हिन्दू और हिन्दुत्व को बौद्धिक चुनौती देने वाले इतिहासकार प्रो. डी.एन. झा नहीं रहें

 हिंदू धर्म और हिंदुत्व की राजनीति को खुली बौद्धिक चुनौती देने वाले प्रोफेसर डी. एन. झा (द्विजेंद्र नारायण झा) नहीं रहे। चार फरवरी को उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहास का विशेषज्ञ माना जाता है। प्रोफेसर डीएन झा दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग में चेयरमैन रहें। उन्होंने हमेशा भारतीय इतिहास की खामियों को रेखांकित किया। जिन्होंने ‘मिथ ऑफ़ द होली काउ’ जैसी किताब लिखी जिसमें वे साबित करते हैं कि प्राचीन भारत में ब्राह्मण गोमांस खाते थे। इसके अलावा उन्होंने प्राचीन काल के स्वर्ण युग की अवधारणा को चुनौती दिया।

 उन्होंने साफ शब्दों में लिखा कि “ऐतिहासिक साक्ष्य ये कहते हैं कि भारतीय इतिहास में कोई स्वर्ण युग नहीं था। प्राचीन काल को हम सामाजिक सद्भाव और संपन्नता का दौर नहीं मान सकते। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि प्राचीन भारत में जाति व्यवस्था बहुत सख़्त थी”। “गैर-ब्राह्मणों पर सामाजिक, क़ानूनी और आर्थिक रूप से पंगु बनाने वाली कई पाबंदियां लगाई जाती थीं। ख़ास तौर से शूद्र या अछूत इसके शिकार थे।” उन्होंने यह भी लिखा है कि “मध्यकालीन मुस्लिम शासकों के आतंक और ज़ुल्म की बात और मुस्लिम शासकों को दानव के तौर पर पेश करने का दौर भी उन्नीसवीं सदी के आख़िर से ही शुरू हुआ था। क्योंकि उस दौर के कुछ सामाजिक सुधारकों और दूसरे अहम लोगों ने मुसलमानों की छवि को बिगाड़कर पेश करने को अपनी ख़ूबी बना लिया। जैसे कि दयानंद सरस्वती (1824-1883),  जिन्होंने अपनी किताब सत्यार्थ प्रकाश में दो अध्याय इस्लाम और ईसाई धर्म की बुराई को समर्पित कर दिए। इसी तरह विवेकानंद (1863-1902) ने कहा कि, ‘प्रशांत महासागर से लेकर अटलांटिक तक पूरी दुनिया में पांच सौ साल तक रक्त प्रवाह होता रहा। यही है इस्लाम धर्म।”

 रामजन्म भूमि पर सुप्रीमकोर्ट के फैसले पर उन्होंने लिखा, “ये फ़ैसला बहुसंख्यकवाद की तरफ़ झुका हुआ है। ये हमारे देश के लिए अच्छा नहीं है।” उन्होंने लिखा कि “मौजूदा वक़्त में दलितों, ख़ास तौर से बौद्ध धर्म के अनुयायी दलितों के साथ जो दुश्मनी निभायी जा रही है, उसकी जड़ें हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था में हैं।” बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म के बीच के टकराव और  बौद्ध स्थलों पर हिंदुओं के कब्जे के बारे में उन्होंने लिखा कि “ब्राह्मणवाद और बौद्ध धर्म के बीच की स्थायी दुश्मनी की झलक हमें दोनों ही धर्मों के ग्रंथों में मिलती है। इसके अलावा कई पुरातात्विक सबूत भी इस दुश्मनी की तरफ़ इशारा करते हैं, जो हमें ये बताते हैं कि किस तरह बौद्ध धर्म की इमारतों को ढहाया गया और उन पर क़ब्ज़ा कर लिया गया।”

उन्होंने लिखा कि “हक़ीक़त ये है कि भारत से बौद्ध धर्म के ग़ायब होने की बड़ी वजह ब्राह्मणवादियों का इसे अपना दुश्मन मानना और इसके प्रति उनका आक्रामक रवैया रहा। साफ़ है कि ब्राह्मण धर्म कभी बौद्ध धर्म की सच्चाई को स्वीकार नहीं कर सका। इसलिए ये कहना ग़लत होगा कि हिंदू धर्म बहुत सहिष्णु है।” हिंदू  धर्म और हिंदुत्व की राजनीति को बौद्धिक चुनौती देने वाला एक योद्धा नहीं रहा, लेकिन उनकी अनके किताबें हमारे बीच हैं, जो हिंदुत्व की  राजनीति और वर्ण-जातिवादी हिंदू धर्म से संघर्ष के लिए हमारे हथियार हैं।

  • रिपोर्ट- डॉ. सिद्धार्थ के फेसबुक वॉल से

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