कानपुर प्रकरण के बाद अपराधी की जाति और धर्म को लेकर बड़ी चर्चाएंं चली है। लेकिन सच यही है कि उसकी जाति भी होती है और धर्म भी। उसका परिवार भी होता है और रिश्तेदार भी। उसकी जाति के नेता भी होते हैं और अफसर भी। सजातीय पुलिस वाले भी उसकी मदद करते हैं। भले ही अपराधी अपनी ही जाति के लोगों की हत्या क्यों न करे लेकिन ऐसा होता है। और पुलिस इसमें खाद पानी डालने का काम करती रही है। पहले डाकू समस्या के दौरान यह समस्या एक अलग रूप में थी। वह समाप्त या लगभग न के बराबर रह गयी तो शहरी या देहाती इलाके के सफेदपोश अफराधियों में यह कहीं और वीभत्स रूप में दिख रही है।
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