जब यह साफ दिख रहा है कि किसान आंदोलन को हल निकालने के लिए सरकार तैयार नहीं है, अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है। किसान जहां इस बिल को रद्द करने पर अड़े हैं तो सरकार इसमें कोई बदलाव करने के मूड में नहीं है। ऐसे में अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर है। पिछले 47 दिन से किसानों का आंदोलन जारी है। आज (11 जनवरी) शीर्ष अदालत में किसानों का पक्ष मशहूर वकील प्रशांत भूषण रख रहे हैं। इसके अलावा भी अलग-अलग किसान संगठनों के अपने वकील है।
जो खबर आई है, उसके मुताबिक इस बिल पर सुनवाई के दौरान अपनी प्रतिक्रिया में चीफ जस्टिस ने कहा कि जिस तरह से प्रक्रिया चल रही है, हम उससे निराश हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार से दो टूक कहा कि इन कानूनों को अमल में लाने पर केंद्र रोक लगाएं, वरना कोर्ट खुद ऐसा कर देगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि “हम फिलहाल इन कृषि कानूनों को निरस्त करने की बात नहीं कर रहे हैं, यह एक बहुत ही नाजुक स्थिति है। हमें नहीं मालूम की आप (केंद्र) हल का हिस्सा हैं या फिर समस्या का लेकिन हमारे पास एक भी ऐसी याचिका नहीं है, जो कहती हो कि ये कानून किसानों के लिए फायदेमंद हैं।” शीर्ष अदालत ने आंदोलन के दौरान कुछ लोगों की खुदकुशी और बुजुर्ग और महिलाओं के भी इस आंदोलन में शामिल होने का संज्ञान लिया।
सुनवाई के दौरान किसान संगठनों ने कानूनों की वजह से होने वाले नुकसान के बारे में कोर्ट को बताया। एक-एक बात बारीकी से बताई। यह भी बताया गया कि किस तरह से उन्हें आंदोलन करने पर मजबूर किया गया। जहां तक अदालत का सवाल है तो वह इस बिल को तभी रद्द कर सकती है, जब उसे यह लगेगा कि यह बिल संविधान के खिलाफ है। किसानों का पक्ष इसे किस तरह अदालत में संविधान विरोधी बताता है, यह देखना होगा।
एक किसान संगठन और वकील एमएल शर्मा ने चुनौती दी है। शर्मा ने याचिका में कहा है कि केंद्र सरकार को कृषि से संबंधित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है। कृषि और भूमि राज्यों का विषय है और संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 2 (राज्य सूची) में इसे एंट्री 14 से 18 में दर्शाया गया है। यह स्पष्ट रूप से राज्य का विषय है। इसलिए इस कानून को निरस्त किया जाए।
कृषि बिल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अब तक के रुख पर बात करें तो 16 दिसंबर 2020 को कोर्ट ने कहा था कि किसानों के मुद्दे हल नहीं हुए तो यह राष्ट्रीय मुद्दा बनेगा। वहीं 6 जनवरी 2021 को अदालत ने सरकार से कहा कि स्थिति में कोई सुधार नहीं, किसानों की हालत समझते हैं। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की के समक्ष सोमवार को ये सुनवाई इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकार ने कहा है कि यदि सर्वोच्च अदालत किसानों के हक में फैसला देता है तो उन्हें आंदोलन करने की जरूरत नहीं रहेगी।

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