बिहार में लोकसभा चुनाव-2019 के दंगल में पिछले लोकसभा चुनावों में सक्रिय रहे कई चेहरे नजर नहीं आएंगे. इनमें से कई ऐसे हैं, जिनके नाम पर भीड़ जुटती थी. जिन्हें देखने और सुनने दूर-दराज से लोग आते थे. इसबार इनमें से कुछ सक्रिय राजनीति से दूर हो चुके हैं, कुछ कानूनी प्रावधानों के तहत चुनाव प्रक्रिया से बाहर हैं. कई नेता दिवंगत हो चुके हैं. कई की भूमिकाएं बदल गई हैं.
बिहार के चुनाव में चर्चित चेहरों में पिछले चार दशक से सबसे बड़ा नाम लालू प्रसाद का रहा है. फिलहाल वह चारा घोटाला में सजायाफ्ता हैं और रांची के होटवार जेल में हैं. महागठबंधन को लालू के आकर्षण और देसी भाषण के बगैर चुनावी लड़ाई लड़नी होगी. पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र पहले ही चुनावी राजनीति से अलग हो चुके हैं. अब उनका न तो किसी दल से सीधा जुड़ाव है और न ही उनका स्वास्थ्य ही चुनावी सक्रियता की इजाजत देगा. कभी जहानाबाद की राजनीति की धुरी रहे जगदीश शर्मा भी चारा घोटाले में जेल की सजा काट रहे हैं.
भोला सिंह, असरारुल हक हो चुके हैं दिवंगत
बेगूसराय के सांसद भोला प्रसाद सिंह और किशनगंज के सांसद मौलाना असरारुल हक का निधन हो चुका है. वर्ष 2009 तक लोकसभा चुनाव में सक्रिय रहे कैप्टन जयनारायण निषाद और जॉर्ज फर्नांडिस भी अब हमारे बीच नहीं हैं. राजद के दिग्गज नेता रघुनाव झा, अटल जी के सहयोगी लालमुनी चौबे भी दिवंगत हो चुके हैं.
रामविलास राज्यसभा जाएंगे
लोजपा सुप्रीमो पासवान ने तय किया है कि वह लोकसभा चुनाव लड़ने की जगह राज्यसभा जाएंगे. हाजीपुर की जनता चुनाव में उन्हें मिस करेगी. हालांकि, वह लोजपा और एनडीए के स्टार प्रचारक के रूप में सक्रिय रहेंगे. चर्चाओं के मुताबिक मधुबनी के सांसद हुकुमदेव नारायण यादव भी चुनाव में नहीं उतरेंगे. प्रकाश झा और शेखर सुमन भी चुनाव नहीं लड़ेंगे. पिछली बार जमुई से कांग्रेस के टिकट पर लड़े अशोक चौधरी और जदयू से श्याम रजक की भूमिकाएं बदल चुकी हैं. महेश्वर हजारी और डॉ. अशोक कुमार का भी यही हाल है.
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