लेखक स्वतंत्र पत्रकार और बहुजन विचारक हैं। हिन्दी साहित्य में पीएचडी हैं। तात्कालिक मुद्दों पर धारदार और तथ्यपरक लेखनी करते हैं। दास पब्लिकेशन से प्रकाशित महत्वपूर्ण पुस्तक सामाजिक क्रांति की योद्धाः सावित्री बाई फुले के लेखक हैं।
भीमराव आंबेडकर होने का मतलब समझाती यह तस्वीर
यह तस्वीर बताती है कि डॉ. आंबेडकर इस देश के सबसे दबे-कुचले लोगों के दिलों में बसते हैं और उनके स्वाभिमान एवं गरिमा के प्रतीक हैं। 21 सदी में अगर किसी एक व्यक्ति का नाम लिया जाए, जिसके प्रति लाखों नहीं करोड़ों लोग अपने आप, अपना सारा प्यार न्यौछावर करने के लिए तैयार हैं, तो उस व्यक्ति का नाम है, बाबा साहेब भीमराव डॉ.आंबेडकर।
आखिर ऐसा क्यों है?
भारत के इतिहास में डॉ. आंबेडकर एक ऐसे व्यक्तित्व हैं, जो अपनी सारी प्रतिभा,मेधा, अध्ययन और शारीरिक उर्जा के साथ उन लोगों के पक्ष में निर्णायक तरीके से खड़े हो गए, जिन्हें इंसानी दर्जा से वंचित कर दिया गया था। वह स्वयं भी उन्हीं लोगों में से एक थे।
इन वंचित लोगों में शूद्र, अतिशूद्र और महिलाएं शामिल थे। यानि भारत की करीब संपूर्ण मेहनतकश आबादी।
इंसानी दर्जा से वंचित बहुजन समाज को बराबरी का इंसानी हक दिलाने के लिए डॉ. आंबेडकर को ब्रह्मा, विष्णु और महेश को भी चुनौती देनी पड़ी, वेदो, स्मृतियों, गीता यानि हिंदू धर्मग्रंथों को ललकारना करना पड़ा। इन धर्मग्रंथों के रचयिताओं तथाकथित महान ऋषियों-मुनियों के पाखंड को उजागर करना पड़ा। आधुनिक काल के तथाकथित महानायक तिलक और गांधी से सीधे टकराना पड़ा। हिंदू संस्कृति की महानता के नाम पर जो कुछ स्थापित था, उसके मनुष्य विरोधी मूल चरित्र को उजागर करना पड़ा।
डॉ. आंबेडकर ने स्वयं लिखा है कि बुद्धिजीवी अपने ज्ञान का एक इस्तेमाल अपने लिए भौतिक समृद्धि एवं पद-प्रतिष्ठा के लिए कर सकता है और दूसरा इस्तेमाल मानव मुक्ति के लिए कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा है कि अधिकांश बुद्धिजीवी पहला वाला रास्ता ही चुनते हैं।
लेकिन डॉ. आंबेडकर ने दूसरा वाला रास्ता चुना। बीसवीं शताब्दी के विश्व की महानतम प्रतिभाओं में से एक डॉ. आंबेडकर ने अपना सबकुछ मानव मुक्ति के लिए समर्पित कर दिया। इसके बदले में उन्हें और उनके परिवार को भूखमरी जैसे अभावों का सामना करना पड़ा और अपने चार-चार बच्चों को असमय खोना पड़ा। जिसका मार्मिक वर्णन उन्होंने स्वयं किया है। अभावों और दुखों के पहाड़ के बीच जीने के चलते उनकी पत्नी रमाबाई आंबेडकर भी बीमारी का शिकार होकर असमय मौत के मुंह में समा गईं।
यह कहना किसी को अतिश्योक्ति लग सकती है, लेकिन यह पूरी तरह सच है कि डॉ. आंबेडकर न्याय एवं समता के लिए संघर्ष करने वाले भारतीय इतिहास के सबसे महानतम योद्धा थे।
इस महानतम योद्धा को भारतीय इतिहास का सबसे कठिन युद्ध लड़ना था। जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हूं, उन्हें इंसानों से टकराने के साथ भगवानों, धरती के भूदेवों- ब्राह्मणों, तथाकथित महान ग्रंथों और आधुनिक युग के नए महात्मा गांधी को चुनौती देनी थी, जो जीवन के अंतिम समय तक शूद्रों, अतिशूद्रों और महिलाओं की वंचना के लिए जिम्मेदार वर्ण-व्यवस्था का समर्थन करते रहे और ब्राह्मणों को ब्रह्मांड का सबसे सुंदर फूल कहते रहे। गांधी से टकराने का क्या मतलब है, यह कोई भी अंदाज लगा सकता है। इन सबसे टकराकर उन्हें प्रबुद्ध भारत के निर्माण के लिए संघर्ष करना था।
अब धीरे-धीरे इस भारत के इस महानतम योद्धा को वे लोग पहचान रहे हैं, जिनके लिए उन्होंने अपना सारा जीवन कुर्बान कर दिया। उन्हीं में से एक यह बुढिया मां भी है, जो अपने महानतम बेटे की तस्वीर अपनी छोटी सी झोपड़ी-झोपड़ी भी कहना मुश्किल है- पर लगा रखी है।
यह प्यार और सम्मान विरलों को मिलता है। जो डॉ. आंबेडकर को मिला।