छात्र को समय पर नहीं दिये 17 हजार रुपए, टूटा IIT में पढ़ने का सपना!

मुजफ्फरनगर। यूपी के मुजफ्फरनगर निवासी दलित छात्र ने मुश्किल सवालों को हल कर आईआईटी का एग्जाम तो क्रैक कर लिया, लेकिन रुपए की तंगी का सवाल उससे हल नहीं हो पाया. उसे महज 17 हजार रुपयों की व्यवस्था करनी थी, लेकिन एडमिशन की अंतिम तारीख तक रकम नहीं जमा हो पाई, जिसके चलते वह आईआईटी धनबाद में एडमिशन नहीं ले पाया. उसे और परिवार को एडमिशन न होने का बहुत मलाल है. यूनिवर्सिटी से लेकर एससी/एसटी आयोग, झारखंड हाईकोर्ट और मद्रास हाईकोर्ट तक तीन महीने चक्कर काटने के बाद भी जब कुछ हासिल नहीं हुआ तो छात्र ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जहां से उसे उम्मीद जगी है.

जानिए क्या था मामला

मुजफ्फरनगर की खतौली तहसील से महज 7 किमी दूर टिटोड़ा गांव निवासी दलित राजेंद्र के सबसे छोटे बेटे अतुल ने जेईई क्लियर किया. उसे आईआईटी धनबाद में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की सीट अलॉट हो गई. 19 जून से 24 जून 2024 के बीच फीस के महज 17,500 रुपये जमा कराए जाने थे. परिवार के पास इतनी सी रकम जमा नहीं हो सकी. साहूकार ने वादा तो कर दिया, लेकिन वक्त पर फोन उठाना भी बंद कर दिया. अतुल और उसके पिता ने 17 हजार 500 रुपये की रकम जुटाने के लिए दोस्तों और रिश्तेदारी में फोन घुमाना शुरू कर दिया. ये रकम जुटाने के लिए उन्हें ऐड़ी से चोटी तक के जोर लगाने पड़ गए.

समय से नहीं भर पाया एडमिशन फार्म

जैसे तैसे 17 हजार 500 रुपये की रकम जुटा ली. एडमिशन की लॉस्ट डेट शाम के करीब पौने पांच बजे अतुल ने ऑनलाइन प्रोसेस करना शुरू कर दिया. लेकिन पांच बजने में 4 मिनट बाकी थी, उसी दौरान अचानक वेबसाइट लॉगआउट हो गई. अतुल ने 4 बजकर 57 मिनट पर फिर से ट्राई किया और जल्दी-जल्दी डॉक्यूमेंट अपलोड किए, लेकिन जब बैंक पेमेंट की डिटेल भरने का नंबर आया, तब तक 5 बज चुके थे। 5 बजते ही फीस प्रोसेसिंग की पूरी प्रक्रिया पर विराम लग चुका था.

एडमिशन के लिए शुरू किया संघर्ष

इतना कुछ होने के बाद भी अतुल ने हिम्मत नहीं हारी और उसने यूनिवर्सिटी से फोन और ईमेल के जरिए संपर्क कर पूरा माजरा बताया, लेकिन उन्होंने सारा काम ऑनलाइन और कंप्यूर्टाज्ड होने की बात कहकर हाथ खड़े कर लिए. जिसके बाद अतुल का संघर्ष शुरू हो गया. चूंकि इस बार काउंसलिंग की जिम्मेदारी मद्रास यूनिवर्सिटी की थी तो अतुल ने एससी एसटी आयोग में धनबाद और मद्रास यूनिवर्सिटी को पार्टी बनाते हुए शिकायत की.

सुप्रीम कोर्ट में लगाई अर्जी

मामले में सुनवाई के दौरान मद्रास यूनिवर्सिटी के चेयरमैन तलब हुए, लेकिन उन्होंने भी सारा कार्य कंप्यूटराइड होने की बात कहते हुए मदद करने में असमर्थता जताकर पल्ला झाड़ लिया. उसके बाद अतुल ने पहले झारखंड हाईकोर्ट फिर वहां से भी राहत नहीं मिलने पर मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. पैसों की किल्लत और अन्य कोई सहयोग ना मिलने की वजह से अतुल का संघर्ष और भी कड़ा होता चला गया. इसके बाद अतुल ने मद्रास हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जाने की इच्छा जताई. अनुमति मिलने के बाद अतुल की तरफ से वकील ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई.

मिला मदद का भरोसा

24 सितंबर को इस मामले में सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए आईआईटी मद्रास को नोटिस जारी किया. साथ ही अतुल को हर संभव मदद किए जाने का भरोसा भी दिया.

साहूकार को थी जलन

अतुल के पिता राजेंद्र ने बताया कि उनके साथ धोखा हुआ है. साहूकार को इस बात की जलन है कि दलित के बच्चे इतने पढ़ लिखकर कामयाब कैसे हो सकते हैं. शायद इसी वजह से उसने वक्त पर पैसे नहीं दिए, ताकि अतुल की फीस जमा ना हो और वो एडमिशन से वंचित हो जाए. राजेंद्र कहते हैं कि वो अपने बेटे के सपनों को पूरा करने के लिए अपना घर तक बेचने को तैयार हैं.

दलित छात्र अभिषेक रवि और लोकेन्द्र की संदिग्ध मौत, परिवार ने लगाई इंसाफ की गुहार

एमबीबीएम छात्र लोकेन्द्रसिंह की मौत के मामले में ज्ञापन देने जाते परिजन व लोग।नई दिल्ली। राजस्थान के बाड़मेर निवासी एमबीबीएस छात्र लोकेन्द्र सिंह और झारखंड के इंजीनियरिंग छात्र अभिषेक रवि की संदिग्ध मौत उनके पीछे कई सवाल छोड़ गई है। दोनों के परिजन न्याय पाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, लेकिन दोनों ही मामलों में मौत के सही कारणों को अब तक खुलासा नहीं हुआ है।

बताते चलें कि ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के खंडगिरी स्थित आईटीईआर कॉलेज में रांची के इंजीनियरिंग के 19 वर्षीय छात्र अभिषेक रवि की छात्रावास की छत से गिरने के बाद इलाज के दौरान मौत हो गई थी। इसीप्रकार कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस छात्र डॉ. लोकेंद्र कुमार सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में 10 जून 2024 को हॉस्टल  में मौत हो गई। तीन महीने बाद भी कर्नाटक पुलिस प्रशासन द्वारा घटना का खुलासा नहीं किया जा सका है। कुछ इसी तरीके के हालात अभिषेक रवि के मामले में भी हैं।

 

परिजन और मित्कर र रहे न्याय पाने के लिए संघर्ष

दलित दस्तक को लोकेन्द्र के पिता एडवोकेट अमित धनदे ने बताया कि बेटे की मौत को तीन माह गुजर गए हैं, लेकिन कर्नाटक पुलिस मामले का अभी तक खुलासा नहीं कर पाई। हम जानना चाहते है कि आखिर हमारे बेटे के साथ क्या हुआ। जो भी लोग मेरे बेटे की मौत के पीछे है। उनको सख्त सजा मिले। इसके लिए हमने महामहिम राष्ट्रपति, प्रधामंत्री व राज्यपाल व मुख्यमंत्री कर्नाटक के नाम जोधपुर संभागीय आयुक्त को ज्ञापन सौंपा है। वहीं मामले की गहन जांच कराने की मांग की है।

अभिषेक रवि को न्याय दिलाने के लिए रांची में छात्र लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। गत सोमवार को छात्रों ने शहर के आंबेडकर चौक से बिरसा चौक तक कैंडल मार्च निकाला। इस दौरान छात्रों ने राज्य पाल के नाम ज्ञापन भी सौंपा।

हेमंत सोरेन ने एक्स पर की पोस्ट

हेमंत सोरेन ने गत दिनों एक्स पर पोस्ट में कहा-मैं ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी से अनुरोध करता हूं कि ओडिशा के आईटीईआर कॉलेज में रांची के अभिषेक रवि की संदिग्ध मौत की उच्च स्तरीय जांच का आदेश दें और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। इधर, मामले में ओडिशा की राज्यपाल ने भी गहन जांच के आदेश दिए हैं।

दलित समाज का डिप्टी सीएम, सरकारी जमीनों पर भूमिहीनों को कब्जा, बसपा सुप्रीमों की घोषणा से गरमाई हरियाणा की राजनीति

  हरियाणा चुनाव में हर दल और गठबंधन जोर-आजमाइश कर रहा है। चाहे कांग्रेस हो, भाजपा या फिर, जजपा और बसपा-इनेलो गठबंधन… । हरियाणा में हर पार्टी और गठबंधन ने अपनी पूरी ताकत लगा रखी है। इस बीच हरियाणा के जींद में 25 सितंबर को बसपा-इनेलो गंठबंधन की बड़ी रैली हुई। इसमें पहली बार बसपा सुप्रीमो मायावती हरियाणा की चुनावी रैली में उतरीं। इस दौरान बहनजी ने गठबंधन की सरकार बनने पर सरकार कैसी होगी, इस बारे में भी साफ कर दिया। बहनजी ने साफ कर दिया कि गठबंधन की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री इंडियन नेशनल लोकदल के अभय चौटाला बनेंगे, जबकि बसपा की ओर से दलित समाज का डिप्टी सीएम होगा। एक अन्य डिप्टी सीएम पिछड़े या सवर्ण समाज से बनाया जाएगा। बहनजी ने अपने भाषण में मान्यवर कांशीराम को भी याद किया। उन्होंने कहा कि मान्यवर कांशीराम के दौर में हरियाणा की भूमिहीन जनता नारे लगाती थी कि जो जमीन सरकारी है, वह जमीन हमारी है।
  यह अब भी मुद्दा है, लेकिन यह तभी हो पाएगा जब प्रदेश में हमारी सरकार आएगी। बहनजी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में चार बार सत्ता में आने पर हमने बिना किसी किसान की एक इंज जमीन लिये भूमिहीन जरूरतमंदों को सरकारी जमीनों पर कब्जा दिया था। बहनजी की इस घोषणा के बाद हरियाणा की राजनीति गरमा गई है। जिस तरह गठबंधन के पक्ष में समर्थकों का जनसैलाब उमड़ा, उससे साफ है कि बसपा-इनेलो गठबंधन मजबूत स्थिति में है। दोनों दलों के बीच तीसरी बार गठबंधन हो रहा है। पहली बार गठबंधन 1996 में हुआ था। बता दें कि हरियाणा विधानसभा में 90 सीटे हैं। इसमें 53 सीटों पर इंडियन नेशनल लोकदल और 37 सीटों पर बसपा चुनाव मैदान में है। यह गठबंधन इस बार प्रदेश की राजनीति में कितनी मजबूत बन कर उभरेगा। यह आठ अक्तूबर को चुनावी नतीजे बताएंगे।

मायावती का योगी से सवाल- दुकानों पर नाम लिखवाने से क्या मिलावट खत्म होगी?

लखनऊ। बसपा अध्यक्ष मायावती ने योगी सरकार के दुकानों पर नेम प्लेट वाले फैसले पर आपत्ति जताई। X पर लिखा- यूपी सरकार द्वारा होटल, रेस्तरां, ढाबों के मालिक, मैनेजर का नाम-पता के साथ ही कैमरा लगाना अनिवार्य करने की घोषणा, कावंड़ यात्रा के दौरान की कार्रवाई की तरह ही फिर से काफी चर्चाओं में है। यह सब खाद्य सुरक्षा हेतु कम और जनता का ध्यान बांटने की चुनावी राजनीति है।

मायावती ने योगी सरकार से पूछा- वैसे तो खासकर खाद्य पदार्थों में मिलावट आदि को लेकर पहले से ही काफी सख्त कानून मौजूद हैं। फिर भी सरकारी लापरवाही/मिलीभगत से मिलावट का बाजार हर तरफ गर्म है। किन्तु अब दुकानों पर लोगों के नाम जबरदस्ती लिखवा देने आदि से क्या मिलावट का काला धंधा खत्म हो जाएगा?

मायावती ने तिरुपति मंदिर के प्रसाद का मुद्दा भी उठाया

बसपा सुप्रीमों ने कहा- वैसे भी तिरुपति मन्दिर में ’प्रसादम’ के लड्डू में चर्बी की मिलावट की खबरों ने देश भर में लोगों को काफी दुखी कर रखा है। इसको लेकर भी राजनीति जारी है। धर्म की आड़ में राजनीति के बाद अब लोगों की आस्था से ऐसे घृणित खिलवाड़ का असली दोषी कौन? यह चिन्तन जरूरी।

योगी ने दिए थे आदेश

उत्तर प्रदेश में सभी खाने-पीने की दुकान, ढाबे, होटल और रेस्टॉरेंट्स पर अब मालिक और मैनेजर का नाम लिखना अनिवार्य कर दिया गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खान-पान की वस्तुओं में मानव अपशिष्ट/गंदी चीजों की मिलावट करने वालों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। हाल ही में सामने आई विभिन्न घटनाओं के मद्देनजर यह आदेश जारी किया गया है।

मुख्यमंत्री योगी ने स्पष्ट किया कि जूस, दाल और रोटी जैसी खान-पान की वस्तुओं में मानव अपशिष्ट मिलाना वीभत्स, यह सब स्वीकार नहीं है। मुख्यमंत्री के निर्देश के अनुसार ऐसे ढाबों/रेस्टोरेंट आदि खान-पान के प्रतिष्ठानों की सघन जांच होगी। हर कर्मचारी का पुलिस वेरिफिकेशन किया जाएगा। खान-पान की चीज़ों की शुद्धता-पवित्रता सुनिश्चित करने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम में आवश्यक संशोधन के निर्देश। दिए। इसके पश्चात यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इसके जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उपरोक्त सवाल पूछा।