- 2 जुलाई, 2019, एथलेटिक्स ग्रांप्री, पोलैंड, 200 मीटर, विजेताः- हिमा दास (भारत)
- 7 जुलाई, 2019, एथलेटिक्स मीट, कुत्नो, पोलैंड, 200 मीटर, विजेताः- हिमा दास (भारत)
- 13 जुलाई, 2019, एथलेटिक्स मीट, क्लाइनो, चेक रिपब्लिक, 200 मीटर, विजेताः- हिमा दास (भारत)
- 17 जुलाई 2019, एथलेटिक्स मीट, टाबोर, चेक रिपब्लिक, 200 मीटर, विजेताः- हिमा दास (भारत)
ये उस बेटी की उपलब्धियां हैं, जो भारत की है. असम के सुदूर गांव में धान के खेतों से निकल कर अंतरराष्ट्रीय मैदान पर फर्राटा भरने वाली हिमा दास की गिनती आज अंतरराष्ट्रीय एथलीट के तौर पर होती है. लेकिन दुनिया को चौंकाने वाली यही हिमा दास अपने देश के तमाम लोगों के दिलों में जगह नहीं बना पाई है. क्योंकि बीते पंद्रह दिनों में विदेशी धरती पर सबको पछाड़ते हुए एक के बाद एक चार गोल्ड मेडल हासिल करने वाली हिमा दास की उपलब्धियों पर देश में कोई शोर नहीं है.
न देश की बेटी की इस शानदार उपलब्धि पर 24 घंटे के चैनल चिल्ला रहे हैं और न ही सोशल मीडिया पर ही कोई बड़ा उबाल है. बात-बात पर ट्विट करने वाले देश के कद्दावर नेता भी नदारद हैं. देश में न तो हिमा दास के जीत की बहुत चर्चा है और न ही उनके उस बड़े कदम की जिसने हिमा के कद को और बढ़ा दिया है. दरअसल हिमा ने अपने राज्य असम में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए अपनी आधी सैलरी दान में दे दी है, जो उसे इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन से मिलती है. खुद मुफलिसी से निकली हिमा जानती है कि आपदा की मार सबसे ज्यादा गरीबों को पड़ती है.
हिमा बीते साल जुलाई में तब अचानक से सुर्खियों में आई थीं, जब उन्होंने फिनलैंड में वर्ल्ड अंडर 20 चैम्पियनशिप की महिलाओं की 400 मीटर स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर दुनिया भर में तहलका मचा दिया था. बावजूद इसके 15 दिन के भीतर चार सवर्ण पदकों की उनकी धमक क्रिकेट के शोर और समाज की सोच के भीतर दब गई.
ऐसा सिर्फ हिमा दास के साथ ही नहीं हुआ. बल्कि एक और खिलाड़ी थी, जिसने इस दर्द को महसूस किया होगा. यह बात 9 जुलाई की है. भारत की स्टार धावक दुती चंद ने इटली में चल रहे वर्ल्ड यूनिवर्सियाड में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था. दुती चंद ने 100 मीटर की दौड़ को 11.32 सेकेंड में पूरा कर स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया था. यह महज एक जीत भर नहीं थी, बल्कि उससे कहीं ज्यादा थी क्योंकि वर्ल्ड यूनिवर्सियाड में यह कारनामा दुती चंद के पहले कोई भी महिला खिलाड़ी नहीं कर पाई थी. भारतीय पुरुषों में भी 2015 में सिर्फ शॉटपुट के खिलाड़ी इंद्रजीत सिंह यह उपलब्धि हासिल कर पाए थे. हिमा दास का बाद दुती ऐसी दूसरी भारतीय महिला एथलीट हैं जिसने किसी भी वैश्विक टूर्नामेंट में गोल्ड जीता था.
इटली से आई इस शानदार खबर के बावजूद भारतीय लोगों में कोई सुगबुगाहट देखने को नहीं मिली. क्योंकि तकरीबन हर कोई दूसरे दिन 10 जुलाई को होने वाले भारत-न्यूजीलैंड वर्ल्ड कप क्रिकेट के सेमीफाइनल की चिंता में डूबा था. दुति चंद की यह उपेक्षा तब थी, जब यूनिवर्सियाड को ओलंपिक के बाद दुनिया का सबसे बड़ा टूर्नामेंट माना जाता है और इसमें 150 देशों के खिलाड़ी शामिल होने आते हैं.
इन दोनों खिलाड़ियों की जीत पर उपेक्षा सरीखी चुप्पी सवाल उठाती है. एक बात यह भी आ रही है कि उनकी जीत क्रिकेट के शोर में दब गई. लेकिन यह पूरा सच नहीं है. सवाल उठता है कि क्या हिमा दास और दुति चंद की पृष्ठभूमि देश के भद्र लोगों को उनकी तारीफ करने से रोकती है. क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर देश का मान बढ़ाने के बावजूद मुक्केबाज मैरीकॉम, शूटर राज्यवर्धन सिंह राठौर, शटलर साईना नेहवाल और पी.वी संधु से प्रसिद्धी में पीछे नजर नहीं आती.
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।