“एक वैज्ञानिक… जिसने दुनिया की सबसे बड़ी फिजिक्स लैब में अपनी प्रतिभा और अपने देश का परचम लहराया… अपनी ही यूनिवर्सिटी ने उसे ‘योग्य’ नहीं माना है। दिल्ली विश्वविद्यालय में फिजिक्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार का मामला आपको झकझोर कर रख देगा।
यूरोप की मशहूर फिजिक्स लैब CERN में कई बेहद महत्वपूर्ण प्रयोगों में हिस्सा ले चुके डॉ. अशोक कुमार को उनकी अपनी दिल्ली यूनिवर्सिटी ने प्रोफेसर पद पर प्रमोशन के लायक नहीं माना है। दिल्ली यूनिवर्सिटी ने प्रो. अशोक कुमार को नॉट फाउंड सुटेबल घोषित कर दिया है। हैरत की बात यह है कि सारे नियमों को ताक पर रखते हुए डीयू की चयन समिति ने उनसे जूनियर दो सहयोगियों को पदोन्नति दे दी है। ये दोनों ऐसे हैं जो डॉ. कुमार की उपलब्धियों के सामने कहीं नहीं ठहरते हैं। जिससे बहुजन समाज भड़क गया है और यूनिवर्सिटी के इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
दरअसल जिस डॉ. अशोक कुमार को नॉट फाउंट सुटेबल घोषित किया गया है, उनकी प्रतिभा और उपलब्धियों के सामने दिल्ली यूनिवर्सिटी के कई तथाकथित मेरिटधारी और सुटेबल प्रोफेसर पानी भरते दिखते हैं। आप खुद देखिए-
- डॉ. कुमार ने यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन यानी European Organization for Nuclear Research के महत्वपूर्ण प्रयोगों में योगदान दिया है।
- वर्ष 2025 में उन्हें 3 मिलियन डॉलर का Breakthrough Prize in Fundamental Physics से सम्मानित किया गया है, जो भौतिकी के क्षेत्र में उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा का प्रतीक है और इसे भौतिकी का नोबेल पुरस्कार कहा जाता है।
- डॉ. कुमार CERN की Compact Muon Solenoid (CMS) प्रयोगशाला से 2001 से जुड़े हुए ।
- उन्होंने कुल मिलाकर 35 करोड़ रुपये से अधिक के कई सीरियस रिसर्च ग्रांट्स हासिल किया है, जो उनके शोध प्रोजेक्ट्स की क्वालिटी और उनकी नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है।
- वे दिल्ली यूनिवर्सिटी के ‘Top‑10’ सबसे ज़्यादा उद्धृत वैज्ञानिकों में पाँचवे नंबर पर हैं।
- अब बात उनके योग्य होने की। शोध इंडेक्स को h- इंडेक्स से मापा जाता है। डॉ. अशोक कुमार का h‑इंडेक्स 120 है, जबकि भारत में प्रोफेसरों का औसत h-इंडेक्स 20 से कम होता है।
- उनके शोध पत्रों को अकादमिक समुदाय में अत्यधिक उद्धृत किया गया है।
- वर्तमान में वे Technical Coordinator के रूप में CMS के GEM प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रहे हैं—जिसमें म्योन डिटेक्शन के लिए नए डिटेक्टर विकसित करने का काम शामिल है।
इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद डॉ. अशोक कुमार को प्रोफेसर पद के लिए उपर्युक्त यानी सुटेबल नहीं माना गया है।
हालांकि मामले की लीपापोती करते हुए अब चयन समिति का कहना है कि यह सामूहिक निर्णय था। लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी के टॉप 10 साइंटिस्टों में 5 वे नंबर शामिल डॉ. अशोक कुमार, जो कि साल 2021 से ही प्रोफेसर बनने के योग्य हैं, उनको प्रोफेसर नहीं बनाना अब दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए गले की हड्डी बन गया है। इस फैसले को लेकर जहां डीयू की कड़ी आलोचना हो रही है, तो वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी के इस फैसले ने भारतीय विश्वविद्यालय में फैले भयंकर जातिवाद की कलई एक बार फिर खोलकर रख दी है, जिसकी चर्चा अब दुनिया भर में हो रही है। डीयू पर आरोप है कि डॉ. अशोक कुमार का प्रमोशन इसलिए नहीं किया गया, क्योंकि वह दलित समाज से आते हैं। देखना होगा कि इस फजीहत से बचने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी का प्रशासन क्या डॉ. अशोक कुमार को उनका हक देगा, जिसके वह हकदार हैं।

पत्रकारिता और लेखन में रुचि रखने वाले सिद्धार्थ गौतम दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वहां वह विश्वविद्यायल स्तर के कई लेखन प्रतियोगिताओं के विजेता रहे हैं। पिछले दो साल से दलित दस्तक से जुड़े हैं और सब-एडिटर के पद पर कार्यरत हैं।