उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के फाफामऊ में बीते 26 नवंबर को एक दलित परिवार के चार लोगों की हत्या की जिस खबर से यूपी सहित देश भर में सनसनी फैल गई थी, अब उस मामले में नया मोड़ आ गया है और पुलिस ने एक दलित युवक को ही आरोपी बना डाला है। हालांकि दलित परिवार की हत्या के आरोप में दलित युवक को ही आरोपी बनाए जाने को लेकर पुलिस जो थ्योरी दे रही है, उससे न तो पीड़ित परिवार संतुष्ट है और न ही दलित समाज के संगठन। बल्कि पुलिस की नई थ्योरी से पुलिस पर ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
यूपी चुनाव पास होने के कारण इस मामले ने राजनीतिक तूल पकड़ लिया था। योगी सरकार और यूपी की पुलिस पर इस घटना को जल्दी हल करने का दबाव था। मामला तूल पकड़ने के बाद पुलिस ने आनन-फानन में सवर्ण समाज के आठ लोगों को गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन नए घटनाक्रम में पुलिस ने अब आठ लोगों को रिहा कर दिया है, साथ ही इस मामले में 23 साल के पवन सरोज और दो अन्य युवाओं को गिरफ्तार किया है। पवन सहित तीनों युवा दलित समाज से हैं, जिससे यह मामला और गरमा गया है।
सवर्ण आरोपियों को रिहा करने और इस मामले में दलित युवकों को ही आरोपी बनाए जाने के बाद अब पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाने शुरू हो गए हैं। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इसकी वजह यह भी है कि पुलिस ने अभी तक पवन सरोज के खिलाफ कोई बड़ा सबूत सामने नहीं रखा है। पुलिस का बस इतना भर कहना है कि पवन ने कुछ लोगों के साथ मिलकर इस वारदात को अंजाम दिया है।
29 नवंबर को नई थ्योरी को सामने रखते हुए प्रयागराज के एडीजी प्रेम प्रकाश ने कहा था कि पवन सरोज मृतक परिवार की लड़की को मोबाइल पर मैसेज भेजकर उसे लगातार परेशान कर रहा था, लेकिन लड़की उसे नजरअंदाज कर रही थी। अंतिम मैसेज और सबूतों के आधार पर पवन सरोज की गिरफ्तारी हुई है।
लेकिन पुलिस की इस थ्योरी पर खुद मृतक परिवार के परिजनों ने ही सवाल उठा दिया है। मारे गए लोगों के परिजनों का आरोप है कि पुलिस सवर्ण समुदाय के लोगों को बचा रही है। द इंडियन एक्सप्रेस से दिये बयान में उनका तर्क है कि पवन सरोज कैसे एक परिवार के चार लोगों की हत्या कर सकता है। मृतक फूलचंद्र के भाई का सवाल है कि अगर पवन सरोज को मारना होता तो वह सिर्फ लड़की को मारता, न कि पूरे परिवार को।
परिजनों का कहना है कि मारे गए परिवार का सवर्ण समाज के पड़ोसी के परिवार के एक शख्स के साथ जमीन को लेकर विवाद चल रहा था और सितंबर में इन लोगों पर हमला भी हुआ था। दूसरी ओर पवन सरोज के घरवालों का भी कहना है कि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
26 नवंबर को घटी सनसनीखेज हत्याकांड में 50 साल के फूलचंद्र, 45 साल की उनकी पत्नी मीनू, 17 साल की बेटी और 10 साल के बेटे की हत्या कर दी गई थी। महिला और उसकी बेटी के साथ बलात्कार की बात की भी पुष्टि हुई थी। पुलिस चाहे जो थ्योरी पेश करे.. सच क्या है, यह अभी सामने आना बाकी है। क्योंकि इस पूरे मामले में अंतिम नतीजे पर पहुंचने में पुलिस की हड़बड़ी साफ दिख रही है। और मृतक परिवार के कई सवालों के जवाब पुलिस अब भी नहीं ढूंढ़ पाई है।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।