आज 26 जनवरी 2021 को जब सरकारी गणतंत्र दिवस मन रहा था, लुटियन दिल्ली की सड़कें खेत जोतने वाले ट्रैक्टर से अटे पड़े थे। (मैं सरकारी गणतंत्र दिवस इसलिए कह रहा हूं क्योंकि वर्तमान में देशवासियों के नागरिक कानून बाधित हैं और जब तक ऐसा है, देशवासियों के लिए गणतंत्र दिवस के कोई मायने नहीं हैं।) इसी दिन यह भी हुआ कि लाल किले पर जहां भारत के प्रधानमंत्री तिरंगा फहराते हैं, वहां किसानों ने अपना झंडा फहरा दिया। लाल किले तक किसानों का पहुंचना इत्तेफाक नहीं है। क्योंकि देश में इस सरकार में कुछ चीजें बिना सरकार के चाहे नहीं हो सकती। लाल किले तक किसानों को पहुंचने देना संभवतः सरकार की कोई योजना हो, जिसके जरिए किसान आंदोलन को बदनाम कर सरकार को इस आंदोलन को कुचलने का बहाना मिल सके।
और अगर ऐसा नहीं है, तो किसानों के इस आंदोलन को देश का आंदोलन बनने से कोई नहीं रोक सकता। क्योंकि दिल्ली की चौखट पर दो महीने से अधिक समय से बैठे किसानों ने अब दिल्ली के दिल लुटियन पर दस्तक दे दी है; जहां किसानों के साथ देश की आम जनता भी जुड़ती जा रही है। इस आंदोलन को उन लोगों का भी समर्थन मिल रहा है, जो इस तानाशाह शासन से मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं। किसान देश को अन्न देता है, लेकिन किसान आंदोलन जिस तरह बड़ा बनता जा रहा है, दिखने लगा है कि किसानों के नेतृत्व में देश को एक बार फिर से बोलने, अपने विचार रखने और सत्ता का विरोध करने का उसका मौलिक अधिकार मिल जाए। देश ‘भारत’ बना रहे, ‘हिन्दोस्तान’ बनने से बच जाए।
अशोक दास साल 2006 से पत्रकारिता में हैं। वह बिहार के गोपालगंज जिले से हार्वर्ड युनिवर्सिटी, अमेरिका तक पहुंचे। बुद्ध भूमि बिहार के छपरा जिला स्थित अफौर गांव के मूलनिवासी हैं। राजनीतिक विज्ञान में स्नातक (आनर्स), देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम किया। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहे, विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ‘दलित दस्तक’ (27 मई 2012 शुरुआत) मासिक पत्रिका, वेबसाइट, यु-ट्यूब के अलावा दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं संपादक-प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में अपनी बात रख चुके हैं। 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
