नई दिल्ली। ‘परमाणु’ ने धमाके के साथ सिनेमाघरों में एंट्री की है. इस फिल्म को लेकर काफी चर्चा है. इससे देश की सबसे बड़ी शक्ति परीक्षण के पल जुड़े हुए हैं. हालांकि संयुक्त राष्ट्रसंघ की तमाम अटकलों के बाद परमाणु परीक्षण किया गया था. ‘परमाणु’ परीक्षण की कहानी लोगों के दिल में दिलचस्पी व रोमांच पैदा कर रही है, जो आजतक छुपी हुई थी…
परमाणु को पर्दे पर देखने की दिलचस्पी
‘परमाणु’ फिल्म में लोगों को परमाणु परीक्षण की छुपी बातें देखने को मिलेंगी. इस बात को देखना दिलचस्प होगा कि किस प्रकार हमारे देश के वैज्ञानिकों व ईमानदार नेताओं ने मिलकर परमाणु परीक्षण कराया और दुनिया को भनक तक ना लगी.
आखिर किस प्रकार की रणनीति तैयार की गई थी. एक तरफ जहां अमेरिका सेटेलाइट से हम पर नजर रखे रहता है तो वहीं हमनें सेटेलाइट को भी मात दे दी. इसमें सबसे बड़ी व दिलचस्प कड़ी तो यही है. जो कि हमें ‘परमाणु’ देखने के लिए विवश करती है.
तीन दिन पांच सफल परीक्षण
11 मई, 1998 भारत ने तीन परमाणु हथियारों का परीक्षण कर दुनिया को दिखा दिया कि ‘हम किसी से कम नहीं’, तीन दिन के अंदर पांच सफल परीक्षण किए गए. वैज्ञानिक बिरादरी और देश में इसके बाद जश्न का माहौल था. हालांकि धमाका हमारे देश में हुआ लेकिन दुनिया को दहला दिया. इसके साथ ही हम परमाणु शक्ति को आजमाने वाले छठे देश बन गए.
अमेरिकन इंटेलिजेंस की हार
इस परीक्षण को सबसे करारा झटका अमेरिका को लगा था. डीआरडीओ के तत्कालीन चीफ व भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और एईसी के चेयरमैन आर. चिदंबरम की टीम ने देश को परमाणु शक्ति देकर नई शक्ति प्रदान की थी.
इनकी टीम ने इस प्रकार काम किया कि अमेरिका की सबसे चालाक इंटेलिजेंस सीआईए को भनक तक ना लगी. हालांकि अगले दिन अमेरिका की एजेंसी CIA ने उस विस्फोट की सैटेलाइट से ली गई तस्वीरें डाउनलोड कीं तो उसके होश उड़ गए. भारत का ये मिशन CIA की सबसे बड़ी इंटेलिजेंस की हार थी.
इस दौरान गुप्त मिशन के कारण मीडिया में जानकारी नहीं दी गई थी. वैसे भी राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों को गुप्त रखा जाता है लेकिन अब उस पर फिल्म बनाकर मिशन की यादगार झलक दिखाई जा रही है. इन लम्हों को देश आजतक भूला नहीं तो ऐसे में पर्दा पर देखने को मिल रहा तो कैसे चूक सकता है.
-रवि कुमार गुप्ता
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