मातृत्व लाभ बिल 2016 को राज्यसभा ने मंजूरी दे दी. लोकसभा की मंजूरी अभी बाकी है. बिल से सरकारी और निजी क्षेत्रा में काम करने वाली महिलाओं को 26 हफ्ते का मातृत्व अवकाश मिलने का रास्ता साफ हो गया. हालांकि तमिलनाडू में 26 हफ्ते के मातृत्व अवकाश का प्रावधान पहले से ही है. नये विधेयक के अनुसार मातृत्व अवकाश के दौरान महिलाओं को वेतन भी मिलेगा और तीन हजार रुपये का मातृत्व बोनस भी. 26 हफ्ते का मातृत्व अवकाश सिर्फ दो बच्चों के जन्म तक ही मिलेगा. दो से अधिक बच्चे होने पर अवकाश सिर्फ 12 हफ्ते का ही रहेगा. बच्चे को गोद लेने वाली महिला को भी 12 हफ्ते का मातृत्व अवकाश मिलेगा. महिलाओं को सार्वजनिक मातृत्व अवकाश देने वाला भारत दुनिया का तीसरे नंबर का देश होगा. मातृत्व अवकाश के मामले में भारतीय महिलाओं की स्थिति अमेरिका से काफी बेहतर कही जा सकती है. अमेरिका दुनिया का एक मात्रा ऐसा देश है जहां महिलाओं को मातृत्व के दौरान वेतन नहीं मिलता. यदि अन्य देशों की बात करें तो अमेरिका, पाकिस्तान, श्रीलंका एवं म्यांमार में 12 हफ्ते, अफगानिस्तान व इंडोनेशिया में 13 हफ्ते, चीन में 14 हफ्ते, बांग्लादेश व सिंगापुर में 16 हफ्ते, ईरान में 17 हफ्ते और वियतनाम में 26 हफ्ते का मातृत्व अवकाश मिलता है.
सरकार के साथ-साथ निजी क्षेत्रों में काम करने वाली महिला कर्मचारियों को भी मिलेगा. राज्यसभा में पारित हो चुके इस विधेयक का दायरा उन सभी कंपनियों तक फैला हुआ है जहां 10 से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं. अनुमान है कि 18 लाख महिलाएं उक्त सुविधा का लाभ उठा सकेंगी. यह उन सामाजिक संगठनों की जीत है जो लम्बे अर्से से संघर्ष कर रहे थे. क्या निजी संस्थान महिलाओं को मातृत्व अवकाश दे पायेंगे? सच तो यह है कि आरोप-प्रत्यारोप लगा कर ऐसी महिलाओं को पहले ही संस्थान से निकाल देते हैं या फिर नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर कर देते हैं. जहां नीयत में खोट हो वहां नियम क्या करेगा?
19 जुलाई 1937 में बाबा साहेब डॉ. आम्बेडकर ने बंबई विधानसभा के सदस्य की शपथ लेने के बाद कहा था कि महोदय! प्रेसिडेंसी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए प्रेसिडेंसी में निरक्षरता, मलेरिया, गनोरिया, सिफलिस तथा अन्य बीमारियों की व्यापकता को ध्यान में रखते हुए मुझे यह पूछने का तनिक भी संकोच नहीं है कि क्या सरकार अपना उत्तरदायित्व ठीक प्रकार से निभा रही है? उसने मात्र सैंतीस लाख ग्यारह हजार रुपये का बजट पेश किया है. कामकाजी महिलाओं की कवायद करते हुए बाबा साहेब डॉ.आंबेडकर ने कहा कि ‘कृषि तथा अन्य व्यवसायों में महिलाओं को उन खतरों का सामना नहीं करना पड़ता है. यानी वहां वे हालात नहीं हैं जो फैक्टरियों में हैं. जो हालात फैक्टरियों में काम करने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, ऐसी स्थिति में जच्चा का कुछ समय के लिए प्रसव से पूर्व तथा कुछ समय के लिए प्रसव के पश्चात विश्राम दिया जाए.
ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत महिला प्रसूति लाभ अधिनियम 1941 पर चर्चा करते हुए बाबा साहेब डॉ.अम्बेडकर ने कहा था कि वर्तमान खदान प्रसूति लाभ विधेयक के तहत खदान की एक महिला कर्मचारी 8 हफ्तों का लाभ आठ आना प्रतिदिन की दर से ले सकती है. यह आठ हफ्ते का समय चार-चार हफ्ते के दो भागों में बांटा गया है. पहला भाग प्रसव के पहले और दूसरा प्रसव के बाद. पहले भाग में महिला स्वैच्छिक आराम कर सकती है और चाहे तो निरंतर काम करके पूरा वेतन अर्जित कर सकती है. आराम के लिए काम से गैर हाजिर रहने पर वह प्रसूति लाभ पा सकती है. प्रसूति के बाद का चार हफ्ते का समय आवश्यक आराम का समय है, जिसमें किसी महिला को काम नहीं करना चाहिए. वास्तव में इस अवस्था में उसका काम करना गैर कानूनी और आपराधिक है. उसे केवल प्रसूति लाभ पर ही संतुष्ट होना है. प्रसूति लाभ विधेयक की धारा 5 में प्रसूति लाभ की आदायगी का प्रावधान किया गया है. यदि माननीय सदस्य इस प्रावधान की पंक्ति 9 में काम के संदर्भ में वर्णित शब्दों की ओर ध्यान दे तो पायेंगे कि शब्दावली काम से गैर हाजिर का प्रयोग या फिर काम से शब्द अस्पष्ट है. मैं संक्षेप में स्पष्ट करूंगा कि इनमें क्या अस्पष्टता है? मान लीजिए कि खदान के मालिक ने किसी विशेष दिन खदान बंद कर दी तो क्या उस दिन से महिला कर्मचारी को प्रसूति लाभ पाने का अधिकर है? कहा जाता है कि नहीं. क्योंकि काम से गैरहाजरी शब्दों की जटिलता का यह भी अर्थ निकलता है कि काम तो है किन्तु जब खदान बंद कर दी गई तो काम नहीं.
प्रवर समिति द्वारा जो संशोधन हुआ उस विषय में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर कहते हैं. प्रवर समिति ने जो पहला परिर्वतन किया है कि गर्भवती स्त्री को धरातल के नीचे कार्यों पर भेजे जाने की अवधि संबंधी प्रतिबंध है. मूल विधेयक में प्रसूति से 10 सप्ताह पूर्व ओर प्रसूति से चार सप्ताह बाद तक प्रतिबंध था. प्रवर समिति ने मूल से प्रसूति पूर्व की प्रस्तावित अवधि में परिवर्तन नहीं किया परन्तु प्रसूति उपरांत की अवधि में जो परिवर्तन किए गए हैं वे व्यापक हैं. यह प्रतिबंध अवधि चार सप्ताह से बढ़ा कर छत्तीस सप्ताह कर दी है. धरातल के नीचे कार्य कारने वाली स्त्रियों को प्रसूति लाभ के प्रवर समिति ने निम्नलिखित परिवर्तन किए हैं. मूल विधेयक में धरातल के नीचे कार्य करने वाली स्त्रियों की प्रसूति लाभ की पात्राता की दो शर्तें रखी गई थीं. वे शर्तें थीं प्रसूति से न्यूनतम छह महीने पहले खदान में कार्यरत होना और इन छह महीनों में 90 दिन तक धरातल के नीचे कार्य. प्रवर समिति ने पहली शर्त हटा दी है अर्थात खदान में न्यूनतम छह माह की सेवा ताकि संशोधित विधयेक में बस इतना ही पर्याप्त माना जाए कि स्त्री ने प्रसूति से पूर्व के छह महीना में नब्बे दिन तक तल के नीचे कार्य किया है. उस स्थिति में वह प्रसूति लाभ की पात्र होगी.
प्रवर समिति ने लाभ की अवधि में भी संशोधन किए हैं. मूल विधेयक में प्रसूति लाभ की अवधि प्रसूति से दस सप्ताह पूर्व और प्रसूति उपरांत चार थी. प्रवर समिति ने प्रसूति उपरांत लाभ प्राप्त करने की अवधि चार से बढ़ा कर छह सप्ताह कर दी है. साथ ही लाभ राशि में भी परिवर्तन कर दिया गया है. मूल रूप से लाभ राशि आठ आना प्रतिदिन थी. प्रवर समिति ने इसे बढ़ा कर छह रुपये प्रति सप्ताह कर दिया है. जो चौदह आना प्रतिदिन से कुछ कम है. फिर दूसरी अवधि को अधिकृत छुट्टी घोषित कर दिया गया. ताकि इस काल के दौरान कोई मालिक इस विधेयक के अधीन आने वाली स्त्री को निकाल न सके.
प्रवार समिति ने जो अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान किया है वह लाभ की पात्र स्त्री की मांग पर उसकी डॉक्टरी जांच महिला डॉक्टर से कराई जाएगी. यह प्रावधान मूल विधेयक में नहीं था. मैं सदन का ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूं कि नीचे कार्य छत्तीस प्रतिबंधित सप्ताहों के बीच कोई स्त्री बत्तीस सप्ताहों के दौरान धरातल के नीचे कार्य को छोड़कर अपनी आमदनी के लिए अन्य कार्य कर सकती है. यह व्यवस्था मूल विधेयक में नहीं थी.
सरकारी या निजी स्तर की महिला कर्मचारियों ने मातृत्व अवकाश के लिए दावेदारी की पर किसी ने यह नहीं सोचा कि इस विधेयक को प्रस्तुति करने वाला कौन था? यह विधेयक किसी उच्चवर्णीय द्वारा प्रस्तुत किया होता तो वह इस देश में भगवान या देवी बना जाती है. गैर दलित की तो बात ही छोड़िए अधिकांश दलित भी नहीं जानते कि यह विधेयक बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने पहली बार प्रस्तुत किया था. बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का मूल्यांकन सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक रूप में इतना किया कि सौ से अधिक शीर्षक से हिन्दी बाजार में पुस्तक देखी जा सकती हैं पर स्वास्थ्य के संबंध में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को लेकर कोई किताब नहीं लिखी गई. डॉ. जुगल किशोर ने डॉ. अम्बेडकर और स्वास्थ्य को लेकर आलेख सामाजिक न्याय संदेश पत्रिका में जरूर लिखा.

दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।