भारत में धर्मांतरण की स्वतंत्रता और आरक्षित चुनावी सीटों के मुद्दे पर केन्द्रीय कानून मंत्री ने ग्यारह फरवरी को राज्यसभा में एक महत्वपूर्ण बात कही है। श्री रविशंकर प्रसाद के अनुसार जो दलित इस्लाम या ईसाई धर्म में प्रवेश करेंगे वे अब एससी के लिए सुरक्षित सीटों से लोकसभा या विधान सभा का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। हालांकि यहां बौद्ध धर्म में जाने वालों के लिए राहत की खबर है। कानून मंत्री ने कहा कि जो दलित हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म अपनाएंगे उन्हें इस तरह के कोटा का लाभ मिलेगा।
इस मुद्दे को स्पष्ट करते हुए श्री प्रसाद ने कहा कि संविधान के पैरा तीन में अनुसूचित जाति के लोगों के लिए नियम बहुत साफ हैं। इन नियमों के अनुसार जो व्यक्ति हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म से आता है उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता। हालांकि केन्द्रीय कानून मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आशय से ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम’ में कोई संशोधन लाने का सरकार का कोई विचार नहीं है।
कानून मंत्री के इस बयान से साफ है कि ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम’ में कोई संशोधन किए बिना ही संविधान के पैरा तीन की एक खास तरह से व्याख्या के जरिए एक बड़ा बदलाव हो सकता है। राज्य सभा में कानून मंत्री का यह स्पष्टीकरण धर्मांतरित दलितों को नए धर्म के चुनाव के नजरिए से दो खेमों में बांटता है। एक खेमे में वे दलित हैं जो हिन्दू, सिख और बौद्ध धर्म अपनाना चाहते हैं। वहीं दूसरे खेमे में वे दलित हैं जो इस्लाम और इसाइयत अपनाना चाहते हैं। इस्लाम और इसाइयत अपनाने वाले दलितों को चुनाव लड़ने से रोकने वाली इस व्याख्या से निश्चित ही दलित समुदाय में फूट पड़ेगी जिसके बड़े राजनीतिक और सामाजिक परिणाम हो सकते हैं।
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