नई दिल्ली। देश के प्रधानमंत्री विकास कितने भी दावे कर लें, लेकिन आए दिन आने वाली रिपोर्टें उनके विकास के दावे को साबित कर देती हैं. पहले भूख का ग्लोबल इंडेक्स में पीछे जाना. अब एक रिपोर्ट ने लैंगिक समानता पर भी भारत फिसड्डी बता दिया.
दरअसल, वर्ल्ड इकोनॉमी फोरम ने दो नवंबर को ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2017 की सूची जारी की. इस सूची में भारत को दुनिया के 144 देशों की सूची में 108वां स्थान मिला है. पिछले साल इस सूची में भारत का 87वां स्थान था. इस सूची में आइसलैंड, नार्वे और फिनलैंड जैसे देश इस साल भी शीर्ष पर रहे. दक्षिण एशियाई देशों में सबसे ऊपर बांग्लादेश 47वें पायदान पर है.
भारत की खराब रैंकिंग के लिए मुख्यतः दो कारक जिम्मेदार हैं. पहला, “स्वास्थ्य और आयु” जिसमें भारत 141वें स्थान पर है. इस मामले में चीन की हालत सबसे खराब है. रिपोर्ट के अनुसार भारत में लड़कों को तरजीह देने की प्रवृत्ति की वजह से लैंगिक असमानता को बढ़ावा मिलता है.
दूसरा, “आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी” के मामले में भारत दुनिया में 139वें स्थान पर रहा. पिछले साल भारत इस मामले में 136वें स्थान पर था. इस मामले में भारत की स्थिति केवल ईरान, यमन, सऊदी अरब, पाकिस्तान और सीरिया जैसे देशों से ही बेहतर रही.
रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में महिलाओं की औसत सालाना आय पुरुषों के मुकाबले काफी कम है. महिलाएं एक समान काम के लिए पुरुषों के वेतन का करीब 60 प्रतिशत ही पाती हैं. कुल कामगारों में एक-तिहाई महिलाएं हैं लेकिन इनमें 65 प्रतिशत महिलाएं दिहाड़ी मजदूरी (कामवाली, बेबी सीटर, कुक इत्यादि) करती हैं, जबकि पुरुषों के कामगार वर्ग का केवल 11 प्रतिशत ही दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करता है. सभी क्षेत्रों को मिलाकर देश में केवल 13 प्रतिशत महिलाएं ही वरिष्ठ पदों, मैनेजर और विधायी पदों पर काम कर रही हैं.
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