नई दिल्ली। देशभर में दलितों पर बढ़ते अत्याचार को लेकर नागरिक संगठन सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) ने एक बार फिर देश की अंतरात्मा को झकझोरने वाला खुलासा किया है। संगठन ने 30 जून को 9 राज्यों से 30 दलित-विरोधी अत्याचार के मामलों को एक दस्तावेज के रूप में तैयार कर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) को सौंपा और इन मामलों में त्वरित न्याय और कार्रवाई की मांग की है।
इन मामलों में शारीरिक हिंसा, सामाजिक बहिष्कार, मंदिरों में प्रवेश से रोकने, दलित महिलाओं के साथ बलात्कार, और सरकारी तंत्र की निष्क्रियता जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। CJP ने साफ तौर पर कहा है कि ये घटनाएं सिर्फ आपराधिक नहीं हैं, बल्कि यह देश की जातिगत संरचना में गहराई से जड़े भेदभाव और हिंसा के प्रमाण हैं।
सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) ने जिन प्रमुख घटनाओं का जिक्र किया है, उनमें-
भागलपुर, बिहार में एक दलित महिला को पुलिस द्वारा सार्वजनिक रूप से बाल पकड़कर घसीटने का मामला, हिमाचल प्रदेश के मंडी में एक दलित युवक को मंदिर में प्रवेश से रोकने और समुदाय के सामने बेइज्ज़त करने का मामला सहित महाराष्ट्र के बीड में दलित युवक को मदद करने पर सामंती ताकतों द्वारा सरेआम पीटाई करने और आंध्र प्रदेश के तिरुपति में दलित छात्रा के अपहरण और बलात्कार का मामला शामिल है, जिसमें अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।
इन घटनाओं के अलावा प्रधामंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात का एक मामला भी शामिल है। इसमें एक दलित की लाश संदिग्ध अवस्था में पाई गई, लेकिन पुलिस ने हत्या की प्राथमिकी दर्ज नहीं की। इन घटनाओं का जिक्र करते हुए CJP ने आयोग को सौंपे अपने ज्ञापन में लिखा,
“यह सिर्फ घटनाओं की सूची नहीं है, यह भारत की लोकतांत्रिक आत्मा पर हमला है। जब न्याय प्रणाली और पुलिस भी जाति देखकर कार्रवाई करती हैं, तो यह संविधान की आत्मा के साथ विश्वासघात है।”
पृष्ठभूमि और आंकड़े:
CJP ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 2021 में अनुसूचित जातियों पर अत्याचार के 70,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से 90% से ज्यादा अब तक लंबित हैं। सजा की दर मात्र 40% है। यह दर्शाता है कि केवल एफआईआर दर्ज होना पर्याप्त नहीं, बल्कि दलितों और आदिवासियों के मामले में न्याय तक पहुंच अब भी एक चुनौती बनी हुई है।
अपने ज्ञापन में सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) ने मांग की है कि सभी 30 मामलों में विशेष जाँच टीम गठित कर दोषियों को गिरफ़्तार किया जाए। साथ ही पीड़ित परिवारों को समुचित मुआवज़ा और सामाजिक सुरक्षा दी जाए। सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस का यह भी कहना है कि अनुसूचित जाति अत्याचार निवारण अधिनियम (SC/ST Act) के तहत तेज़ सुनवाई और विशेष कोर्ट की स्थापना हो। साथ ही अनुसूचित जाति आयोग हर 3 महीने में दलित-हिंसा पर सार्वजनिक रिपोर्ट जारी करे।
इन घटनाओं से यह साफ हो गया है कि भारत में जातिगत भेदभाव केवल सामाजिक समस्या नहीं, बल्कि यह एक संस्थागत हिंसा का रूप ले चुका है। यदि आयोग और सरकारें समय रहते सक्रिय नहीं हुईं, तो यह आग भविष्य में और अधिक व्यापक रूप ले सकती है।
(सोर्स: CJP रिपोर्ट, Sabrang India, और राष्ट्रीय मानवाधिकार से संबंधित दस्तावेज)
